RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--22
पंडित जी ने तौलिया को कमर से अलग कर सावित्री को गोद मे लेते हुए चौकी पर आ गये. उनका लंड सिकुड चुका था. उन्होने सावित्री के साँवले और कुच्छ मुन्हान्सो से भरे गाल को चूमना सुरू कर दिया. हाथों से चुचिओ को भी मीज़ना सुरू कर दिया और थोड़ी देर मे दोनो गरम हो गये. फिर पंडित जी ने सावित्री को घोड़ी बनाकर खूब मन से चोदा. अंत मे वीर्य को बुर के अंदर ही धकेल दिया. और पिच्छले दिन की तरह फिर सावित्री की चड्डी मे लंड को पोंच्छा और सावित्री को उसी चड्डी को पहनना पड़ा. सावित्री इस बात का विरोध करना चाहती थी लेकिन चुप ही रहना उचित समझी.
दोनो तृप्त हो गये तब पंडित जी और सावित्री कपड़े पहन कर दुकान वाले हिस्से मे आ गये. पंडित जी ने सावित्री से बोला "दवा को खाती हो की नही" सावित्री ने कहा "खाती हूँ" फिर पंडित जी बोले "ठीक है...लेकिन आज जो कुच्छ भी पंडिताइन और तुम्हारे बीच हुआ उसे किसी से कहना मत...यह मेरी इज़्ज़त की बात है...तुमने उसे पीट कर बहुत अच्छा किया...उसका भी रुआब अब ठीकाने लग गया.." सावित्री भी चुपचाप सुन रही थी लेकिन कुच्छ बोली नही.
सावित्री अंधेरा होने से पहले ही घर चल दी. आज राषते मे खंडहर के पास दो आवारों की गंदी बातें मन मे याद आ गयी. सावित्री को कुच्छ डर सा लगने लगा. पंडिताइन से मार पीट होने के वजह से उसके शरीर मे दर्द भी महसूस हो रहा था. तभी खंडहर से पहले ही उसकी नज़र धन्नो चाची पर पड़ी जो रश्ते पर ही खड़ी हो कर मानो उसी का इंतज़ार कर रही हो. सावित्री का कलेजा हिल सा गया. लेकिन सुबह जिस तरह से धन्नो चाची ने सावित्री को देख कर मुस्कुराया था मानो दोस्ती करना चाहती हों. सावित्री जैसे ही धन्नो चाची के करीब आई वैसे ही धन्नो ने मुस्कुराते हुए बोली "अरे सावित्री कहाँ से आ रही हो?" सावित्री भी धन्नो चाची के पास खड़ी हो गयी और जबाव मे बोली "इसी कस्बे से आ रही हूँ...पंडित जी के दुकान पर काम करती हूँ." धन्नो चाची ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा "बहुत खुशी हुई जो तुमने अपनी मा की ज़िम्मेदारीओं मे हाथ बटाना शुरू कर दिया..क्या कहूँ तुम्हारी मा तो मुझे देख कर बहुत जलती है इसी लिए मैं तुमसे भी चाहते हुए बात नही कर पाती.." फिर आगे बोली "मैने देखा की तुम आ रही हो तो सोची की चलो यहाँ तुमसे हाल चाल ले लूँ. घर तो बगल मे है लेकिन तुम्हारी मा के गुस्से के डर से तुमसे बात करना ठीक नही लगता." सावित्री ने कुच्छ नही बोली लेकिन उसके दीमाग मे यह बात घूमने लगी की धन्नो चाची ने चड्डी के उपर वीर्य के दाग और दवा के पत्ते को तो देख ही चुकी थी इस लिए कहीं इस बारे मे ना पुच्छे. कुच्छ घबराए मन से सावित्री धन्नो चाची के सामने ही खड़ी थी लेकिन नज़रें जेमीन पर झुकी हुई थी. फिर धन्नो ने सावित्री के एक कंधे पर हाथ रखते हुए बोली "तुम भी अपनी मा की तरह हमसे नही बोलॉगी क्या?'" और इतना कह कर धन्नो हँसने लगी इस पर सावित्री भी मुस्कुरा दी और जबाव मे बोली "क्यों नही....ज़रूर बोलूँगी ....हा लेकिन मा के सामने तो बोलना ठीक नही होगा...तुम तो मा को अच्छी तरह जानती हो चाची" इस पर धन्नो चाची एक दम खुश हो गयी मानो उसका काम बनाने लगा हो. "सावित्री तुम एकदम मेरी बेटी की तरह हो..सच तुम्हारी यह बात सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है मानो मेरी एक नही बल्कि दो दो बेटी है ..एक मुसम्मि और एक तुम." इतना बोलने के बाद धन्नो ने सुनसान रश्ते पर सावित्री को प्यार से गले लगा लिया. धन्नो ने सावित्री को पहली बार अपने बाहों मे लेते समझ गयी की चुचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी और शरीर एकदम भरा पूरा है. धन्नो सावित्री को जल्दी ही करीब आते देख मन ही मन खुश होने लगी. उसका काम अब काफ़ी तेज़ी से बनने लगा था. वह जानती थी की सावित्री के गदराई जवानी लूटने के चक्कर मे पड़ने वाले नये उम्र के आवारों से अपनी भी बुर की आग बुझवाने का मौका मिल सकेगा. धन्नो नये उम्र के लड़कों से चुदने की काफ़ी शौकीन थी. लेकिन उसकी खुद की उम्र 43 होने के वजह से नये उम्र के लड़कों को फाँसना इतना आसान नही होता. धन्नो को मालूम था की ऐसे मे किसी भी जवान लड़की को आगे कर देने पर लड़के मद्राने लगते और थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद अपनी भी बुर मे नया लंड नसीब हो जाता.
धन्नो कुच्छ बात आगे बढ़ाते हुए बोली "चलो घर की ओर भी चला जाय नही तो यही रात हो जाएगी और ये रश्ते मे पड़ने वाला खंडहर तो मानो औरतों के इज़्ज़त का दुश्मन ही है.." दोनो चलने लगे और अंधेरा अब छाने ही लगा था. फिर धन्नो बोली "चिंता मत कर गाओं आते ही हम दोनो अलग अलग हो जाएँगे...तेरी मा को ऐसा कुच्छ भी मालून नही होगा जिससे तुम दाँत खाओ" इस पर सावित्री को कुच्छ राहत हुई लेकिन फिर भी बोली "कोई बात नही है चाची" फिर रश्ते मे चलते हुए धन्नो बोली "चलो तुम तो बहुत ही अच्छे विचार वाली हो..वैसे तेरी मा भी बहुत अच्छी है लेकिन ये गाओं के लोगों ने उससे मेरे और मेरी बेटी के बारे मे पता नही क्या क्या अफवाह उड़ा दी शायद इसी वजह से वह मुझसे दूर रहना चाहती और...और एक दूसरे के पड़ोसी होते हुए भी कोई किसी से बात नही करता" सावित्री चुपचाप रश्ते पर चलती रही और मन मे वही चड्डी और दवा का पत्ता घूम रहा था. धन्नो ने सावित्री को कुच्छ फुसलाते हुए बोलना जारी रखा "बेटी..तुम तो जानती हो की गाओं मे कितने गंदे बेशरम किस्म के लोग रहते हैं...वे किसी के बारे मे कुच्छ भी बोल देते हैं और दूसरों की खिल्ली उड़ाने मे कोई देरी नही करते...इन्ही कुत्तों के वजह से तुम्हारी मा को मेरे बारे मे ग़लतफहमी हो गयी और इन सबके कारण ही मेरी बेटी मुसम्मि की शादी भी टूट गयी..ससुराल भी छ्छूट गया...पता नही ये सब बदमाश क्या चाहते हैं." सावित्री इन सब बातों को चुपचाप सुन रही थी. लेकिन उसका मान यही सोच रहा था की आख़िर पीच्छले दिन ही धन्नो चाची ने सावित्री की दाग लगी चड्डी और दवा के पत्ते को देखी और दूसरे दिन ही मिलकर बातें भी करने लगी. सावित्री का मन आशानकों से भर उठा. उसे डर लग रहा था कि आख़िर धन्नो चाची क्यों उसके करीब आ रही है. पहले तो कभी भी ऐसा नही हुआ की धन्नो चाची उसमे कोई रूचि रखी हो. यही सब सोच रही थी की रश्ते पर चलते हुए धन्नो ने बात जारी रखी "जानती हो ये गाओं के बदमाश किसी को भी इज़्ज़त से रहना नही पसंद करते और झूठे ही बदनाम करने लगते हैं...सच पुछो तो ये गाओं बहुत गंदा हो गया है..यहा रहने का मतलब बस बदनामी और कुच्छ नही.." सावित्री इन सब बातों को काफ़ी ध्यान से सुन रही थी और उसका कलेजा धक धक कर रहा था. धन्नो रश्ते पर आगे आगे चल रही थी और सावित्री उसके पीछे पीछे. सावित्री के कुच्छ ना बोलने पर धन्नो रुक गयी और सावित्री की ओर देखते हुए पकुहही "अरी कुच्छ बोल नही रही ....क्या मेरी बातें सही नही हैं क्या....क्यों कुच्छ बोलो तो ..सही" इस पर सावित्री कुच्छ घबरा गयी लेकिन जबाव दी "ठीक कहती हो चाची ...लेकिन मैं ये सब बातें नही जानती हूँ..." इतना सुनकर धन्नो फिर रश्ते पर चलने लगी और बोली "अरे तो जानना चाहिए...तुम एक लड़की हो और तुम्हारा धर्म है की तुम इन आवारों से अपनी इज़्ज़त को बचा के रखना और यदि इनके मंसूबों को नही जानोगी तब तुम्हारे साथ धोखा हो जाएगे और बाद मे खोई इज़्ज़त वापस नही आती..समझी बेटी" धन्नो बात बढ़ाते बोली "लड़कियो की इज़्ज़त ऐसे जाती है जैसे कोई मोटा साँप किसी बिल मे घूस्ता है...जैसे मोटा साँप चाहे जितना भी मोटा क्यों ना हो और बिल चाहे जितना ही छ्होटा या संकरा क्यों ना हो, मौका मिलते ही मोटा साँप संकरे या छ्होटे बिल मे घूस्ते देर नही लगती..वैसे ही इन बदमाशों को नही जानोगी तो किसी दिन मौका देख कर अपनी मनमानी कर देंगे और फिर टूटे हुए इज़्ज़त के दरवाजे के अलावा कुच्छ नही बचेगे...बुरा मत मानना तुम्हे अपनी बेटी समझ कर बता रही हूँ" इस तरह के उदाहरण को सुन कर सावित्री कुच्छ सनसना गयी लेकिन कुच्छ बोली नही.
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