RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--9
अब पंडित जी और देर करना नही चाहते थे. वह जानते थे कि जो सावित्री अभी लंड को ढंग से हिला नही पा रही है वह लंड को कैसे चुसेगी. फिर ज़्यादा वक्त खराब ना करने के नियत से सावित्री को चटाई पर लेटने के लिए कहा और सावित्री चिट लेट गयी लेकिन आँखे बंद कर ली.पंडित जी अपनी उंगली को बुर मे घुसेड कर पहले ही समझ गये थे कि सावित्री कुँवारी है और उसकी सील को तोड़ने के लिए काफ़ी ताक़त से चोदना होगा. अट्ठारह साल की सावित्री को भी यह पता था की जब लड़की पहली बार मर्द से चुदति है तो थोड़ा दर्द होता है और कुछ खून भी बुर से निकलता है, जो कि उसने अपने सहेलिओं से सुन रखी था. अबतक पंडित जी ने जो कुछ सावित्री के शरीर के साथ किया उससे वह एकदम गरम हो कर बह रही थी. उसकी स्थिति एक चुदासि औरत की तरह हो चुकी थी. इसी वजह से वह विरोध के बजाय अब पंडित जी से अपनी बह रही गरम बुर को चुदाना चाह रही थी. पंडित जी बिना समय गवाए चटाई के बीच मे लेटी सावित्री के दोनो पैरों के बीच मे आ गये. पंडित जी ने सावित्री के दोनो मांसल और साँवले रंग के मोटी मोटी जाँघो को फैलाया तो कुँवारी बुर एकदम सामने थी. सावित्री के आँखे बंद थी और दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था लेकिन गरम हो जाने के वजह से वह खुद अपनी बुर मे लंड लेना चाह रही थी. इसी कारण वह पंडित जी का सहयोग कर रही थी. सावित्री की दोनो जाँघो को अलग करने पर पंडित जी ने देखा कि झांट के बॉल काफ़ी घने और बड़े होने के नाते बुर के होंठो के उपर भी आ गये थे. पंडित जी ने उन झांट के बालो को बुर के होंठो से उपर की ओर अपनी उंगलिओ से करने लगे. फिर बह रही बुर मे पंडित जी ने एक बार और उंगली घुसाइ तो कुछ हिस्सा घुसा और फिर उंगली फँस गयी. अब बुर से लिसलिसा पानी निकलना और तेज हो गया था. पंडित जी को लगा कि अब सही समय है सावित्री को चोद देने का. सावित्री के दोनो जांघों को अपने बालो से भरी जांघों पर चढ़ा कर उकड़ू हो कर बैठ गये और सावित्री चटाई पर सोए हुए अपनी आँखें एकदम से बंद कर ली थी. उसका दिल इतना ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था मानो उसका सीना फड़कर बाहर आ जाएगा.तभी पंडित जी नेअपने लंड को एक हाथ से पकड़ कर सुपादे के उपर वाली चमड़ी को पीछे सरकया तो सूपड़ा बाहर आ कर चमकने लगा. लंड के मुँह से लिसलिसा लार की तरह पानी थोडा थोडा चू रहा था. फिर उसी हाथ को पंडित जी अपने मुँह के पास ले गये और मुँह से थूक निकाल कर हाथ मे लेकर सूपदे और लंड पर लपेस कर काफ़ी चिकना कर लिए. अब सावित्री की बुर के साँकरी दरार को एक हाथ की दोनो उँगलिओ से चौड़ा कर के लंड का चमकता हुआ सूपड़ा दरार के ठीक बीचोबीच भिड़ाया. शायद सूपदे की गरमी सावित्री बर्दाश्त ना कर सकी और उसका चौड़ा और लगभग काले रंग का चूतड़ उच्छल सा गया और लंड दरार से सरक कर सावित्री के जाँघो से जा कर टकराया और पंडित जी ने जो थूक लंड और उसके सूपदे पर लगाया था वह सावित्री के जाँघ पर लग गया. फिर पंडित जी ने अपने मुँह से थूक निकाल कर दुबारा लंड और उसके सूपदे पर लपेस कर काफ़ी चिकना बना लिया. इस बार पंडित जी सावित्री के जांघों के बीच काफ़ी मजबूती के साथ बैठ कर एक हाथ से सावित्री के कमर के कूल्हे को पकड़ लिया ताकि उसे उछलने से रोका जा सके और दूसरी हाथ की उंगलिओ से बुर की दोनो फांको को अलग अलग किया लेकिन उंगलिओ के हटते ही फांके एकदम सिकुड जाती थी और सूपड़ा को लगाना काफ़ी मुश्किल हो जाता. फिर पंडित जी ने सावित्री को सोए सोए ही अपने दोनो हाथों से बुर को चौड़ा करने के लिए कहा. सावित्री भी चुदाई के गर्मी मे होने के नाते उसने अपने हाथ दोनो तरफ से लाकर अपने चूतड़ वाले हिस्से को खींच कर फैलाया तो बुर की दरार भी थोड़ी सी खुल गयी. सही मौका देखते ही पंडित जी ने थूक से लपेसे हुए चमकते सूपदे को दरार के ठीक बीचोबीच लगाते ही सावित्री के कूल्हे को कस के पकड़ा और सूपदे का दबाव दरार मे देना सुरू कर किया. गरम सूपड़ा को अपनी बुर मे पाते ही सावित्री एकदम से गन्गना गयी और इस बार फिर कुछ हरकत मे आने वाली थी कि पंडित जी ने सावित्री के कमर को एक हाथ से कस कर लपेटते हुए और दूसरे हाथ से लंड को पकड़ कर सांकारी बुर की दरार मे दबाए रखा ताकि लंड फिसल कर बाहर ना आ जाए. इसका कारण यह भी था कि बुर का छेद बहुत छोटा होने के कारण पंडित जी के लंड का चौड़ा सूपड़ा बुर मे घुसने के बजाय फिसल कर बाहर आ सकता था. पंडित जी ने सावित्री की कमर को एक हाथ से लपेटते हुए लगभग जाकड़ लिया ताकि सावित्री चाहकर भी कमर को हिला ना सके और दूसरे हाथ मे लंड को पकड़ कर जब बुर की दरार मे दबाव बनाया तो थूक से चिकना सूपड़ा और गीली बुर होने के बजाह से सूपड़ा बुर के दरार मे फिसल कर छेद के तरफ सरकते हुए घुसने लगा. जिससे सावित्री की बुर की सांकारी दीवारें फैलने लगी और सूपड़ा अपने आकार के बराबर फांको के दोनो दीवारों को फैलाने लगा. कभी ना चुदी होने के कारण सावित्री की बुर की दीवारे सूपदे को चारो ओर से कस कर पकड़ ली थी. इधेर पंडित जी काफ़ी ताक़त लगा कर सूपदे को बुर की दरार मे फाँसना चाहते थे. कुछ देर तक एक हाथ से सावित्री का कमर और दूसरी हाथ से अपना लंड पकड़ कर दरार मे अपना चमकता हुआ सूपड़ा धँसाने की कोशिस करते रहे और काफ़ी मेहनत के बाद बुर मे सूपड़ा फँस ही गया और सावित्री को दर्द भी हो रहा था क्योंकि पंडित जी केवल सूपदे को ही बुर मे धँसाने के लिए काफ़ी ज़ोर लगा रहे थे. दर्द की वजह से सावित्री अपने दोनो हाथों को अपने चूतादो से हटा ली थी. पंडित जी ने देखा कि किसी तरह से सूपड़ा घुस कर फँस गया है तब अगला कदम उठाने के लिए एक लंबी सांस ली. फिर उन्होने सावित्री को देखा कि केवल सूपड़ा के ही बुर के दीवारो मे फसने के वजह से कुछ दर्द हो रहा है और वह कुछ कराह रही थी तभी डाँटते हुए कहे "बुर को जैसे चौड़ा की थी वैसे कर तभी दर्द कम होगा" सावित्री फिर से अपने चूतादो को दोनो हाथो से चौड़ा किया तो फिर बुर के फाँक कुछ फैले लेकिन इससे पंडित जी को कोई फ़ायदा नही हुआ क्योंकि पंडित जी ने पहले ही एक हाथ से लंड को पकड़ कर सुपादे को बुर मे फँसाए हुए थे. वह जानते थे कि यदि लंड को हाथ से नही पकड़ेंगे तो सूपदे को बुर की साँकरी दीवारे बाहर की ओर धकेल देंगी और फिर से सूपड़ा धाँसने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी. ************************************************* सूपदे का दबाव सावित्री की बुर के दीवारो पर बना रहा और केवल आधी इंच के लगभग ही सूपड़ा घुस कर रुक गया था. लेकिन कुछ फँस कर रह जाने से अब पंडित जी को यह आभास हो गया कि अब एक करारा धक्का देने पर लंड बुर की छेद मे ही जाएगा और फिसल कर बाहर नहीं आएगा. और अगले पल पंडित जी ने अपनी पकड़ काफ़ी मज़बूत कर ली और केवल सुपादे का दबाव पाकर सावित्री कराह रही थी की पंडित जी ने सावित्री की शरीर के सही तरह से चित लेटे होने और दोनो जंघें फैली हुई होने और अपने लंड को बुर के मुँह मे फँसा होना एक सही मौका था कि एक जबर्दाश्त करारा धक्का मार कर सावित्री की कुँवारी बुर की सील को ताड़ने के लिए. लेकिन यह बात सावित्री के मन मे नही था कि अगले पल मे पंडित जी उसे कितना दर्द देंगे. उसे तो केवल यही मालूम था कि जो दर्द सूपदे के घुसने से हुआ है उतना ही दर्द होगा जो वह किसी तरह बर्दाश्त कर ले रही थी. लेकिन पंडित जी अपने जीवन मे बहुत सी कुवारि लड़की को चोद कर औरत बना चुके थे इसलिए उन्हे बहुत अच्छा अनुभव था और वह यह जानते थे कि अगले पल मे जो कुछ होगा वह सावित्री के लिए काफ़ी दर्द भरा होगा और वह उच्छल कर छटपटाएगी और हो सकता है कि पकड़ से भागने की भी कोसिस करे. क्योंकि की कुछ लड़कीयो के सील की झिल्ली कुछ मोटी होने के कारण काफ़ी जोरदार धक्के मार कर तोड़ना पड़ता है और लड़की को दर्द भी बहुत होता है. लेकिन झिल्ली मोटी है या पतली ये तो लंड का दबाव बनाने पर ही पता चलेगा. यह सब पंडित जी के दिमाग़ मे चल ही रहा था कि उन्हे लगा कि अब एक सही समय आ गया है धक्का मारने का.उन्होने ने बुर के मुँह मे अपने फँसे हुए लंड के सूपदे को ठीक वैसे ही बनाए रखा और एक हाथ से लंड को भी पकड़े रखा और अपनी कमर और शरीर के हिस्सा को हल्का सा लहराते हुए एक धक्का बुर मे मारा. इस धक्के से लंड का सूपड़ा जो बुर मे ही फँसा था, पंडित जी के पूरे शरीर का वजन का दबाव पाते ही सावित्री के बुर के दीवारो को फैलाते हुए सांकरी बुर मे अंदर की ओर सरक गया. लेकिन सावित्री की कुवारि झिल्ली से जाकर टकराया और झिल्ली को अंदर की तरफ धकेलते हुए रुक गया. नतीज़ा यह हुआ कि लंड के सूपदे के दबाव से झिल्ली काफ़ी खींच तो गयी लेकिन फट नही पाई और सुपाड़ा वहीं पर रुक कर बुरी तरह से फँस गया. शायद यह इस वजह से भी हुआ क्योंकि बुर की छेद काफ़ी साँकरी थी और जब पंडित जी ने धक्का मारा तो लंड बुर के दीवारो को काफ़ी दबाव लगा कर फैलाते हुए झिल्ली तक आ सका था और झिल्ली पर सुपादे का जबर्दाश्त दबाव नही बन पाया कि वो फट जाए. दूसरा कारण यह भी था कि झिल्ली की परत कुछ मोटी भी थी. जब झिल्ली पर सुपादे के दबाव पड़ा और काफ़ी खींच गयी तो झिल्ली के खींचाव का दर्द सावित्री को बहुत तेज हुआ उसे लगा कि उसके शरीर का सारा खून बुर मे चला गया हो. बुर के अंदर उठे इस दर्द को वह बर्दाश्त नही कर पाई और छटपटा कर चिल्ला उठी " आईए आईए रे म्माई आई री बाप आरी बाहूत दराद होता ए ...आहही आही माई रे मे .. बाप रे ...आर बाप्प !...निकाला आई रे माइए. आहह...""सावित्री के छटपटाने की हरकत से अब एक नयी दिक्कत आने लगी क्योंकि सावित्री अपनी फैली हुई जांघों को सिकोड़ने और कमर को इधेर उधेर नचाने की कोशिस करने लगी. फिर भी पंडित जी ने उसके कमर को कस के पकड़ कर लंड का दबाव बुर मे धक्कों के रूप मे देने लगे लेकिन उन्हे महसूस हुआ कि उनका लंड जो बुर मे फँस गया था और आगे नही बढ़ पा रहा था बल्कि झिल्ली से टकरा कर उसे अंदर की ओर धकेल दे रहा था लेकिन झिल्ली को फाड़ नही पा रहा था और झिल्ली पर जा कर रुक जा रहा था. उपर से सावित्री के छटपटाने के वजह से पंडित जी को अब यह भी डर बन गया कि कहीं लंड फिसल कर बुर से बाहर ना आ जाए और फिर उसे चोदना बहुत मुश्किल हो जाएगा. पंडित जी ने जितनी ज़ोर लगा कर लंड का धक्का बुर मे मारे थे उतने मे उन्होने बहुत सी लड़कियो की कुवारि बुर की सील तोड़ चुके थे. इससे पंडित जी समझ गये कि सावित्री की बुर की झिल्ली कुच्छ मोटी है और अब वह अगला कदम ऐसा उठना चाह रहे थे कि इस बार कोई फिर से परेशानी ना हो. पंडित जी ने बिना समय गवाए अगले पल तक सावित्री को वैसे ही अपने पूरे शरीर के वजन से चटाई मे कस कर दबाए रखा और कमर को काफ़ी ताक़त से पकड़े रखा, लंड जो बुर मे जा कर बुरी तरह से फँस गया था उसे भी एक हाथ से पकड़े रखा. इधेर सावित्री जो की पंडित जी के पूरे शरीर के वजन से चटाई मे नीचे बुरी तरह से दबी हुई थी मानो उसका सांस ही रुक जाएगा और बुर के अंदर घुसे पंडित जी के मोटे और लंबे लंड के सुपादे के दबाव से उठे दर्द से अभी मर जाएगी. सावित्री जिस चटाई पर दबी हुई थी वह काफ़ी पतला था और इस वजह से नीचे से फर्श का कधोरपन से चूतड़ और पीठ मे भी दर्द होना सुरू कर दिया था. उसका यह भी कारण था की पंडित जी अपने पूरे शरीर का वजन सावित्री के उपर ही रख कर सावित्री के जंघें फैला कर चौड़ी कर के चढ़ गये थे और उसे चटाई मे बुरी तरह से दबोच कर सूपड़ा बुर मे पेल रखे थे जो झिल्ली तक जा कर फँस गया था. नतीज़ा यह कि सावित्री चाह कर भी कसमसा नही पा रही थी. और केवल सिर को इधेर उधेर कर पा रही थी. दर्द के वजह से आँखों मे आँसू आने लगे थे जो आँखों के किनारों से एक एक बूँद चटाई पर गिर रहे थे. सावित्री अब रो रही थी. जब पंडित जी को यह मालून हुआ कि उनके धक्के से झिल्ली अभी तक फट नही पाई है और सावित्री किसी भी वक्त उनके पकड़ से छूट सकती है तो कुछ हड़बड़ा से गये और दूसरा करारा धक्के की तैयारी मे लग गये. इस बार वो काफ़ी आवेश और ताक़त के साथ धक्का मारने के लिए अपनी पकड़ को इतना मजबूत कर लिए मानो वह सावित्री को अपने पकड़ से ही मार डालेंगे. अब सावित्री थोड़ी भी कसमसा नही पा रही थी और जबर्दाश्त पकड़ होने के बजाह से अब वह काफ़ी डर गयी थी उसे ऐसा लग रहा था मानो पंडित जी अब उसका जान ले लेंगे. तभी अचानक पंडित जी ने मौका देख कर अपने लंड को थोड़ा सा बाहर की ओर किया लेकिन बुर के बाहर नही निकाला तो सावित्री को लगा कि अब वह लंड निकाल रहे हैं क्योंकि ऐसा करने पर लंड के सूपदे का झिल्ली पर बना दबाव ख़त्म हो गया और सावित्री के बुर मे उठा दर्द भी कुछ कम हुआ ही था की अगले पल पंडित जी ने सावित्री के उपर बहुत बढ़ा ज़ुल्म ही ढा दिया. उन्होने ने अपने पहलवानी शरीर के कसरती ताक़त को इकट्ठा कर के अपने शरीर के पूरे वजन और पूरी ताक़त से चटाई मे लेटी सावित्री की बुर मे अपने खड़े लंड से एक बहुत ही करारा धक्का मारा. इस बार पंडित जी के पूरे शरीर का वजन के साथ पूरे ताक़त से मारे गये खड़े तननाए लंड के धक्के को सावित्री की बुर की कुवारि झिल्ली रोक नही पाई और झिल्ली काफ़ी खींचने के बाद आख़िर फट गयी और सुपाड़ा झिल्ली के फटे हिस्से को बुर की दीवारों मे दबाते हुए अंदर की तरफ घुस कर फिर से सांकरी बुर मे फँस गया.
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