RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--18
पंडित जी ने देखा की अब उनका गोरा और मोटा लंड झांतों से भरी काली बुर मे काफ़ी अंदर तक घूस कर फँस गया है तब अपने दोनो हाथों को चटाई मे दर्द से ऐंठ रही सावित्री की दोनो गोल गोल साँवले रंग की चुचिओ पर रख कर कस के पकड़ लिया और मीज़ना शुरू कर दिया. सावित्री अपनी चुचिओ पर पंडित जी के हाथ का मीसाव पा कर मस्त होने लगी और उसकी काली बुर मे का दर्द कम होने लेगा. सावित्री को बहुत ही मज़ा मिलने लगा. वैसे उसकी मांसल और बड़ी बड़ी गोल गोल चुचियाँ किसी बड़े अमरूद से भी बड़ी थी और किसी तरह पंडित जी के पूरे हाथ मे समा नही पा रही थी. पंडित जीने चुचिओ को ऐसे मीज़ना शुरू कर दिया जैसे आटा गूथ रहे हों. चटाई मे लेटी सावित्री ऐसी चुचि मिसाई से बहुत ही मस्त हो गयी और उसे बहुत अच्छा लगने लगा था. उसका मन अब बुर मे धन्से हुए मोटे लंड को और अंदर लेने का करने लगा. लेकिन चटाई मे लेटी हुई आँख बंद करके मज़ा ले रही थी. कुछ देर तक ऐसे ही चुचिओ के मीसावट से मस्त हुई सावित्री का मन अब लंड और अंदर लेने का करने लगा लेकिन पंडित जी केवल लंड को फँसाए हुए बस चुचिओ को ही मीज़ रहे थे. चुचिओ की काली घुंडिया एक दम खड़ी और चुचियाँ लाल हो गयी थी. सावित्री की साँसे अब तेज चल रही थी. सावित्री को अब बर्दाश्त नही हो पा रहा था और उसे लंड को और अंदर लेने की इच्छा काफ़ी तेज हो गयी. और धीरज टूटते ही पंडित जी के नीचे दबी हुई सावित्री ने नीचे से ही अपने चूतड़ को उचकाया और पंडित जी इस हरकत को समझ गये और अगले पल सावित्री के इस बेशर्मी का जबाव देने के लिए अपने शरीर की पूरी ताक़त इकठ्ठा करके अपने पूरे शरीर को थोड़ा सा उपर की ओर उठाया तो लंड आधा से अधिक बाहर आ गया. और चुचिओ को वैसे ही पकड़े हुए एक हुंकार मारते हुए अपने लंड को बुर मे काफ़ी ताक़त से चाँप दिए और नतीज़ा हुआ कि बुर जो चुचिओ की मीसावट से काफ़ी गीली हो गयी थी, लंड के इस जबर्दाश्त दबाव को रोक नही पाई और पंडित जी के कसरती बदन की ताक़त से चांपा गया लंड बुर मे जड़ तक धँस कर काली बुर मे गोरा लंड एकदम से कस गया. बुर मे लंड की इस जबर्दाश्त घूसाव से सावित्री मस्ती मे उछल पड़ी और चीख सी पड़ी "सी रे ....माई ... बहुत मज़ाअ एयेए राहाआ हाइईइ आअहह..." फिर पंडित जी ने अपने लंड की ओर देखा तो पाया कि लंड का कोई आता पता नही था और पूरा का पूरा सावित्री की काली और झांतों से भरी हुई बुर जो अब बहुत गीली हो चुकी थी, उसमे समा गया था. पंडित जी यह देख कर हंस पड़े और एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोले "तू बड़ी ही गदराई है रे....तेरी बुर बड़ी ही रसीली और गरम है..तुझे चोद्कर तो मेरा मन यही सोच रहा कि तेरी मा का भी स्वाद किसी दिन पेल कर ले लू.....क्यों ....कुच्छ बोल ..."
सावित्री जो चटाई मे लेटी थी और पूरे लंड के घूस जाने से बहुत ही मस्ती मे थी कुच्छ नही बोली क्योंकि पंडित जी का मोटा लंड उसकी बुर के दीवारों के रेशे रेशे को खींच कर चौड़ा कर चुका था. और उसे दर्द के बजाय बहुत मज़ा मिल रहा था. पंडित जी के मुँह से अपने मा सीता के बारे मे ऐसी बात सुनकर उसे अच्च्छा नही लगा लेकिन मस्ती मे वह कुछ भी बोलना नही पसंद कर रही थी. बस उसका यही मन कर रहा था की पंडित जी उस घूसे हुए मोटे लंड को आगे पीछे करें. जब पंडित जी ने देखा की सावित्री ने कोई जबाव नही दिया तब फिर बोले "खूद तो दोपहर मे मोटा बाँस लील कर मस्त हो गयी है, और तेरी मा के बारे मे कुछ बोला तो तेरे को बुरा लग रहा है...साली हराम्जादि...कहीं की.., .वो बेचारी विधवा का भी तो मन करता होगा कि किसी मर्द के साथ अपना मन शांत कर ले ..लेकिन लोक लाज़ से और शरीफ है इसलिए बेचारी सफेद सारी मे लिपटी हुई अपना जीवन घूट घूट कर जी रही है...ग़रीबी का कहर उपर से....क्यों ...बोलो सही कहा की नहीं....." इतना कहते ही अगले पल पंडित जी सावित्री की दोनो चोचिओ को दोनो हाथों से थाम कर ताच.. ताच्छ... पेलना शुरू कर दिए. पंडित जी का गोरा और मोटा लंड जो बुर के लिसलिस्से पानी से अब पूरी तरीके से भीग चुका था, सावित्री के झांतों से भरी काली बुर के मुँह मे किसी मोटे पिस्टन की तरह आगे पीच्चे होने लगा. बुर का कसाव लंड पर इतना ज़्यादे था कि जब भी लंड को बाहर की ओर खींचते तब लंड की उपरी हिस्से के साथ साथ बुर की मांसपेशियाँ भी बाहर की ओर खींच कर आ जाती थी. और जब वापस लंड को बुर मे चाम्पते तब बुर के मुँह का बाहरी हिस्सा भी लंड के साथ साथ कुच्छ अंदर की ओर चला जाता था. लंड मोटा होने की वजह से बुर के मुँह को एकदम से चौड़ा कर के मानो लंड अपने पूरे मोटाई के आकार का बना लिया था.
सावित्री ने पंडित जी के दूसरी बात को भी सुनी लेकिन कुछ भी नही बोली. वह अब केवल चुदना चाह रही थी. लेकिन पंडित जी कुच्छ धक्के मारते हुए फिर बोल पड़े "मेरी बात तुम्हे ज़रूर खराब लगी होगी .....क्योंकि मैने गंदे काम के लिए बोला ....लेकिन तेरी दोनो जांघों को चौड़ा करके आज तेरी बुर चोद रहा हूँ ...ये तुम्हें खराब नही लग रहा है....तुम्हे मज़ा मिल रहा है......शायद ये मज़ा तेरी मा को मिले यह तुम्हे पसंद नही पड़ेगा.....दुनिया बहुत मतलबी है रे ...और तू भी तो इसी दुनिया की है...." और इतना बोलते ही पंडितजी हुमच हुमच कह चोदने लगे और सावित्री उनकी ये बात सुनी लेकिन उसे अपने बुर को चुदवाना बहुत ज़रूरी था इस लिए मा के बारे मे पंडित जी के कहे बात पर ध्यान नही देना ही सही समझी. और अगले पल बुर मे लगी आग को बुझाने के लिए हर धक्के पर अपने चौड़े और काले रंग के दोनो चूतदों को चटाई से उपर उठा देती थी क्योंकि पंडित जी के मोटे लंड को पूरी गहराई मे घूस्वा कर चुदवाना चाह रही थी.
क्रमशः...............................
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