RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--14 सावित्री के मुँह मे पंडित जी का थूक जाते ही उसके शरीर मे अश्लीलता और वासना का एक नया तेज नशा होना सुरू हो गया. मानो पंडित जी ने सावित्री के मुँह मे थूक नही बल्कि कोई नशीला चीज़ डाल दिया हो. सावित्री मदहोशी की हालत मे अपने सलवार के उपर से ही बुर को भींच लिया. पंडित जी सावित्री की यह हरकत देखते समझ गये कि अब बुर की फाँकें फड़फड़ा रही हैं. दूसरे पल पंडित जी के हाथ सावित्री के सलवार के जरवाँ पर पहुँच कर जरवाँ की गाँठ खोलने लगा. लेकिन पंडित जी की गोद मे बैठी सावित्री के सलवार की गाँठ कुछ कसा बँधे होने से खुल नही पा रहा था.. ऐसा देखते ही सावित्री पंडित जी की गोद मे बैठे ही बैठे अपने दोनो हाथ जरवाँ पर लेजाकर पंडित जी के हाथ की उंगलिओ को हटा कर खुद ही जरवाँ की गाँठ खोलने लगीं. ऐसा देख कर पंडित जी ने अपने हाथ को जरवाँ की गाँठ के थोड़ा दूर कर के सावित्री के द्वारा जरवाँ को खुल जाने का इंतजार करने लगे. अगले पल जारवा की गाँठ सावित्री के दोनो हाथों नेकी उंगलियाँ खोल दी और फिर सावित्री के दोनो हाथ अलग अलग हो गये. यह देख कर पंडित जी समझ गये की आगे का काम उनका है क्योंकि सावित्री सलवार के जरवाँ के गाँठ खुलते ही हाथ हटा लेने का मतलब था कि वह खुद सलवार नही निकलना चाहती थी. शायद लाज़ के कारण. फिर सावित्री का हाथ हटते ही पंडित जी अपने हाथ को सलवार के जरवाँ को उसके कमर मे से ढीला करने लगे. पंडित जी के गोद मे बैठी सावित्री के कमर मे सलवार के ढीले होते ही सलवार कमर के कुछ नीचे हुआ तो गोद मे बैठी सावित्री की चड्डी का उपरी हिस्सा दिखने लगा. फिर पंडित जी अगले पल ज्योन्हि सावित्री की सलवार को निकालने की कोशिस करना सुरू किए की सावित्री ने अपने चौड़े चूतदों को गोद मे से कुछ उपर की ओर हवा मे उठा दी और मौका देखते ही पंडित जी सलवार को सावित्री के चूतदों के नीचे से सरकाकर उसके पैरों से होते हुए निकाल कर फर्श पर फेंक दिए. अब फिर केवल चड्डी मे सावित्री अपने बड़े बड़े और काले चूतदों को पंडित जी के गोद मे बैठ गयी. सावित्री के दोनो चूतड़ चौड़े होने के नाते काफ़ी बड़े बड़े लग रहे थे और फैले से गये थे. जिस अंदाज़ मे सावित्री बैठी थी उससे उसकी लंड की भूख एकदम सॉफ दिख रही थी. चेहरे पर जो भाव थे वह उसके बेशर्मी को बता रहे थे. शायद पिछले दिन जो चुदाई का मज़ा मिला था वही मज़ा फिर लेना चाह रही थी. अब सावित्री की साँसे और तेज चल रही थी. . सलवार हटते ही सावित्री के जंघें भी नंगी हो गयी जिसपर पंडित जी की नज़र और हाथ फिसलने लगे. सावित्री की जंघें काफ़ी मांसल और गोल गोल साँवले रंग की थी. लेकिन बुर के पास के जाँघ का हिस्सा कुछ ज़्यादा ही सांवला था. पंडित जी सावित्री के नंगी और मांसल साँवले रंग की जांघों को आज काफ़ी ध्यान से देख रहे थे. अट्ठारह साल की सावित्री जो की पंडित जी के गोद मे ऐसे बैठी थी मानो अब पंडित जी के गोद से उठना नही चाहती हो. पंडित जी का लंड भी धोती के अंदर ढीले लंगोट मे खड़ा हो चुका था. जिसका कडापन और चुभन केवल चड्डी मे बैठी सावित्री अपने काले चूतदों मे आराम से महसूस कर रही थी. फिर भी बहुत ही आराम से एक चुदैल औरत की तरह अपने दोनो चूतदों को उनके गोद मे पसार कर बैठी थी. पंडित जी सावित्री को गोद मे बैठाए हुए उसकी नंगी गोल गोल चुचिओ पर हाथ फेरते हुए काफ़ी धीरे से पुचछा "मज़ा पा रही हो ना" इस पर सावित्री ने धीरे से बोली "जी". और अगले पल अपनी सिर कुछ नीचे झुका ली. साँसे कुछ तेज ले रही थी. लेकिन पंडित जी ने धीरे से फिर पुचछा "तुम्हे कभी कोई चोदने की कोशिस नही की थी क्या,,, तेरे गाओं मे तो बहुत सारे आवारा हैं." इस सवाल पर सावित्री ने कुछ जबाब नही दिया बल्कि अपनी नज़रे झुकाए ही रही. "गाँव मे इधेर उधेर घूमने फिरने नही जाती थी क्या" पंडित जी ने दुबारा धीरे से पुछा तो सावित्री ने नही मे सिर हिलाया तो पंडित जी बोले "घर पर ही पड़ी रहती थी इसी वजह से बची रही नही तो घर से बाहर कदम रखी होती तो आज के माहौल तुरंत चुद जाती., वैसे तेरे गाओं मे आवारे भी बहुत ज़्यादे हैं..... तेरी मा बेचारी भी कुछ नही कर पति उन बदमाशों का और वो सब तेरे को चोद चोद कर गाओं की कुतिया बना देते." पंडित जी अपने गोद मे बैठी हुई सावित्री के जांघों पर हाथ फेरते हुए फिर बोले "बेचारी तेरी मा अपनी हिफ़ाज़त कर ले वही बहुत है नही तो विधवा बेचारी का कहीं भी पैर फिसला तो गाओं के लोफरों और अवारों के लंड के नीचे दब्ते देर नही लगेगी." आगे फिर बोले "और अवारों के लंड का पानी बहुत ज़्यादे ही नशीला होता है" आगे फिर बोले "और जिस औरत को आवारा चोद कर उसकी बुर मे अपने लंड का नशीला पानी गिरा देते हैं वह औरत अपने जीवन मे सुधर नही सकती,...और एक पक्की चुदैल बन ही जाती हैं, समझी....... तुम भी बच के रहना इन आवारों से, .....इनके लंड का पानी बहुत तेज होता है" पंडित जी सावित्री के चड्डी के उपर से ही बुर को मीज़ते हुए यह सब बातें धीरे धीरे बोल रहे थे और सावित्री सब चुप चाप सुन रही थी. वह गहरी गहरी साँसें ले रही थी और नज़रें झुकाए हुए थी. पंडित जी की बातें सुन रही सावित्री खूब अच्छी तरह समझ रही थी कि पंडित जी किन आवारों की बात कर रहें हैं. लेकिन वह नही समझ पा रही थी कि अवारों के लंड का पानी मे कौन सा नशा होता है जो औरत को छिनार या चुदैल बना देता है. वैसे सावित्री तो बस पिछले दिन ही किसी मर्द के लंड का पानी अपनी बुर मे गिरता महसूस की थी जो कि पंडित जी के लंड का था. पंडित जी यह सब बता कर उसे अवारों से दूर रहने की हिदायत और सलाह दे रहे थे. शवित्री को पंडित जी की यह सब बातें केवल एक सलाह लग रही थी जबकि वास्तव मे पंडित जी के मन मे यह डर था कि अब सावित्री को लंड का स्वाद मिल चुका है और वह काफ़ी गर्म भी है. ऐसे मे यदि को गाओं के आवारा मौका पा के सावित्री का रगड़दार चुदाई कर देंगे तो सावित्री केवल पंडित जी से चुद्ते रहना उतना पसंद नही करेगी और अपने गाओं के आवारे लुंडों के चक्कर मे इधेर उधेर घूमती फिरती रहेगी. जिससे हो सकता है कि पंडित जी के दुकान पर आना जाना भी बंद कर दे. इसी वजह से पंडित जी भी आवारों से बचने की सलाह दे रहे थे. बुर को चड्डी के उपर से सहलाते हुए जब भी बुर के छेद वाले हिस्से पर उंगली जाती तो चड्डी को छेद वाला हिस्सा बुर के रस से भीगे होने से पंडित जी की उंगली भी भीग जा रही थी. पंडित जी जब यह देखे कि सावित्री की बुर अब बह रही है तो उसकी चड्डी निकालने के लिए अपने हाथ को सावित्री के कमर के पास चड्डी के अंदर उंगली डाल कर निकालने के लिए सरकाना सुरू करने वाले थे कि सावित्री समझ गयी कि अब चड्डी निकालना है तो चड्डी काफ़ी कसी होने के नाते वह खुद ही निकालने के लिए उनकी गोद से ज्योन्हि उठना चाही पंडित जी ने उसका कमर पकड़ कर वापस गोद मे बैठा लिए और धीरे से बोले "रूको आज मैं तुम्हारी चड्डी निकालूँगा,,, थोड़ा मेरे से अपनी कसी हुई चड्डी निकलवाने का तो मज़ा लेलो." सावित्री पंडित जी के गोद मे बैठने के बाद यह सोचने लगी कि कहीं आज चड्डी फट ना जाए. फिर पंडित जी चड्डी के किनारे मे अपनी उंगली फँसा कर धीरे धीरे कमर के नीचे सरकाने लगे. चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से थोड़ी थोड़ी सरक रही थी. सावित्री काफ़ी मदद कर रही थी कि उसकी चड्डी आराम से निकल जाए. फिर सावित्री ने अपने चूतादो को हल्के सा गोद से उपर कर हवा मे उठाई लेकिन पंडित जी चूतड़ की चौड़ाई और चड्डी का कसाव देख कर समझ गये कि ऐसे चड्डी निकल नही पाएगी. क्योंकि कमर का हिस्सा तो कुछ पतला था लेकिन नीचे चूतड़ काफ़ी चौड़ा था. फिर उन्होने सावित्री को अपने गोद मे से उठकर खड़ा होने के लिए कहा "चल खड़ी हो जा तब निकालूँगा चड्डी .....तेरा चूतड़ का हिस्सा बड़ा चौड़ा है रे .....लगता है किसी हथिनी का चूतड़ है..." इतना सुनते ही सावित्री उठकर खड़ी हो गयी और फिर पंडित जी उसकी चड्डी निकालने की कोशिस करने लगे. चड्डी कोशिस के बावजूद बस थोड़ी थोड़ी किसी तरह सरक रही थी. पंडित जी धोती और ढीले लंगोट मे चटाई पर बैठे ही चड्डी निकाल रहे थे. सावित्री का चौड़ा चूतड़ पंडित जी के मुँह के ठीक सामने ही था. जिस पर चड्डी आ कर फँस गयी थी. जब पंडित जी चड्डी को नीचे की ओर सरकाते तब आगे यानी सावित्री के झांट और बुर के तरफ की चड्डी तो सरक जाती थी लेकिन जब पिछला यानी सावित्री के चूतदों वाले हिस्से की चड्डी नीचे सरकाते तब चूतदों का निचला हिस्सा काफ़ी गोल और मांसल होकर बाहर निकले होने से चड्डी जैसे जैसे नीचे आती वैसे वैसे चूतड़ के उभार पर कस कर टाइट होती जा रही थी. आख़िर किसी तरह चड्डी नीचे की ओर आती गयी और ज्योन्हि चूतदों के मसल उभार के थोड़ा सा नीचे की ओर हुई कि तुरंत "फटत्त" की आवाज़ के साथ चड्डी दोनो बड़े उभारों से नीचे उतर कर जाँघ मे फँस गयी. चड्डी के नीचे होते ही सावित्री के काले और काफ़ी बड़े दोनो चूतदों के गोलाइयाँ अपने पूरे आकार मे आज़ाद हो कर हिलने लगे. मानो चड्डी ने इन दोनो चूतदों के गोलाईओं को कस कर बाँध रखा था. चूतदों के दोनो गोल गोल और मांसल हिस्से को पंडित जी काफ़ी ध्यान से देख रहे थे. सावित्री तो साँवले रंग की थी लेकिन उसके दोनो चूतड़ कुछ काले रंग की थी. चूतड़ काफ़ी कसे हुए थे. चड्डी के नीचे सरकते ही सावित्री को राहत हुई कि अब चड्डी फटने के डर ख़त्म हो गया था. फिर पंडित जी सावित्री के जांघों से चड्डी नीचे की ओर सरकाते हुए आख़िर दोनो पैरों से निकाल लिए. निकालने के बाद चड्डी के बुर के सामने वाले हिस्से को जो की कुछ भीग गया था उसे अपनी नाक के पास ले जा कर उसका गंध नाक से खींचे और उसकी मस्तानी बुर की गंध का आनंद लेने लगे. चड्डी को एक दो बार कस कर सूंघने के बाद उसे फर्श पर पड़े सावित्री के कपड़ों के उपर फेंक दिए. अब सावित्री एकदम नंगी होकर पंडित जी के सामने अपना चूतड़ कर के खड़ी थी. फिर अगले पल पंडित जी चटाई पर उठकर खड़े हुए और अपनी धोती और लंगोट दोनो निकाल कर चौकी पर रख दिए. उनका लंड अब एकदम से खड़ा हो चुका था. पंडित जी फिर चटाई पर बैठ गये और सावित्री जो सामने अपने चूतड़ को पंडित जी की ओर खड़ी थी, फिर से गोद मे बैठने के बारे मे सोच रही थी कि पंडित जी ने उसे गोद के बजाय अपने बगल मे बैठा लिए. सावित्री चटाई पर पंडित जी के बगल मे बैठ कर अपनी नज़रों को झुकाए हुए थी. फिर पंडित जी ने सावित्री के एक हाथ को अपने हाथ से पकड़ कर खड़े तननाए लंड से सटाते हुए पकड़ने के लिए कहे. सावित्री पिच्छले दिन भी लंड को पकड़ चुकी थी. सावित्री ने पंडित के लंड को काफ़ी हल्के हाथ से पकड़ी क्योंकि उसे लाज़ लग रही थी. पंडित जी का लंड एकदम गरम और कड़ा था. सुपादे पर चमड़ी चड़ी हुई थी. लंड का रंग गोरा था और लंड के अगाल बगल काफ़ी झांटें उगी हुई थी. पंडित जी ने देखा की सावित्री लंड को काफ़ी हल्के तरीके से पकड़ी है और कुछ लज़ा रही है तब धीरे से बोले "अरे कस के पकड़ .. ये कोई साँप थोड़ी है कि तुम्हे काट लेगा.... थोड़ा सुपादे की चॅम्डी को आगे पीछे कर....अब तुम्हारी उमर हो गयी है ये सब करने की... थोड़ा मन लगा के लंड का मज़ा लूट" आगे बोले "पहले इस सूपदे के उपर वाली चॅम्डी को पीछे की ओर सरका और थोड़ा सुपादे पर नाक लगा के सुपादे की गंध सूंघ ...." सावित्री ये सब सुन कर भी चुपचाप वैसे ही बगल मे बैठी हुई लंड को एक हाथ से पकड़ी हुई थी और कुछ पल बाद कुछ सोचने के बाद सुपादे के उपर वाली चमड़ी को अपने हाथ से हल्का सा पीछे की ओर खींच कर सरकाना चाही और अपनी नज़रे उस लंड और सूपदे के उपर वाली चमड़ी पर गढ़ा दी थी. बहुत ध्यान से देख रही थी कि लंड एक दम साँप की तरह चमक रहा था और सुपादे के उपर वाली चमड़ी सावित्री के हाथ की उंगलिओ से पीछे की ओर खींचाव पा कर कुछ पीछे की ओर सर्की और सुपादे के पिछले हिस्से पर से ज्योन्हि पीछे हुई की सुपादे के इस काफ़ी चौड़े हिस्से से तुरंत नीचे उतर कर सुपादे की चमड़ी लंड वाले हिस्से मे आ गयी और पंडित जी के लंड का पूरा सुपाड़ा बाहर आ गया जैसे कोई फूल खिल गया हो और चमकने लगा. ज्योन्हि सुपाड़ा बाहर आया कि पंडित जी सावित्री से बोले "देख इसे सूपड़ा कहते हैं और औरत की बुर मे सबसे आगे यही घुसता है, अब अपनी नाक लगा कर सूँघो और देखा कैसी महक है इसकी" "इसकी गंध सूँघोगी तो तुम्हारी मस्ती और बढ़ेगी चल सूंघ इसे" सावित्री ने काफ़ी ध्यान से सुपादे को देखा लेकिन उसके पास इतनी हिम्मत नही थी कि वह सुपादे के पास अपनी नाक ले जाय. तब पंडित जी ने सावित्री के सिर के पीछे अपना हाथ लगा कर उसके नाक को अपने लंड के सुपादे के काफ़ी पास ला दिया लेकिन सावित्री उसे सूंघ नही रही थी. पंडित जी ने कुछ देर तक उसके नाक को सुपादे से लगभग सटाये रखा तब सावित्री ने जब साँस ली तब एक मस्तानी गंध जो की सुपादे की थी, उसके नाक मे घुसने लगी और सावित्री कुछ मस्त हो गयी. फिर वह खुद ही सुपादे की गंध सूंघने लगी. और ऐसा देख कर पंडित जी ने अपना हाथ सावित्री के सिर से हटा लिया और उसे खुद ही सुपाड़ा सूंघने दिया और वह कुछ देर तक सूंघ कर मस्त हो गयी. फिर पंडित जी ने उससे कहा "अब सुपादे की चमड़ी को फिर आगे की ओर लेजा कर सुपादे पर चढ़ा दो" यह सुन कर सावित्री ने अपने हाथ से सुपादे के चमड़ी को सुपादे के उपर चढ़ाने के लिए आगे की ओर खींची और कुछ ज़ोर लगाने पर चमड़ी सुपादे के उपर चढ़ गयी और सुपादे को पूरी तरीके से ढक दी मानो कोई नाप का कपड़ा हो जो सुपादे ने पहन लिया हो.
Sangharsh--14
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