RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--20
इधेर सावित्री अपने घर के अंदर आने के बाद एक दम से घबरा चुकी थी. वैसे घर के अंदर कोई नही था. मा सीता कहीं काम से गयी थी और छोटा भाई कहीं अगल बगल गया था. सावित्री के मन मे यही डर समा गया था कि धन्नो चाची को कहीं शक ना हो जाय नही तो गाँव मे ये बात फैल जाएगी. वैसे धन्नो चाची का घर सावित्री के बगल मे ही था लेकिन उसकी मा सीता का धन्नो चाची के चालचलन के वजह से आपस मे बात चीत नही होती थी. कुच्छ दिन पहले कुच्छ ऐसी ही बात को लेकर झगड़ा भी हुआ था. वैसे धन्नो चाची अधेड़ उम्र की हो चुकी थी और गाओं के चुदैल औरतों मे उसका नाम आता था. धन्नो का पति कहीं बाहर जा कर कमाता ख़ाता था. कुच्छ शराबी किस्म का भी था. और जो कुछ पैसा बचाता धन्नो को भेज देता था. धन्नो भी गाओं मे कई मर्दों से फँस चुकी थी और लगभग हर उम्र के लोग चोद्ते थे. धन्नो की एक लड़की थी जिसकी उम्र 22 साल के करीब थी. जिसका नाम मुसम्मि था. मुसम्मि की शादी करीब चार साल पहले हुआ था लेकिन शादी के पहले ही कई साल तक चुदैल धन्नो की बेटी मुसम्मि को गाओं के आवारों और धन्नो के कुच्छ चोदु यारों ने इतनी जोरदार चुदाइ कर दी की मुसम्मि भी एक अच्छी ख़ासी चुदैल निकल गयी और शादी के कुच्छ महीनो के बाद ही ससुराल से भाग आई और फिर से गाओं के कई लुंडों के बीच मज़ा लेने लगी. इसी कारण से सावित्री की मा सीता धन्नो और उसके परिवार से काफ़ी दूरी बनाकर रहती थी. वैसे सावित्री कभी कभार अपनी मा के गैरमौज़ूदगी मे मुसम्मि से कुच्छ इधेर उधेर की बाते कर लेती थी. लेकिन आम तौर पर दोनो परिवार आपस मे कोई बात चीत नही करते थे.
इस तरह के दो परिवार के झगड़े और तनाव भरे माहौल मे सावित्री का डर और ज़्यादा हो गया की कहीं धन्नो चाची पूरे गाओं मे शोर ना मचा दे नही तो वह बर्बाद हो जाएगी. सावित्री को ऐसा लगने लगा कि उसकी पूरी इज़्ज़त अब धन्नो चाची के हाथ मे ही है. उसे यह भी डर था कि यह बात यदि उसकी मा सीता तक पहुँचेगी तब क्या होगा.
घबराई हालत मे सावित्री अपने घर के अंदर इधेर उधेर टहल रही थी और साँसे तेज चल रही थी. अब अंधेरा शुरू होने लगा थे की उसकी मा और भाई दोनो आते हुए नज़र आए. तभी सावित्री तेज़ी से दवा के पत्ते को घर के कोने मे कुछ रखे सामानो के बीच च्छूपा दी. लेकिन उसके दिमाग़ मे धन्नो चाची का ही चेहरा घूम रहा था. उसके मन मे यह भी था की यदि धन्नो चाची मिले तो वह उसका पैर पकड़ कर रो लेगी की उसकी इज़्ज़त उसके हाथ मे है और अपनी बेटी समझ कर जो भी देखी या समझी है उसे राज ही रहने दे. लेकिन दोनो परिवारों के बीच किसी तरह की बात चीत ना होने के वजह से ऐसे भी कोशिस मुश्किल लग रही थी.
यह सब सोच ही रही थी कि उसकी मा घर के अंदर गयी और मा बेटी दोनो घर के कामकाज मे लग गयी. लेकिन उसका मन काफ़ी बेचैन था. सावित्री को ऐसा लगता मानो थोड़ी देर मे उसकी ये सब बातें पूरा गाओं ही जान जाएगा और ऐसी सोच उसकी पसीना निकाल देती थी.
सावित्री के मन मे बहुत सारी बातें एक साथ दौड़ने लगीं और आखीर एक हाल उसे समझ मे आया जो काफ़ी डरावना भी था. यह कि सावित्री धन्नो चाची का पैर पकड़ कर गिड़गिडाए की उसे वह बचा ले. लेकिन इसमे यह दिक्कत थी कि ऐसी बात जल्दी से जल्दी धन्नो चाची से कहा जाय ताकि धन्नो चाची किसी से कह ना दे. और दूसरी बात यह की ऐसी बात अकेले मे ही कहना ठीक होगा. तीसरी बात की यह की सावित्री की विनती धन्नो चाची मान ले.
यही सब सोच ही रही थी कि उसके दिमाग़ मे एक आशा की लहर दौड़ गयी. उसे मन मे एक बढ़िया तज़ुर्बा आया की जब धन्नो चाची रात मे दुबारा पेशाब करने अपने घर के पीच्छवाड़े जाएगी तब वह उसका पैर पकड़ कर गिड़गिदा लेगी. उसे विश्वाश था कि धन्नो चाची उसकी विनती सुन लेंगी और उन्होने जो भी देखा उसे किसी से नही कहेंगी. दूसरी तरफ सावित्री यह भी देख रही थी की धन्नो चाची कहीं गाओं मे तो नही जा रहीं नही तो बात जल्दी ही खुल जाएगी. इसी वजह से सावित्री के नज़रें चोरी से धन्नो चाची के घर के तरफ लगी रहती थी.
लेकिन काफ़ी देर तक धन्नो चाची अपने घर से बाहर कही नही गयी तब सावित्री को काफ़ी राहत हुई. फिर भी डर तो बना ही था की धन्नो चाची किसी ना तो किसी से तो कह ही डालेगी और बदनामी शुरू हो जाएगी. यही सब सोच सोच कर सावित्री का मन बहुत ही भयभीत हो रहा था. सावित्री की मा और भाई दोनो रात का खाना खा कर सोने की तैयारी मे थे. अब करीब रात के दस बजने वाले थे. और दिन भर की थके होने के वजह से सभी को तेज नीद लग रही थी और तीनो बिस्तर बार लेट कर सोने लगे लेकिन सावित्री लेटी हुई यही सोच रही थी कि कब उसकी मा और भाई सो जाए कि वह घर के पीच्छवाड़े जा कर धन्नो चाची का इंतज़ार करे और मिलते ही पैर पकड़ कर इज़्ज़त की भीख माँग ले.
थोड़ी देर बाद सीता को गहरी नीद लग गयी और भाई भी सो गया. तब धीरे से सावित्री बिस्तर से निकल कर बहुत धीरे से सिटाकनी और दरवाज़ा खोल कर बाहर आई और फिर दरवाज़े के पल्ले को वैसे ही आपस मे सटा दी. पैर दबा दबा कर अपने घर के पीच्छवाड़े जा कर पेशाब की और फिर धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. अब रात के ईगयरह बजने वाले था और पूरा गाओं सो चुका था. चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. सावित्री के घर के ठीक पीच्छवाड़े एक बड़ा बगीचा था जिसमे एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था और अंधेरे मे कुच्छ भी नही दीखाई दे रहा था. फिर भी सावित्री धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी की वह अपने घर के पीच्छवाड़े मूतने तो आएगी. लेकिन काफ़ी देर हो गया और धन्नो चाची मुताने नही आई. इससे सावित्री की परेशानी बढ़ती चली गयी. सावित्री अब बेचैन होने लगी. अंधेरे मे करीब भी दीखाई नही दे रहा था. बस कुच्छ फीट की दूरी तक ही देखा जा सकता था वह भी सॉफ सॉफ नही. सावित्री के नज़रें धन्नो चाची के घर के पीछे ही लगी थी. तभी उसे याद आया कि कहीं उसकी मा जाग ना जाय नही तो उसे बिस्तर मे नही पाएगी तब उसे रात मे ही खोजने आएगी और यदि घर के पीच्छवाड़े खड़ी देखेगी तो क्या जबाव देगी. ऐसा सोच कर सावित्री वापस अपने घर के दरवाज़े को हल्का सा खोलकर अंदर का जयजा लेने लगी और उसकी मा और भाई दोनो ही बहुत गहरी नीद मे सो रहे थे मानो इतनी जल्दी उठने वाले नही थे. सावित्री दुबारा दवाज़े के पल्ले को आपस मे धीरे से चिपका दी और फिर अपने घर के पीच्छवाड़े धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. वह रात मे धन्नो चाची के घर भी जाने की सोच तो रही थी लेकिन धन्नो चाची के घर उसके अलावा उसकी बेटी मुसम्मि भी थी और ऐसे मे जाना ठीक नही था. वैसे सावित्री ने सोचा की अब इतनी रात को धन्नो चाची तो सो गयी होगी क्योंकि वह पेशाब करने तो सोने के पहले ही आई होगी. अब तो काफ़ी देर हो गयी है. लेकिन बात फैलने का भय इतना ज़्यादा था की सावित्री धन्नो चाची का इंतज़ार करना ही बेहतर समझी. और अपने घर के पीच्छवाड़े इतेर उधेर टहलने लगी और धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. लेकिन जब घंटों बीत गये लेकिन धन्नो चाची पेशाब करने घर के पीचवाड़े नही आई और सावित्री भी काफ़ी थॅकी होने के नाते वापस घर मे चली गयी और सो गयी.
सुबह उसकी मा ने सावित्री को जगाया. काफ़ी गहरे नीद मे सोने के बाद जब सावित्री उठी तब थकान मीट चुकी थी और अब काफ़ी हल्की भी महसूस कर रही थी. जब उसे पीच्छली दिन वाली घटना याद आई तब फिर से परेशान हो उठी. लेकिन काफ़ी बेबस थी. इस वजह से सुबह के काम मे व्यस्त हो गयी और दुकान जाने की तैयारी मे भी लग गयी.
इधेर धन्नो ने जब दवा के पत्ते और चड्डी पर लगे दाग को देखकर यह समझ गयी की सावित्री को भी अब मर्द की कीमत समझ मे आ गयी है. तब उसके मन मे जलन के बजाय एक रंगीन आशा की लहर दौड़ गयी. धन्नो यह जानती है की 18 साल के करीब सावित्री की मांसल और गद्राइ जवानी को पाने के लिए हर उम्र के लंड पीचछा करेंगे. और अब मर्द का स्वाद पा जाने के बाद सावित्री को भी मर्दो की ऐसी हरकत बहुत बुरा नही लगेगी लेकिन सीधी साधी और लज़धुर स्वभाव के वजह से शायद उतना मज़ा नही लूट पाएगी. और ऐसे मे यदि धन्नो खूद उससे दोस्ती कर ले तो सावित्री के पीछे पड़ने वाले मर्दों मे से कई को धन्नो अपने लिए फँसने का मौका भी मिल जाएगा. और 44 साल के उम्र मे भी धन्नो को कई नये उम्र के लड़को से चुड़ाने का मौका मिल जाएगा. यही सोच कर धन्नो का मन खुश और रंगीन हो गया. शायद इसी वजह से धन्नो सावित्री की चड्डी के दाग और दवा के पत्ते वाली बात किसी से कहना उचित नही समझी और सावित्री से एक अच्छा संबंध बनाने के ज़रूरत महसूस की.
सावित्री अपने घर के काम मे व्यस्त थी क्योंकि अब दुकान जाने का भी समय नज़दीक आ रहा था. लेकिन पीच्छली दिन वाली बात को सोचकर घबरा सी जाती और धन्नो चाची के घर के तरफ देखने लगी और अचानक धन्नो चाची को देखी जो की सावित्री के तरफ देखते हुए हल्की सी मुस्कुरा दी. ऐसा देखते ही सावित्री के होश उड़ गये. जबाव मे उसने अपनी नज़रें झुका ली और धन्नो चाची अपने घर के काम मे लग गयी. सावित्री भी अपने घर के अंदर आ कर दुकान जाने के लिए कपड़े बदलने लगी. वैसे सुबह ही सावित्री नहा धो ली थी और वीर्य और चुदाई रस लगे चड्डी को भी सॉफ कर दी थी.
सावित्री तैयार हो कर दुकान के तरफ चल दी. उसके मान मे धन्नो चाची का मुस्कुराना कुच्छ अजीब सा लग रहा था. वैसे दोनो घरों के बीच आपस मे कोई बात चीत नही होती थी और सावित्री कभी कभार अपनी मा के अनुपस्थिति मे धन्नो की बेटी मुसम्मि जिसको सावित्री दीदी कहती , से बात कर लेती वह भी थोडा बहुत. लेकिन धन्नो चाची से कोई बात नही होती और आज सावित्री के ओर देख कर मुस्कुराना सावित्री को कुच्छ हैरत मे डाल दिया था. सावित्री कस्बे की ओर चलते हुए धन्नो चाची के मुस्कुराने के भाव को समझने की कोशिस कर रही थी. उसे लगा मानो वह एक दोस्ताना मुस्कुराहट थी और शायद धन्नो चाची सावित्री को चिडना नही बल्कि दोस्ती करना चाहती हों. ऐसा महसूस होते ही सावित्री को काफ़ी राहत सी महसूस हुई. कुच्छ देर बाद खंडहर आ गया और हर दिन की तरह आज भी कुछ आवारे खंदार के इर्द गिर्द मद्रा रहे थे. सावित्री को अंदेशा था की उसको अकेले देख कर ज़रूर कोई अश्लील बात बोलेंगे. मन मे ऐसा सोच कर थोड़ा डर ज़रूर लगता था लेकिन लुक्ष्मी चाची ने जैसा बताया था की ये आवारे बस गंदी बात बोलते भर हैं और इससे ज़्यादा कुच्छ करेंगे नही, बस इनका जबाव देना ठीक नही होता और चुपचाप अपने रश्ते पर चलते रहना ही ठीक होता है. यही सोच कर सावित्री अपना मन मजबूत करते हुए रश्ते पर चल रही थी. उसे ऐसा लगा की आवारे ज़रूर कुच्छ ना तो कुच्छ ज़रूर बोलेंगे. तभी सावित्री ने देखा की एक आवारे ने आगे वाले रश्ते पर अपनी लूँगी से लंड निकाल कर खंडहर की दीवार पर मूत रहा था और उसका काला लंड लगभग खग खड़ा ही था. उस आवारे की नज़र कुच्छ दूर पर खड़े एक दूसरे आवारे पर थी और दोनो एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे. वी दोनो देख रहे थे की रश्ते पर चल रही सावित्री को मुतता हुआ लंड दीख ही जाएगा. सावित्री का मन घबराहट से भर गया. वह जिस रश्ते पर चल रही थी उसी रश्ते के एक किनारे पर खड़ा होकर लूँगी ले लंड निकाल पर मूत रहा था. लंड अपनी पूरी लूंबाई तक बाहर निकला हुआ था. सावित्री एक पल के लिए सोची की आख़िर कैसे उस रश्ते पर आगे जाए. और आख़िर डर के मारे वह रुक गयी और अपनी नज़रें झुकाते हुए दूसरी ओर मूड कर खड़ी हो गयी और सोची की थोड़ी देर मे जब वह आवारा मूत कर रश्ते के किनारे से हट जाएगा तब वह जाएगी. कुछ पल इंतजार के बाद फिर थोड़ी से पलट कर देखी तो दोनो आवारे वहाँ नही थे और खंडहर के अंदर हंसते हुए चले गये. फिर सावित्री चलना शुरू कर दी. रश्ते के एक किनारे जहाँ वह आवारा पेशाब किया था, सावित्री की नज़र अनायास ही चली गयी तो देखा की उसके पेशाब से खंडहर की दीवार के साथ साथ रश्ते का किनारा भी भीग चुका था. अभी नज़र हटाई ही नही थी की उसके कान मे खंडहर के अंदर से एक आवारे की आवाज़ आई "बड़ा मज़ा आएगा रानी....बस एक बार गाड़ी लड़ जाने दो....किसी को कुच्छ भी नही पता चलेगा...हम लोग इज़्ज़त का भी ख़याल रखते है...कोई परेशानी नही होगी सब मेरे पर छोड़ देना" यह कहते ही दोनो लगभग हंस दिए और खंडहर मे काफ़ी अंदर की ओर चले गये. सावित्री अब कुच्छ तेज कदमों से दुकान पर पहुँची. उसे कुच्छ पसीना हो गया था लेकिन उन आवारों की बात से झनझणा उठी सावित्री की बुर मे भी एक हल्की सी चुनचुनी उठ गयी थी और उसके कान मे गाड़ी लड़ जाने वाली बात अच्छी तरह समझ आ रही थी. वी आवारे चोदने का इशारा कर रहे थे. शायद इसी वजह से जवान सावित्री की बुर कुछ पनिया भी गयी थी.
Sangharsh--20
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