RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
फिर धन्नो ने पंडित जी को नीद मे सो जाने और सावित्री को अकेली पाते ही गर्म बातों का लहर और तेज करते हुए धीमी आवाज़ मे आगे बोली "तुम्हे क्या बताउ बेटी ...मुझे डर लगता है की तुम मेरी बात को कहीं ग़लत मत समझ लेना...तुम्हारे उम्र की लड़कियाँ तो इस गाओं मे तूफान मचा दी हैं...और तुम हो एकदम अनाड़ी ...और गाँव के कुच्छ औरतें तो यहाँ तक कहती है की तुम्हारी मुनिया तो पान भी नही खाई होगी..." सावित्री को यह बात समझ नही आई तो तुरंत पुछि "कौन मुनिया और कैसा पान ?" धन्नो चाची इतना सुनकर सावित्री के कान मे काफ़ी धीरे से हंसते हुए बोली "अरे हरजाई तुम इतना भी नही जानती ..मुनिया का मतलब तुम्हारी बुर से है और पान खाने का मतलब बर जब पहली बार चुदति है तो सील टूटने के कारण खून पूरे बुर पर लग जाता है जिसे दूसरी भाषा मे मुनिया का पान खाना कहते हैं...तू तो कुच्छ नही जानती है...या किसी का बाँस खा चुकी है और मुझे उल्लू बना रही है" धन्नो की ऐसी बात सुनते ही सावित्री को मानो चक्कर आ गया. वह कभी नही सोची थी कि धन्नो चाची उससे इस तरह से बात करेगी. उसका मन और शरीर दोनो सनसनाहट से भर गया. सावित्री के अंदर अब इतनी हिम्मत नही थी की धन्नो के नज़र से अपनी नज़र मिला सके. उसकी नज़रें अब केवल फर्श को देख रही थी. उसके मुँह से अब आवाज़ निकालने की ताक़त लगभग ख़त्म हो चुकी थी. धन्नो अब समझ गयी की उसका हथोदा अब सावित्री के मन पर असर कर दिया है. और इसी वजह से सावित्री के मुँह से किसी भी तरह की बात का निकलना बंद हो गया था. धन्नो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सावित्री के कान के पास काफ़ी धीरे से फुसफुससाई "तुम्हे आज मैं बता दूं की जबसे तुम कस्बे मे इस दुकान पर काम करने आना सुरू कर दी हो तबसे ही गाओं के कई नौजवान तो नौजवान यहाँ तक की बुड्ढे भी तेरी छाति और गांद देखकर तुम्हे पेलने के चक्कर मे पड़े हैं..और मैं तो तुम्हे खुल कर बता दूं कि काफ़ी संभाल कर रश्ते मे आया जाया कर नही तो कहीं सुनसान मे पा कर तुम्हे पटक कर इतनी चुदाइ कर देंगे की ...तुम्हारी मुनिया की शक्ल ही खराब हो जाएगी."
धन्नो फिर आगे बोली "तुम्हारे जैसे जवान लड़की को तो गाओं के मर्दों के नियत और हरकत के बारे मे पूरी जानकारी होनी चाहिए..और तू है की दुनिया की सच्चाई से बेख़बर....मेरी बात का बुरा मत मानना ..मैं जो सच है वही बता रही हूँ....तेरी उम्र अब बच्चों की नही है अब तुम एक मर्द के लिए पूरी तरह जवान है...." सावित्री धन्नो के इन बातों को सुनकर एक दम चुप चाप वैसी ही बैठी थी. सावित्री धन्नो की इन बातों को सुनकर डर गयी की गाओं के मर्द उसके चक्कर मे पड़े हैं और धन्नो के मुँह से ख़ूले और अश्लील शब्दों के प्रयोग से बहुत ही लाज़ लग रही थी.
धन्नो फिर लगभग फुसफुससाई "तुम्हे भले ही कुच्छ पता ना हो लेकिन गाओं के मर्द तेरी जवानी की कीमत खूब अच्छि तरीके से जानते हैं...तभी तो तेरे बारे मे चर्चा करते हैं..और तुम्हे खाने के सपने बुनते हैं..." आगे फिर फुसफुससते बोली "तेरी जगह तो कोई दूसरी लड़की रहती तो अब तक गाओं मे लाठी और भला चलवा दी होती...अरे तेरी तकदीर बहुत अच्छि है जो भगवान ने इतना बढ़िया बदन दे रखा है..तभी तो गाओं के सभी मर्द आजकल तेरे लिए सपने देख रहे हैं..ये सब तो उपर वाले की मेहेरबानी है." धन्नो के इस तरह के तारीफ से सावित्री को कुच्छ समझ नही आ रहा था की आख़िर धन्नो इस तरह की बाते क्यों कर रही है. लेकिन सावित्री जब यह सुनी की गाओं के मर्द उसके बारे मे बातें करते हैं तो उसे अंदर ही अंदर एक संतोष और उत्सुकता भी जाग उठी. धन्नो अब सावित्री के मन मे मस्ती का बीज बोना सुरू कर दी थी. सावित्री ना चाहते हुए भी इस तरह की बातें सुनना चाहती थी. फिर धन्नो ने रंगीन बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए बोली "तुम थोड़ा गाओं के बारे मे भी जानने की कोशिस किया कर..तेरी उम्र की लौंडिया तो अब तक पता नही कितने मर्दों को खा कर मस्त हो गयी हैं और रोज़ किसी ना किसी के डंडे से मार खाए बगैर सोती नही हैं..और तू है की लाज़ से ही मरी जा रही है" फिर कुच्छ धीमी हँसी के साथ आगे बोली "अरे हरजाई मैने थोड़ी सी हँसी मज़ाक क्या कर दी की तेरी गले की आवाज़ ही सुख गयी..तू कुच्छ बोलेगी की ऐसे ही गूँग की तरह बैठी रहेगी..और मैं अकेले ही पागल की तरह बकती रहूंगी.." और इतना कहने के साथ धन्नो एक हाथ से सावित्री की पीठ पर हाथ घुमाई तो सावित्री अपनी नज़रें फर्श पर धँसाते हुए ही हल्की सी मुस्कुराइ. जिसे देख कर धन्नो खुश हो गयी. फिर भी धन्नो के गंदे शब्दों के इस्तेमाल के वजह से बुरी तरह शर्मा चुकी सावित्री कुच्छ बोलना नही चाहती थी. फिर धन्नो ने धीरे से कान के पास कही "कुच्छ बोलॉगी नही तो मैं चली जाउन्गि.." धन्नो के इस नाराज़ होने वाली बात को सुनते ही सावित्री ना चाहते हुए भी जबाव दी "क्या बोलूं..आप जो कह रहीं हैं मैं सुन रही हूँ.." और इसके आगे सावित्री के पास कुच्छ भी बोलने की हिम्मत ख़त्म हो गयी थी. फिर धन्नो ने सावित्री से पुछि "पंडित जी रात को अपने घर नही जाते क्या?" इस सवाल का जबाव देते हुए सावित्री धीरे से बोली "कभी कभी जाते होंगे..मैं बहुत कुच्छ नही जानती ..और शाम को ही मैं अपने घर चली जाती हूँ तो मैं भला क्या बताउ ." सावित्री धन्नो से इतना बोलकर सोचने लगी की धन्नो अब उससे नाराज़ नही होगी. लेकिन धन्नो ने धीरे से फिर बोली "हो सकता है कही इधेर उधेर किसी की मुनिया से काम चला लेता होगा.." फिर अपने मुँह को हाथ से ढँक कर हंसते हुए काफ़ी धीमी आवाज़ मे सावित्री के कान मे बोली "कहीं तेरी मुनिया........हाई राम मुझे तो बहुत ही हँसी आ रही है..ऐसी बात सोचते हुए...." सावित्री धन्नो की बात सुनते ही एकदम से सन्न हो गयी. उसे लगा की कोई बिजली का तेज झटका लग गया हो. उसे समझ मे नही आ रहा था की अब क्या करे. सावित्री का मन एकदम से घबरा उठा था. उसे ऐसा लग रहा था की धन्नो चाची जो भी कह रही थी सच कह रही थी. उसे जो डर लग रहा था वह बात सच होने के वजह से था. एक दिन पहले ही पंडिताइन के साथ हुई घटना भी सावित्री के देमाग मे छा उठी. सावित्री को ऐसा लग रहा था की उसे चक्केर आ रहा था. वह अब संभाल कर कुच्छ बोलना चाह रही थी लेकिन अब उसके पास इतना ताक़त नही रह गयी थी. सावित्री को ऐसा महसूस हो रहा था मानो ये बात केवल धन्नो चाची नही बल्कि पूरा गाओं ही एक साथ कह रहा हो. धन्नो अपनी धीमी धीमी हँसी पर काबू पाते हुए आगे बोली "इसमे घबराने की कोई बात नही है...बाहर काम करने निकली हो तो इतना मज़ाक तो तुम्हे सुनना पड़ेगा..चाहे तुम्हारी मुनिया की पिटाई होती हो या नही..." और फिर हँसने लगी. सावित्री एक दम शांत हो गयी थी और धन्नो की इतनी गंदी बात बोल कर हँसना उसे बहुत ही खराब लग रहा था. धन्नो ने जब देखा की सावित्री फिर से चिंता मे पड़ गयी है तब बोली "अरे तुम किसी बात की चिंता मत कर ..तू तो मेरी बेटी की तरह है और एक सहेली की तरह भी है...मैं ऐसी बात किसी से कहूँगी थोड़े..औरतों की कोई भी ऐसी वैसी बातें हमेशा च्छूपा. कर रखी जाती है..जानती हो औरतों का इज़्ज़त परदा होता है..जबतक पर्दे से धकि है औरत का इज़्ज़त होती है और जैसे ही परदा हटता है औरत बे-इज़्ज़त हो जाती है..पर्दे के आड़ मे चाहे जो कुछ खा पी लो कोई चिंता की बात नही होती..बस बात च्छूपना ही चाहिए..हर कीमत पर...और यदि तेरी मुनिया किसी का स्वाद ले ली तो मैं भला क्यूँ किसी से कहूँगी...अरे मैं तो ऐसी औरत हूँ की यदि ज़रूरत पड़ी तो तेरी मुनिया के लिए ऐसा इंतज़ाम करवा दूँगी की तेरी मुनिया भी खुश हो जाएगी और दुनिया भी जान नही पाएगी ...यानी मुझे मुनिया और दुनिया दोनो का ख्याल रहता है...कोई चिंता मत करना..बस तुम मुझे एक सहेली भी समझ लेना बेटी..ठीक" धन्नो ने इतना कह कर अस्वासन दे डाली जिससे सावित्री का डर तो कुच्छ कम हुआ लेकिन उसकी मुनिया या बुर के लिए किसी लंड का इनज़ाम की बात सावित्री को एकदम से चौंका दी और उसके मन मे एक रंगीन लहर भी दौड़ पड़ी. सावित्री पता नही क्यूँ ना चाहते हुए भी अंदर अंदर खुश हो गयी. लंड के इंतज़ाम के नाम से उसके पूरे बदन मे एक आग सी लगने लगी थी. इसी वजह से उसकी साँसे अब कुच्छ तेज होने लगी थी और उसके बुर मे भी मानो चिंतियाँ रेंगने लगी थी. सावित्री बैठे ही बैठे अपनी दोनो जांघों को आपस मे सताने लगी. धन्नो समझ गयी की लंड के नाम पर सावित्री की बुर मस्ताने लगी होगी. और अब लोहा गरम देख कर धन्नो हथोदा चलते हुए बोली "मेरे गाओं की लक्ष्मी भी बहुत पहले इसी दुकान पर काम करती थी.और उसने अपनी एक सहेली से ये बताया था की पंडित जी का औज़ार बहुत दमदार है...क्योंकि लक्ष्मी की मुनिया को पंडित जी ने कई साल पीटा था..लेकिन जबसे लक्ष्मी को गाओं के कुच्छ नये उम्र के लड़कों का साथ मिला तबसे लक्ष्मी ने पंडित जी के दुकान को छ्होर ही दी. लक्ष्मी भी उपर से बहुत शरीफ दीखती है लेकिन उसकी सच्चाई तो मुझे मालूम है ..उसकी मुनिया भी नये उम्र के लुंडों के लिए मुँह खोले रहती है."
क्रमशः............
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