RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
ऐसा लगता था जैसे जान निकल गयी हो. थककर तृप्त होकर मैं निढाल हो
गया और रघु से चिपट कर सुसताने लगा.
रघु ने घोड़े की रफ़्तार कम की. "रघु मैं झाड़ गया, अब मा और
मन्जुबाई के यहाँ जाकर क्या करूँगा." मैं भूनभुनाया. मुझे
मज़ा आया था पर बुरा भी लग रहा था कि क्यों झाड़ गया. मस्ती मे
रहता तो कुत्तों के साथ की रासलीला देखने मे और मज़ा आता, ऐसा मैं
सोच रहा था.
"फिकर मत कर मुन्ना, वहाँ का जन्नत का नज़ारा देखकर तेरा ऐसा
खड़ा हो जाएगा जैसे झाड़ा ही ना हो." रघु ने समझाया.
"
रघु दादा, ऐसी घोड़े पर बिठा कर गान्ड मेरी भी मारो ना.
तुम्हारा मस्त मूसल मेरी गान्ड मे अंदर बाहर होगा जब मोती
भागेगा." मैने रघु से मचल कर कहा.
"ज़रूर मुन्ना, कल ही तुझे मोती पर बिठाकर जंगल मे घुमाने ले
चलूँगा गोद मे लेकर." रघु के आश्वासन से मुझे कुछ तसल्ली हुई.
दस मिनिट बाद हम रघु के घर मे पहुँचे. उसका घर खेतों के बीच
था. आस पास दूर दूर तक कोई और घर नही था. घर अच्छा छोटा सा बंगला
था और चारों ओर उँची चार दीवारी थी. घर के पहले ही रघु के कहने
पर हम नीचे उतर गये. "चुप चाप चलते हैं और देखते हैं कि दोनों
रंडिया क्या कर रही हैं?" रघु ने चुप रहने का इशारा करते हुए
मुस्कराकर कहा.
अंदर जाकर आँगन मे एक नये बने कमरे मे मोती को रघु ने बाँध दिया
और उसे पानी और दाना दे दिया. कमरा एकदम सॉफ सुथरा था जैसे
आदमियों के रहने के लिए बनाया गया हो. पास मे एक नीचा लंबा मुढा
था. चारे के बजाय रघु ने मोती को दाने मे, बादाम, अंगूर इत्यादि ऐसा
बढ़िया खाना दिया था. मैने रघु की ओर देखा तो मेरे कान मे वह फूस
फूसा कर बोला."अरे इसका वीर्य बढ़िया स्वादिष्ट बनाना है तो मस्त खाना
भी चाहिए ना?"
हम दबे पाँव मोती के कमरे से बाहर आए और बरामदे मे गये.
दरवाजा बंद था. रघु ने खिड़की थोड़ी खोल कर झाँका और फिर मुझे
चुप रहने का इशारा करते हुए बुलाया. मैं भी उसके पास खड़ा होकर
झाँकने लगा. अंदर का सीन देखा तो मज़ा आ गया. मेरी साँस चलने लगी
और चेहरा लाल हो गया.
मंजू बाई हाथों और घुटनों के बाल फर्श पर कुतिया जैसी झुक कर जमी हुई
थी. शेरू उसके पीछे से उसपर चढ़ा था. उसके आगे के पंजे मंजू की
कमर के इर्द गिर्द कसे हुए थे और पिछले दो पंजों पर खड़ा होकर वह
मंजू को कुतिया जैसा चोद रहा था. उसका लाल लाल लंड फ़चा फॅक मंजू की
गीली टपकती बुर मे अंदर बाहर हो रहा था.
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