RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--13 अब सावित्री का कलेजा तेज़ी से धक धक कर रहा था. वह काफ़ी हिम्मत करके पंडित जी के तरफ बढ़ी लेकिन चटाई से कुछ दूर पर ही खड़ी हो गयी और अपनी आँखें लगभग बंद कर ली. वह पंडित जी को देख पाने की हिम्मत नही जुटा जा पा रही थी. तभी पंडित जी चटाई पर से खड़े हुए और सावित्री का एक हाथ पकड़ कर चटाई पर खींच कर ले गये. फिर चटाई के बीच मे बैठ कर सावित्री का हाथ पकड़ कर अपनी गोद मे खींच कर बैठाने लगे. पंडित जी के मजबूत हाथों के खिचाव से सावित्री उनके गोद मे अपने बड़े बड़े चूतादो के साथ बैठ गयी. अगले पल मानो एक बिजली सी उसके शरीर मे दौड़ उठी. सावित्री अपने पूरे कपड़े मे थी. गोद मे बैठते ही पंडित जी ने सावित्री के दुपट्टे को उसके गले और चूचियो पर से हटा कर फर्श पर फेंक दिए. अब सावित्री की बड़ी बड़ी चुचियाँ केवल समीज़ मे एक दम बाहर की ओर निकली हुई दीख रहीं थी. सावित्री अपनी आँखें लगभग बंद कर रखी थी. लेकिन सावित्री ने अपने हाथों से अपने चुचिओ को ढकने की कोई कोशिस नही की और दोनो चुचियाँ समीज़ मे एक दम से खड़ी खड़ी थी. मानो सावित्री खुद ही दोनो गोल गोल कसे हुए चुचिओ को दिखाना चाहती हो. पिछले दिन के चुदाई के मज़ा ने सावित्री को लालची बना दिया था. सावित्री पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे मस्त होती जा रही थी. पंडित जी ने सावित्री के दोनो चुचिओ को गौर से देखते हुए उनपर हल्के से हाथ फेरा मानो चुचिओ की साइज़ और कसाव नाप रहे हों. सावित्री को पंडित जी का हाथ फेरना और हल्का सा चुचिओ का नाप तौल करना बहुत ही अच्छा लग रहा था. इसी वजह से वह अपनी चुचिओ को छुपाने के बजाय कुछ उचका कर और बाहर की ओर निकाल दी जिससे पंडित जी उसकी चुचिओ को अपने हाथों मे पूरी तरह से पकड़ ले. सावित्री पंडित जी की गोद मे एकदम मूर्ति की तरह बैठ कर मज़ा ले रही थी. फिर उसे याद आया कि कल की तरह आज भी समीज़ नही निकाल पाई थी. फिर अगले पल वह खुद ही पंडित जी के गोद मे आगे की ओर थोड़ी सी उचकी और अपने समीज़ को दोनो हाथों से खुद ही निकालने लगी. आज वह खुद ही आगे आगे चल रही थी. सावित्री को अब देर करना ठीक नही लग रहा था. आख़िर समीज़ को निकाल कर फर्श पर रख दी. फिर पंडित जी की गोद मे खुद ही काफ़ी ठीक से बैठ कर अपने सिर को कुछ झुका ली. लेकिन दोनो छातियो को ब्रा मे और उपर करके निकाल दी. पंडित जी सावित्री के उतावलेपन को देख कर मस्त हो गये. वह सोचने लगे कि कल ही सील तुड़ाई और आज लंड के लिए पग्लाने लगी है. फिर भी पंडित जी एक पुराने चोदु थे और अपने जीवन मे बहुत सी लड़कियो और औरतों को चोद चुके थे इस वजह से वे कई किस्म की लड़कियो और औरतों के स्वाभाव से भली भाँति परिचित थे. इस वजह से समझ गये की सावित्री काफ़ी गर्म किस्म की लड़की है और अपने जीवन मे एक बड़ी छिनाल भी बन सकती है, बस ज़रूरत है उसको छिनाल बनाने वालों की. अगले पल मे यही सोचने लगे की सावित्री को उसके गाओं वाले खुद ही एक बड़ी चुड़ैल बना देंगे बस उन्हे मौका मिल जाए. क्योंकि सावित्री के गाँव मे भी एक से एक चोदु आवारा रहते थे. पंडित जी यही सब सोच रहे थे और ब्रा के उपर से दोनो चुचिओ को अपने हाथों से हल्के हल्के दबा रहे था. सावित्री अपने शरीर को काफ़ी अकड़ कर पंडित जी के गोद मे बैठी थी जैसे लग रहा था कि वह खुद ही दब्वाना चाहती हो. पंडित जी नेब्रा के उपर से ही दोनो चुचिओ को मसलना सुरू कर दिया और थोड़ी देर बाद ब्रा की हुक को पीछे से खोल कर दोनो चुचिओ से जैसे ही हटाया की दोनो चुचियाँ एक झटके के साथ बाहर आ गयीं. चुचियाँ जैसे ही बाहर आईं की सावित्री की मस्ती और बढ़ गयी और वह सोचने लगी की जल्दी से पंडित जी दोनो चुचिओ को कस कस कर मीसे. और पंडित जी ब्रा को फर्श पर पड़े दुपट्टे और समीज़ के उपर ही ब्रा को फेंक कर चुचिओ पर हाथ फिराना सुरू कर दिया. नंगी चुचिओ पर पंडित जी हाथ फिरा कर चुचिओ के आकार और कसाव को देख रहे थे जबकि सावित्री के इच्छा थी की पंडित जी उसकी चुचिओ को अब ज़ोर ज़ोर से मीसे. आख़िर सावित्री लाज़ के मारे कुछ कह नही सकती तो अपनी इस इच्छा को पंडित जी के सामने रखने के लिए अपने छाति को बाहर की ओर उचकाते हुए एक मदहोशी भरे अंदाज़ मे पंडित जी के गोद मे कसमासाई तो पंडित जी समझ गये और बोले "थोड़ा धीरज रख रे छिनाल,, अभी तुझे कस कस के चोदुन्गा,,, धीरे धीरे मज़ा ले अपनी जवानी का समझी, तू तो इस उम्र मे लंड के लिए इतना पगला गयी है आगे क्या करेगी कुतिया साली,,,,,"" पंडित जी भी सावित्री की गर्मी देख कर दंग रह गये. उन्हे भी ऐसी किसी औरत से कभी पाला ही नही पड़ा था जो सील टूटने के दूसरे दिन ही रंडी की तरह व्यवहार करने लगे. सावित्री के कान मे पंडित जी की आवाज़ जाते ही डर के बजाय एक नई मस्ती फिर दौड़ गयी. तब पंडित जी ने उसके दोनो चुचिओ को कस कस कर मीज़ना सुरू कर दिया. ऐसा देख कर सावित्री अपनी छातियो को पंडित जी के हाथ मे उचकाने लगी. रह रह कर पंडित जी सावित्री के चुचिओ की घुंडीओ को भी ऐंठने लगे फिर दोनो चुचिओ को मुँह मे लेकर खूब चुसाइ सुरू कर दी. अब क्या था सावित्री की आँखें ढपने लगी और उसकी जांघों के बीच अब सनसनाहट फैलने लगी थोड़ी देर की चुसाइ के बाद बुर मे चुनचुनी उठने लगी मानो चींटियाँ रेंग रहीं हो. अब सावित्री कुछ और मस्त हो गयी और लाज़ और शर्म मानो शरीर से गायब होता जा रहा था. पंडित जी जो की काफ़ी गोरे रंग के थे और धोती और लंगोट मे चटाई के बीच मे बैठे और उनकी गोद मे सावित्री काफ़ी साँवली रंग की थी और चुहियाँ भी साँवली थी और उसकी घुंडिया तो एकदम से काले अंगूर की तरह थी जो पंडित जी के गोरे मुँह मे काले अंगूर की तरह कड़े और खड़े थे जिसे वी चूस रहे थे. पंडित जी की गोद मे बैठी सावित्री पंडित जी के काफ़ी गोरे होने के वजह से मानो सावित्री एकदम काली नज़र आ रही थी. दोनो के रंग एक दूसरे के बिपरीत ही थे. जहाँ पंडित जी लंड भी गोरा था वहीं सावित्री की बुर तो एकदम से काली थी. सावित्री की चुचिओ की चुसाइ के बीच मे ही पंडित जी ने सावित्री के मुँह को अपने हाथ से ज़ोर से पकड़ कर अपने मुँह मे सताया. फिर सावित्री के निचले और उपरी होंठो को चूसने और चाटने लगी. सावित्री एकदम से पागल सी हो गयी. अब उसे लगा की बुर मे फिर पिछले दिन की तरह कुछ गीला पन हो रहा है. सावित्री पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे अपने होंठो को चूसा रही थी तभी पंडित जी बोले "जीभ निकाल" सावित्री को समझ नही आया की जीभ का क्या करेंगे. फिर भी मस्त होने की स्थिति मे उसने अपने जीभ को अपने मुँह से बाहर निकाली और पंडित जी लपाक से अपने दोनो होंठो मे कस कर चूसने लगे. जीभ पर लगे सावित्री के मुँह मे का थूक चाट गये. सावित्री को जीभ का चटाना बहुत अच्छा लगा. फिर पंडित जी अपने मुँह के होंठो को सावित्री के मुँह के होंठो पर कुछ ऐसा कर के जमा दिए की दोनो लोंगो के मुँह एक दूसरे से एकदम सॅट गया और अगले ही पल पंडित जी ने ढेर सारा थूक अपने मुँह मे से सावित्री के मुँह मे धकेलना सुरू कर किया. सावित्री अपने मुँह मे पंडित जी का थूक के आने से कुछ घबरा सी गयी और अपने मुँह हटाना चाही लेकिन सावित्री के मुँह के जबड़े को पंडित जी ने अपने हाथों से कस कर पकड़ लिए था. तभी पंडित जी के मुँह मे से ढेर सारा थूक सावित्री के मुँह मे आया ही था की सावित्री को लगा की उसे उल्टी हो जाएगी और लगभग तड़फ़ड़ाते हुए अपने मुँह को पंडित जी के मुँह से हटाने की जोरे मारी. तब पंडित जी ने उसके जबड़े पर से अपना हाथ हटा लिए और सावित्री के मुँह मे जो भी पंडित जी का थूक था वह उसे निगल गयी. लेकिन फिर पंडित जी ने सावित्री के जबड़े को पकड़ के ज़ोर से दबा कर मुँह को चौड़ा किए और मुँह के चौड़ा होते ही अपने मुँह मे बचे हुए थूक को सावित्री के मुँह के अंदर बीचोबीच थूक दिया जो की सीधे सावित्री के गले के कंठ मे गिरी और सावित्री उसे भी निगल गयी.
क्रमशः...............
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