RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--10
झिल्ल्ली के फटते ही सावित्री के उपर मानो आसमान ही गिर पड़ा हो. इतना तेज दर्द हुआ कि वह एकदम बेहोश होने के कगार पर आ गयी. वह बिलबिला कर चिल्ला उठी "" अरी...ए माई रे मैं मर जाब ....आरे प आ न दी त जीए हम मर जाब .....अरे ई बाप हो बाप .... दा र आड़ आहह री मैं...." साथ साथ उसके शरीर मे काफ़ी तेज छटपटाहट भी होने लगी लेकिन पंडित जी भी बुरी ताक़त से सावित्री को चटाई मे दबोचे रखा. सावित्री कमर को इधेर उधेर हिलाने की कोशिस करने लगी लेकिन पंडित जी के शरीर के नीचे दबे होने और एक हाथ से कमर पकड़े होने के वजह से कुछ कर नही पा रही थी . फिर भी थोड़ा बहुत कमर ज्यो ही इधेर उधेर हिलता तो पंडित जी अपने लंड का दबाव बुर मे बना देते और हल्का सा लंड बुर मे सरक जाता. सावित्री की बुर की देवारें काफ़ी फैल कर पंडित जी के चौड़े सुपादे को निगलने की कोशिस कर रही थी. पंडित जी ने जिस हाथ से लंड को पकड़ा था उसे लंड से हटा लिए क्योंकि लंड अब लगभग आधा घुस चुका था और पंडित जी के शरीर का वजन सीधे लंड पर ही था जो बुर मे घुसता जा रहा था. लंड वाला हाथ सीधे चुचिओ पर गया और बड़ी बड़ी गोल और कसी चुचिओ को आटा की तरह गुथने लगे. दूसरा हाथ जो कमर मे था उसे पंडित जे ने वहीं रखा क्यों की सावित्री अभी भी छटपटा रही थी लेकिन उसके छटपटाने के वजह से जब कमर का हिस्सा हिलता तब बुरी तरह से बुर मे दबा हुआ लंड अंदर की ओर सरक जाता था. सावित्री के आँखों मे आँसू ही आँसू थे. वह पूरी तरह से रो रही थी. वह कई बार पंडित जी से गिड़गिदा कर लंड निकालने के लिए भी कही. लेकिन उसे ऐसा लग रहा था कि दर्द की वजह से अभी मर जाएगी. लेकिन पंडित जी अब उसके चुचिओ को दबा रहे थे फिर थोड़ी देर चुचिओ को मुँह मे लेकर चूसने लगे और लंड बुर मे वैसे ही झिल्ली तोड़कर आधा के करीब घुसा था और आधा लंड बुर के बाहर था. पंडित जी यह समझ गये थे कि झिल्ली फट गयी है और इसी वजह से कुछ लंड का हिस्सा अंदर की ओर घुस चुका है. अब वह जानते थे कि सावित्री आराम से चुद जाएगी. अब रास्ता सॉफ हो चुका है. दोनो चुचिओ को चूसने के बाद जब दर्द कुछ कम हुआ तब सावित्री रोना बंद कर के सिसकने लगी. फिर पंडित जी ने अपने कमर को हल्का सा उपर की ओर लहराया तो लंड भी हल्का सा बाहर को ओर खींचा ही था कि फिर ज़ोर से चंप दिए और लंड इस बार कुछ और अंदर सरक गया. इस बार सावित्री थोड़ी सी कसमसाई लेकिन ऐसा लगा कि कोई बहुत ज़्यादा दर्द नही हुआ. फिर पंडित जी ने वैसे ही अपने कमर को दुबारा उपर की ओर लहराते और ज्योन्हि लंड हल्का सा बाहर की ओर हुआ फिर कस के चंप दिए और इस बार लंड बहुत ज़्यादा ही अंदर घुस गया. फिर भी एक चौथाई हिसा बाहर ही रह गया. फिर पंडित जी ने चुचिओ को चूसना सुरू कर दिया जिससे सावित्री फिर गरम होने लगी. वैसे तो पहले भी गरम हो चुकी थी लेकिन दर्द के वजह से घबरा और डर गयी, लेकिन अब दर्द बहुत ही कम हो चुका था. चुचिओ के चुसाइ ने फिर ज्योन्हि सावित्री के शरीर मे गर्मी भरी की पंडित जी पूरा लंड घुसाने के फिराक मे लग गये. सावित्री के जांघों को और चौड़ा करके और उसके चौड़ा चूतड़ को हल्का सा उपर की ओर उठा कर बोले "चल पहले जैसे बुर को चुदवा तभी दर्द कम होगा और तुम्हे भी मर्द का मज़ा आएगा" सावित्री जो अब सिसक रही थी और आँख के आँसू सूखने के करीब थे, ने कुछ जबाब नही दिया लेकिन गरम हो जाने के कारण और पंडित जी से डर होने के वजह से अपने दोनो हाथों से अपने चौड़े चौड़े दोनो चूतदों को फैलाया. पंडित जी ने देखा की सावित्री ने अपने बुर को फैलाने के लिए अपने हाथ बड़ा कर चूतदों को चौड़ा कर लिया तो अब समय गवाना सही नही था. फिर उन्होने सावित्री के कमर को अपने दोनो हाथों से पकड़ कर एक के बाद एक धक्के मारने लगे. हर धक्के मे लंड थोड़ा थोड़ा अंदर घुसने लगा, हर धक्के मे सावित्री कराह उठती लेकिन सावित्री ने अपने हाथ को वैसे चूतड़ पे लगा कर बुर को फैलाए रखा. और पंडित जी का पूरा लंड सावित्री की बुर मे समा गया. ज्योन्हि लंड जड़ तक समाया कि सावित्री के चूतदों पर पंडित जी के दोनो लटक रहे अनदुओं से चाप छाप की आवाज़ के साथ चोट लगाने लगे. अब बुर एकदम से खुल चुका था. बुर की झिल्ली फटने के वजह से निकले खून से लंड बुरी तरह भीग चुका था. सावित्री का दर्द अब ख़त्म ही हो गया और अब उसे बहुत मज़ा आने लगा. इसी वजह से वह अपने दोनो हाथों से अपने चूतदों को खींच रखा था जिससे बुर के बाहरी होंठ कुछ फैले हुए थे. जब भी लंड बुर मे घुसता तो बुर एकदम कस उठती. सावित्री अब अपनी पूरी ताक़त से अपने दोनो जाँघो को फैला रखी थी ताकि पंडित जी उसे काफ़ी अंदर तक आराम से चोद सकें. पंडित जी यह समझ चुके थे कि अब सावित्री को बहुत मज़ा आ रहा है तो फिर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगे और हर धक्के मे लंड बुर की अंतिम गहराई तक घुस जाता और पंडित जी के दोनो अन्दुये सावित्री के चूतादो पर जा कर लड़ जाते. वैसे पंडित जी का लंड लंबा और मोटा भी था लेकिन सावित्री हश्तिनि नशल की लड़की थी और ऐसे नशल की औरतें और लड़कियो की बुर की गहराई काफ़ी होती है. इसी वजह से पंडित जी पूरी ताक़त से उसे चोद रहे थे और सावित्री आराम से चटाई मे लेटी अपने दोनो जांघों को चौड़ा कर के चुदवा रही थी. कमरे मे फॅक..फ़च्छ...फ़च्छ की आवाज़ आना सुरू हो गयी. सावित्री के जीवन मे इतना आनंद कभी नही मिला ना ही वो कभी कल्पना की थी कि चुदाई मे इतना मज़ा मिलता है. वह अपनी आँखे बंद कर के आराम से चुदवा रही थी और रह रह कर सिसक रही थी. क्योंकि कि अब उसे बहुत ही ज़यादा मज़ा आ रहा था. जब भी पंडित जी अपना लंड खेंच कर बाहर निकलता की सावित्री अपने बुर को उचका कर फर्श पर बिछे चटाई पर से अपने चौड़े और काले रंग के चूतड़ को कुछ उपर उठा देती और दूसरे पल पंडित जी हुमच कर अपना लंड बुर मे छोड़ते हुए कस कर चंप देते और सावित्री के चूतड़ का उठा हुया हिस्सा फिर से चटाई मे बुरी तरह से दब कर सॅट जाता और फिर अगले पल ज्योन्हि पंडित जी अपना लंड बुर से बाहर खींचते की सावित्री फिर अपने चूतादो को चटाई से उपर उठा देती और पंडित जी हुमच कर चोदते हुए चटाई मे वापस दबा देते. ******************************
********** अब पंडित जी का समूचा लंड सावित्री के बर मे समा जाता था और पंडित जी की घनी झांते सावित्री की झांतों मे जा कर सॅट जाता था. पंडित जी ने सावित्री को हुमच हुमच कर काफ़ी देर तक चोद्ते रहे. अचानक सावित्री को बहुत ज़्यादे आनंद आने लगा और उसे लगा की उसके बुर के अंदर कुछ निकलने वाला है. और यह आनंद उसे बर्दाश्त नही हो पा रहा था और उसने अपने चौड़े और काले रंग के चूतदों को काफ़ी उँचा उठा देती जिससे पवरोती की तरह झांतों से भरी चुद रही बुर काफ़ी उपर उठ जाता और वह बुर को ऐसे उचका कर पंडित जी से चुदाने लगती. तब पंडित जी समझ गये की सावित्री झड़ने वाली है और उसके उठाए हुए बुर को काफ़ी हुमच हुमच कर तेज़ी से चोदने लगे और अगले ही पल सावित्री के कमर मे कुछ झटके दार ऐंठन हुई और सावित्री के बुर के अंदर तेज़ी से झड़ने वाला पानी निकलने लगा और वह सीत्कार उठी. सावित्री झड़ने के बाद अपने उठे हुए चूतदों को वापस चटाई पर सटा ली और हाँफने लगी. लेकिन पंडित जी अभी झाडे नही थे. वे भी कुछ लंबी सांस ले रहे थे और अब धीरे धीरे चोद रहे थे. फिर सावित्री के निचले होंठ को मुँह मे लेकर कस कर चूसने लगे और चुचिओ को भी दबाने लगे. कुछ देर तक ऐसा करके चोदने ने फिर से सावित्री गरम होने लगी लेकिन इस बार पहले से बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गयी थी और फिर अपने चौड़े चूतड़ को चटाई से उठा कर बुर को उचकाने लगी. अब पंडित जी सावित्री के दोनो होंठो को कस के मुँह मे लेकर चूस रहे थे और चोद रहे थे. सावित्री को पंडित जी का लंड बुर मे घुसना इतना अछा लग रहा था कि जब पंडित जी लंड बुर से बाहर की ओर खींचते तब लंड को वापस बुर मे लेने के लिए अपने बुर को काफ़ी उपर उठा देती और फिर पंडित जी हुमच कर चोद्ते हुए समूचे लंड को "घच.." आवाज़ के साथ जड़ तक बुर मे चंप देते और सावित्री का उठा हुआ चूतड़ पंडित जी के धक्के के दबाव से वापस चटाई मे दब कर सॅट जाता. ऐसा लगभग हर धक्के के साथ होता और सावित्री का चूतड़ मानो चटाई पर उपर नीचे हर चुदाई के साथ हो रहा था. सावित्री को जब जयदा आनंद आने लगा तब अपने चूतड़ को और उपर उठाने लगी और अपने बुर को लंड पर फेंकने लगी. बुर के रेशे अब काफ़ी ढीले हो चुके थे. बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी. बुर के चुदाई का रस और खून दोनो मिलकर बुर से बाहर आ रहा था और सावित्री के गंद के छेद से होता हुआ चटाई पर छू रहा था. सावित्री को इतना आनंद आ रहा था की वह सातवें आसमान पर उड़ रही थी. उसे ऐसा लग रहा था की दुनिया का सबसे ज़यादा आनंद इसी चुदाई मे ही है. हर धक्के मे वह बहुत ज़्यादा मज़ा ले रही थी. इस कारण जब भी धक्का लगता वह सीत्कार कर रह जाती और तुरंत अपने चूतदों को उचका कर अगले धक्के की भीख माँगने लगती. सावित्री ग़रीब तो ज़रूर थी लेकिन भिखरीन नहीं. फिर भी आज वह एक भिखरीन की तरह चटाई मे छटपटा कर पंडित जी के धक्के की भीख माँग रही थी. इसी कारण से वह लंड के बाहर आते ही अपने काले चौड़े चूतादो को उठा देती की जल्दी से धक्का बुर मे मिले और काफ़ी गहराई तक लंड घुस जाए. चुदाई के आनंद ने मानो सावित्री के शरीर का लाज़ और शर्म को उसके रोवे रोवे से धो डाला था. इसी वजह से एक चुदैल की तरह अपने चूत को उपर की ओर फेंक फेंक कर लंड लील रही थी. सावित्री अब हर धक्के के लिए गिड़गिदा रही थी. उसे बस पंडित जी के धक्के की ज़रूरत थी. वह भी ज़ोर के धक्के जिससे उसकी बर की गहराई मे लंड जा सके. सावित्री के हाव भाव को देखते हुए पंडित जी ने किसी दयालु इंसान की तरह धक्के जोरे से लगाने के साथ धक्कों की रेफटार तेज करने लगे. सावित्री अब आँखें खोल कर चुदवा रही थी और उसकी आँखों मे भी धक्कों की भीख सॉफ दिख रहा था. मानो वह अब और धक्कों के लिए गिड़गिदाते हुए रो देगी.सावित्री का शरीर काफ़ी मांसल और कसा हुआ होने के कारण वह पंडित जी के कसरती बलिशट शरीर के धक्कों को बड़े आराम से ले पा रही थी. उसके चूतदों पर काफ़ी माँस था और चौड़े होने के वजह से जब भी पंडित जी धक्के मारते हुए लंड जड़ तक धँसते थे की उनका लंड बुर मे घुस जाता और पंडित जी के गोरे शरीर का वजन सावित्री के चौड़े और काले चूतदों पर पड़ता. वैसे बुर अब फैल कर एक नया रूप ले चुका था जिसे औरत का ही बुर कह सकते हैं. जो बर थोड़ी देर पहले कुवारि थी अब वह कुवारि नही रह गयी थी और चुदाई के आनंद ने उसके शरीर के लाज़ और शर्म को भी लगभग ख़त्म कर दिया था. सावित्री ने अपने जीवन मे किसी से कुछ माँगा नही था लेकिन आज वह पंडित जी से धक्कों की भीख माँग रही थी वो भी लग रहा था की माँगते माँगते रो देगी.जब पंडित जी ने देखा की चटाई मे चुद रही सावित्री की हरकत अब बहुत अश्लील और बेशर्म होती जा रही है तब वह समझ गये की सावित्री दूसरी बार झड़ने की तरफ बढ़ रही है. तब पंडित जी तेज़ी से चोदने के लिए अपने शरीर की सारी ताक़त को इकट्ठा कर लिए और सावित्री को चटाई मे कस कर दबोच लिए. फिर भी सावित्री अपने चूतदों को उछालना बंद नही किया तब पंडित जी ने काफ़ी कस कर उसे चोदने लगे और एक सांड की तरह हुंकार लेने लगे. पंडित जी अपने पूरे लंड को बुर से बाहर खींचते और दूसरे पल पूरा का पूरा लंड जड़ तक पेल देते. चुदाई की रफ़्तार इतनी तेज कर दिया की सावित्री को चूतड़ उठाने का मौका ही नही मिलता. एक के बाद एक धक्के ऐसे लगते मानो सावित्री को चोद कर पूरे शरीर को दो हिस्सों मे फाड़ देंगे. पूरे कमरे मे घाकच्छ घच की आवाज़ गूँज उठी. तेज चुदाई से सावित्री को इतना आनंद आया की वह काफ़ी अश्लील आवाज़ भी निकालने से अपने को रोक नही पाई और लगभग चिल्ला उठी "अया जी पंडित जी ....मुझे और....चोदियी जीई........बहुत अक्च्छा लग रहा है.....और और करिए.....अरे माई रे बाप बहुत माज़ा रे माई और चोदिए आऊ हह .." पंडित जी के कान मे ये गंदी आवाज़ जाते ही एक नया जोश भर गया और वह समझ गये की अगले कुछ पलों मे सावित्री झाड़ जाएगी. तभी उन्हे लगा कि सावित्री का पूरा बदन काँपने सा लगा और अपने पूरे शरीर को कुछ ऐंठने लगी है. वह अब झड़ने वाली है और दूसरे पल मे धक्के पे धक्के मारते हुए पंडित जी का भी शरीर मे बिजली दौड़ने लगी और वह किसी सांड या भैंसे की तरह हुंकारना सुरू कर दिया. और उनका भी शरीर काफ़ी झटके के साथ ऐंठने लगा और हर ऐंठन मे वह सावित्री को दबोचना तेज कर दिए उनके आंडवो से वीरया की धार अब चल पड़ी थी. और पंडित जी अपने लंड को ऐसे बुर की गहराई मे चंपने लगे मानो वीरया की गाढ़ी और मोटी धार सावित्री के बcचेदानि के मुँह मे ही गिरा कर दम लेंगे. आख़िर काफ़ी उत्तेजना का साथ सावित्री झड़ना सुरू कर दी और चटाई मे पूरी तरह से ऐंठने लगी और दूसरे पल ही पंडित जी का सुपाड़ा जो सावित्री की झाड़ रही बुर के तह मे घुसा था, काफ़ी तेज गति से, एक के बाद एक काफ़ी गाढ़े और मोटे वीरया की धार छ्छूटने लगा और किसी पीचकारी की तरह छूट छूट कर बछेदनि के मुँह पर पड़ने लगा. लंड भी हर वीरया की बौछार के साथ झटके ले रहा था जो सावित्री की बुर् की मांसपेशिया काफ़ी तेज महसूस कर रही थी. एक के बाद एक वीरया की बौछार बुर के तह मे किसी बंदूक की गोली की तरह पड़ने लगी. सावित्री को ऐसा लग रहा था मानो यह वीरया की बौच्हार बंद ही ना हो. पंडित जी कई दीनो बाद बुर चोद रहे थे इस कारण वीरया काफ़ी मात्रा मे निकल रहा था. वीरया की गर्मी से सावित्री पूरी तरह से हिल गयी और पंडित जी के कमर को कस कर अपने टाँगो से दबोच ली और अपने हाथों को पंडित जी के पीठ को लपेट ली. उसे ऐसा लगा रहा था मानो कोई काफ़ी गर्म चीज़ बुर के तह मे उडेल रहे हों. जो एक के बाद एक लंड की उल्टी से बुर की तह मे इकट्ठा होता जा रहा है और बुर अब भर गयी हो. सावित्री को इतना आनंद आया की वह पूरी दुनिया भूल गयी और उसके सीतकारीओं से कमरा गूँज उठा. अब दोनो पूरी तरह से झाड़ चुके थे. लंड भी कुछ हल्के झटके लेता हुआ बचा खुचा वीरया की आख़िरी बूँद को भी बुर की तह मे उडेल दिया. ************************************** दोनो झाड़ चुके थे, पंडित जी सावित्री के उपर वैसे ही कुछ देर पड़े रहने के बाद उठने लगे और अपने फँसे हुए लंड को बुर मे से खींच कर निकालने लगे. लंड अभी भी खड़ा था और पहले से कुछ ढीला हुआ था. लंड खींचते समय पंडित जी को ऐसे लगा मानो सावित्री की बुर ने उसे मुट्ठी मे पकड़ रखा हो. पंडित जी ने अपने कमर को ज्योन्हि पीछे की ओर किया लंड "पुउक्क" के आवाज़ के साथ बुर से बाहर आ गया. लंड के बाहर आते ही पंडित जी ने देखा की बुर का मुँह जिसपर खून और चुदाई का रस दोनो लगा था, सिकुड़ने लगा और बुर की दोनो फांके आपस मे सतने की कोशिस कर रही थी. लेकिन अब बुर की फांके पहले की तरह सिकुड कर एकदम से सॅट नही पा रही थी और बुर के मुँह पर थोड़ा सा फैलाव आ गया था. इसका यह भी कारण था कि पंडित जी का लंड मोटा था और काफ़ी देर तक सावित्री की कुवारि बुर को चोदा था. सावित्री वैसे ही लेटी थी और पंडित जी अपना लंड तो बुर से खींच के निकाल चुके थे लेकिन सावित्री के झंघो के बीच अभी भी बैठे थे इस वजह से सावित्री अपनी जांघों को आपस मे सता नही पा रही थी और पहली बार की चुदाई से थॅकी होने के कारण सावित्री भी वैसे ही लेटी थी और तुरंत उठ कर बैठने की हिम्मत नही हो पा रही थी. और जंघें फैली होने के नाते पंडित जी की नज़र बुर पर ही थी जिसका रूप अब बदल चुका था. घनी झांतों से घिरी हुई बुर एकदम ही काली थी और पवरोटी की तरह दिख रही थी. कुछ चुदाई की रस और खून झांतों मे भी लग गया था.सावित्री की आँखें थकान से लगभग बंद हो गयी थी और उसकी साँसे तेज चल रही थी. पंडित जी थोड़ी देर तक सावित्री की बुर की सुंदरता को देख रहे थे और काफ़ी खुशी महसूस कर रहे थे की इस उमरा मे भी उन्हे कुवारि गदराई चूत मिल गयी. फिर अगले पल उन्होने सावित्री की बुर के दोनो होंठो को अपने हाथ से ज्योहीं फैलाने की कोशिस किया कि सावित्री की धाप रहीं आँखें खुल गयी और मीठी दर्द से लेटे लेटे ही हल्की सी चौंक गयी और अपने हाथ से पंडित जी के हाथ को पकड़ ली. लेकिन तबतक तुरंत की चुदी हुई बुर के दोनो होंठ हल्की सी फैल गयी लेकिन अंदर का गुलाबी भाग सिकुड कर एक हल्की सी छेद बना कर रह गया था. पंडित जी समझ गये की सावित्री को कुछ दर्द हो रहा होगा. और कुछ पल बुर के अंदर के गुलाबी भाग को देखने के बाद बुर के होंठो से अपने हाथ हटा लिए और फिर पहले की तरह दोनो होंठ सताने को कोशिस करने लगे लेकिन कुछ हिस्सा खुला रह कर मानो यह बता रहा था की अब बुर कुवारि नही बल्कि अब औरत की बुर हो चुकी है. पंडित जी उठे और शौचालय मे जा कर पेशाब किए और अपने लंड और झांतों मे लगे चुदाई रस और खून को पानी से धोने लगे. पंडित जी ज्योन्हि उठे सावित्री ने अपने दोनो जांघों को आपस मे सताने की कॉसिश करने लगी तो उसे जांघों और बुर मे दर्द का आभास हुआ. फिर उठ कर चटाई पर बैठी. सावित्री ने देखा की पंडित जी शौचालय मे गये हैं तो मौका देखकर अपनी बुर की हालत देखने के लिए अपने दोनो जाँघो को कुछ फैला ली और देखने लगी. चुदी हुई बुर को देख कर सन्न रह गयी. झांटेन और बुर दोनो ही चुदाई रस और खून से भींगी हुई थी. लेकिन अपनी बुर पर सावित्री नज़र पड़ते ही सकपका गयी. ऐसा लग रहा था की वह उसकी बुर नही बल्कि किसी दूसरे की बुर है. बुर का शक्ल पहचान मे ही नही आ रही थी. जो बुर चुदाई से पहले थी वैसी एकदम ही नही थी. चुदाई के पहले बुर के दोनो फांको के सतने पर केवल एक लकीर ही दिखाई देती थी वह लकीर अब गायब हो गयी थी और लकीर के स्थान पर कुछ नही था क्योंकि बुर का मुँह अब कुछ खुला सा लग रहा था. बुर के दोनो होंठ आपस मे पूरी तरह से बंद नही हो पा रहे थे. सावित्री बैठे बैठे अपने बुर की बदली हुई शक्ल को देख कर बुर की पहले वाली शकल को याद कर रही थी. उसे ऐसा लग रहा था की अब उसकी बुर कभी भी पहले की तरह नही हो पाएगी और वह सोच रही थी की वह चुद चुकी है, लूट चुकी है, एक औरत हो चुकी है, पंडित जी को अपना कुवरापन दे चुकी है, और अब यह सब कुछ वापस नही आने वाला है क्योंकि जीवन मे यह केवल एक ही बार होता है.बदली हुई बुर की शक्ल पर नज़ारे गड़ाए यही सब सोच रही थी. की चटाई पर भी कुछ चुदाई रस और खून दिखाई दिया तो वह अपने चूतड़ को हल्का सा पीछे की ओर खिस्काई तो देखा की चूतड़ के नीचे भी हल्का सा खून लगा था जो चटाई मे अब सूख रहा था. उसके मन मे यही बात उठी की यह सामानया खून नही बल्कि यह उसकी इज़्ज़त, असमात, मान, मर्यादा और उसके मा सीता के काफ़ी संघर्ष से बचाया गया खून था जो किसी दुल्हन का सबसे बड़ा धर्म होता है और जिस पर केवल उसके पति का ही हक होता है और इसे आज पंडित जी ने लूट लिया और अब वह कभी भी कुवारि की तरह अपने ससुराल नही जाएगी बल्कि एक चुदी हुई औरत की तरह ही जा सकेगी. अगले पल सावित्री के मन मे एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ और एक नयी विचार की तरंगे उठने लगी कि आज सब कुछ लूटने के बाद भी एक ऐसा चीज़ मिला जो आज तक वह नही पा सकी थी और वह था चुदाई का आनंद. जो आनंद आज पंडित जी ने उसे चोद कर दिया वैसा आनंद उसे अट्ठारह साल की उमर तक कही से भी नसीब नही हुआ था. उसके मन मे एक नये विचार की स्थापना होने लगी. सावित्री का मन चिल्ला चिल्ला कर यह स्वीकारने लगा कि यह आनंद एक ऐसा आनंद है जो किसी चीज़ के खाने से या पहनने से या देखने से, या सुनने से या खेलने से कहीं से भी नही मिल सकता है और यह आनंद केवल और केवल चुदाई से ही मिल सकता है जो कि कोई मर्द ही कर सकता है जैसा कि पंडित जी ने किया और इस आनंद के आगे सब कुछ और सारी दुनिया बेकार है. चटाई मे बैठी यही सोच रही थी कि तभी पंडित जी शौचालय से अपने लंड और झांतों को धो कर वापस आ गये और चौकी पर लेट गये.
Sangharsh--10
|