RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष --4
gtaank se aage.......... ऐसे माहौल में घरवाले चाहे जितनी जल्दी शादी करते पर तब तक उनके लडकियो की बुरो को आवारे चोद चोद कर एक नया आकार के डालते जिसे बुर या चूत नहीं बल्कि भोसड़ा ही कह सकते है. यानि शादी का बाद लड़की की विदाई होती तो अपने ससुराल कुवारी बुर के जगह खूब चुदी पिटी भोसड़ा ही ले जाती और सुहागरात में उसका मर्द अपने दुल्हन के बुर या चुदैल के भोसड़ा में भले ही अंतर समझे या न समझे लड़की या दुल्हन उसके लन्ड की ताकत की तुलना अपने गाँव के आवारो के दमदार लंडों से खूब भली भाती कर लेती. जो लड़की गाँव में घुमघुम कर कई लंडो का स्वाद ले चुकी रहती है उसे अपने ससुराल में एक मर्द से भूख मिटता नज़र नहीं आता. वैसे भी आवारे जितनी जोश और ताकत से चोदते उतनी चुदाई की उमंग शादी के बाद पति में न मिलता. नतीजा अपने गाँव के आवारो के लंडो की याद और प्यास बनी रहती और ससुराल से अपने मायका वापस आने का मन करनेलगता. ऐसे माहौल में सावित्री का बचे रहना केवल उसकी माँ के समझदारी और चौकन्ना रहने के कारण था . सावित्री के बगल में ही एक पुरानी चुड़ैल धन्नो चाची का घर था जिसके यहाँ कुछ चोदु लोग आते जाते रहते , सावित्री की माँ सीता इस बात से सजग रहती और सावित्री को धन्नो चाची के घर न जाने और उससे बात न करने के लिए बहुत पहले ही चेतावनी दे डाली थी. सीता कभी कभी यही सोचती की इस गाँव में इज्जत से रह पाना कितना मुश्किल हो गया है. उसकी चिंता काफी जायज थी. सावित्री के जवान होने से उसकी चिंता का गहराना स्वाभाविक ही था. आमदनी बदने के लिए सावित्री को दुकान पर काम करने के लिए भेजना और गाँव के आवारो से बचाना एक नयी परेशानी थी. वैसे सुरुआत में लक्ष्मी के साथ ही दुकान पर जाना और काम करना था तो कुछ मन को तसल्ली थी कि चलो कोई उतना डर नहीं है कोई ऐसी वैसी बात होने की. भोला पंडित जो ५० साल के करीब थे उनपर सीता को कुछ विश्वास था की वह अधेड़ लड़की सावित्री के साथ कुछ गड़बड़ नहीं करेगे. दुसरे दिन सावित्री लक्ष्मी के साथ दुकान पर चल दी . पहला दिन होने के कारण वह अपनी सबसे अच्छी कपडे पहनी और लक्ष्मी के साथ चल दी , रात में माँ ने खूब समझाया था की बाहर बहुत समझदारी सेरहना चाहिए. दुसरे लोगो और मर्दों से कोई बात बेवजह नहीं करनी चाहिए. दोनों पैदल ही चल पड़ी. रास्ते में लक्ष्मी ने सावित्री से कहा की "तुम्हारी माँ बहुत डरती है कि तुम्हारे साथ कोई गलत बात न हो जाए, खैर डरने कि वजह भी कुछ हद तक सही है पर कोई अपना काम कैसे छोड़ दे." इस पर सावित्री ने सहमती में सिर हिलाया. गाँव से कस्बे का रास्ता कोई दो किलोमीटर का था और ठीक बीच में एक खंडहर पड़ता जो अंग्रेजो के ज़माने का पुरानी हवेली की तरह थी जिसके छत तो कभी के गिर चुके थे पर जर्जर दीवाले सात आठ फुट तक की उचाई तक खड़ी थी. कई बीघे में फैले इस खंडहर आवारो को एक बहुत मजेदार जगह देता जहा वे नशा करते, जुआ खेलते, या लडकियो और औरतो की चुदाई भी करते. क्योंकि इस खंडहर में कोई ही शरीफ लोग नहीं जाते. हाँ ठीक रास्ते में पड़ने के वजह से इसकी दीवाल के आड़ में औरते पेशाब वगैरह कर लेती. फिर भी यह आवारो, नशेडियो, और ऐयाशो का मनपसंद अड्डा था. गाँव की शरीफ औरते इस खंडहर के पास से गुजरना अच्छा नहीं समझती लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था कस्बे में या कही जाने के लिए. दोनों चलते चलते खंडहर के पास पहुँचने वाले थे की लक्ष्मी ने सावित्री को आगाह करने के अंदाज में कहा " देखो आगे जो रास्ते से सटे खंडहर है इसमें कभी भूल कर मत जाना क्योंकि इसमें अक्सर गाँव के आवारे लोफ़र रहते हैं " इस पर सावित्री के मन में जिज्ञासा उठी और पुछ बैठी "वे यहाँ क्या करते?" "अरे नशा और जुआ खेलते और क्या करेंगे ये नालायक , क्या करने लायक भी हैं ये समाज के कीड़े " लक्ष्मी बोली. लक्ष्मी ने सावित्री को सचेत और समझदार बनाने के अंदाज में कहा" देखो ये गुंडे कभी कभी औरतो को अकेले देख कर गन्दी बाते भी बोलते हैं उनपर कभी ध्यान मत देना, और कुछ भी बोले तुम चुप चाप रास्ते पर चलना और उनके तरफ देखना भी मत, इसी में समझदारी है और इन के चक्कर में कैसे भी पड़ने लायक नहीं होते. " कुछ रुक कर लक्ष्मी फिर बोली "बहुत डरने की बात नहीं है ये मर्दों की आदत होती है औरतो लडकियो को बोलना और छेड़ना, " सावित्री इन बातो को सुनकर कुछ सहम सी गयी पर लक्ष्मी के साथ होने के वजह से डरने की कोई जरूरत नहीं समझी..आगे खंडहर आ गया और करीब सौ मीटर तक खंडहर की जर्जर दीवाले रास्ते से सटी थी. ऐसा लगता जैसे कोई जब चाहे रास्ते पर के आदमी को अंदर खंडहर में खींच ले तो बहर किसी को कुछ पता न चले , रास्ते पर से खंडहर के अंदर तक देख पाना मुस्किल था क्योंकि पुराने कमरों की दीवारे जगह जगह पर आड़ कर देती और खंडहर काफी अंदर तक था, दोनों जब खंडहर के पास से गुजर रहे थे तब एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था. खंडहर में कोई दिख नहीं रहा था वैसे सावित्री पहले भी कभी कभार बाज़ार जाती तो इसी रस्ते से लेकिन तब उसके साथ उसकी माँ और गाँव की कई औरते भी साथ होने से दर उतना नहीं लगता. इसबार वह केवल लक्ष्मी के साथ थी और कुछ समय बाद उसे अकेले भी आना जाना पड़ सकता था. जो सबसे अलग बात यह थी की वह अब भरपूर जवान हो चुकी थी और आवारो से उसके जवानी को खतरा भी था जो वह महसूस कर सकती थी. सावित्री अब यह अच्छी तरह जानती थी की यदि आवारे उसे या किसी औरत को इस सुनसान खंडहर में पा जाएँ तो क्या करेंगे. शायद यह बात मन में आते ही उसके बदन में अजीब सी सिहरन उठी जो वह कुछ महसूस तो कर सकती थी लेकिन समझ नहीं पा रही थी. शायद खंडहर की शांत और एकांत का सन्नाटा सावित्री के मन के भीतर कुछ अलग सी गुदगुदी कर रही थी जिसमे एक अजीब सा सनसनाहट और सिहरन थी और यह सब उसके जवान होने के वजह से ही थी. खंडहर के पास से गुजरते इन पलो में उसके मन में एक कल्पना उभरी की यदि कोई आवारा उसे इस खंडहर में अकेला पा जाये तो क्या होगा..इस कल्पना के दुसरे ही पल सावित्री के बदन में कुछ ऐसा झनझनाहट हुआ जो उसे लगा की पुरे बदन से उठ कर सनसनाता हुआ उसकी दोनों झांघो के बीच पहुँचगया हो खंडहर में से कुछ लोगो के बात करने की आवाज आ रही थी. सावित्री का ध्यान उन आवाजो के तरफ ही था. ऐसा लग रहा था कुछ लोग शराब पी रहे थे और बड़ी गन्दी बात कर रहे थे पार कोई कही दिख नहीं रहा था. अचानक उसमे से एक आदमी जो 3२ -3५ साल का था बाहर आया और दोनों को रास्ते पार जाते देखने लगा तभी अन्दर वाले ने उस आदमी से पुछा "कौन है" जबाब में आदमी ने तुरंत तो कुछ नहीं कहा पर कुछ पल बाद में धीरे से बोला " दो मॉल जा रही है कस्बे में चुदने के लिए" उसके बाद सब खंडहर में हसने लगे. सावित्री के कान में तो जाने बम फट गया उस आदमी की बात सुनकर. चलते हुए खंडहर पार हो गया लक्ष्मी भी चुपचाप थी फिर बोली "देखो जब औरत घर से बाहर निकलती हैं तो बहुत कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है. यह मर्दों की दुनिया है वे जो चाहे बोलते हैं और जो चाहे करते हैं. हम औरतो को तो उनसे बहुत परेशानी होती है पर उन्हें किसी से कोई परेशानी नहीं होती." सावित्री कुछ न बोली पर खंडहर के पास उस आदमी की बात बार बार उसके दिमाग में गूंज रही थी "दो मॉल जा रही है कस्बे में चुदने के लिए" . तभी भोला पंडित की दुकान पर दोनों पहुँचीं . भोला पंडित पहली बार सावित्री को देखा तो उसकी चुचिया और चूतडो पर नज़र चिपक सी गई और सावित्री ने भोला पंडित का नमस्कार किया तो उन्होंने कुछ कहा नहीं बल्कि दोनों को दुकान के अंदर आने के लिए कहे. भोला पंडित ४४ साल के सामान्य कद के गोरे और कसरती शरीर के मालिक थे . उनके शरीर पर काफी बाल उगे थे . वे अक्सर धोती कुरता पहनते और अंदर एक निगोट पहनने की आदत थी. क्योंकि जवानी में वे पहलवानी भी करते थे. स्वाभाव से वे कुछ कड़े थे लेकिन औरतो को सामान बेचने के वजह से कुछ ऊपर से मीठापन दिखाते थे. दोनों दुकान में रखी बेंच पर बैठ गयीं. भोला पंडित ने एक सरसरी नजर से सावित्री को सर से पावं तक देखा और पुछा "क्या नाम है तेरा? " सावित्री ने जबाव दिया "जी सावित्री " लक्ष्मी सावित्री का मुह देख रही थी. उसके चेहरे पर मासूमियत और एक दबी हुई घबराहट साफ दिख रही थी. क्योंकि घर के बाहर पहली बार किसी मर्द से बात कर रही थी भोला पंडित ने दूसरा प्रश्न किया "kitne साल की हो गयी है" "जी अट्ठारह " सावित्री ने जबाव में कहा. आगे फिर पुछा "कितने दिनों में दुकान सम्हालना सीख लेगी" "जी " और इसके आगे सावित्री कुछ न बोली बल्कि बगल में बैठी लक्ष्मी का मुंह ताकने लगी तो लक्ष्मी ने सावित्री के घबराहट को समझते तपाक से बोली "पंडित जी अभी तो नयी है मई इसे बहुत जल्दी दुकान और सामानों के बारे में बता और सिखा दूंगी इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिये " "ठीक है पर जल्दी करना , और कब तक तुम मेरे दुकान पर रहोगी " भोला पंडित ने लक्ष्मी से पुछा तो लक्ष्मी ने कुछ सोचने के बाद कहा "ज्यादे दिन तो नहीं पर जैसे ही सावित्री आपके दुकान की जिम्मेदारी सम्हालने लगेगी, क्योंकि मुझे कहीं और जाना है और फुर्सत एक दम नहीं है पंडित जी." आगे बोली "यही कोई दस दिन क्योंकि इससे ज्यादा मैं आपकी दुकान नहीं सम्हाल पाऊँगी , मुझे कुछ अपना भी कम करना है इसलिए" " ठीक है पर इसको दुकान के बारे में ठीक से बता देना" भोला पंडित सावित्री के तरफ देखते कहा.
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