RE: XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
योजना के मुताबिक सुबह मैं उठ कर भी बिस्तर पर लेटा रहा और घड़ी की तरफ देखता रहा।
लगभग साढ़े नौ से पौने दस के बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई।
मैंने भगवन से प्रार्थना करनी शुरू कर दी कि रेणुका ही हो…
दरवाज़ा खोला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा… सामने रेणुका जी खड़ी थीं और उनके हाथों में दूध का पतीला था… बाल खुले हुए जैसे कि मैंने उन्हें हमेशा देखा था… होठों पर एक शर्माती हुई मुस्कान… सुबह की ताजगी उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी।
मैं बिना पलकें झपकाए उन्हें देखता ही रहा।
‘अब यहीं खड़े रहेंगे या यह दूध भी लेंगे… लगता है आपने फिर से रात को भूतनी देख ली थी और सो नहीं आप, तभी तो अब तक सो रहे हैं…’ रेणुका जी ने शर्म और शरारत भरे लहजे में कहा।
मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने झेंप कर मुस्कुराते हुए दरवाज़ा पूरी तरह खोल दिया और सामने से हट कर उन्हें अन्दर आने का इशारा किया।
वो बिना कुछ कहे मुझसे सट कर अन्दर आ गईं और सीधे रसोई की तरफ जाने लगीं।
मैंने अब गौर से उन्हें जाते हुए देख कर महसूस किया की आज भी उन्होंने उस दिन की तरह ही एक गाउन पहन रखा था लेकिन आज वो सिल्क या नायलॉन की तरह रेशमी लग रहा था जो उनके पूरे बदन से चिपका हुआ था।
गौर से देख कर यह पता लगाना मुश्किल नहीं हुआ कि उस गाउन के नीचे कुछ भी नहीं है क्योंकि जब वो चल रही थीं तो उनके विशाल नितम्ब सिल्क के उस गाउन से चिपक कर अपनी दरार की झलक दिखला रहे थे।
मेरे कान गर्म होने लगे और लंड तो वैसे भी अभी अभी नींद से उठने की वजह से पूरी तरह से खड़ा था जैसे हमेशा सुबह उठने के बाद होता है।
मैं भी रसोई की तरफ लपका और जानबूझ कर उनसे टकरा गया। पीछे से टकराने की वजह से मेरे लंड ने उनकी गाण्ड को सलामी दे दी थी।
रेणुका जी एक पल को ठहरी और पीछे मुड़कर मेरी तरफ शर्माते हुए देखने लगीं… फिर वापस मुड़कर कल के अपने पतीले को देखने लगीं जिसमें कल का दूध अब भी पड़ा था।
‘यह क्या… कल का दूध अब भी पड़ा है..आपने तो पिया ही नहीं…?!’ भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए सवालिया चेहरा बनाया।
‘दरअसल मैं कल रात को भूल गया और पेट भर गया था सो खाने की इच्छा ही नहीं हुई।’ मैंने एक सीधे साधे बच्चे की तरह उन्हें सफाई दी।
‘हम्म्म… अब इतने सारे दूध का क्या करेंगे… बेकार ही होगा न !!’ भाभी ने चिंता भरे शब्दों में कहा।
‘नहीं भाभी आप चिंता मत कीजिये, मैं दूध का दीवाना हूँ… चाहे जितना भी दूध हो मैं बर्बाद नहीं होने देता। फिर यहाँ के दूध की तो क्या कहने… जी करता है बस सारा ही पी जाऊँ…!!’ मैंने गर्म होकर फिर से उन पर चांस मारते हुए उनकी चूचियों की तरफ देखा और बोलता चला गया।
रेणुका जी ने मेरी नज़रें भांप लीं और कमाल ही कर दिया… आज उन्होंने जो गाउन पहना था उसका गला पहले वाले गाउन से कुछ ज्यादा बड़ा था और उन्होंने अपनी दोनों बाहों को इस तरह कसा कि उनकी चूचियों की आधी गोरी चमड़ी मेरी आँखों के सामने थीं।
मेरे होंठ सूख गए और मैंने एक बार उनकी तरफ देखा।
आज उनके चेहरे पर शर्म तो थी लेकिन आँखों में चमक थी जो मैंने उनकी बेटी वन्दना की आँखों में देखा था… यानि वासना भरी चमक…
‘फिर तो यह जगह आपके लिए ज़न्नत है समीर बाबू… यहाँ तो दूध की नदियाँ बहती हैं… और दूध भी इतना स्वादिष्ट कि सब कुछ भुला देता है।’ इस बार भाभी ने अपनी आवाज़ में थोड़ी सी मादकता भरते हुए कहा और एक गहरी सांस ली।
‘अब यह तो तभी पता चलेगा न भाभी जब कोई असली दूध का स्वाद चखाए… आजकल तो दूध के नाम पर बस पानी ही मिलता है।’ मैंने भी चालाकी से बातें बढ़ाते हुए कहा और दो अर्थी बातों में उन्हें यह इशारा किया कि जरा अपनी चूचियों से असली दूध पिला दें।
वो बड़े ही कातिल अदा के साथ मुस्कुराईं और इपनी आँखों को नीचे की तरफ ले गईं जहाँ हमेशा की तरह मेरा एक हाथ अपने लंड को सहला रहा था।
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