RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--12 सावित्री रोज केवल समीज ही निकाल कर नहा लेती थी। लेकिन आज वह सलवार और ब्रेसरी को भी निकल करकेवल अपने पुरानी चड्डी में हो गयी। आज पहली बार जवान होने के बाद केवल चड्डी में नहाने जा रही थी। पतानहीं क्यों भोला पंडित से चुद जाने के बाद अब ज्यादे शर्म लाज नहीं आ रही थी। वैसे सावित्री कोई देखने वाला नहींथा। लेकिन पता नहीं क्यों उसका मन कुछ रंगीन सा हो गया था। सवित्री की दोनों बड़ी बड़ी चूचियां काफी सुडौललग रही थीं। सावित्री अपने चुचिओं को देख कर मस्त हो गयी। उसे याद आया की इन्हीं दोनों चुचिओं को पंडित जीने कल खूब मीज़ा और चूसा। सावित्री को आज चूचियां कुछ बड़ी लग रही थीं। सावित्री जब पानी अपने शरीर पर डाल कर नहाने लगी तब उसका मन बड़ा ही रंगीन होने लगा। वह अपने चुचियोंको खूब मल मल कर नहाने लगी। बड़ा मज़ा आ रहा था। आज केवल चड्डी ही शरीर पर होने से एक सनसनाहट होरही थी। फिर चड्डी को सरकाकर बुर और झांटों में साबुन लगाकर नहाने लगी। बुर पर हाथ फेरने पर इतना मज़ाआता की सावित्री का जी चाहता की खूब हाथ से सहलाये। खैर जल्दी से नहा कर सावित्री दुकान पर जाने के लिए तैयार हो गयी। और आज उसका मन कुछ ज्यादा ही फड़करहा था की दुकान पर जल्दी से पहुंचे। शायद पिछले दिन लन्ड का स्वाद मिल जाने के वजह से । उसके मन मेंपंडित जी के प्रति एक आकर्षण पैदा होने लगा था। यह उसके शरीर की जरूरत थी। जो की पंडित जी पूरा करसकते थे। सावित्री के मन में जो आकर्षण भोला पंडित के तरफ हो रही थी उसे वह पूरी तरह समझ नहीं पा रहीथी। लेकिनउसे लगता था की पंडित जी ने उसे बहुत आनंद दिया। सावित्री उस आनंद को फिर से पाना चाहती थी। लेकिन जोसबसे चिंता की बात थी वह यह की पंडित जी का वीर्य जो बुर में गिरा उससे कहीं गर्भ ठहर न जाये। आखिर इसी उधेड़बुन में लगी सावित्री फिर दुकान पर पहुंची और रोज की तरह पंडित जी का प्रणाम की तो पंडितजी उसके और देखकर मुस्कुराते हुए उसे अन्दर आने के लिए कहा। सावित्री चुपचाप दुकान के अंदर आ गयी। यहपहली बार था की पंडित जी ने सावित्री को मुस्कुराकर दुकान के अन्दर आने के लिए कहे थे। सावित्री के मन मेंअपने शरीर की कीमत समझ में आने लगी। वह सोच रही थी की आज क्या होगा। पंडित जी कुर्सी पर बैठे ही बैठेसावित्री की और देख रहे थे। सावित्री अपने स्टूल पर बैठी नज़रें झुकाई हुई थी। उसे लाज लग रहा था। वह यही सोचरही थी की पंडित जी ने उसे कैसे नंगी कर के चोदा था। कैसे उसे चोदकर एक औरत बना दिया। और अब कुछ दुरीपर बैठ कर उसे देख रहे थे। उसके मन में यह बात भी आती थी की क्यों न वह पंडित जी से ही यह कहे की उसका पेट में जो वीर्य गिरा दिया है तो उसका क्या होगा। सावित्री को अपने सहेलिओं से इतना पता था की कुछ ऐसी दवाएं आती है जिसके खाने से गर्भ नहीं ठहरता है। लेकिन सावित्री के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी की वह उस दवा को कहाँ से ले कर खाए। यही सब सोचते रही की दोपहर हो गयी और पंडित जी पिछले दिन की तरह दुकान को बंद कर के खाना खाने और आराम करने की तैयारी में लग गए। दूकान का बाहरी दरवाजा बंद होने के बाद सावित्री का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वह पंडित जी के हर गतिविधि को ध्यान से देखने लगी। पंडित जी दूकान के अंदर वाले हिस्से में आ गए। तब सावित्री ने चटाई को लेकर दूकान वाले हिस्से में आ गयी और चटाई बिछा कर बैठ गयी। उसके मन में एक घबराहट साफ दिख रहा था। अंदर वाले कमरे में पंडित जी की हर हरकत को सावित्री ध्यान से समझने की कोशिस करती। वह दूकान वाले हिस्से में होने के वजह से पंडित जी को देख तो नहीं पा रही थी लेकिन अपने कान से अंदर की हर हरकत को समझने की कोशिस करती थी। उसे लगा की पंडित जी दोपहर का खाना खा रहे हैं। थोड़ी देर बाद उनके खर्राटे की आवाज सावित्री को सुनाई देने लगी तब वह समझ गयी की पंडित जी खाना खाने के बाद कल की तरह अब आराम करने लगे। तब दुकान वाले हिस्से में चटाई पर बैठी सावित्री भी लेट गयी और दुकान में रखे सामानों को लेटे लेटे देखने लगी। उसके मन में पिछले दिन की चुदाई की बात याद आने लगी। दोपहर के सन्नाटे में दुकान के भीतर चटाई लेती सावित्री का भी मन अब जवानी के झोंके में कुछ बहकने सा लगा ******************************
*********** उसके मन में एक अलग तरह की उमंग जन्म लेने लगा था। ऐसा उसे पहले कभी भी नहीं होते था। पिछले दिन जो कुछ भी पंडित जी ने किया उसे बार बार यद् आने लगा। लेटे लेटे उन बातों को सोचना बहुत ही अच्छा लगने लगा था। ऐसा लगता मानो उन्होंने ने कुछ भी गलत नहीं किया बल्कि जो कुछ किया उसके साथ बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। शायद यह सावित्री के जवान उम्र और गर्म खून होने के वजह से हो रहा था। कुछ ही देर पहले उसके दिमाग में जो पंडित जी के वीर्य को ले कर डर था कहीं ख़त्म सा हो गया था। वह यही नहीं सोच पा रही थी कि उसका मन ऐसा क्यों बदल सा रहा है। सावित्री का अनाड़ीपन अपने धारणा के अंदर हो रहे बदलाव को समझने में नाकाम हो रहा था। शायद सावित्री के शरीर कि भूख ही इसके लिए जिम्मेदार थी। लेकिन यह भूख पहले क्यों नहीं लगाती थी सिर्फ कल कि घटना के बाद ही इस भूख का लगना सुरु हुआ था? शायद हाँ । सावित्री के मन कि स्थिति काफी पहेली कि तरह होती जा रही थी। सावित्री को लग रहा था कि पंडित जी के लन्ड ने जहाँ बुर के शक्ल को बदल दिया वहीँ उनके गर्म वीर्य ने सावित्री के सोच को बदल कर जवान कर दिया। मानो वीर्य नहीं एक ऐसा तेजाब था जो सावित्री के अंदर के शर्म और लाज को काफी हद तक गला दिया हो। सावित्री के मन में जो कुछ उठ रहा था वह कल के पहले कभी नहीं उठता था। उसे याद है कि कैसे उसकी माँ सीता ने सावित्री की इज्जत को गाँव के आवारों से बचाने के लिए कितनी संघर्ष किया। सावित्री की पढाई आठवीं पूरी होने के बाद ही बंद करा कर घर में ही रखा ताकि गाँव के गंदे माहौल में सावित्री कहीं बिगड़ न जाये। लेकिन अब सावित्री को यह सब कुछ सही नहीं लग रहा था। जहाँ सावित्री की माँ को इज्जत से रहने की जरूरत थी वहीँ अब सावित्री को अपने शरीर के भूख को मिटाने की जरूरत महसूस हो रही थी। आखिर यह भूख पहले क्यों नहीं लगी? कुछ देर सोचने के बाद सावित्री के मन में एक बात समझ में आई की उसे तो पता ही नहीं था की मर्द जब औरत को चोदता है तो इतना मज़ा आता है। फिर दूसरा सवाल उठा की आखिर क्यों नहीं पता था कि इतना मजा आता है? इसका जबाव मन में आते ही सावित्री को कुछ गुस्सा लगने लगा। क्योंकि इसका जबाव कुछ अलग था। सावित्री समझ गयी की कभी वह चुद ही नहीं पाई थी किसी से। बस उसे कभी कभी किसी किसी से पता चलता था की गाँव की फलां लड़की या औरत किसी के साथ पकड़ी गयी या देखि गयी। और उसके बाद अपने माँ से ढेर सारा उपदेश सुनने को मिलता की औरत या लड़की को इज्जत से रहनी चाहिए और सावित्री शायद यही सब सुन कर कई सालों से जवान होने के बावजूद घर में ही रह गयी और किसी मर्द का स्वाद कभी पा न सकी और जान न सकी की मर्द का मजा क्या होता है। ये तो शायद पैसे की मज़बूरी थी जिसके वजह से भोला पंडित के दुकान में काम करने के लिए आना पड़ा और मौका देख कर भोला पंडित ने सावित्री को जवानी का महत्व बता और दिखा दिया था। उसके मन में जो गुस्सा उठा था वह माँ के ऊपर ही था। अब सावित्री का मन अपने शरीर की जरूरत की वजह से अपनी माँ की व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करना सुरु कर दिया था। उसे लगा की अपनी माँ सीता का उपदेश सुन कर घर में ही बंद रहना शायद काफी बेवकूफी का काम था। वह अपने कुछ सहेलिओं के बारे में जानती थी जो इधर उधर से मज़ा ले लेती थीं लेकिन सावित्री ने अपने माँ के उपदेशों के प्रभाव में आ कर कभी कोई ऐसी इच्छा मन में पनपने नहीं दिया था। सावित्री दुकान वाले हिस्से में लेती हुई यही सब सोच रही थी। पंडित जी अंदर वाले कमरे में चौकी पर खर्राटे ले रहे था। सावित्री ने अपने एक हाथ को अपने सलवार के ऊपर से ही बुर और झांटों को सहलाया और काफी आनंद मिला और यह भी अनुभव हुआ की अब दर्द ख़त्म हो गया था जो कल सील तोड़ने के वजह से हुआ था। कुछ सोच कर सावित्री चटाई में लेती हुई एक तरफ करवट हुई और सोचने लगी कि आज क्या होगा जब पंडित जी सो कर उठेंगे। यह बात मन में आते ही सावित्री एकदम सनसनाती हुई मस्त सी हो गयी। सावित्री के दिमाग में पंडित जी का लन्ड दिखने लगा। उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। उसने दुबारा अपने हाथ को बुर पर ले जाकर सलवार के ऊपर से ही थोडा सहलाया तो उसका बदन एक बार फिर झनझना उठा। दोपहेर का सन्नाटा ही था जो सावित्री के शरीर मे एक आग धधकने का काम कर रहा था. उसके शरीर मे जवानी की आग लगना सुरू हो गया था. वह पंडित जी के बारे मे सोचना सुरू कर दी. एक दिन पहले जिस काम से वह इतना डरती थी आज उसे उसी काम की ज़रूरत समझ मे आने लगी थी. चटाई पर लेटे लेटे ही उसका मन अब लहराने लगा था. वह यही सोच रही थी कि आज पंडित जी सोकर उठेंगे तो उसे बुलाकर चोदेन्गे. ऐसी सोच उसे मस्त कर दे रही थी. वह यही बार बार मन मे ला रही थी कि आज फिर से चुदाई होगी. शायद सावित्री कुछ ज़्यादा ही जल्दबाजी मे थी इसी वजह से उसको पंडित जी का खर्राटा ठीक नही लग रहा था. उसे इस बात की जल्दी थी कि पंडित जी उठे और उसे अंदर वाले कमरे मे बुला कर चोद डालें. उसका ध्यान पंडित जी के खर्राटे और अपनी शरीर की मस्ती पर ही था. आख़िर यह सब होते करीब एक घंटा बीता ही था का पंडित जी का खर्राटा बंद हो गया. और अगले पल सावित्री को लगा कि पंडित जी चौकी पर उठकर बैठ गये हैं. सावित्री का कलेजा धक धक करने लगा. सावित्री भी अपने चटाई पर उठकर बैठ गयी. उसे कुछ घबराहट सी हो रही थी. कुछ पल पहले ही वह सोच रही थी कि पंडित जी आज भी चोदेन्गे तो बहुत अच्छा होगा लेकिन जब पंडित जी की नीद खुली तब सावित्री को डर लगने लगा. शायद उसके अंदर इतनी हिम्मत नही थी कि वह उनका सामना आसानी से कर सके. थोड़ी देर बाद शौचालय से पंडित जी के पेशाब करने की आवाज़ आने लगी. सावित्री यह आवाज़ सुनकर लगभग हिल सी गई. चटाई मे बैठे बैठे अपने दुपट्टे को भी ठीक ठाक कर लिया. अब अगले पल मे होने वाली घटना का सामना करने के लिए हिम्मत जुटा रही थी. तभी पंडित जी पेशाब करके वापस आए और चौकी पर बैठ गये. तभी सावित्री के कान मे एक आवाज़ आई और वह कांप सी गई. पंडित जी ने उसे पुकारा था "आओ इधेर" सावित्री को लगा कि वह यह आवाज़ सुनकर बेहोश हो जाएगी. अगले पल सावित्री चटाई पर से उठी और अंदर के हिस्से मे आ गयी. सावित्री ने देखा कि पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उसी की ओर देख रहे हैं. अगले पल पंडित जी ने कहा "चटाई ला कर बिच्छा यहाँ और तैयार हो जा, अभी काफ़ी समय है दुकान खुलने मे" सावित्री समझ गयी कि पंडित जी क्या करना चाहते हैं. उसने चटाई ला कर पिछले दिन वाली जगह यानी चौकी के बगल मे बिछा दी. अब पंडित जी के कहे गये शब्द यानी तैयारी के बारे मे सोचने लगी. उसका मतलब पेशाब करने से था. उसे मालूम था कि पंडित जी ने उसे तैयार यानी पेशाब कर के चटाई पर आने के लिए कहे हैं. लेकिन उनके सामने ही शौचालय मे जाना काफ़ी शर्म वाला काम लग रहा था और यही सोच कर वह एक मूर्ति की तरह खड़ी थी. तभी पंडित जी ने बोला "पेशाब तो कर ले, नही तो तेरी जैसी लौंडिया पर मेरे जैसा कोई चढ़ेगा तो मूत देगी तुरंत" दूसरे पल सावित्री शौचालय के तरफ चल दी. शौचालय मे अंदर आ कर सीत्कनी बंद कर के ज्योन्हि अपनी सलवार के जरवाँ पर हाथ लगाई कि मन मस्ती मे झूम उठा. उसके कानो मे पंडित जी की चढ़ने वाली बात गूँज उठी. सावित्री का मन लहराने लगा. वह समझ गयी कि अगले पल मे उसे पंडित जी अपने लंड से चोदेन्गे. जरवाँ के खुलते ही सलवार को नीचे सरकई और फिर चड्डी को भी सरकाकर मूतने के लिए बैठ गयी. सावित्री का मन काफ़ी मस्त हो चुका था. उसकी साँसे तेज चल रही थी. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी. फिर मूतने के लिए जोरे लगाई तो मूत निकालने लगा. आज मूत की धार काफ़ी मोटी थी. मूतने के बाद खड़ी हुई और चड्डी उपर सरकाने से पहले एक हाथ से अपनी बुर को सहलाई और बुर के दोनो फांकों को अपने उंगलिओ से टटोल कर देखा तो पाया कि सूजन और दर्द तो एकदम नही था लेकिन बुर की फांके अब पहले की तरह आपस मे सॅट कर लकीर नही बना पा रही थी. चड्डी पहन कर जब सलवार की जरवाँ बाँधने लगी तो सावित्री को लगा कि उसके हाथ कांप से रहे थे. फिर सिटकनी खोलकर बाहर आई तो देखी कि पंडित जी अपना कुर्ता निकाल कर केवल धोती मे ही चटाई पर बैठे उसी की ओर देख रहे थे. ***********************************
|