RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष --6
गतांक से आगे..........
इन सब हालातों मे विरोध ना कर सकने वाली सावित्री को अब पंडित जी के पैर पर हाथ लगाना ही पड़ा. जैसे ही उसने उनके पैर पर हाथ रखा सारा बदन सनसनाहट से गन्गना गया क्योंकि यह एक मर्द का पैर था. जो कि काफ़ी ताकतवर और गाथा हुआ था और जिस पर घने बॉल उगे थे. वैसे सावित्री कभी कभी अपनी मा का पैर दबा देती थी जब वो काफ़ी थॅकी होती और उसे पैर दबाना मा ने ही सिखाया था. इसलिए मा के पैर की बनावट की तुलना मे भोला पंडित का पैर काफ़ी कड़ा और गाथा हुआ था. जहाँ मा के पैर पर बाल एकदम ना थे वहीं भोला पंडित के पैर पर काफ़ी घने बाल उगे थे. बालो को देखकर और छूकर उसे लंगोट मे लगे झांट के बालों की याद आ गयी और फिर से सनसना सी गयी. वह अपने हाथो से भोला पंडित के पैर को घुटने के नीचे तक ही दबाती थी. साथ साथ पंडित जी के बालिश्ट शरीर को भी महसूस करने लगी. जवान सावित्री के लिए किसी मर्द का पैर दबाना पहली बार पड़ा था और सावित्री को लगने लगा था कि किसी मर्द को छूने से उसके शरीर मैं कैसी सनसनाहट होती है. कुछ देर तक सावित्री वैसे ही पैर दबाती रही और पंडित जी के पैर के घने मोटे बालों को अपने हाथों मे गड़ता महसूस करती रही. तभी पंडित जी ने अपने पैर के घुटनो को मोदकर थोड़ा उपर कर दिया जिससे धोती घुटनो और झंघो से कुछ सरक गयी और उनकी पहलवान जैसी गठीली जांघे धोती से बाहर आ गयी. भोला पंडित के पैरों की नयी स्थिति के अनुसार सावित्री को भी थोड़ा पंडित जी की तरफ ऐसे खिसकना पड़ा ताकि उनके पैरो को अपने हाथों से दबा सके. फिर सावित्री पंडित जी के पैर को दबाने लगी लेकिन केवल घुटनो के नीचे वाले हिस्से को ही. कुछ देर तक केवल एक पैर को दबाने के बाद जब सावित्री दूसरे पैर को दबाने के लिए आगे बढ़ी तभी पंडित जी कड़ी आवाज़ मे बोल पड़े "उपर भी" सावित्री के उपर मानो पहाड़ ही गिर पड़ा. वह समझ गयी कि वो जाँघो को दबाने के लिए कह रहे हैं. पंडित जी की बालिश्ट जाँघो पर बाल कुछ और ही ज़्यादा थे. जाँघो पर हाथ लगाते हुए सावित्री अपनी इज़्ज़त को लगभग लूटते देख रही थी. कही पंडित जी क्रोधित ना हो जाए इस डर से जाँघो को दबाने मे ज़्यादा देर करना ठीक नही समझ रही थी. अब उसके हाथ मे कंपन लगभग साफ पता चल रहा था. क्योंकि सावित्री पंडित जी के जेंघो को छूने और दबाने के लिए मानसिक रूप से अपने को तैयार नही कर पा रही थी. जो कुछ भी कर रही थी बस डर और घबराहट मे काफ़ी बेबस होने के वजह से. उसे ऐसा महसूस होता था की अभी वह गिर कर तुरंत मर जाएगी. शायद इसी लिए उसे सांस लेने के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ रही थी. उसके घबराए हुए मन मे यह भी विचार आता था कि उसकी मा ने उसके इज़्ज़त को गाओं के अवारों से बचाने के लिए उसे स्कूल की पड़ाई आठवीं क्लास के बाद बंद करवा दिया और केवल घर मे ही रखी. इसके लिए उसकी विधवा मा को काफ़ी संघर्ष भी करना पड़ा. अकेले घर को चलाने के लिए उसे काफ़ी मेहनत करनी पड़ती थी और इसी लिए कई लोगो के घर जा कर बर्तन झाड़ू पोच्छा के काम करती. आख़िर यह संघर्ष वह अब भी कर रही थी. इसीलिए वह सावित्री को गाओं मे कम करने के बजाय वह अधेड़ पंडित जी के दुकान पर काम करने के लिए भेजा था. यही सोचकर की बाप के उमर के अधेड़ भोला पंडित के दुकान पर उसकी लड़की पूरी सुरक्षित रहेगी जैसा की लक्ष्मी ने बताया था कि पंडित जी काफ़ी शरीफ आदमी हैं. लेकिन सीता की यह कदम की सावित्री भी काम कर के इस ग़रीबी मे इज़्ज़त के लिए इस संघर्ष मे उसका साथ दे जिससे कुछ आमदनी बढ़ जाए और सावित्री की जल्दी शादी के लिए पैसे का इंतेज़ाम हो जाए, सावित्री को अब ग़लत लगने लगा था. लेकिन सावित्री अपने मा को बहुत अच्छी तरीके से जानती थी. सीता को इज़्ज़त से बहुत प्यार था और वह कहती भी थी की मैं ग़रीब भले हूँ और मेरे पास पैसे भले ना हो पर मेरे पास इज़्ज़त तो है. यह बात सही भी थी क्योंकि सावित्री को याद था कि उसके बाप के मरने के बाद सीता ने इस ग़रीबी मे अपनी इज़्ज़त मर्यादा को कैसे बचा कर रखने के लिए कैसे कैसे संघर्ष की. जब वह सयानी हुई तब किस तरह से स्कूल की पड़ाई बंद कराके सावित्री को घर मे ही रहने देने की पूरी कोशिस की ताकि गाओं के गंदे माहौल के वजह से उसके इज़्ज़त पर कोई आँच ना आए. और इज़्ज़त के लिए ही गाओं के गंदे माहौल से डरी सीता यह चाहती थी कि सावित्री की बहुत जल्दी शादी कर के ससुराल भेज दिया जे और इसी लिए वह अपने इस संघर्ष मे सावित्री को भी हाथ बताने के लिए आगे आने के लिए कही.वो भी इस उम्मीद से की कुछ पैसे का इंतेज़ाम हो जाए, पंडित जी के दुकान पर काम के लिए मजबूरी मे भेजी थी इन्ही बातों को सोचते हुए सावित्री को लगा की उसके आँख से आँसू गिर जाएँगे और आँखे लगभग दबदबा गयी. और ज्यो ही सावित्री ने अपना काँपता हाथ पंडित जी के घने उगे बालो वाले बालिश्ट जाँघ पर रखी उसे लगा कि उसकी मा और वह दोनो ही इज़्ज़त के लिए कर रहे अंतिम शंघर्ष मे अब हार सी गयी हो. यही सोचते उसके दबदबाई आँखो से आँसू उसके गालों पर लकीर बनाते हुए टपक पड़े. अपने चेहरे पर आँसुओं के आते ही सावित्री ने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया ताकि पंडित जी की नज़र आँसुओं पर ना पड़ जाए. तभी उसे लगा की पंडित जी उसके आँसुओं को देख लिया हो और दूसरे पल वह उठकर लगभग बैठ गये. सावित्री को लगा की शायद भगवान ने ग़रीब की सुन ली हो और अब इज़्ज़त बच जाय क्योंकि पंडित जी उसके रोने पर तरस खा कर उससे जाँघ ना दब्वाये. ऐसी सोच ने सावित्री के शरीर मे आशा की एक लहर दौड़ा दी. लेकिन अगले पलों मे ऐसा कुछ भी ना हुआ और पंडित जी बगल मे चौकी पर बिछे बिस्तेर के नीचे से एक किताब निकाली और फिर बिना कुछ कहे वैसे ही लेट गये और उस किताब को पढ़ने लगे. सावित्री को लगा कि वो आसमान से गिर गयी हो. नतीज़ा यह की सावित्री अपने आँखो मे आँसू लिए हुए उनके बालिश्ट झांग को दबाने लगी. जो कि बहुत कड़ा था और काफ़ी घने बाल होने के कारण सावित्री के हाथ मे लगभग चुभ से रहे थे. और ऐसा लगता मानो ये बाल सावित्री के हथेली मे गुदगुदी कर रहे हों क्योंकि काफ़ी मोटे और कड़े भी थे. जब भी सावित्री पंडित जी के जाँघ को दबाती उसे महसूस होता की उनके झांग और उसके हाथों के बीच मे उनके कड़े मोटे बाल एक परत सी बना ले रही हों. सावित्री के हथेलिओं को पंडित जी की जाँघ की मांसपेशियो के काफ़ी कड़े और गातीलेपन का आभास हर दबाव पर हो रहा था जैसे की कोई चट्टान के बने हों. पंडित जी किताब को दोनो हाथो मे लेकर लेटे लेटे पढ़ रहे थे और किताब उनके मुँह के ठीक सामने होने के कारण अब पंडित जी सावित्री को नही देख सकते थे. पंडित जी का मुँह अब किताब के आड़ मे पा कर सावित्री की हिम्मत हुई और वह पंडित जी के कमर वाले हिस्से के तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा की धोती जो केवल जाँघो पर से हटी थी लेकिन कमर के हिस्से को अच्छी तरह से ढक रखा था और कहीं से भी लंगोट भी दिखाई नही दे रही थी.
धोती से उनके निचले हिस्से का ठीक से ढके होने से सावित्री को कुछ राहत सी महसूस हुई. और उसके आँखो के आँसू लगभग सूखने लगा ही था कि उसकी नज़र किताब के उपर पड़ी. आठवीं क्लास तक पड़ी होने के वजह से उसे पड़ना तो आता ही था. पंडित जी के हाथ मे जो किताब थी उसका नाम पढ़ कर सावित्री ऐसे सकपकाई जैसे अभी उसके बुर से मूत निकल जाएगी. ऐसी नाम की कोई किताब भी हो सकती है यही सोचकर सिहर ही गयी. ये नाम अक्सर वो गाओं मे झगड़े के समय औरतों को गाली देने के लिए प्रयोग होते हैं. उस किताब का नाम उसके उपर हिन्दी के बड़े अक्षरो मे "हरजाई" लिखा था. यह देखते ही सावित्री के अंदर फिर से घबराहट की लहरें उठने लगी. अब पंडित जी के चरित्र और नियत दोनो सॉफ होती नज़र आ रही थी. उसे अब लगने लगा था कि उसके शरीर मे जान है ही नही और किसी ढंग से वह पंडित जी के जाँघ को दबा पा रही थी. जब जब उस किताब पर नज़र पड़ती तो सावित्री ऐसे सनसना जाती मानो वह किताब नही बल्कि पंडित जी का मोटा खड़ा लंड हो. अब सावित्री के मन को यह यकीन हो गया कि आज उसकी इज़्ज़त को भगवान भी नही बचा पाएँगे. इसी के साथ उसे लगा की उसका मन हताशा की हालत मे डूबता जा रहा था. वह एकदम कमजोर महसूस कर रही थी मानो कई सालों से बीमार हो और मरने के कगार पर हा गयी हो. तभी पंडित जी को लगा की उनके कसरती जाँघ पर सावित्री के हाथों से उतना दबाव नही मिल पा रहा हो और यही सोच कर उन्होने सावित्री को जाँघो को हाथ के बजाय पैर से दबाने के लिए कहा. घबराई सावित्री के सामने एक बड़ी परेशानी थी की उनके पैर और जाँघो पर कैसे चढ़ कर दबाए. आख़िर मजबूर सावित्री उनके पैर और जांघों पर पैर रख कर खड़ी होने लगी तो ऐसा लगने लगा मानो संतुलन ना बनाने के वजह से गिर जाएगी. तभी पंडित जी ने उसे कहा "दुपट्टा हटा दे नही तो उसमे उलझ कर गिर जाएगी" सावित्री को भी कुछ यह बात सही लगी क्योंकि जब वह पंडित जी के पैर और जाँघो पर खड़ी होने की कोशिस करती तब उसका उपरी शरीर हवा मे इधेर उधेर लहराने लगता और दुपट्टा मे उसके हाथ फँसने से लगता. लेकिन दुपट्टा से उसकी दोनो बड़ी बड़ी गोल चुचियाँ धकि थी जो कि समीज़ मे काफ़ी तन कर खड़ी थी. हर हाल मे पैर तो दबाना ही था इसलिए सावित्री दुपट्टा को उतारने लगी और उसे लगा कि उसके उपर आकाश की बिजली गिर पड़ी हो. दुपट्टा उतार कर बगल मे फर्श पर रख दिया और जब सीधी खड़ी हुई तब उसे दुपट्टे की कीमत समझ मे आने लगी. दोनो चुचियाँ एक दम बाहर निकली दिख रही थी मानो समीज़ अभी फट जाएगा और दोनो बड़े बड़े गोल गोल चुचियाँ आज़ाद हो जाएँगी. अब फिर सावित्री पंडित जी के जाँघ पर अपने पैर रख कर चाड़ने की कोशिस करने लगी तो संतुलन बनाने लिए फिर उसका कमर के उपर का शरीर हवा मे लहराया और साथ मे दोनो चुचियाँ भी और उसके शरीर मे सनसनाहट भर सी गयी.लेकिन गनीमत यह थी की पंडित जी का ध्यान उस किताब मे ही था और वी सावित्री के चुचिओ को नही देख रहे थे. सावित्री जब किसी तरह से उनके जाँघ पर खड़ी हो कर उनके जाँघ को अपने पैरों से दबाव बना कर दबाती उनके जाँघ पर उगे घने काले मोटे बालों से उसके पैर के तलवे मे चुभन सी महसूस होती. सावित्री उनके जाँघ पर जब खड़ी हो कर दबा रही थी तभी उसे उनके कसरती शरीर के गातीलेपन का आभास भी होने लगा और जाँघ लग रहा था कि पत्थर का बना हों. थोड़ी देर तक दोनो जांघों को पैर से दबाने के बाद पंडित जी ने उस किताब को एक किनारे रख दिया और फिर अपने जाँघो पर चड़ी सावित्री को घूर्ने लगे मानो दोनो चुचिओ को ही देख रहे हो. अब यह सावित्री के उपर नया हमला था. कुछ पल तक वो चुचिओ को ही निहारने के बाद बोले "उतरो" और सावित्री उनके जाँघो पर से अपने पैर नीचे चटाई पर उतार ली और अपनी पीठ पंडित जी के तरफ कर ली ताकि अपनी दोनो चुचिओ को उनके नज़रों से बचा सके और अगले पल ज्यों ही अपना दुपट्टा लेने के लिए आगे बड़ी के कड़क आवाज़ उसके कानो मे गोली की तरह लगी "कमर भी अपने पैर से" और उसने पलट कर पंडित जी की ओर देखा तो वे पेट के बगल लेट गये थे और उनका पीठ अब उपर की ओर था. उनके शरीर पर बनियान और धोती थी और अब इस हालत मे जब पैर से कमर दबाने के लिए पैर को कमर पर रखने का मतलब उनका सफेद रंग की बनियान और धोती दोनो ही सावित्री के पैर से खराब होती. पंडित जी के कपड़े इतने सॉफ और सफेद थे कि ग़रीब सावित्री की हिम्मत ना होती उनके इन कपड़ो पर पैर रखे. कुछ पल हिचकिचाहट मे बीते ही थे की पंडित जी मे दिमाग़ मे फिर ये बात गूँजी की सावित्री एक छोटी जाती की है और उसके पैर से दबाने पर उनके कपड़े लगभग अशुद्ध हो जाएँगे. फिर अगले पल बोले "रूको कपड़े तो उतार लूँ" और बैठ कर बनियान को निकाल कर चौकी पर रख दिया और धोती को कमर से खोलकर ज्योन्हि अलग किया की उनके शरीर पर केवल एक लाल रंग की लंगोट ही रह गयी.
धोती को भी पंडित जे ने बनियान की तरह चौकी पर रख कर केवल लाल रंग के लंगोट मे फिर पेट के बगल लेट गये. सावित्री धोती हटने के बाद लाल लंगोट मे पंडित जी को देखकर अपनी आँखे दूसरी तरफ दीवार की ओर कर लिया. उसके पास अब इतनी हिम्मत नही थी की अधेड़ उम्र के पंडित जी को केवल लंगोट मे देखे. सावित्री जो की दीवार की तरफ नज़रें की थी, जब उसे लगा कि अब पंडित जे पेट के बगल लेट गये है तब वापस मूडी और उनके कमर पर पैर रख कर चढ़ गयी. अपना संतुलन बनाए रखने के लिए सावित्री को पंडित जी के कमर की तरफ देखना मजबूरी थी और ज्यों ही उसने पंडित जी की कमर की तरफ नज़रें किया वैसे ही पतले लंगोट मे उनका कसा हुआ गातीला चूतड़ दिखाई दिया. सावित्री फिर से सिहर गयी. आज जीवन मे पहली बार सावित्री किसी मर्द का चूतड़ इतने नज़दीक से देख रही थी. उनके चूतदों पर भी बॉल उगे थे. लंगोट दोनो चूतदों के बीच मे फँसा हुआ था. गनीमत यह थी की पंडित जे की नज़रें सावित्री के तरफ नहीं थी क्योंकि पेट के बगल लेटे होने के वजह से उनका मुँहे दूसरी तरफ था इसी कारण सावित्री की कुछ हिम्मत बढ़ी और वह पंडित जी के कमर और पीठ पर चढ़ कर अपने पैरों से दबाते हुए पंडित जे के पूरे शरीर को भी देख ले रही थी. उनका गाथा हुआ कसरती पहलवानो वाला शरीर देख कर सावित्री को लगता था कि वह किसी आदमी पर नही बल्कि किसी शैतान के उपर खड़ी हो जो पत्थर के चट्टान का बना हो. सावित्री अपने पूरे वजन से खड़ी थी लेकिन पंडित जी का शरीर टस से मास नही हो रहा था. जैसा की सावित्री उनके शरीर को देखते हुए उनके कमर को दबा ही रही थी की उसे ऐसा लगा मानो पंडित जी के दोनो जाँघो के बीच मे कुछ जगह बनती जा रही हो. पंडित जी पेट के बगल लेटे लेटे अपने दोनो पैरो के बीच मे कुछ जगह बनाते जा रहें थे. सावित्री की नज़रें पंडित जी के इस नये हरकत पर पड़ने लगी. तभी उसने कुछ ऐसा देखा की देखते ही उसे लगा की चक्कर आ जाएगा और पंडित जी के उपर ही गिर पड़ेगी. अट्ठारह साल की सावित्री उस ख़तरनाक चीज़ को देखते ही समझ गयी थी की इसी से पंडित जी उसके चरित्र का नाश कर हमेसा के लिए चरित्रहीं बना देंगे. यह वही चीज़ थी जिससे उसकी मा के सपनो को तार तार कर उसके संघर्ष को पंडित जी ख़त्म कर देंगे. और आगे उसकी मा अपनी इज़्ज़त पर नाज़ नही कर सकेगी. यह पंडित जी के ढीले लंगोट मे से धीरे धीरे बढ़ता हुआ लंड था जो अभी पूरी तरीके से खड़ा नही हुआ था और कुछ फुलाव लेने के वजह से ढीले हुए लंगोट के किनारे से बाहर आ कर चटाई पर साँप की तरह रेंगता हुआ अपनी लम्बाई बढ़ा रहा था. फिर भी हल्के फुलाव मे भी वह लंड ऐसा लग रहा था की कोई मोटा साँप हो. उसका रॅंड एकदम पंडित जी के रंग का यानी गोरा था. पेट के बगल लेटने के वजह से जो चूतड़ उपर था उसकी दरार मे लंगोट फाँसी हुई और ढीली हो गयी थी जिससे आलू के आकर के दोनो अनदुओं मे से एक ही दिखाई पड़ने लगा था. उसके अगाल बगल काफ़ी बॉल उगे थे. तभी सावित्री को याद आया की जब वह लंगोट साफ कर रही थी तभी यही झांट के बॉल लंगोट मे फँसे थे. अनदुओं के पास झांट के बॉल इतने घने और मोटे थे की सावित्री को विश्वास नही होता था की इतने भी घने और मोटे झांट के बाल हो सकते हैं. सावित्री अपने उपर होने वाले हमले मे प्रयोग होने वाले हथियार को देख कर सिहर सी जा रही थी. उसके पैर मे मानो कमज़ोरी होती जा रही थी और उसकी साँसे अब काफ़ी तेज होने लगी थी जिसे पंडित जी भी सुन और समझ रहे थे. कुछ पल बाद ज्योन्हि सावित्री का नज़र उस लंड पर पड़ी तो उसे लगा की मानो उसकी बुर से मूत छलक जाएगी और खड़ी खड़ी पंडित जी के पीठ पर ही मूत देगी, क्योंकि अब पहले से ज़्यादा खड़ा हो कर काफ़ी लंबा हो गया था. पंडित जी वैसे ही लेटे अपना कमर दबावा रहे थे और उनका खड़ा लंड दोनो जाँघो के बीच मे चटाई पर अपनी मोटाई बढ़ा रहा था और सावित्री को मानो देखकर बेहोशी छाने लगी थी. शायद यह सब उस लंड के तरफ देखने से हो रही थी. अब सावित्री की हिम्मत टूट गयी और उसने अपनी नज़र चटाई पर लेटे हुए पंडित जी के लंड से दूसरी ओर करने लगी तभी उसने देखा की पंडित जी लेटे हुए ही गर्दन घुमा कर उसे ही देख रहे थे. ऐसी हालत मे सावित्री की नज़र जैसे ही पंडित जी के नज़र से लड़ी की उसके मुँह से चीख ही निकल पड़ी और " अरी माई" चीखते हुए पंडित जी के कमर पर से चटाई पर लगभग कूद गयी और सामने फर्श पर पड़े दुपट्टे को ले कर अपने समीज़ को पूरी तरह से ढक ली. लाज़ से बहाल होने के कारण अब उसका दिमाग़ काम करना एकदम से बंद ही कर दिया था. नतीजा दो कदम आगे बढ़ी और चटाई से कुछ ही दूरी पर घुटनो को मोदते हुए और अपने शरीर दोनो बाहों से लपेट कर बैठ गई और अपने चेहरे को दोनो घुटनो के बीच ऐसे छुपा ली मानो वह किसी को अपना मुँह नही दिखाना चाहती हो. अब वह लगभग हाँफ रही थी. फर्श पर ऐसे बैठी थी की वह अब वान्हा से हिलना भी नही चाह रही हो. उसकी घुटना के बीच मे चेहरा छुपाते हुए सावित्री ने दोनो आँखे पूरी ताक़त से बंद कर ली थी. सावित्री का पीठ पंडित जी के तरफ था जो कुछ ही फुट की दूरी पर बिछे चटाई पर अब उठ कर बैठ गये थे. लेकिन उनकी लंगोट अब काफ़ी ढीली हो चली थी और लंगोट के बगल से पंडित जी का गोरा और तननाया हुया टमाटर जैसे लाल सूपड़ा चमकाता हुआ लंड लगभग फुंफ़कार रहा था मानो अब उसे अपना शिकार ऐसे दिखाई दे रहा हो जैसे जंगल मे शेर अपने सामने बैठे शिकार को देख रहा हो.
संघर्ष --6
गतांक से आगे..........
|