RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--15
पंडित जी ने देखा की सावित्री लंड को काफ़ी ध्यान से अपने हाथ मे लिए हुए देख रही थी. और उन्होने ने उसे दिखाने के लिए थोड़ी देर तक वैसे ही पड़े रहे और उसके साँवले हाथ मे पकड़ा गया गोरा लंड अब झटके भी ले रहा था. फिर बोले "चमड़ी को फिर पीछे और आगे कर के मेरे लंड की मस्ती बढ़ा कि बस ऐसे ही बैठी रहेगी...अब तू सयानी हो गयी है और तेरी मा तेरी शादी भी जल्दी करेगी .... तो लंड से कैसे खेला जाता है कब सीखेगी.... और मायके से जब ये सब सिख कर ससुराल जाएगी तब समझ ले कि अपने ससुराल मे बढ़े मज़े लूटेगी और तुम्हे तो भगवान ने इतनी गदराई जवानी और शरीर दिया है कि तेरे ससुराल मे तेरे देवर और ससुर का तो भाग्य ही खूल जाएगा." "बस तू ये सब सीख ले की किसी मर्द से ये गंदा काम कैसे करवाया जाता है और शेष तो भगवान तेरे पर बहुत मेरहबान है..." पंडित जी बोले और मुस्कुरा उठे. सावित्री ये सब सुन कर कुछ लज़ा गयी लेकिन पंडित जी के मुँह से शादी और अपने ससुराल की बात सुनकर काफ़ी गर्व महसूस की और थोड़ी देर के लिए अपनी नज़रें लंड पर से हटा कर लाज़ के मारे नीचे झुका ली लेकिन अपने एक हाथ से लंड को वैसे ही पकड़े रही. पंडित जी ने देखा की सावित्री भी अन्य लड़कियो की तरह शादी के नाम पर काफ़ी खुश हो गयी और कुछ लज़ा भी रही थी. तभी सावित्री के नंगे काले काले मासल चूतदों पर हाथ फेरते वो आगे धीरे से बोले "अपनी शादी मे मुझे बुलाओगी की नही" ग़रीब सावित्री ने जब पंडित जी के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे खुशी का ठिकाना ही नही रहा और नज़ारे झुकाए ही हल्की सी मुस्कुरा उठी लेकिन लाज़ के मारे कुछ बोल नही पाई और शादी के सपने मन मे आने लगे तभी पंडित जी ने फिर बोला "बोलो ..बुलाओगी की नही..." इस पर सावित्री काफ़ी धीरे से बोली "जी बुलाउन्गि" और एकदम से सनसना गयी. क्योंकि पंडित जी का लंड उसके हाथ मे भी था और वह एकदम से नंगी पंडित जी के बगल मे बैठी थी और उसके चूतदों पर पंडित जी का हाथ मज़ा लूट रहा था. ऐसे मे शादी की बात उठने पर उसके मन मे उसके होने वाले पति, देवर, ससुर, ननद, सास और ससुराल यानी ये सब बातों के सपने उभर गये इस वजह से सावित्री लज़ा और सनसना गयी थी. पंडित जी की इन बातों से सावित्री बहुत खुश हो गयी थी. किसी अन्य लड़की की तरह उसके मन मे शादी और ससुराल के सपने तो पहले से ही थे लेकिन पंडित जी जैसे बड़ा आदमी ग़रीब सावित्री के शादी मे आएगा उसके लिए यह एक नयी और गर्व वाली बात थी. शायद यह भी उसके सपनों मे जुड़ गया. इस वजह से अब उसका आत्म विश्वाह भी बढ़ गया और लंड को थामे थामे ही वह शादी के सपने मे डूबने लगी तभी पंडित जी ने कहा "तेरी मा बुलाए या नही तू मुझे ज़रूर बुलाना मैं ज़रूर आउन्गा ...चलो लंड के चमड़ी को अब आगे पीछे करो और लंड से खेलना सीख लो...." कुछ पल के लिए शादी के ख्वाबों मे डूबी सावित्री वापस लंड पर अपनी नज़रे दौड़ाई और सुपादे की चमड़ी को फिर पीछे की ओर खींची और पहले की तरह सुपाड़ा से चमड़ी हटते ही खड़े लंड का चौड़ा सुपाड़ा एक दम बाहर आ गया. सावित्री की नज़रे लाल सूपदे पर पड़ी तो मस्त होने लगी. लेकिन उसके मन मे यह बात बार बार उठ रही थी कि क्या पंडित जी उसकी शादी मे आएँगे, वह इतनी ग़रीब है तो उसके शादी मे कैसे आएँगे? यदि आएँगे तो कितनी इज़्ज़त की बात होगी उसके लिए.. यही सोच रही थी और सुपादे की चमड़ी को आगे पीछे करना सुरू कर दी और सोचते सोचते आख़िर हिम्मत कर के पूछ ही लिए "सच मे आएँगे" और पंडित जी के जबाव मिलने से पहले अपनी नज़रें लंड पर से हटा कर नीचे झुका ली लेकिन लंड पर सावित्री का हाथ वैसे ही धीरे धीरे चल रहा था और खड़े लंड की चमड़ी सुपादे पर कभी चढ़ती तो कभी उतरती थी. इतना सुन कर पंडित जी ने अपने एक हाथ से उसके चूतड़ और दूसरे हाथ मे एक चुचि को ले कर दोनो को एक साथ कस कर मसल्ते हुए बोले "क्यो नही आउन्गा ....ज़रूर ऑंगा तेरी शादी मे...." फिर पंडित जी के दोनो हाथों से चूतड़ और चुचि को कस कर मीज़ना सुरू किए और आगे बोले "मैं तेरे मर्द से भी मिल कर कह दूँगा कि तुम्हे ससुराल मे कोई तकलीफ़ नही होनी चाहिए....आज का जमाना बहुत खराब हो गया है साले दहेज और पैसे के लालच मे शादी के बाद लड़की को जला कर मार डालते हैं और तेरी मा बेचारी बिध्वा है क्या कर सकती है यदि तेरे साथ कुछ गड़बड़ हो गया तो"" सावित्री के चुचिओ और चूतदों पर पंडित जी के हाथ कहर बरपा रहे थे इस वजह से उसके हाथ मे लंड तो ज़रूर था लेकिन वह तेज़ी से सुपादे की चमड़ी को आगे पीछे नही कर पा रही थी. वह यह सब सुन रही थी लेकिन अब उसकी आँखे कुछ दबदबाने जैसी लग रही थी. पंडित जी के सॉफ आश्वासन से कि वह उसकी शादी मे आएँगे, वह खुश हो गयी लेकिन उनकी दूसरी बात जो दहेज और ससुराल मे किसी आतायाचार से था, कुछ डर सी गयी. लेकिन पंडित जी की इस बात की वह उसके मर्द और ससुराल वालों को यह इशारा कर देंगे की उसके साथ ऐसा कुछ नही होना चाहिए, सावित्री को संतुष्टि मिल गयी थी. अब चूतदों और चुचिओ के मीसाव से मस्त होती जा रही थी. फिर पंडित जी बोले "और मेरे ही लंड से तुम एक लड़की से औरत बनी हो.. तो मेरे ही सामने शादी के मंडप तुम किसी की पत्नी बनोगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि मैं ये तो देख लूँगा के मैने जिसकी सील तोड़ी उसकी सुहागरात किसके साथ मनेगि......सही बात है कि नही"" इतना कह कर पंडित जी मुस्कुरा उठे और आगे बोले "लंड तो देख लिया, सूंघ लिया और अब इसे चाटना और चूसना रह गया है इसे भी सीख लो...चलो इस सुपादे को थोड़ा अपने जीभ से चॅटो..." "आज तुम्हे इतमीनान से सब कुछ सीखा दूँगा ताकि ससुराल मे तुम एक गुणवती की तरह जाओ और अपने गुनो से सबको संतुष्ट कर दो. " फिर आगे बोले " चलो जीभ निकाल कर इस सुपादे पर फिराओ..." क्रमशः...............
Sangharsh--15
|