RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
.अरे क्या कहूँ मुँह से कहने लायक नही है जो उस कमीने ने उस बाराती से कहा....मेरा जी करता है की यदि पता चल जाय की किसने ऐसा कहा तो मैं आज उसका खून पी जाउ." धन्नो ने लगभग दाँत पीसते हुए कहा और फिर सावित्री की ओर देखते हुए आगे बोली "धात हाई राम मैं क्या बोले जा रही हूँ बेचारी ये बेटी भी क्या सोचेगी की मैं कितनी बेशर्म हो गयी हूँ जो इसके सामने ही पंडित जी से ऐसी बात कर रही हूँ...लेकिन क्या करूँ गुस्सा आ जाता है तो रोक नही पाती...." धन्नो के बातों की हक़ीकत बगल मे बैठी सावित्री भलीभाती जानती थी. सावित्री मन मे सोच रही थी की धन्नो तो खुद ही एक चुदैल है और उसकी बेटी के बारे मे भी गाओं मे खूब चर्चा चलती थी. शादी के कई साल पहले से ही उसे लगभग हर उम्र के लोग चोद चुके थे. पूरा गाओं धन्नो और मुसम्मि के बारे मे खूब अच्च्ची तरीके से जानते थे की दोनो किसी से कम नही. सावित्री के दिमाग़ मे यही बात चल रही थी की दोनो कितना मज़ा लेती हैं और जब दूसरों से बात करती हैं तो कितनी शरीफ बनती हैं.
पंडित जी ने धन्नो की बात सुनकर बोले "जाने दो जिसने तुम्हारी बेटी के उपर कीचड़ उच्छलने का काम किया उसकी मा बहन खूद ही रोज़ कीचड़ मे नहाएँगी और सारा जमाना देखेगा."
इतना सुनकर धन्नो बोली "हाँ पंडित जी मैं तो भगवान पर भरोसा करती हूँ..जिसने भी मेरी बेटी के जिंदगी से खिलवाड़ किया उसके जीवन को भगवान खूद ही बिगाड़ देगा.....मैं इसी बात से संतोष करती हूँ....आख़िर इन आवारों का कोई क्या कर सकता है जो लड़ाई मार पीट के लिए हमेशा ही तैयार रहते हैं...इनसे झगड़ा करना ठीक नही होता ...इसीलिए तो गाओं की शरीफ से शरीफ औरतें भी इन कमीनो की गंदी बातों का जबाव नही देती बल्कि सुनकर चुप रहती हैं.." पंडित जी बात आगे बढ़ाते हुए बोले "क्या करोगी जमाना बहुत खराब हो गया है...वैसे समझदारी इसी मे है की इन अवारों से बच कर अपनी बेटी की दूसरी शादी जल्दी से कर दो नही तो गाओं के माहौल मे ऐसी जवान लड़की का रहना ठीक नही है...शादी के बाद ससुराल चली जाएगी तो तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी. अब शादी मे देर मत करो..." इस धन्नो ने जबाव दिया "हाँ पंडित जी घर मे जवान लड़की का रहना मानो सिने पर पत्थर रखा हो....लेकिन संतोष इसी बात से होती है की मेरी बेटी बिल्कुल मेरी तरह ही सीधी साधी और शरीफ है ...बेचारी घर से बाहर मुझसे पूछे बिना नही जाती है और केवल अपने सहेलिओं के ही यहा घूमने जाती है...और जब भी मैं कहती की कहाँ जा रही हो तो मेरी बेटी कहती है की मा घर मे बैठे बैठे मन नही लगता तो सोचती हूँ की गाओं मे सहेलिओं के यहाँ तो घूम लूँ...और मैं समझाती हूँ की ज़्यादे इधेर उधेर घूमना ठीक नही है तो बेचारी बोलती है की मा मेरी चिंता मत करो मैं अपनी इज़्ज़त का पूरा ख्याल करती हूँ और इस गाओं के माहौल को मैं खूब जानती हूँ मेरी चिंता आप मत किया करो...क्या बताउ पंडित जी जब मेरी बेटी कहती है की वह गाओं के माहौल को अच्छी तरह से जानती है तो मुझे भी लाज़ लग जाती है की बेचारी क्या जानती होगी गाओं के बारे मे. क्या बताउ पंडित जी मेरी बेटी का क्या दोष की वह घर मे ही हमेशा क़ैद रहे और यही सोच कर मैं उसे घूमने से ज़्यादा मना नही कर पाती...लेकिन बेटी जवान है तो मन मे डर तो बना ही रहता है. जैसे कभी कभी अपने सहेलिओं के घर देर रात तक रुक जाती है तो मेरा मन घबरा जाता है और खोजते जाती हूँ तो मेरे उपर ही हँसती है और कहती है की मैं कोई छोटा बच्चा हूँ क्या जो खो जाउन्गि..." पंडित जी भी धन्नो की इस बात पर मुस्कुरा दिए लेकिन आगे बोले "धन्नो तुम उसे रात मे कहीं घूमने मत दिया करो क्योंकि रात मे कहीं भी आना जाना औरतों और लड़कियो के लिए ठीक नही होता." धन्नो पंडित जी की इस बात से सहमत होते हुए बोली "हाँ पंडित जी आप सही कहते हैं...इसी चिंता मे तो मैं रात दिन सो नही पाती...वैसे मेरी लड़की की कोई ग़लती नही है क्योंकि वह बेचारी कभी भी अकेली कहीं नही जाती बल्कि उसकी कुच्छ सहेलियाँ हैं जो कहीं भी रात मे घूमने जाना होता है तो चुपचाप मेरी बेटी को फुसूलाकर ले कर चली जाती हैं और मेरी बेटी समझिए एक दम भोलीभाली है और उनसबके साथ मुझसे बिना बताए ही चली जाती है...उन सहेलिओं की आदत कुच्छ खराब है जैसे यदि गाओं मे या कहीं अगल बगल कोई रात मे किसी शादी विवाह या किसी मेला के मौके पर कोई नाच गाना का कार्यक्रम होता है तो वे मेरी बेटी को धीरे से फुसला कर ले कर चली जाती हैं और पूरी रात कार्यक्रम देखने के बाद ही आती हैं........मैं कितना रोकू अपनी बेटी को वह मानती ही नही है और मेरे बिगड़ने पर की रात मे जाते समय क्यों नही मेरे से पुछ्ति है तो कहती है की कार्यक्रम देखने ही तो गयी थी और इसमे क्या बुराई है. मैं क्या करूँ पंडित जी उसकी सहेलिया उसे काफ़ी समझा देती हैं की मा से पुच्छना बेकार है और पुच्छने पर मा जाने ही नही देगी तो बिना पुच्छे ही चली जाती है. इसी वजह से तो मैं सोचती हूँ की जल्दी ही शादी कर दूं ताकि उसकी सहेलिओं क़ा भी साथ छूट जाए. आप यह समझ लीजिए की यदि कहीं भी कोई रात का नाच गाने का या कोई कार्यक्रम होता है तो वो सब तो रात भर मेरी बेटी के साथ कार्यक्रम देखती हैं और मुझे पूरी रात नींद नही आती है जब तक की भोर होते होते मेरी बेटी घर नही आ जाती. भगवान जल्दी इसकी शादी करा दे की मेरी मुसीबत ख़त्म हो जाए." इतनी बात सुनकर पंडित जी बोले "वैसे नाच गाने का प्रोग्राम देखना कोई बुरी बात नही है ..यह तो देखने के लिए ही होता है लेकिन रात के अंधेरे मे कहीं अकेले मे आना जाना ठीक नही होते है लड़कियो औरतों के लिए..और यदि सहेलिओं के साथ देखने जाती है तो जाने दिया करो उसकी उम्र है नाच गाना देखने का.." फिर धन्नो ने जबाव दिया "हाँ पंडित जी मैं भी यही सोचती हूँ की शादी के टूट जाने से वैसे ही उसका मन दुखी रहता है तो क्यो ना बेचारी इधेर उधेर घूम कर ही अपना मन बहला ले...आख़िर घर मे अकेले कब तक बैठी रहेगी...यही सोच कर मैं भी ज़्यादे कुच्छ नही बोलती उसे..और जवान लड़की को बार बार डांटना भी तो ठीक नही होता. ..और मेरी मुसम्मि भी कुच्छ गुसैल किस्म की है सो कहीं मुझसे झगने लगे इस बात का भी डर लगता है...आख़िर कौन जवान लड़की से झगड़ा करे..यही सब सोच कर चाहती हूँ की जल्दी उसकी शादी हो जाए तो रात या दिन के घूमने का चक्कर तो ख़त्म हो जाएगा और मेरी चिंता भी दूर हो जाएगी." पंडित जी बोले "हाँ तो जल्दी से शादी कर डालो अपनी बेटी की नही तो तुम्हारे गाओं का माहौल बहुत ही खराब हो गया है....शादी मे देरी करना यानी बेटी कभी भी कोई ग़लत कदम उठा सकती है और फिर बदनामी से बचना मुस्किल हो जाएगा." इतना कहते हुए पंडित जी अपने सामने बैठी हुई धन्नो के पूरे शरीर पर एक नज़र डाली तो देखा की धन्नो भले ही सारी का पल्लू अपने सर पर रखी थी लेकिन सारी पतले होने के नाते उसका मांसल शरीर की बनावट सॉफ नज़र आ रही थी.
क्रमशः.......................
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