RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
.एक बार हम दोनो से खेल लॉगी तो जिंदगी भर याद रखोगी...भूलना मत रानी." फिर दूसरे ने कहा "किसी को कहीं से भनक तक नही लगेगी ....तुम्हारी इज़्ज़त की चिंता भी है ..याद रखना आज रात 12 बजे तुम्हारे घर के पीच्छवाड़े वाले बगीचे मे." इतना कह कर दोनो आवारे खंडहर के अंदर को ओर चले गये. सावित्री इन बातों को सुन कर एक दम डर गयी और कुच्छ तेज़ी से दुकान की ओर चलने लगी. उसके मन मे जब यह बात याद आती की रात को दोनो उसे बगीचे मे क्यों बुला रहे थे तो मन घबराने के साथ साथ कुच्छ मस्त हो कर सनसना जाता था. सावित्री को उन अवारों की बातों पर काफ़ी गुस्सा तो आता ही था लेकिन पता नही क्यूँ उनकी बातें सुनकर मस्ती भी छाने लगती थी.
पिच्छले दिन की पंडिताइन के साथ मार पीट की घटना के वजह से पंडित जी अपनी दुकान मे बैठे बैठे यही सोच रहे थे की कहीं सावित्री दुकान पर आएगी या नही. लेकिन थोड़ी देर बाद सावित्री आती हुई नज़र आई तो पंडित जी की आँखे चमक उठीं. पंडित जी को अब विश्वाश हो गया की सावित्री को लंड का स्वाद पसंद आ गया है और अब चुड़ाने के लिए हमेशा तैयार रहेगी.
सावित्री दुकान मे बैठी बैठी यही सोच रही थी की धन्नो चाची पता नही कब आएगी. उसे इस बात का भी डर था की जब दोपहर को दोनो दुकान बंद कर के मज़ा लेंगे तभी यदि आ धमकी तब बहुत गड़बड़ हो जाएगा. दुकान बंद करने से थोड़ी देर पहले ही धन्नो चाची दुकान पर आई. उनको देखते ही सावित्री स्टूल पर से उठकर खड़ी हो गयी और धन्नो को दुकान के अंदर बुलाई.पंडित जी को समझ मे आ गया की ये औरत सावित्री की कोई परिचित है. धन्नो ने सावित्री से कहा "क्या बताउ बेटी ..बहुत देर हो गयी..मैं एक बार सोची की तेरे साथ ही आ गयी होती लेकिन घर क़ा काम इतना ज़्यादा होता है की दोपहर हो जाती है" धन्नो ने पंडित जी को तिरछि नज़र से देखी और फिर सावित्री से बोली "बेटी तुमने बहुत बढ़िया काम किया जो इस दुकान पर नौकरी पकड़ ली. अब हम लोग भी किसी समान के लिए बेहिचक यहाँ आ जाएँगे" इतना सुनकर पंडित जी ने कहा "अरे क्यों नही हम लोग तो ग्राहकों के सेवा के लिए ही यहाँ बैठे हैं....सावित्री तुम इन्हे बैठाओ तो सही बेचारी दोपहर को उतना दूर पैदल आई हैं" इस पर सावित्री ने स्टूल हटा कर दुकान के अंदर ही चटाई बिच्छा कर धन्नो चाची के साथ खूद भी बैठ कर बातें करने लगी. पंडित जी दुकान मे अपने कुर्सी पर बैठे धन्नो को देखने लगे और उन दोनो के बातों को सुनने लगे. 44 साल की धन्नो ने जो साड़ी पहनी थी वह कुच्छ पतली थी जिस वजह से पंडित जी को साड़ी के अंदर का पेटीकोत बहुत सॉफ दीख जा रहा था. वैसे धन्नो ने अपने सर के उपर भी सारी का पल्लू रखी थी और लाज़ दिखाने के लिए उसने पंडित जी की ओर अपनी पीठ कर रखी थी जो साड़ी से पूरी तरह से ढाकी थी. पंडित जी की नज़रें धन्नो के पतली और झलकने वाले सारी के अंदर दीख रहा पेटिकोट पर ही थी. पंडित जी इस बात को महसूस करने लगे की ये औरत कुच्छ रंगीन मिज़ाज की है क्योंकि जितनी पतली सारी पहनी थी उससे यही पता चल रहा था की वह अपनी शरीर को दूसरों को दीखाने की शौकीन है. तभी पंडित जी ने सावित्री से कहा "तुम दोनो आपस मे ही बात करोगे की मुझसे भी परिचय कराओगि" इस पर सावित्री ने धन्नो की ओर देखते हुए मुस्कुराते बोली "ये मेरे बगल मे रहने वाली धन्नो चाची हैं" और आगे फिर धन्नो ने अपना मुँह पंडित जी की ओर करते हुए बोली "पंडित जी मैं आज कल बहुत परेशान हूँ..मेरी एक बेटी है जिसकी शादी करनी है और उसी सिलसिले मे मैं आपके दुकान से कुच्छ शृंगार का समान लेने आई हूँ. कल उसे लड़के वाले देखने वाले हैं इस वजह से तैयारी कर रही हूँ" इतना सुन कर पंडित जी ने धन्नो के तरफ देखते हुए बोला "तुम सही कहती हो लड़कियो की शादी तो आज कल बड़ा ही कठिन काम हो गया है...हर जगह पैसा और दहेज...और कही कोई कमी रह गयी तो समझो लड़की को ससुराल वाले जला कर मारने मे थोड़ी भी देर नही लगाते" धन्नो पंडित जी की बात सुनकर कुच्छ हामी मे सर हिलाते आगे बोली "क्या बताउ पंडित जी मेरी बेटी के ये दूसरी शादी होगी...इस वजह से तो परेशानी बहुत है और मुझे चिंता ही खाए जा रही है की आख़िर कैसे बेटी की दूसरी शादी ठीक करूँ...भगवान की मर्ज़ी से कल ही लड़के वाले लड़की देखेंगे...तो सोचती हूँ की कहीं कोई कमी ना रह जाए लड़की दिखाने मे"
क्रमशः..............
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