RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
गाओं मे मस्ती – भाग 11
रघु का घोड़ा मोती
"माँ और मंजू किधर हैं रघु दादा?" मैने कपड़े पहनते हुए पूछा. मैं मज़े मे था. अभी अभी रघु ने घंटे भर मेरी गान्ड
मारी थी और फिर मेरा लंड चूसकर मुझे झाड़ा दिया था. हमारी चुदाई शुरू होकर साल भर हो गया था. हम चारों स्वर्ग मे थे. हाँ, और किसी को हमारी चुदाई मे अब तक शामिल नहीं किया था. किसी की इच्छा नहीं थी. दो नर और दो नारियाँ होने के कारण हर एक को हरा तरह का आनंद मिल रहा था.
"चोद रही होंगी कहीं एक दूसरे को. तू मत चिंता कर, जा अब खेल. मैं मोती को जंगल मे घुमा लाता हूँ" रघु ने कपड़े पहनते हुए प्यार से मेरे बाल बिखरा कर कहा.
"मैं भी आऊँ तुम्हारे साथ?" मैने मचल कर पूछा.
रघु ने मना कर दिया. बोला कि मैं घर मे ही रहूं क्योंकि माँ वापस आकर अपनी बुर चुसवाने को और दूध पिलाने को मुझे ढूँढेगी और अगर नहीं मिला तो बहुत नाराज़ होगी.
रघु के जाते ही मैं चुपचाप छुपाता हुआ रघु के पीछे हो लिया. मोती पर सवार होकर वह बड़े आरामा से उसे जंगल मे ले जा रहा था. झाड़ियों के पीछे छुपकर उसका पीछा करते हुए मैं सोच रहा था कि आख़िर रघु क्या करने जा रहा है जो मुझे आज साथ मे आने से मना कर दिया. कल ही तो उसने मोती की सवारी मुझे कराई थी और फिर जंगल मे ले जाकर मुझसे अपना लंड चुसवाया था. मोती की सवारी करने मे तो मुझे बहुत मज़ा आता था.
मोती था भी बड़ा शानदार. एकदमा ऊँचा पूरा सफेद रंग का और बड़े शांत स्वाभाव का खूबसूरत जवान अरबी घोड़ा था. रघु उसे रोज मल मल कर नहलाता था और मोती उससे एकदम सॉफ सुथरा रहता था. अभी अभी महीने भर पहले ही रघु माँ से पैसे लेकर उसे खरीद कर लाया था. साथ मे रघु ने दो कुत्ते और एक कुतिया भी खरीदे थे.
कुत्ते शेरू और टॉमी अल्सेशियन नसल के हल्के भूरे रंग के खूबसूरत बड़े बड़े कुत्ते थे. एकदम सॉफ सुथरे और बहुत घरेलू स्वाभाव के. आते ही ऐसे मिला जुल गये थे जैसे हमेशा हमारे यहाँ रहे हों. कुतिया ज़िनी सफेद रंग की लबरेदार जाती की थी. बड़ी प्यारी थी. वह भी दुम हिलाती हुई सारे समय हम लोगों के आस पास रहती थी और बार बार हमसे चिपटने की कोशिश करती थी. मंजू और माँ तो उनसे बड़ा प्यार करते थे. रघु भी उनपर जान छिडकता था. कारण मुझे बाद मे पता चला. सब जानवरों को रघु ने अपने यहाँ खेत वाले घर पर रखा था. मैने अपने यहाँ घर मे रखने की ज़िद की पर माँ
बोली कि यहाँ वे परेशान करेंगे, इसलिए वे वहीं मंजू के खेत वाले घर मे रहें तो अच्छा है.
माँ और मंजू उनसे बड़ा प्यार करते थे. माँ उनसे खेलने अक्सर मंजू के यहाँ चली जाती थी. कहती थी कि उन्हें नहलाने मे मंजू की मदद करेगी. मंजू और माँ ऐसा कहकर अक्सर बड़ी शैतानी से एक दूसरे को आँख मांर कर खिलखिलाने लगती थीं. मुझे कुछ समझ मे नहीं आता था. वैसे यहा सच था कि उन कुत्तों को रोज नहलाया जाता था क्योंकि वे बड़े चिकने और सॉफ लगते थे.
मैं बहुत ज़िद करता तो माँ मुझे साथ ले जाती और एक घंटे मे वापस ले आती. तीनों कुत्ते हमें देखकर ऐसे प्यार से हमपर झपटते कि सम्हालना मुश्किल हो जाता. माँ और मंजू पर तो उनकी ख़ास मेहेरबानी थी. वे बार बार उछल कर उन दोनों के मुन्ह चाटते और उछल उछल कर उनपर चढ़ने की कोशिश करते. आख़िर मंजू उन्हें डाँटती तब वे शांत होते. कुत्ते तो माँ ने शायद शौक के लिए खरीदने को कहा था रघु से पर घोड़े की हमारे यहाँ कोई ज़रूरत नहीं थी. घोड़ागाड़ी हम कब
से इस्तेमांल नहीं करते थे. अब भी मोती आने के बाद भी नई घोड़ा गाड़ी अब तक नहीं खरीदी गयी थी. मैने माँ से पूछा तो बोली कि वह जल्द ही एक बघ्घी खरीद लेगी, तब मोती की ज़रूरत पड़ेगी.
आज सुबह से माँ गायब थी. शायद मंजू के यहाँ ही गयी थी. इसलिए मेरा ख़याल रखने को उसने रघु को भेज दिया था. रघु आते ही मुझे बेडरूम मे ले गया था और तरह तरह से मुझे प्यार करके मेरा मन बहलाता रहा था. आख़िर जब मैने उसके हलब्बी लंड से गान्ड मराई तब मुझे कुछ शांति मिली थी.
अब रघु का पीछा करते करते मेरा फिर खड़ा होने लगा था क्योंकि रघु भी अजीब हरकत कर रहा था. अब वह मोती पर से उतरकर उसकी लगाम पकड़कर पैदल चल रहा था. उसका लंड धोती मे तंबू बनाता हुआ फिर खड़ा हो गया था. वह बार बार मोती की पीठ सहला रहा था और कभी कभी उसे चूमा भी लेता था. मोती भी मतवाली चाल चलता हुआ बार बार अपना सिर घुमा कर रघु की छाती को प्यार से अपनी थूथनी से धकेलता और हिनहिनाता.
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