RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
धन्नो ने अपनी बात लंबी करती हुई बोली "मैने मुसम्मि को भी सुरू से ही काफ़ी दाँत फटकार कर और समझा बुझा कर रखा और समय पर शादी भी कर दी लेकिन ये गाओं वाले शायद हम लोंगो की इज़्ज़त से काफ़ी जलन होने लगी और ये कुत्ते पता नही कौन सी अफवाहों की चाल चली की तलाक़ करवा ही दिया... सच कहती हूँ बेटी इस गाओं से मुझे बहुत घृणा है.." सावित्री धन्नो की इन बातों से मन ही मन राज़ी नही थी क्योंकि उसे भी मालूम था की धन्नो और उसकी बेटी मुसम्मि दोनो ही शुरू से ही चुदैल किस्म की थी और मुसम्मि तो शादी के कई साल पहले से ही गाओं के पता नही कितने मर्दों से चुद चुकी थी. लेकिन धन्नो चाची की इन बातों के हा मे हाँ मिलाना ही ठीक था. और जबाव मे सावित्री ने कहा "सच कहती हो चाची मेरी मा भी यही कहती है की गाओं मे गंदे लोग ज़्यादा रहते हैं" इस पर धन्नो रश्ते पर चलते हुए बातें और मन से करने लगी. आगे बोली "तेरी मा ठीक कहती है बेटी क्योंकि वो बेचारी तो इस गाओं के करतूतों को खूब अच्छी तरह से देखा है..जब तुम्हारा बाप मार गया उस समय तुम्हारी परिवार के मुसीबत के घड़ी मे गाओं के चौधरी काफ़ी साथ दिया और इसी वजह से तुमाहरी मा उनके यहाँ बर्तन और झाड़ू का काम पकड़ लिया.." इतना कह कर धन्नो चाची चुपचाप रश्ते पर चल रही थीं और कुच्छ पल कुच्छ भी ना बोलने पर सावित्री आगे की बात जानने की ललक से पुचछा "फिर क्या हुआ चाची?" तब धन्नो बोली "लेकिन बेटी ये राज की बात है इस लिए किसी से चर्चा मत करना...समझी !" इतना सुन कर सावित्री सहम गयी और काफ़ी धीरे से बोली "हुम्म" फिर धन्नो ने काफ़ी धीरे धीरे चलते हुए सावित्री को बताने लगी "उस समय तुम्हारी मा सीता एकदम जवान और गदराई हुई थी और ...कुच्छ दिन ही बीते थे कि ...चौधरी ने एक दिन मौका पा कर तुम्हारी मा को ग़लत रश्ते पर खींच लिया..तुम्हारी मा की भी कोई ग़लती नही थी क्योंकि वह बेचारी का भी तो खून गरम ही था शायद इस लिए वह भी बेचारी मौका पाते ही चौधरी को अपनी गड्राई जवानी से खूब मनमानी करने देती. आख़िर बेटी तेरी मा विधवा ज़रूर थी लेकिन जवानी एक तूफान की तरह होती है जब अपने जोश पर आती है तो सब कुच्छ उड़ा ले जाती है. तुम्हारी मा कई साल तक चौधरी के शरीर की ताक़त निचोड़ती रही लेकिन पता नही कैसे गाओं के कुच्छ कुत्तों को इसकी भनक लग गयी और इस कारण बेचारी सीता की हिम्मत नही हुई की चौधरी के घर बर्तन झाड़ू का काम करने जाए. उसकी जगह दूसरी कोई औरत होती तो गाओं के इन अवारों और बदमाशों से बिल्कुल ही नही डरती और आज भी रोज़ चौधरी के नीचे दबी होती" इतना सुनते ही सावित्री को मानो मौत मिल गयी हो. उसे अपनी मा के बारे मे ऐसा सुनना बिल्कुल ही पसंद नही था. लेकिन ऐसी बात सुनकर गुस्से के साथ साथ उसके मन मे एक अज़ीब तरह की मस्ती भी छाने लगी. तभी धन्नो ने खंडहर के एक दीवाल के पास खड़ी हो कर सावित्री से बोली "रुक बेटी थोड़ा पेशाब कर लूँ" इतना कह कर धन्नो चाची ने रश्ते के किनारे खंडहर के दीवाल के पास ही अपने साड़ी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर बैठ गयी और उसके हल्के गोरे रंग के बड़े बड़े चूतड़ सावित्री के तरफ था. सावित्री घबराहट मे खंडहर के पास खड़ी खड़ी चारो ओर देखने लगी की कहीं कोई आ तो नही रहा है. तभी उसकी नज़र एक 48-50 साल के आदमी पर पड़ी जो धोती कुर्ता पहने साइकल से आ रहा था. सावित्री ने घबराहट मे बोली "चाची एक आदमी आ रहा है..जल्दी करो.." धन्नो चाची का मुँह ठीक खंडहर के दीवार के ओर था इस लिए वह रश्ते पर आ रहे आदमी को देख नही पा रही थी. उनका चूतड़ एकदम रश्ते की ओर था और सावित्री उनके चूतड़ के तरफ ही खड़ी थी और कभी साइकल से तेज़ी से आ रहे उस अधेड़ उम्र के आदमी को देख रही तो कभी पेशाब कर रही धन्नो चाची के दोनो नागे चूतदों को देख रही थी. धन्नो ने सोचा की जब वो पेशाब करने बैठी थी तब तो कोई इर्द गिर्द दिखा नही था और जैसा की सावित्री ने बताया की कोई आदमी आ रहा है तो किसी के करीब भी आने मे कुच्छ समय लगेगा और तब तक वह पेशाब कर लेगी और यही सोच कर वह उठाने के बजाय पेशाब करती रही. लेकिन साइकल पर आदमी होने से काफ़ी तेज़ी से करीब आ गया और सावित्री धीरे से चिल्ला उठी "चाची जल्दी करो...आ गया..." और अभी पेशाब ख़त्म ही हुई थी की साइकल की चर्चराहट धन्नो के कान मे पड़ी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और साइकल पर बैठा आदमी धन्नो के दोनो नंगे चूतदों के ठीक पीछे से गुजरने लगा और उसकी आँखे दोनो मांसल चूतदों पर पड़ ही गया और अगले पल धन्नो हड़बड़ाहट मे उठी और अपनी साड़ी और पेटिकोट को नीचे गिराते हुए दोनो नंगे चूतादो और जांघों को ढकने लगी जो की उस आदमी ने अपने दोनो आँखों से भरपूर तरीके से देखा और फिर बाद मे सावित्री को भी देखा और सावित्री उस आदमी के नज़रों को ही देख रही थी जो धन्नो चाची के नंगे चूतदों पर चिपक गये थे. सावित्री की नज़रें जैसे ही उस आदमी से मिली सावित्री ने तुरंत अपनी नज़रें हटा ली लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी और उस आदमी ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा दिया और उसी रफ़्तार से साइकल चलाते हुए शाम के हो रहे अंधेरे मे आँखों से ओझल हो गया. धन्नो चाची ने उस आदमी को तो देख नही पाई क्योंकि जब उठ कर खड़ी हुई और मूडी तब तक केवल उस आदमी का पीठ ही दिखाई दे रहा था और ना ही उस आदमी ने धन्नो चाची के चेहरे को देख पाया. फिर भी धन्नो चाची यह समझ गयीं की उस आदमी ने उनका दोनो मांसल बड़े बड़े चूतदों को देख लिया है. और शायद यही सोच कर धन्नो चाची ने सावित्री को एक हल्का सा थप्पड़ गाल पर मारते हुए हंस पड़ी और बोली "अरी हरजाई तू तो मेरी पिच्छड़ी उस बुड्ढे को दिखवा ही दी...तुम्हे बताना चाहिए था ना की वो हरामी साइकल से आ रहा है तो मैं पहले ही उठ जाती..मैं सोची पैदल होगा तबतक तो पेशाब कर लूँगी....धोखा हो गया..." और सावित्री भी मुस्कुरा दी. आगे बोली "पेशाब करना है तो कर ले ...." सावित्री को हल्की पेशाब लगी थी लेकिन वह पेशाब वहाँ और धन्नो के सामने नही करना चाहती थी और बोली "नही" और फिर दोनो रश्ते पर चलने लगे.
क्रमशः....................
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