RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष --3
gtaank se aage.......... घर पहुँचने के बाद सीता ने सावित्री को इस बात की जानकारी दी की कल से लक्ष्मी के साथ भोला पंडित के दुकान पर जा कर कम करना है . सावित्री मन ही मन खुस थी , उसे ऐसे लगा की वह अब अपने माँ पर बहुत भर नहीं है उम्र १८ की पूरी हो चुकी थी शरीर से काफी विकसित, मांसल जांघ, गोल और चौड़े चुतड, गोल और अनार की तरह कसी चुचिया काफी आकर्षक लगती थी. सलवार समीज और चुचिया बड़ी आकार के होने के वजह से ब्रा भी पहनती और नीचे सूती की सस्ती वाली चड्डी पहनती जिसकी सीवन अक्सर उभाड जाता. सावित्री के पास कुल दो ब्रा और तीन चड्ढी थी एक लाल एक बैगनी और एक काली रंग की, सावित्री ने इन सबको एक मेले में से जा कर खरीदी धी. सावित्री के पास कपड़ो की संख्या कोई ज्यादा नहीं थी कारण गरीबी. जांघों काफी सुडौल और मोती होने के वजह से चड्डी , जो की एक ही साइज़ की थी, काफी कसी होती थी. रानो की मोटाई चड्ढी में कस उठती मानो थोडा और जोर लगे तो फट जाये. रानो का रंग कुछ गेहुआं था और जन्घो की पट्टी कुछ काले रंग लिए था लेकिन झांट के बाल काफी काले और मोटे थे. बुर की उभार एकदम गोल पावरोटी के तरह थी. कद भले ही कुछ छोटा था लेकिन शरीर काफी कसी होने के कारण दोनों रानो के बीच बुर एकदम खरबूज के फांक की तरह थी. कभी न चुदी होने के नाते बुर की दोनों फलके एकदम सटी थी रंग तो एकदम काला था . झांटो की सफाई न होने और काफी घने होने के कारण बुर के ऊपर किसी जंगल की तरह फ़ैल कर ढक रखे थे. जब भी पेशाब करने बैठती तो पेशाब की धार झांटो को चीरता हुआ आता इस वजह से जब भी पेशाब कर के उठती झांटो में मूत के कुछ बूंद तो जरूर लग जाते जो चड्डी पहने पर चड्डी में लगजाते. गोल गोल चूतडों पर चड्ढी एकदम चिपक ही जाती और जब सावित्री को पेशाब करने के लिए सलवार के बाद चड्ढी सरकाना होता तो कमर के पास से उंगलिओं को चड्ढी के किनारे में फंसा कर चड्ढी को जब सरकाती तो लगता की कोई पतली परत चुतद पर से निकल रही है. चड्ढी सरकते ही चुतड को एक अजीब सी ठंढी हवा की अनुभूति होती. चड्ढी सरकने के बाद गोल गोल कसे हुए जांघो में जा कर लगभग फंस ही जाती, पेशाब करने के लिए सावधानी से बैठती जिससे चड्ढी पर ज्यादे खिंचाव न हो और जन्घो के बीच कुछ इतना जगह बन जाय की पेशाब की धार बुर से सीधे जमीन पर गिरे . कभी कभी थोडा भी बैठने में गड़बड़ी होती तो पेशाब की गर्म धार सीधे जमीन के बजाय नीचे पैर में फंसे सलवार पर गिरने लगती लिहाज़ा सावित्री को पेशाब तुरंत रोक कर चौड़े चुतड को हवा में उठा कर फिर से चड्ढी सलवार और जांघो को कुछ इतना फैलाना पड़ता की पेशाब पैर या सलवार पर न पडके सीधे जमीन पर गिरे. फिर भी सावित्री को मूतते समय मूत की धार को भी देखना पड़ता की दोनों पंजों के बीच खाली जगह पर गिरे. इसके साथ साथ सिर घुमा कर इर्द गिर्द भी नज़र रखनी पड़ती कि कहीं कोई देख न ले. खुले में पेशाब करने में गाँव कि औरतों को इस समस्या से जूझनापड़ता. सावित्री जब भी पेशाब करती तो अपने घर के दीवाल के पीछे एक खाली पतली गली जो कुछ आड़ कर देती और उधर किसी के आने जाने का भी डर न होता . माँ सीता के भी मुतने का वही स्थान था. और मूतने के वजह से वहां मूत का गंध हमेशा रहता. मूतने के बाद सावित्री सीधा कड़ी होती और पहले दोनों जांघों कि गोल मोटे रानो में फंसे चड्ढी को उंगलिओं के सहारे ऊपरचढ़ाती चड्ढी के पहले अगले भाग को ऊपर चड़ा कर झांटों के जंगल से ढके बुर को ढक लेती फिर एक एक करके दोनों मांसल गोल चूतडो पर चड्ढी को चढ़ाती. फिर भी सावित्री को यह महसूस होता की चड्ढी या तो छोटी है या उसका शरीर कुछ ज्यादा गदरा गया है. पहनने के बाद बड़ी मुश्किल से चुतड और झांटों से ढकी बुर चड्ढी में किसी तरीके से आ पाती , फिर भी ऐसा लगता की कभी भी चड्ढी फट जाएगी. बुर के ऊपर घनी और मोटे बालो वाली झांटे देखने से मालूम देती जैसे किसी साधू की घनी दाढ़ी है और चड्डी के अगले भाग जो झांटों के साथ साथ बुर की सटी फांको को , जो झांटो के नीचे भले ही छुपी थी पर फांको का बनावट और उभार इतना सुडौल और कसा था की झांटों के नीचे एक ढंग का उभार तैयार करती और कसी हुई सस्ती चड्डी को बड़ी मुस्किल से छुपाना पड़ता फिर भी दोनों फांको पर पूरी तरह चड्डी का फैलाव कम पड़ जाता , लिहाज़ा फांके तो किसी तरह ढँक जाती पर बुर के फांको पर उगे काले मोटे घने झांट के बाल चड्डी के अगल बगल से काफी बाहर निकल आते और उनके ढकने के जिम्मेदारी सलवार की हो जाती. इसका दूसरा कारण यह भी था की सावित्री एक गाँव की काफी सीधी साधी लड़की थी जो झांट के रख रखाव पर कोई ध्यान नहीं देती और शारीरिक रूप से गदराई और कसी होने के साथ साथ झांट के बाल कुछ ज्यादा ही लम्बे और घना होना भी था. सावित्री की दोनों चुचिया अपना पूरा आकार ले चुकी थी और ब्रेसरी में उनका रहना लगभग मुस्किल ही था, फिर भी दो ब्रेस्रियो में किसी तरह उन्हें सम्हाल कर रख लेती. जब भी ब्रेसरी को बंद करना पड़ता तो सावित्री को काफी दिक्कत होती. सावित्री ब्रा या ब्रेसरी को देहाती भाषा में "चुचिकस" कहती क्योंकि गाँव की कुछ औरते उसे इसी नाम से पुकारती वैसे इसका काम तो चुचिओ को कस के रखना ही था. बाह के कांख में बाल काफी उग आये थे झांट की तरह उनका भी ख्याल सावित्री नहीं रखती नतीजा यह की वे भी काफी संख्या में जमने से कांख में कुछ कुछ भरा भरा सा लगता. सावित्री जब भी चलती तो आगे चुचिया और पीछे चौड़ा चुतड खूब हिलोर मारते. सावित्री के गाँव में आवारों और उचक्कों की बाढ़ सी आई थी. सावित्री के उम्र की लगभग सारी लडकिया किसी ना किसी से चुदती थी कोई साकपाक नहीं थी जिसे कुवारी कहा जा सके . ऐसा होगा भी क्यों नहीं क्योंकि गाँव में जैसे लगता को शरीफ कम और ऐयास, गुंडे, आवारे, लोफर, शराबी, नशेडी ज्यादे रहते तो लड़किओं का इनसे कहाँ तक बचाया जा सकता था. लड़किओं के घर वाले भी पूरी कोसिस करते की इन गंदे लोगो से उनकी लडकिया बची रहे पर चौबीसों घंटे उनपर पहरा देना भी तो संभव नहीं था, और जवानी चढ़ने की देरी भर थी कि आवारे उसके पीछे हाथ धो कर पद जाते. क्योंकि उनके पास कोई और काम तो था नहीं. इसके लिए लड़ाई झगडा गाली गलौज चाहे जो भी हो सब के लिए तैयार होते . नतीजा यही होते कि शरीफ से शरीफ लड़की भी गाँव में भागते बचते ज्यादा दिन तक नहीं रह पाती और किसी दिन किसी गली, खंडहर या बगीचे में, अँधेरे, दोपहर में किसी आवारे के नीचे दबी हुई स्थिति में आ ही जातीं बस क्या था बुर की सील टूटने कि देर भर रहती और एक दबी चीख में टूट भी जाती. और आवारे अपने लन्ड को खून से नहाई बुर में ऐसे दबाते जैसे कोई चाकू मांस में घुस रहा हो. लड़की पहले भले ही ना नुकुर करे पर इन चोदुओं की रगड़दार गहरी चोदाई के बाद ढेर सारा वीर्यपात जो लन्ड को जड़ तक चांप कर बुर की तह उड़ेल कर अपने को अनुभवी आवारा और चोदु साबित कर देते और लड़की भी आवारे लन्ड के स्वाद की शौक़ीन हो जातीं. फिर उन्हें भी ये गंदे लोगो के पास असीम मज़ा होने काअनुभव हो जाता . फिर ऐसी लड़की जयादा दिन तक शरीफ नहीं रह पाती और कुतिया की तरह घूम घूम कर चुदती रहती . घर वाले भी किसी हद तक डरा धमका कर सुधारने की कोशिस करते लेकिन जब लड़की को एक बार लन्ड का पानी चढ़ जाता तो उसका वापस सुधारना बहुत मुश्किल होता. और इन आवारों गुंडों से लड़ाई लेना घर वालों को मुनासिब नहीं था क्योंकि वे खतरनाक भी होते. लिहाज़ा लड़की की जल्दी से शादी कर ससुराल भेजना ही एक मात्र रास्ता दीखता और इस जल्दबाजी में लग भी जाते . शादी जल्दी से तय करना इतना आसान भी ना होता और तब तक लडकिया अपनी इच्छा से इन आवारो से चुदती पिटती रहती. आवारो के संपर्क में आने के वजह से इनका मनोबल काफी ऊँचा हो जाता और वे अपने शादी करने या ना करने और किससे करने के बारे में खुद सोचने और बात करने लगती. और घरवालो के लिए मुश्किल बढ़ जाती . एक बार लड़की आवारो के संपर्क में आई कि उनका हिम्मत यहाँ तक हो जाता कि माँ बाप और घरवालो से खुलकर झगडा करने में भी न हिचकिचाती. यदि मारपीट करने कि कोसिस कोई करे तो लड़की से भागजाने कि धमकी मिलती और चोदु आवारो द्वारा बदले का भी डर रहता. और कई मामलो में घरवाले यदि ज्यादे हिम्मत दिखाए तो घरवालो को ये गुंडे पीट भी देते क्योंकि वे लड़की के तरफ से रहते और कभी कभी लड़की को भगा ले जाते. सबकुछ देखते हुए घरवाले लडकियो और आवारो से ज्यादे पंगा ना लेना ही सही समझते और जल्द से जल्द शादी करके ससुराल भेजने के फिराक में रहते. ऐसे माहौल में घरवाले यह देखते कि लड़की समय बे समय किसी ना किसी बहाने घुमने निकल पड़ती जैसे दोपहर में शौच के लिए तो शाम को बाज़ार और अँधेरा होने के बाद करीब नौ दस बजे तक वापस आना और यही नहीं बल्कि अधि रात को भी उठकर कभी गली या किसी नजदीक बगीचे में जा कर चुद लेना. इनकी भनक घरवालो को खूब रहती पर शोरशराबा और इज्जत के डर से चुप रहते कि ज्याने दो हंगामा ना हो बस . यही कारन था कि लडकिया जो एक बार भी चुद जाती फिर सुधरने का नाम नहीं लेती. आवारो से चुदी पिटी लडकियो में निडरता और आत्मविश्वास ज्यादा ही रहता और इस स्वभाव कि लडकियो कि आपस में दोस्ती भी खूब होती और चुदाई में एक दुसरे कि मदद भी करती. गाँव में जो लडकिया ज्यादे दिनों से चुद रही है या जो छिनार स्वभाव कि औरते नयी चुदैल लडकियो के लिए प्रेरणा और मुसीबत में मार्गदर्शक के साथ साथ मुसीबत से उबरने का भी काम करती थी. जैसे कभी कभी कोई नई छोकरी चुद तो जाती किसी लेकिन गर्भनिरोधक का उपाय किये बगैर नतीजा गर्भ ठहर जाता. इस हालत में लड़की के घर वालो से पहले यही इन चुदैलो को पता चल जाता तो वे बगल के कसबे में चोरी से गर्भ गिरवा भी देती.
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