RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--7
अब पंडित जी उठकर खड़े हुए और अपने कमर मे ढीली लंगोट को खोलकर चौकी पर रख दिए. अब उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नही था. एकदम नंगे हो चुके पंडित जी का लंड अब पूरी तरीके से खड़ा था. जहाँ पंडित जी पूरे नंगे थे वहीं ग़रीब सावित्री अपने पूरे कपड़े मे थी और लाज़ का चदडार भी उसके पूरे जवान शरीर पर था. पंडित जी अपने पूरे आत्मविश्वासमे थे और उनका उद्देश्या उनको सॉफ दिख रहा था. अब वह सावित्री पर अंतिम हमले के तरफ बढ़ रहे थे. उन्होने देखा कि सावित्री लाज़ और डर से पूरी तरह दब गयी है और अब उन्हे अपना कदम काफ़ी मज़बूती से उठाना होगा. उन्होने एक लंबी सांस ली जिसकी आवाज़ सावित्री को भी सुनाई दी. वह समझ गयी कि अगले पल मे वह लूट जाएगी. क्योंकि पंडित जी अब उसके सपनो और इज़्ज़त को मिट्टी मे मिलाने के लिए तैयार हो गये हैं. उसके मन मे यह बात सॉफ थी कि वह आज अपनी इज़्ज़त नही बचा पाएगी. उसका मनोबल पंडित जी के प्रभावशाली और कड़क व्यक्तित्व के सामने घुटने टेक दिया था. अगले पल पंडित जी सामने बैठकर अपने चेहरे को घुटनों के बीच छुपाए सावित्री के पास आए और झुककर सावित्री के एक बाँह को अपने मज़बूत हाथों से पकड़कर उपर खड़ा करने लगे. अब सावित्री के पास इतनी हिम्मत नही थी कि वह विरोध कर सके पूरी तरह से टूट चुकी सावित्री को आख़िर खड़ा होना पड़ा. खड़ी तो हो गयी लेकिन अपना सिर को झुकाए हुए अपने नज़रों को एकदम से बंद कर रखी थी. अपने दोनो हाथों से दोनो चुचिओ को छिपा रखी थी जो की समीज़ मे थी और उसके उपर एक दुपट्टा भी था. पंडित जी की नज़रे सावित्री को सर से पैर तक देखने और उसकी जवान शरीर को तौलने मे लगी थी. समन्य कद की सावित्री जो गेहुअन और सवाले रंग की थी और शरीर भरा पूरा होने के वजह से चुचियाँ और चूतड़ एकदम से निकले हुए थे. पंडित जी नेअपनी नज़रों से तौलते हुए पूछा "लक्ष्मी के दूसरे बच्चे को देखी है" सावित्री का दिमाग़ मे अचानक ऐसे सवाल के आते ही हैरानी हुई कि पंडित जी लक्ष्मी चाची के दो बच्चो जिसमे एक 13 साल की लड़की और 5 साल का लड़का था और उसके लड़के के बारे मे क्यों पूछ रहे हैं. फिर भी इस मुसीबत के पलो मे उसने और भी कुछ सोचे बगैर बोली "जी". फिर पंडित जी ने पूछा "कैसा दिखता है वो" सावित्री के मन मे यह सवाल और कयि सवालों को पैदा कर दिया. आख़िर पंडित जी क्या पूछना चाहते हैं या क्या जानना चाहते हैं. उसे कुछ समझ मे नही आया और चुप चाप खड़ी रही. फिर पंडित जी का हाथ आगे बढ़ा और खड़ी सावित्री के दोनो हाथों को जो की चूचियो को छुपाएँ थी हटाने लगे. सावित्री अब मजबूर थी पंडित जी के सामने और आख़िर दोनो चुचिओ पर से साथ हट गये और दुपट्टा के नीचे दोनो चुचियाँ हाँफने के वजह से उपर नीचे हो रहीं थी. अब दुपट्टे पर ज्योहीं पंडित जी का हाथ गया सावित्री के शरीर का सारा खून सुख सा गया और कुछ सकपकाते हुए एक हाथ से पंडित जी का हाथ पकड़नी चाही थी की पंडित जी ने उसके दुपट्टे को हटा ही दिया और दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ अब समीज़ मे एकदम सॉफ उभार लिए दिख रहीं थी. सावित्री का दुपट्टा फर्श पर गिर पड़ा. तभी पंडित जी ने सावित्री के दिमाग़ मे एक जबर्दाश्त विस्फोट किया "वह लड़का मेरे लंड से पैदा है समझी...!" यह सुनते ही सावित्री खड़े खड़े मानो लाश हो गयी थी. वह क्या सुनी उसे समझ नही आ रहा था. लक्ष्मी चाची को पंडित जी ने चोदा होगा. इन बातों को और सोचने का समय उसके पास अब नही था क्योंकि उसके उपर पंडित जी के हमले शुरू हो गये थे. अगले पल सावित्री के दिमाग़ मे लक्ष्मी चाची के चरित्रा पर एक प्रश्नचिन्ह्आ लगने ही लगे थे कि पंडित जी के हाथों मे सावित्री की गदराई चुचियाँ आ ही गयी और सावित्री को अपने चुचिओ पर समीज़ के उपर से ही पहली बार किसी मर्द का हाथ पड़ते ही उसे लगा की जांघों के बीच एक अज़ीब सी सनसनाहट फैल गयी हो. अचानक इस हमले से सावित्री का मुँहा खुल गया और एक "सी..सी" की आवाज़ निकली थी कि फिर पंडित जी ने दबाव बढ़ा कर मसलना शुरू कर दिया. चुचियाँ काफ़ी ठोस और कसी हुई थी. शरीर मांसल होने के वजह से काफ़ी गदरा भी गयी थी. पंडित जी ने एक एक कर दोनो चुचिओ को मसलना शुरू कर दिया. पंडित जी खड़े खड़े ही सावित्री की चुचिओ को मसल रहे थे और सावित्री भी जो चटाई के बगल मे फर्श पर खड़ी थी, उसे लगा की उसके पैर मे अब ताक़त ही नही है और गिर पड़ेगी. पंडित जी का एक हाथ तो चुचिओ को बारी बारी से मीस रहे थे और दूसरा हाथ खड़ी सावित्री के पीछे पीठ पर होते हुए उसे उसे पकड़ रखा था की चुचिओ वाले हाथ के दबाव से उसका सरीर इधेर उधेर ना हीले और एक जगह स्थिर रहे ताकि चुचिओ को ठीक से मीसा जा सके. पंडित जी ने खड़े खड़े ही सावित्री के शरीर को पूरी गिरफ़्त मे लेते हुए चुचिओ को इतना कस कस कर मीज रहे थे कि मानो समीज़ को ही फाड़ देंगे. तभी सावित्री की यह अहसास हुआ की उसके समीज़ जो उसके कसी हुई चुचिओ पर काफ़ी तंग थी लगभग फट जाएगी क्योंकि पंडित जी के हाथों से मीज़ रही चुचिओ के उपर का समीज़ का हिस्सा काफ़ी सिकुड और खीच जाता था. दूसरी बात ये भी थी की सावित्री का समीज़ काफ़ी पुराना था और पंडित जी के कस कस कर चुचिओ को मीजने से या तो समीज़ की सीवान उभड़ जाती या काफ़ी खींच जाने से फट भी सकती थी जो की सावित्री के लिए काफ़ी चिंता और डर पैदा करने वाली बात थी. यदि कहीं फट गयी तो वह घर कैसे जाएगी और दूसरी की मा यदि देख ली तो क्या जबाव देगी. यही सोचते उसने पंडित जी से हिम्मत कर के बोली "जी समीज़ फट जाएगी" तभी पंडित जी ने कहा "चल निकाल दे और आ चटाई पर बैठ, कब तक खड़ी रहेगी" इतना कह कर पंडित जी चटाई पर जा कर बैठ गये. उनका लंड पूरी तरह से खड़ा था जो सावित्री देख ही लेती और डर भी जाती उसकी मोटाई देख कर. समीज़ के फटने की डर जहाँ ख़त्म हुआ वहीं दूसरी परेशानी भी खड़ा कर दी कि समीज़ को उतरना था यानी अब नंगी होना था. सावित्री को अब यह विश्वास हो चुका था कि आज पंडित जी उसका इज़्ज़त को लूट कर ही दम लेंगे और उसकी इज़्ज़त अब बच भी नहीं सकती. यह सोच मानो सावित्री से बार बार यही कह रहे हों कि विरोध करने से कोई फ़ायदा नही है जो हो रहा है उसे होने दो. आख़िर सावित्री का मन यह स्वीकार ही कर लिया की पंडित जी जो चाहें अब उसे ही करना पड़ेगा. और उसके काँपते हाथ समीज़ के निचले हिस्से को पकड़ कर, पीठ को पंडित जी के तरफ करती हुई धीरे धीरे निकाल ही ली और कुछ देर तक उस समीज़ के कपड़े से अपनी दोनो चुचिओ को ढाकी रही जो की एक पुराने ब्रा मे कसी थी. फिर उसने उस समीज़ को नीचे फर्श पर फेंक दिए और अपनी बाहों से अपनी दोनो चुचीोन को जो की ब्रा मे थी धक ली और काफ़ी धीरे धीरे सर को नीचे झुकाए हुए पंडित जी के तरफ मूडी. पंडित जी ने समीज़ के उतारते ही सावित्री की पीठ को देखा और पुराने ब्रा को भी जो उसने पहन रखा था. लेकिन ज्योन्हि सावित्री ने अपना मुँह पंडित जी के तरफ की उसके हाथों मे छिपी चुचियाँ जो काफ़ी बड़ी थी दिखी और पंडित जी के खड़े लंड ने एक झटका लिया मानो सलामी कर रहा हो. "आओ" पंडित जी ने कड़क आवाज़ मे बुलाया और बेबस सावित्री धीरे धीरे कदमो से चटाई पर आई तो पंडित जी ने उसका हाथ पकड़ कर बैठने लगे ज्योन्हि सावित्री बैठने लगी पंडित जी तुरंत उसका बड़ा चूतड़ अपने एक जाँघ पर खींच लिया नतीज़ा सावित्री पंडित जी के जाँघ पर बैठ गयी. सावित्री जो लगभग अब समर्पण कर चुकी थी उसके चूतड़ मे पंडित जी के जाँघ के कड़े मोटे बालों का गड़ना महसूस होने लगा. फिर पंडित जी ने सावित्री के पीठ के तरफ से एक हाथ लगा उसे अपने जंघे पर कस कर पकड़ बनाते हुए बैठाए और ब्रा के उपर से ही चुचिओ को दूसरी हाथ से मीज़ना सुरू कर दिया. सावित्री पंडित जी के जाँघ पर अब पूरी तरीके से समर्पित होते हुए बैठी थी और अब उसके सरीर पर उपर ब्रा और नीचे सलवार थी अंदर उसने एक पुरानी चड्धि पहन रखी थी. पंडित जी के हाथ चुचिओ के आकार के साथ साथ इसके कसाव का भी मज़ा लेने लगे. सावित्री की साँसे बहुत तेज़ हो गयी थी और अब हाँफने लगी थी. लेकिन एक बात ज़रूर थी जो पंडित जी दो को सॉफ समझ आ रही थी कि सावित्री के तरफ से विरोध एकदम नही हो रहा था. यह देखते ही पंडित जी ने उसके ब्रा के स्ट्रीप को हाथ से सरकाना चाहा लेकिन काफ़ी कसा होने से थोड़ा सा भी सरकाना मुश्किल दीख रहा था फिर पंडित जी ने सावित्री के पीठ पर ब्रा के हुक को देखा जो ब्रा पुरानी होने के कारण हुक काफ़ी कमज़ोर और टेढ़ी हो चुकी थी, और उसे खोला ही था कि सावित्री की दोनो अट्टरह साल की काफ़ी बड़ी और कसी कसी चूचिया छलक कर बाहर आ गयी तो मानो पंडित जी का तो प्राण ही सुख गया.इस पुरानी ब्रा मे इतनी नयी और रसीली चुचियाँ हैं पंडित जी को विस्वास ही नही हो रहा था. ज्योहीं दोनो चुचियाँ छलक कर बाहर आईं की सावित्री के हाथ उन्हें ढकने के लिए आगे आईं लेकिन अब मनोबल ख़त्म हो चुका था, पूरी तरह से टूट जाने के कारण सावित्री ने अपने सारे हथियार डाल चुकी थी और पंडित जी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के सामने अब समर्पित हो चुकी सावित्री को अपनी नंगी हो चुकी चुचिओ को ढकने से कोई फ़ायदा नही दीख रहा था और यही सोच कर उसने अपना हाथ दोनो चुचिओ पर से स्वयम् ही हटा लिया नतीज़ा की दोनो चुचियाँ पंडित जी के सामने एकदम नंगी हो चुकी थी. पंडित जी इन्हे आँखे फाड़ फाड़ के देख रहे थे. सावित्री जो पंडित जी जांघों पर बैठी थी उसके एक कूल्हे से पंडित जी का लंड रगर खा रहा था जिसके वजह से वह लंड की गर्मी को महसूस कर रही थी और इसके साथ ही साथ उसके शरीर मे एक मदहोशी भी छा रही थी. पंडित जी की साँसे जो तेज़ चल रही थी खड़ी चुचिओ को देखकर मानो बढ़ सी गयी. फिर पंडित जी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और सावित्री के नंगी चुचिओ पर रख ही दिया. सावित्री को लगा की उसकी बुर से कोई चीज़ निकल जाएगी. फिर दोनो चुचिओ को बैठे बैठे ही मीज़ना सुरू कर दिया. अब सावित्री जो अपनी आँखे शर्म से बंद की थी अब उसकी आँखे खुद ही बंद होने लगी मानो कोई नशा छाता जा रहा हो उसके उपर. अब उसे आँखे खोलकर देखना काफ़ी मुस्किल लग रहा था. इधेर पंडित जी दोनो चुचिओ को अपने दोनो हाथो से मीज़ना चालू कर दिया. सावित्री जो पूरी तरह से नंगे हो चुके पंडित जी की एक जाँघ मे बैठी थी अब धीरे धीरे उनकी गोद मे सरक्ति जा रही थी. सावित्री के सरीर मे केवल सलवार और चड्डी रह गयी थी. सावित्री का पीठ पंडित जी के सीने से सटने लगा था. सावित्री को उनके सीने पर उगे बॉल अपनी पीठ से रगड़ता साफ महसूस हो रहा था. इससे वह सिहर सी जाती थी लेकिन पंडित जी की चुचिओ के मीज़ने से एक नशा होने लगा था और आँखे बंद सी होने लगी थी. बस उसे यही मालूम देता की पंडित जी पूरी ताक़त से और जल्दी जल्दी उसकी चुचियाँ मीज़ रहे हैं और उनकी साँसे काफ़ी तेज चल रही हैं. अगले पल कुछ ऐसा हुआ जिससे सावित्री कुछ घबरा सी गयी क्योंकि उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसकी बुर से कोई गीला चीज़ बाहर आना चाह रहा हो. जिसके बाहर आने का मतलब था कि उसकी चड्डी और सलवार दोनो ही खराब होना. उसने अपनी बंद हो रही आँखो को काफ़ी ज़ोर लगा कर खोली और फिर पंडित जी की गोद मे कसमसा कर रह गयी क्योंकि पंडित जी अब सावित्री को कस पकड़ चुके थे और चुचिओ को बुरी तरह से मीज़ रहे थे. अभी यही सावित्री सोच रही थी कि आख़िर वह पंडित जी से कैसे कहे की उसकी बुर मे कुछ निकलने वाला है और उससे उसकी चड्डी और सलवार खराब हो जाएगी. यह सावित्री के सामने एक नयी परेशानी थी. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था.पंडित जी का प्रभावशाली व्यक्तित्व और कड़क मिज़ाज़ के डर से उनसे कुछ बोलने की हिम्मत नही थी. सावित्री को आज यह भी मालूम हो गया था कि लक्ष्मी चाची भी उनसे बच नही पाई थी. वह यही अफ़सोस कर रही थी की पहले ही उसने सलवार और चड्डी निकाल दी होती तो उसके कपड़े खराब ना होते. लेकिन वह यह भी सोचने लगी की उसे क्या मालूम की उसकी बुर से कुछ गीला चीज़ निकलने लगेगा और दूसरी बात यह की उसे लाज़ भी लग रहा था पंडित जी से. इसी बातों मे उलझी ही थी की पंडित जी का एक हाथ सावित्री के नाभि के पास से फिसलता हुआ सलवार के नडे के पास से सलवार के अंदर जाने लगा. चुचिओ के बुरी तरह मसले जाने के वजह से हाँफ रही सावित्री घबरा सी गयी फिर वैसे ही पंडित जी के गोद मे बैठी रही. पंडित जी का ये हाथ मानो कुछ खोज रहा हो और सावित्री के दोनो जाँघो के बीच जाने की कोशिस कर रहा था. सलवार का जरवाँ के कसे होने के वजह से हाथ आसानी से सलवार के अंदर इधेर उधर घूम नहीं पा रहा था. पंडित जी के हाथ के कलाई के पास के घने बॉल सावित्री के नाभि पर रगड़ रहे थे. पंडित जी की उंगलियाँ सलवार के अंदर चड्डी के उपर ही कुछ टटोल रही थी लेकिन उन्हे चड्डी मे दबे सावित्री की घनी झांते ही महसूस हो सकी. लेकिन यह बात पंडित जी को चौंका दी क्योंकि उन्हे लगा कि सावित्री के चड्डी काफ़ी कसी है और उसकी झांते काफ़ी उगी है जिससे चड्डी मे एक फुलाव बना लिया है. सलवार का जरवाँ कसा होने के वजह से पंडित जी का हाथ और आगे ना जा सका फिर उन्होने हाथ को कुछ उपर की ओर खींचा और फिर सलवार के अंदर ही चड्डी मे घुसाने की कोसिस की और चड्डी के कमर वाली रबर कसी होने के बावजूद पंडित जी की कुछ उंगलियाँ सावित्री के चड्डी मे घुस गयी और आगे घनी झांतों मे जा कर फँस गयी. पंडित जी का अनुमान सही निकला कि चड्डी के उपर से जो झांटें घनी लग रही थी वह वास्तव मे काफ़ी घनी और मोटे होने के साथ साथ आपस मे बुरी तरह से उलझी हुई थी. पंडित जी की उंगलियाँ अब सावित्री के झांतो को सहलाते हुए फिर आगे की ओर बढ़ने की कोसिस की लेकिन कमर के पास सलवार का जरवाँ कसे होने के वजह से ऐसा नही हो पाया.
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