RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
गाँव आने के बाद गंदी किताबें मिलना बंद हो गया था इसलिए अब मैं मन के लड्डू खाते हुए तरह तरह की औरतों के नंगे बदन की कल्पना करते हुए मुठ्ठ मारा करता था
आने के बाद माँ के प्रति मेरा आकर्षण बहुत बढ़ गया था सहसा मैंने महसूस किया था कि मेरी माँ एक बड़ी मतवाली नारी थी उसके इस रूप का मुझ पर जादू सा हो गया था शुरू मे एक दिन मुझे अपराधी जैसा लगा थी पर फिर लंड मे होती मीठी टीस ने मेरे मन के सारे बंधन तोड दिए थे
मेरी माँ दिखने मे साधारण सुंदर थी भले ही बहुत रूपवती ना हो पर बड़ी सेक्सी लगती थी बत्तीस साल की अम्र होने से उसमे एक पके फल सी मिठास आ गयी थी थोड़ा मोटा खाया पिया मांसल शरीर, गाँव के स्टाइल मे जल्दी जल्दी पहनी ढीली ढाली साड़ी चोली और चोली मे से दिखती सफेद ब्रा मे कसी मोटी मोटी चुचियाँ, इनसे वह बड़ी चुदैल सी लगती थी बिलकुल मेरी ख़ास किताबों मे दिखाई चुदैल रंडियों जैसी!
मैंने तो अब उसके नाम से मुठ्ठ मारना शुरू कर दिया था अक्सर धोने को डाली हुई उसकी ब्रा या पैंटी मैं चुपचाप कमरे मे ले आता और उसमे मुठ्ठ मारता उन कपड़ों मे से आती उसके शरीर की सुगंध मुझे मतवाला कर देती थी एक दो बार मैं पकड़े जाते हुए बचा माँ को अपनी पैंटी और ब्रा नहीं मिले तो वह मंजू को डाँटने लगी मंजू बोली कि माँ ने धोने डाली ही नहीं किसी तराहा से मैं दूसरे दिन उन्हें फिर धोने के कपड़ों मे छुपा आया मंजू को शायद पता चल गया था क्योंकि माँ की डाँट खाते हुए वह मेरी ओर देखकर मंद मंद हँस रही थी पर कुछ बोली नहीं मेरी जान मे जान आई!
मुझे ज़्यादा दिन प्यासा नहीं रहना पड़ा माँ वास्तव मे कितनी चुदैल और छिनाल थी और घर मे क्या क्या गुल खिलते थे, यह मुझे जल्द ही मालूम हो गया मैं एक दिन देर रात को अपने कमरे से पानी पीने को निकला उस दिन मुझे नींद नहीं आ रही थी माँ के कमरे से कराहने की आवाज़ें आ रही थीं मैं दरवाजे से सट कर खड़ा हो गया और कान लगाकर सुनने लगा सोचा माँ बीमार तो नहीं है!
"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हा, मर गयी रे, मंजू तू मुझे मार डालेगी आज उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ईह्ह्ह्ह्ह मायाम " माँ की हल्की चीख सुनकर मुझे लगा कि ना जाने मंजू बाई माँ को क्या यातना दे रही है इसलिए मैं अंदर घुसने के लिए दरवाजा ख़टखटाने ही वाला था कि मंजू की आवाज़ आई "मालकिन, नखरे मत करो अभी तो सिर्फ़ उंगली ही डाली है आपकी चूत मे! रोज की तराहा जीभ डालूंगी तो क्या करोगी?"
"अरे पर आज कितना मीठा मसल रही है मेरे दाने को तू छिनाल जालिम, कहाँ से सीखा ऐसा दाना रगडना?" माँ कराहती हुई बोली
"रघू सीख कर आया है शहर से, शायद वह ब्लू फिल्म मे देख कर आया है कल रात को मुझे चोदने के पहले बहुत देर मेरा दाना मसलता रहा हरामी इतना झड़ाया मुझे कि मै लस्त हो गयी!" मंजू की आवाज़ आई
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