RE: XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है…
मैंने एक जोर की सांस ली और अपने होंठ उसके होठों से छुड़ा कर उसकी तरफ देखा, वंदना की आँखों में वासना के लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे…
एक दो सेकंड तक हम एक दूसरे को यूँ ही देखते रहे… इस दौरान उसका हाथ स्थिर होकर मेरे लंड पे ही था और मेरा लंड उसके हाथों के नीचे दबा हुआ ठुनक रहा था।
मैं जानता था कि अब रुकना मुश्किल है… लेकिन मैंने फिर भी एक अंतिम प्रयास किया और उठ कर बैठ गया।
मेरे उठने से वंदना को अपनी हरकत का एहसास हुआ और वो झट से उठ कर बाहर की तरफ भाग गई।
मेरा गला सूख गया और मुझे पसीने आ गए, कुछ देर मैं उसी हालत में बैठा रहा और सोचने लगा कि आखिर करूँ तो क्या करूँ… लंड था जो कि अब वंदना के हाथों का स्पर्श पाकर अकड़ गया था और बस उसे चोदना चाहता था लेकिन मुझे रेणुका से बेवफाई का एहसास ऐसा करने से मना कर रहा था।
इस असमंजस की स्थिति ने मुझे पूरी तरह से उलझन में डाल दिया था।
इससे पहले भी मेरे ऐसे एक दो सम्बन्ध रहे थे जिसमे मैं एक ही घर की माँ और बेटी दोनों को बड़े चाव से चोदा था और उनके साथ चुदाई का भरपूर मज़ा लिया था… लेकिन इस बार पता नहीं क्यूँ मैं रेणुका की तरफ कुछ इस तरह से खिंचा चला गया था कि मुझे अब ऐसा लगने लगा था कि अगर मैंने वंदना को चोदा तो यह रेणुका के साथ दगेबाज़ी होगी… लेकिन जो आग आज वंदना लगा गई थी वो शांत भी हो तो कैसे…
इधर मेरा लंड अब भी ठुनक ठुनक कर मुझे यह एहसास दिला रहा था कि चूत मिल रही है तो बस चोद दो… मैंने मोमबत्ती बुझा दी और वहीँ बिस्तर पर लेट कर अपने लंड को बाहर निकल कर मसलने लगा और मुठ मारने लगा…
मुझे पता था कि इस तरह अकड़े हुए लंड को लेकर मैं बाहर नहीं जा सकता था।
मैंने लंड को रगड़ना शुरू किया और रेणुका की हसीं चूचियों और मखमली चूत को याद करने लगा… लेकिन कमबख्त मेरे दिमाग में अब वंदना के हाथों का दबाव याद आने लगा और मुझे इस बात पर बहुत हैरानी हुई कि जब मैंने वंदना की अनदेखी गोल मटोल चूचियों और सुनहरे बालों से भरी प्यारी सी रसदार चूत का ख्याल अपने दिमाग में लाया तो बरबस ही मेरे लंड ने एक ज़ोरदार पिचकारी के साथ ढेर सारा लावा उगल दिया और मैं लम्बी लम्बी साँसे लेता हुआ वहीं बिस्तर पर ढेर हो गया।
करीब दस मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद मैं उठा और जल्दी से कपड़े बदलने लगा… लेकिन अब भी मैं यही सोच रहा था कि इतना सब होने के बाद मैं अब वंदना के साथ सहज रह पाऊँगा या नहीं.. और अभी तुरंत उसके साथ उसके दोस्त के घर पर जाना था… उसके साथ कैसे पेश आऊँगा या वो कैसे पेश आएगी.. कैसी बातें होंगी अब हमारे बीच?!
इसी तरह के ख्यालों में डूबा मैं तैयार हो रहा था कि तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी और मैंने बाहर झाँका। मैंने देखा कि रेणुका मेरे कमरे की तरफ चली आ रही थी… उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी और वो बहुत खुश लग रही थी.. तब तक बिजली आ चुकी थी और मैं उसके चेहरे के हर भाव को अच्छी तरह से देख पा रहा था।
उसने आते ही मुझे पीछे से जकड़ लिया और मुझसे लिपट गई- क्या बात है समीर बाबू… बड़े हैंड्सम लग रहे हो?’ उसने बड़े ही प्यार से कहा।
उसकी इन्ही अदाओं पे तो मर मिटा था मैं… मैंने उसे पकड़ कर अपने सामने किया और उसे जोर से अपने गले से लगा लिया- आज बड़ा चहक रही हैं आप… क्या बात है… यूँ इतना खुश और इतनी सजी संवरी तो कभी नहीं देखा… कोई ख़ास बात है क्या?उसे अपने सीने में और भी भींचते हुए पूछने लगा।
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