RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--8
सलवार और चड्डी के अंदर पंडित जी के हाथों के हरकत ने सावित्री की परेशानी और बढ़ा दी क्योंकि जो गीला चीज़ बुर से निकलने वाला था अब बुर के मुँह पर लगभग आ गया था. तभी एक राहत सी हुई क्योंकि अब पंडित जी का हाथ चड्डी से बाहर आ कर सलवार के जरवाँ के गाँठ को खोलने लगा और जरवाँ के खुलते ही पंडित जी के हाथ जैसे ही सलवार निकालने के लिए सलवार को ढीला करने लगे सावित्री ने भी अपने चौड़े चूतड़ को पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे कुछ हवा मे उठाई ताकि सलवार को चूतदों के नीचे से सरकया जा सके और जाँघो से सरकाते हुए निकाला जा सके. पंडित जी ने मौका पाते ही सलवार को सरकाते हुए निकाल कर फर्श पर फेंक दिया. अब सावित्री दुबारा जब पंडित जी की गोद मे बैठी तब केवल चड्डी मे थी और उसकी जंघे भी नगी हो चुकी थी. बैठे ही बैठे सावित्री ने अपने चड्डी के उपर से बुर वाले हिस्से को देखी तो चौंक गयी क्योंकि बुर से कुछ गीला चीज़ निकल कर बुर के ठीक सामने वाला चड्डी का हिस्से को भीगा दिया था. गोद मे बैठने के वजह से पंडित जी का फंफनता लंड भी सावित्री के कमर से रगड़ खा रहा था. सावित्री की नज़र ज्योन्हि लंड पर पड़ती उसे लगता कि अब मूत देगी. पंडित जी ने सावित्री के चड्डी के उपर से ही बुर को सहलाने लगे तभी उनकी उंगलियाँ चड्डी के उपर से ही बुर की दरार के तरफ ज्योही बढ़ी उनकी उंगली भीगे हुए चड्डी पर गयी और उंगली भीग गयी. पंडित जी ने भीगे उंगली के साथ सावित्री की चड्डी को भी देखा तो पाया कि बुर से कमरस निकल कर बुर से सटी हुई चड्डी को भीगा दिया है. अब पंडित जी समझ चुके थे कि तवा गरम हो गया है और रोटी सेंकने की बारी है. उन्हे लगा कि शायद गरम हो जाने के कारण ही सावित्री विरोध नही कर पा रही थी. सावित्री की आँखे फिर बंद होने लगी तभी पंडित जी ने सावित्री की चड्डी को निकालने की कोशिस की तो पाया की चड्डी काफ़ी तंग थी और काफ़ी कसी होने के कारण आसानी से सरकना मुस्किल दिख रहा था. फिर भी उंगली को चड्डी के कमर वाले हिस्से मे डालकर नीचे सरकाने की कोसिस की तो चड्डी थोड़ी से सरक कर रह गयी और अब पंडित जी की उंगली चड्डी और सावित्री के चूतड़ के माँस के बीच फँस सी गयी. फिर भी पंडित जी तो जानते ही थे कि सावित्री की चड्डी तो निकालनी ही पड़ेगी चाहे जैसे निकले. दुबारा उन्होने ने ज़ोर लगाया ही था कि सावित्री ने उनका हाथ पाकर ली क्योंकि सावित्री को लगा कि उसकी पुरानी चड्डी जो काफ़ी कसी हुई थी ज़ोर लगाने पर फट ज्एगी. चड्डी को पहनते और निकलते समय सावित्री को काफ़ी मेहनत करनी पड़ जाती थी. इसका कारण यह भी था कि उसके शरीर मे अब भराव भी हो जाने से उसके चूतड़ काफ़ी गोल और चौड़े हो गये थे. सावित्री समझ गयी कि चड्डी को फटने से बचने के लिए खुद ही निकालनी पड़ेगी और अगले पल पंडित जी के गोद से उठ कर खड़ी हुई तो पंडित जी के सामने सावित्री का बड़ा मांसल चूतड़ आ गया जिसपर चड्डी चिपकी हुई थी. सावित्री ने धीरे धीरे दोनो हाथों के उंगलिओं के सहारे चड्डी को थोड़ा थोड़ा सरकाना सुरू कर दी. जब चड्डी कमर से कुछ नीचे सरक गयी तो पंडित जी ने देखा की चूतड़ पर चड्डी वैसे ही चिपकी पड़ी है. फिर सावित्री ने अपने गुदज मांसल चूतड़ और चड्डी के बीच मे उंगली फँसैई और काफ़ी धीरे से नीचे की ओर सरकया ही था कि अचानक चूतर पर से चड्डी सात की आवाज़ के साथ सरक कर जाँघो मे आ गयी. दोनो चूतड़ पंडित जी के सामने आ गये. पंडित जी ने देखा कि ग़रीब सावित्री किस मुस्किल से अपनी तंग चड्डी को सरका रही थी की कहीं फट ना जाए. शायद उसकी भरी जवानी के वजह से पुरानी चड्डी अब काफ़ी कस गयी थी. चुतदो पर से चड्डी हट कर जाँघो मे आ गयी तब सावित्री ने फिर धीरे धीरे अपनी मांसल जांघों से नीचे सरकाना सुरू किया. चड्डी जैसे चूतदों पर कस कर फाँसी थी वैसे ही जांघों मे भी काफ़ी मेहनत करनी पड़ी. आख़िर रोज़ जिस मुस्की से सावित्री चड्डी पहनती और निकलती आज पंडित जी को भी मालूम चल गया. शायद पंडित जी इस चड्डी को निकालते तो निकाल नही पाते और ज़ोर लगाने का मतलब कि ग़रीब सावित्री की चड्डी फट जाती. पहले तो पंडित जी के दिमाग़ मे यह बात थी कि सावित्री की चड्डी छोटी है तभी इतनी परेशानी हो रही है इसे निकालने मे लेकिन जब सावित्री के चूतादो और जांघों को गौर से देखा तो समझ गये कि चड्डी से कही ज़्यादा कारण चूतादो और जांघों का बड़ा और मांसल होना था. इस परेशानी के लिए सावित्री के चुड़ाद और जंघें ही सीधे ज़िम्मेदार हैं. कसे चड्डी के सॅट के निशान कमर और जाँघो पर साफ दिख रहा था. सावित्री ने अपने पैरों से चड्डी निकाल कर फर्श पर रख दी और अब वह एकदम नगी हो चुकी थी और इस पल उसकी मा की याद आ रही थी, सावित्री को लग रहा था कि उसकी मा का संघर्ष जो वह इज़्ज़त के लिए लड़ रही थी, अब ख़त्म हो गया क्योंकि आज वह पंडित जी के सामने एकदम नगी हो गयी थी. अपने चूतदों को पंडित जी के तरफ करके यही सोच ही रही थी कि पंडित जी के हाथों ने उसके कमर को पकड़ कर फिर अपने गोद मे बैठने का इशारा किया तो सावित्री समझ गयी और पीछे एक नज़र बैठे पंडित जी के तरफ देखी जो बैठे थे लेकिन उनका लंड एक दम से खड़ा था. सावित्री फिर उनके गोद मे बैठने लेगी तो पहली बार पंडित जी के झांतो के बाल सावित्री के नंगे चौड़े चूतदों मे चुभने से लगे थे. पंडित जी फिर अपने हाथों को चुचिओ पर फेरते हुए मीज़ना सुरू कर दिया. सावित्री के चुचिओ की घुंडिया एकदम काली काली थी. उत्तेजना से खड़ी हो गयी थी. घुंडीओ को पंडित जी एक एक कर के मरोड़ कर मज़ा लूटना सुरू कर दिया. यही कारण था कि बुर से कमरस निकलना सुरू हो गया. अब पंडित जी झांतों मे भी उंगली चलाई तो दंग रह गये झांते काफ़ी घनी होने के कारण उंगलियाँ फँस सी जाती थी. फिर एक हाथ तो चुचिओ पर ही था और दूसरा झांतों से होते हुए ज्योहीं बुर के मुँह पर गया की सावित्री एकदम पागल सी हो गयी मानो बेहोश हो रही हो. पंडित जी के हाथ ने पवरोटी के समान फूली हुई बुर को सहलाते हुए टटोला तो पाया की काफ़ी काफ़ी गुदाज़ बुर थी. झांते तो ऐसे उगी थी मानो कोई जंगल हो और काफ़ी बड़ी होने के नाते बुर के ओठों को भी ढक रखी थी. पंडित जी ने बुर के ओठों के उपर लटके हुई झांतों को उंगलिओं से हटाया और बुर के दोनो फांको को उपर से ही सहलाया. फिर एक उंगली को फांको के बीच वाली कुवारि दरार के उपर चलाया तो कमरस से भीग गयीं. ये बुर से निकला कमरस मानो पंडित जी के हाथों को बुला रहा था. पंडित जी ने एक उंगली को फांको के बीच के दरार पर सरकया मानो उसके बीच कोई जगह तलाश रहे हों. दरार के सही स्थान पर उंगली के टिप से दबाव बनाया और कामयाब भी हो गये उंगली के अगला हिस्सा थोडा सा घुस गया लेकिन दरार काफ़ी सांकारी होने के वजह से उंगली को मानो बाहर की ओर धकेल रही हो. गीली हो चुकी बर की दरार मे उंगली के थोड़े से हिस्से के घुसते ही उंगली कमरस से भीग गयी. पंडित जी अपने इस उंगली को उसी दरार पर लगाए रखा और बार बार उंगली के अगले हिस्से को दरार के मुँह मे घुसाते और निकालते. मानो पंडित जी ऐसा कर के कुछ समझने की कोसिस कर रहे थे. दरार मे उंगली का आराम से ना घुस पाना शायद यह प्रमाणित कर रहा था कि सावित्री को उसके गाओं के अवारों ने चोद नही पाया हो. पंडित जी भी सावित्री के गाओं के बारे मे खूब आक्ची तरीके से जानते थे कि कितने आवारा और ऐयश किस्म के बदमाश वहाँ रहते हैं. शायद वह पहले यही सोचते थे कि सावित्री भी अब तक बच नही पाई होगी अन्या लड़कीो की तरह लेकिन उंगली का अगला हिस्सा बुर के मुँह पर फँस कर कस जाना उन्हे हैरान कर दी. उन्हे तो चुचिओ के कसाव और आकार देखकर ही कुछ शक हो गया था कि किसी ने इन अनारो पर हाथ नही फेरा हो. लेकिन फांको के बीच फाँसी उंगली ने पंडित जी को यह विश्वास दिला दिया कि सावित्री एकदम उन्चुइ है. सावित्री की आँखे एकदम बंद हो गयी थी और साँसे काफ़ी तेज़ चलराही थी. तभी पंडित जी ने जिस हाथ से चुचिओ को मीज़ रहे थे उससे सावित्री के चेहरे को अपने मुँह के तरफ मोड़ा और उसके निचले होंठ को अपनी मुँह मे लेने के बाद चूसना सुरू कर दिया. दूसरे हाथ की उंगली जो बुर के फांको मे फँस गयी थी उसे वहीं रहने दिया और बीच बीच मे उंगली को अंदर चंपने लगते. पहली बार किसी मर्द से ओठों की चुसाइ से सावित्री का शरीर सिहर सा गया और उसे नशा और छाने लगा. कुछ देर तक ऐसे ही होंठो को चूसने के बाद सावित्री को अपने गोद मे से उठाकर चटाई पर बैठा दिए और एक हाथ पीठ के ररफ़ करके सहारा देते हुए दूसरे हाथ से सावित्री के एक चुचि को मुँह मे लेकर घुंडीओ को दाँतों से दबा दबा कर चूसने लगे. सावित्री एकदम झंझणा उठी. उसके शरीर मे अब एक आग सी लग गयी थी. वह अब पंडित जी को रोकना नही चाहती थी. अब उसे ये सब अच्छा लगने लगा था. पंडित जी ने बारी बारी से दोनो चुचिओ को खूब चूसा और बीच बीच मे खाली हाथ से फांकों के बीच मे भी उंगली धंसा देते जिससे सावित्री कुछ उछल सी जाती. पंडित जी का लॅंड जो काफ़ी तननाया हुआ था उसको उन्होने सावित्री के हाथ मे देने लगे. चटाई पर बगल मे बैठी सावित्री कुछ लाज़ के बाद आख़िर लंड को एक हाथ मे थाम ही ली. लंड काफ़ी गरम था और सावित्री के जीवन का पहला लंड था जो रह रह कर झटके भी लेता था. सावित्री अब गरम हो चुकी थी और लंड को थामे अपनी दोनो चुचिओ को पंडित जी के मुँह मे चुसा रही थी. तभी पंडित जी ने सावित्री को लंड को आगे पीछे हिलाने के लिए अपने हाथ से इशारा किया लेकिन सावित्री लाज़ के मारे केवल लंड को थामे ही रह गयी. जब दुबारा उन्होने अपने हाथ से सावित्री के उस हाथ जो लंड थामे थी, को पकड़ कर आगे पीछे हिलाते हुए ऐसा करने के लिए इशारा किया तो डर के मारे हिलाने तो लगी लेकिन लंड को ठीक से हिला नही पा रही थी. वह केवल लंड को थोड़ा थोड़ा ही हिला पाती और लंड को अपनी डूबती आँखो से देख भी रही थी जो पंडित जी के घने झांतों से घिरा हुआ था लेकिन एकदम गोरा और लंबा और मोटा भी था. लंड के मुँह से हल्की लसलसता हुआ पानी निकल रहा था जो कभी कभी सावित्री के हाथ मे भी लग जाता. पंडित जी का दूसरा हाथ ज्योहीं खाली हुआ उन्होने फिर बुर के फांको के बीच गूसाने लगते. चुचिओ की चुसाइ से बुर अब और भी ज़्यादा गीला हो चुका था और पंडित जी की उंगली का कुछ हिस्सा बुर के सांकारी छेद मे घुसा लेकिन कमरस से भीग गया. पंडित जी ने उस उंगली को अगले पल फांको के बीच खूब नचाया और कमरस से भीगो कर तार कर लिया और फांकों से निकाल कर सीधे मुँह मे लेकर चाट गये. ऐसा देखकर सावित्री चौंक सी गयी उसे समझ मे नही आया कि जो पंडित जी छोटी जाती की लड़की को अपने बिस्तर को नही छूने देते वो कैसे उसके पेशाब वाले स्थान यानी बुर के अंदर की उंगली को चाट गये.
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