RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--17 सावित्री की यह हरकत काफ़ी गंदी और अश्लील थी लेकिन पंडित जी समझ गये कि अब सावित्री झदने वाली है और उसका हाथ पंडित जी के हाथ को पकड़ कर तेज़ी से बुर मे चोदने की कोशिस करने लगी जिसको देखते पंडित जी अपने उंगली को सावित्री की काली बुर मे बहुत ही तेज़ी से चोदना शुरू कर दिया. सावित्री पंडित जी के हाथ को बड़ी ताक़त से बुर के अंदर थेल रही थी लेकिन केवल बीच वाली उंगली ही बुर मे घूस रही थी. अचानक सावित्री तेज़ी से सिस्कार्ते हुए अपने पीठ को चटाई मे एक धनुष की तरह तान दी और कमर का हिस्सा झटके लेने लगा ही था की सावित्री चीख पड़ी "आररीए माई री माईए सी उउउ री माएई रे बाप रे ...आअहह " और पंडित जी के उंगली को बुर मानो कस ली और गर्म गर्म रज बुर मे अंदर निकलने लगा और पंडित जी की उंगली भींग गयी. फिर पंडित जी के हाथ पर से सावित्री ने अपने हाथ हटा लिए और चटाई मे सीधी लेट कर आँखे बंद कर के हाँफने लगी. पंडित जी ने देखा की सावित्री अब झाड़ कर शांत हो रही है. फिर काली बुर मे से अपने उंगली को बाहर निकाले जिसपर सफेद रंग का कमरस यानी रज लगा था और बीच वाली उंगली के साथ साथ बगल वाली उंगलियाँ भी बुर के लिसलिसा पानी से भीग गये थे. पंडित जी की नज़र जब सावित्री की बुर पर पड़ी तो देखा की बुर की दोनो होंठ कुछ कांप से रहे थे. और बुर का मुँह, अगाल बगल के झांट भी लिसलिस्से पानी से भीग गये थे. तभी बीच वाली उंगली के उपर लगे कमरस को पंडित जी अपने मुँह मे ले कर चाटने लगे और सावित्री की आँखें बंद थी लेकिन उसके कान मे जब उंगली चाटने की आआवाज़ आई तो समझ गयी की पंडित जी फिर बुर वाली उंगली को चाट रहे होंगे. और यही सोच कर काफ़ी ताक़त लगाकर अपनी आँखे खोली तो देखी की पंडित जी अपनी बीच वाली उंगली के साथ साथ अगल बगल की उंगलिओ को भी बड़े चाव से चाट रहे थे. उंगलिओ को चाटने के बाद सावित्री ने देखा की पंडित जी बीच वाली उंगली को सूंघ भी रहे थे. फिर सावित्री के बुर के तरफ देखे और उंगली चुदाई का रस और बुर के अंदर से निकला रज कुछ बुर के मुँह पर भी लगा था. सावित्री अपने दोनो मोटी मोटी साँवले रंग के जांघों को जो को फैली हुई थी , आपस मे सटना चाहती थी लेकिन पंडित जी उसकी बुर को काफ़ी ध्यान से देख रहे थे और दोनो जांघों के बीच मे ही बैठे थे और इन दोनो बातों को सोच कर सावित्री वैसे ही जंघें फैलाए ही लेटी पंडित जी के चेहरे की ओर देख रही थी. झाड़ जाने के वजह से हाँफ रही थी. तभी उसकी नज़र उसकी जांघों के बीच मे बैठे पंडित जी के लंड पर पड़ी जो अभी भी एक दम तननाया हुआ था और उसकी छेद मे से एक पानी का लार टपाक रहा था. अचानक पंडित जी एक हाथ से सावित्री की बुर के झांतों को जो बहुत ही घनी थी उसे उपर की ओर फिराया और बुर पर लटकी झांटें कुछ उपर की ओर हो गयीं और बुर का मुँह अब सॉफ दिखाई देने लगा. फिर भी बुर के काले होंठो के बाहरी हिस्से पर भी कुछ झांट के बॉल उगे थे जिसे पंडित जी ने अपनी उंगलिओ से दोनो तरफ फैलाया और अब बुर के मुँह पर से झांटें लगभग हट गयीं थी. पंडित जी ऐसा करते हुए सावित्री की काली काली बुर के दोनो होंठो को बहुत ध्यान से देख रहे थे और सावित्री चटाई मे लेटी हुई पंडित जी के मुँह को देख रही थी और सोच रही थी की पंडित जी कितने ध्यान से उसकी बुर के हर हिस्से को देख रहे हैं और झांट के बालों को भी काफ़ी तरीके से इधेर उधेर कर रहे थे. पंडित जी का काफ़ी ध्यान से बुर को देखना सावित्री को यह महसूस करा रहा था की उसकी जांघों के बीच के बुर की कितनी कीमत है और पंडित जी जैसे लोंगों के लिए कितना महत्व रखती है. यह सोच कर उसे बहुत खुशी और संतुष्टि हो रही थी. सावित्री को अपने शरीर के इस हिस्से यानी बुर की कीमत समझ आते ही मॅन आत्मविश्वास से भर उठा. पंडित जी अभी भी उसकी बुर को वैसे ही निहार रहे थे और अपने हाथ की उंगलिओ से उसकी बुर के दोनो फांकों को थोड़ा सा फैलाया और अंदर की गुलाबी हिस्से को देखने लगे. सावित्री भी पंडित जी की लालची नज़रों को देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी की उसकी बुर की कीमत कितनी ज़्यादा है और पंडित जी ऐसे देख रहे हैं मानो किसी भगवान का दर्शन कर रहे हों. तभी अचानक पंडित जी को बुर के अंदर गुलाबी दीवारों के बीच सफेद पानी यानी रज दिखाई दे गयी जो की सावित्री के झड़ने के वजह से थी. पंडित जी नेअब अगले कदम जो उठाया की सावित्री को मानो कोई सपना दिख रहा हो. सावित्री तो उछल सी गयी और उसे विश्वास ही नही हो रहा था. क्योंकि की पंडित जी अपने मुँह सावित्री के बुर के पास लाए और नाक को बुर के ठीक बेचोबीच लगाकर तेज़ी से सांस अंदर की ओर खींचे और अपनी आँखे बंद कर के मस्त हो गये. बुर की गंध नाक मे घुसते ही पंडित जी के शरीर मे एक नयी जवानी की जोश दौड़ गयी. फिर अगला कदम तो मानो सावित्री के उपर बिजली ही गिरा दी. पंडित जी सावित्री के काले बुर के मुँह को चूम लिए और सावित्री फिर से उछल गयी. सावित्री को यकीन नही हो रहा था की पंडित जी जैसे लोग जो की जात पात और उँछ नीच मे विश्वास रखते हों और उसकी पेशाब वाले रास्ते यानी बुर को सूंघ और चूम सकते हैं. वह एक दम से आश्चर्या चकित हो गयी थी. उसे पंडित जी की ऐसी हरकत पर विश्वास नही हो रहा था. लेकिन यह सच्चाई थी. सावित्री अपने सहेलिओं से यह सुनी थी की आदमी लोग औरतों के बुर को चूमते और चाटते भी हैं लेकिन वह यह नही सोचती थी की पंडित जी जैसे लोग भी उसकी जैसे छ्होटी जाती की लड़की या औरत के पेशाब वाले जगह पर अपनी मुँह को लगा सकता हैं. सावित्री चटाई पर लेटी हुई पंडित जी के इस हरकत को देख रही थी और एकदम से सनसना उठी थी. उसके मन मे यही सब बाते गूँज ही रही थी कि पंडित जी ने अगला काम शुरू कर ही दिया सावित्री जो केवल पंडित जी के सिर को की देख पा रही थी क्योंकि चटाई मे लेटे लेटे केवल सिर ही दिखाई पड़ रहा था , उसे महसूस हुआ की पंडित जी क़ी जीभ अब बुर के फांकों पर फिर रहा था और जीभ मे लगा थूक बुर के फांको भी लग रहा था. पंडित जी का यह कदम सावित्री को हिला कर रख दिया. सावित्री कभी सोची नही थी की पंडित जी उसके पेशाब वाले जगह को इतना इज़्ज़त देंगे. उसका मन बहुत खुश हो गया. उसे लगा की आज उसे जीवन का सबसे ज़्यादा सम्मान या इज़्ज़त मिल रहा है. वह आज अपने को काफ़ी उँचा महसूस करने लगी थी. उसके रोवे रोवे मे खुशी, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान भरने लगा. उसने अपने साँवले और मोटे मोटे जांघों को और फैला दी जिससे उसके पवरोती जैसी फूली हुई बुर के काले काले दोनो होंठ और खूल गये और पंडित जी का जीभ दोनो फांकों के साथ साथ बुर की छेद मे भी घुसने लगा. सावित्री जो थोड़ी देर पहले ही झाड़ गयी थी फिर से गर्म होने लगी और उसे बहुत मज़ा आने लगा. बुर पर जीभ का फिरना तेज होने लगा तो सावित्री की गर्मी भी बढ़ने लगी. उसे जहाँ बहुत मज़ा आ रहा था वहीं उसे अपने बुर और शरीर की कीमत भी समझ मे आने लगी जी वजह से आज उसे पंडित जी इतने इज़्ज़त दे रहे थे. जब पंडित जी बुर पर जीभ फेरते हुए सांस छोड़ते तब सांस उनकी नाक से निकल कर सीधे झांट के बालों मे जा कर टकराती और जब सांस खींचते तब झाँत के साथ बुर की गंध भी नाक मे घूस जाती और पंडित जी मस्त हो जाते. फिर पंडित जी ने अपने दोनो हाथों से काली बुर के दोनो फांकों को फैला कर अपने जीभ को बुर छेद मे घुसाना शुरू किया तो सावित्री का पूरा बदन झंझणा उठा. वह एक बार कहर उठी. उसे बहुत मज़ा मिल रहा था. आख़िर पंडित जी का जीभ बुर की सांकारी छेद मे घुसने की कोशिस करने लगी और बुर के फांकों के बीच के गुलाबी हिस्से मे जीभ घुसते ही सावित्री की बुर एक नये लहर से सनसनाने लगी. और अब जीभ बुर के गुलाबी हिस्से मे अपने घुसने के लिए जगह बनाने लगी. जीभ का अगला हिस्सा हो काफ़ी नुकीला जैसा था वह बुर के अंदर के गुलाबी भाग को अब फैलाने और भी अंदर घुसने लगा था. यह सावित्री को बहुत सॉफ महसूस हो रहा था की पंडित जी का जीभ अब उसकी बुर मे घूस रहा है. सावित्री बहुत खुस हो रही थी. उसने अपने बुर को कुछ और उचकाने के कोशिस ज्योन्हि की पंडित जे ने काफ़ी ज़ोर लगाकर जीभ को बुर के बहुत अंदर घुसेड दिया जी की बुर की गुलाबी दीवारों के बीच दब सा गया था. लेकिन जब जीभ आगे पीछे करते तब सावित्री एकदम से मस्त हो जाती थी. उसकी मस्ती इतना बढ़ने लगी की वह सिसकारने लगी और बुर को पंडित जी के मुँह की ओर ठेलने लगी थी. मानो अब कोई लाज़ शर्म सावित्री के अंदर नही रह गया हो. पंडित जी समझ रहे थे की सावित्री को बहुत मज़ा आ रहा है बुर को चटवाने मे. फिर पंडित जी ने अपने दोनो होंठो से बुर के दोनो फांकों को बारी बारी से चूसने लगे तो सावित्री को लगा की तुरंत झाड़ जाएगी. फिर पंडित जी दोनो काले और मोटे बुर के फांको को खूब चूसा जिसमे कभी कभी अगल बगल की झांटें भी पंडित जी के मुँह मे आ जाती थी. दोनो फांकों को खूब चूसने के बाद जब सावित्री के बुर के दरार के उपरी भाग मे टिंग जो की किसी छोटे मटर के दाने की तरह था , मुँह मे लेकर चूसे तो सावित्री एकदम से उछल पड़ी और पंडित जी के सर को पकड़ कर हटाने लगी. उसके शरीर मे मानो बिजली दौड़ गयी. लेकिन पंडित जी ने उसके टिंग तो अपने दोनो होंठो के बीच ले कर चूसते हुए बुर की दरार मे फिर से बीच वाली उंगली पेल दी और सावित्री चिहूंक सी गयी और उंगली को पेलना जारी रखा. टिंग की चुसाई और उंगली के पेलाई से सावित्री फिर से ऐंठने लगी और यह काम पंडित जी तेज़ी से करते जा रहे थे नतीजा की सावित्री ऐसे हमले को बर्दाश्त ना कर सकी और एक काफ़ी गंदी चीख के साथ झड़ने लगी और पंडित जी ने तुरंत उंगली को निकाल कर जीभ को फिर से बुर के गहराई मे थेल दिए और टिंग को अपने एक हाथ की चुटकी से मसल दिया. बुर से रज निकल कर पंडित जी के जीभ पर आ गया और काँपति हुई सावित्री के काली बुर मे घूसी पंडित जी के जीभ बुर से निकल रहे रज को चाटने लगे और एक लंबी सांस लेकर मस्त हो गये. सावित्री झाड़ कर फिर से हाँफ रही थी. आँखे बंद हो चुकी थी. मन संतुष्ट हो चुका था. पंडित जी अपना मुँह बुर के पास से हटाया और एक बार फिर बुर को देखा. वह भी आज बहुत खुस थे क्योंकि जवान और इस उम्र की काली बुर चाटना और रज पीना बहुत ही भाग्य वाली बात थी. सावित्री भले ही काली थी लेकिन बुर काफ़ी मांसल और फूली हुई थी और ऐसी बुर बहुत कम मिलती है चाटने के लिए. ऐसी लड़कियो की बुर चाटने से मर्द की यौन ताक़त काफ़ी बढ़ती है. यही सब सोच कर फिर से बुर के फूलाव और काली फांकों को देख रहे थे. सावित्री दो बार झाड़ चुकी थी इस लिए अब कुछ ज़्यादे ही हाँफ रही थी. लेकिन पंडित जी जानते थे की सावित्री का भरा हुआ गदराया शरीर इतना जल्दी थकने वाला नही है और इस तरह की गदराई और तन्दरूश्त लड़कियाँ तो एक साथ कई मर्दों को समहाल सकती हैं. फिर सावित्री के जांघों के बीचोबीच आ गये और अपने खड़े और तननाए लंड को बुर की मुँह पर रख दिए. लंड के सुपादे की गर्मी पाते ही सावित्री की आँखे खूल गयी और कुछ घबरा सी गयी और पंडित जी की ओर देखने लगी. दो बार झड़ने के बाद ही तुरंत लंड को बुर के मुँह पर भिड़ाकर पंडित जी ने सावित्री के मन को टटोलते हुए पूछा "मज़ा लेने का मन है ..या रहने दें...बोलो.." सावित्री जो की काफ़ी हाँफ सी रही थी और दो बार झाड़ जाने के वजह से बहुत संतुष्ट से हो गयी थी फिर भी बुर के मुँह पर दाहकता हुआ लंड का सुपाड़ा पा कर बहुत ही धर्म संकट मे पड़ गयी. इस खेल मे उसे इतना मज़ा आ रहा था की उसे नही करने की हिम्मत नही हो रही थी. लेकिन कुछ पल पहले ही झाड़ जाने की वजह से उसे लंड की ज़रूरत तुरंत तो नही थी लेकिन चुदाई का मज़ा इतना ज़्यादे होने के वजह से उसने पंडित जी को मना करना यानी लंड का स्वाद ना मिलने के बराबर ही था. इस कारण वह ना करने के बजाय हा कहना चाहती थी यानी चूड़ना चाहती थी. लेकिन कुच्छ पल पहले ही झड़ने की वजह से शरीर की गर्मी निकल गयी थी और उसे हाँ कहने मे लाज़ लग रही थी. और वह चुदना भी चाहती थी. और देखी की पंडित जी उसी की ओर देख रहे थे शायद जबाव के इंतजार मे. सावित्री के आँखें ज्योन्हि पंडित जी एक आँखों से टकराई की वह लज़ा गयी और अपने दोनो हाथों से अपनी आँखें मूंद ली और सिर को एक तरफ करके हल्का सा कुछ रज़ामंदी मे मुस्कुरई ही थी की पंडित जी ने अपने लंड को अपने पूरे शरीर के वजन के साथ उसकी काली और कुच्छ गीली बुर मे चंपा ही था की सावित्री का मुँह खुला "आरे बाअप रे माईए...." और अपने एक हाथ से पंडित जी का लंड और दूसरी हाथ से उनका कमर पकड़ने के लिए झपटी लेकिन पंडित जी के भारी शरीर का वजन जो की अपने गोरे मोटे लंड पर रख कर काली रंग की फूली हुई पवरोती की तरह बुर मे चॅंप चुके थे और नतीज़ा की भारी वजन के वजह से आधा लंड सावित्री की काली बुर मे घूस चुका था, अब सावित्री के बस की बात नही थी की घूसे हुए लंड को निकाले या आगे घूसने से रोक सके. लेकिन सावित्री का जो हाथ पंडित जी के लंड को पकड़ने की कोशिस की वह उनका आधा ही लंड पकड़ सकी और सावित्री को लगा मानो लंड नही बल्कि कोई गरम लोहे की छड़ हो. अगले पल पंडित जी अपने शरीर के वजन जो की अपने लंड के उपर ही रख सा दिया था , कुछ कम करते हुए लंड को थोड़ा सा बाहर खींचा तो बुर से जितना हिस्सा बाहर आया उसपर बुर का लिसलिसा पानी लगा था. अगले पल अपने शरीर का वजन फिर से लंड पर डालते हुए हुमच दिए और इसबार लंड और गहराई तक घूस तो गया लेकिन सावित्री चटाई मे दर्द के मारे ऐंठने लगी.
क्रमशः................
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