RE: XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
‘अब क्यूँ छिपा रही हैं आप… अब तो ये मेरे हो चुके हैं… ‘ ऐसा कह कर मैंने उनकी दोनों चूचियों को झुक कर चूम लिया और थोड़ा और झुक कर उनकी चूत जो मेरे लंड और उनके खुद के रस से सराबोर हो चुकी थी उसे चूम लिया और अपनी नज़रें उठा कर उनकी आँखों में देखते हुए अपनी एक आँख मार दी।
‘धत… बदमाश कहीं के !’ रेणुका जी ने ऐसे अंदाज़ में कहा कि मैं घायल ही हो गया।
मैंने उन्हें फिर से गले से लगा लिया।
थोड़ी देर वैसे रहने के बाद हम अलग हुए और मैं उसी हालत में उन्हें लेकर बाथरूम में घुस पड़ा।
हम दोनों के चेहरे पर असीम तृप्ति झलक रही थी।
तो इस तरह मेरा तीन महीनों का उपवास टूटा और एक शुद्ध देसी औरत का स्वाद चखने का मज़ा मिला।
पिछले बीस दिनों में हम दोनों ने मौका निकल कर अब तक सात बार चुदाई का खेल खेला है। जिसमें से पांच बार मेरे घर में और दो बार उनके खुद के घर में उनकी रसोई और उनके स्टोर रूम में।
कुल मिलकर हम बड़े ही मज़े से अपनी अपनी प्यास मिटा रहे हैं और आशा करते हैं कि जब तक यहाँ रहूँगा तब तक ये सब ऐसे ही चलता रहेगा…
रेणुका जी… हम्म्म्म… क्या कहूँ उनके बारे में… थोड़े ही दिनों में उनकी कंचन काया और उनकी कातिल अदाओं ने मुझे उनका दीवाना बना दिया था।
यूँ तो मैं एक खेला खाया मर्द हूँ और कई चूतों का रस पिया है मैंने लेकिन पता नहीं क्यूँ उनकी बात ही कुछ और थी, उनके साथ मस्ती करने करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था मैं… जब भी उनके घर जाता तो सबकी नज़रें बचा कर उनकी चूचियों को मसल देता या उनकी चूत को साड़ी के ऊपर से सहला देता और कभी कभी उनकी साड़ी धीरे से उठा कर उनकी मखमली चूत की एक प्यारी सी पप्पी ले लेता!
घर में अरविन्द जी और वंदना के होते हुए भी छुप छुप कर इन हरकतों में हम दोनों को इतना मज़ा आता कि बस पूछो मत… पकड़े जाने का डर हमारी उत्तेजना को और भी बढ़ा देता और हम इस उत्तेजना का पूरा पूरा मज़ा लेते थे।
ऐसे ही बड़े मज़े से हमारी रासलीला चल रही थी और हम दो प्रेमी प्रेम की अविरल धारा में बहते चले जा रहे थे।
एक शाम मैं अपने ऑफिस से लौटा और हमेशा की तरह अपने कपड़े बदल कर कॉफी का मग हाथ में लिए अपने कमरे में बैठा टी.वी। पर कुछ देख रहा था., तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी।
इससे पहले कि मैं उठ कर देखता, आने वाले के क़दमों की आहट और भी साफ़ सुनाई देने लगी और एक साया मेरे बेडरूम के दरवाज़े पर आकर रुक गया, एक भीनी सी खुशबू ने मेरा ध्यान उसकी तरफ खींचा और मैंने नज़रें उठाई तो बस देखता ही रह गया…
सामने वंदना बहुत ही खूबसूरत से लिबास में बिल्कुल सजी संवरी सी मुस्कुराती हुई खड़ी थी। शायद उसने कोई बहुत ही बढ़िया सा परफ्यूम इस्तेमाल किया था जिसकी भीनी भीनी सी खुशबू मेरे पूरे कमरे में फ़ैल गई थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी पार्टी में जाने के लिए तैयार हुई हो…
मैं एकटक उसे देखता ही रहा, मेरी नज़रें उसे ऊपर से नीचे तक निहारने लगीं, यूँ तो मैंने उसे कई बार देखा था लेकिन आज कुछ और बात थी… उसके गोर गोरे गाल और सुर्ख गुलाबी होठों को देखकर मेरे होंठ सूखने लगे… ज़रा सा नज़रें नीचे हुई तो सहसा ही मेरा मुँह खुला का खुला रह गया…
उफ्फ्फ्फ़… आज तो उसके सीने के उभार यूँ लग रहे थे मानो हिमालय और कंचनजंगा दोनों पर्वत एक साथ मुझे अपनी ओर खींच रहे हों… उसकी मस्त चूचियों को कभी छुआ तो नहीं था लेकिन इतना अनुभव हो चुका है कि किसी की चूचियाँ देखकर उनका सही आकार और सही नाप बता सकूँ… वंदना की चूचियाँ 32 की थीं न एक इंच ज्यादा न एक इंच कम, लेकिन 32 की होकर भी उन चूचियों में आज इतना उभार था मानो अपनी माँ की चूचियों से मुकाबला कर रही हों!
मेरी नज़रें उसकी चूचियों पे यूँ टिक गई थीं जैसे किसी ने फेविकोल लगा दिया हो।
‘क्यूँ जनाब, क्या हो रहा है?’ वन्दना की प्रश्नवाचक आवाज़ ने मुझे डरा दिया।
‘क… क.। कुछ भी तो नहीं !’ मानो मेरी चोरी पकड़ी गई हो और उसने सीधे सीधे मुझसे उसकी चूचियों को घूरने के बारे में पूछ लिया हो।
नज़रें ऊपर उठाईं तो देखा कि वो शरारत भरे अंदाज़ में मुस्कुरा रही थी।
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