RE: अंतर्वासना Sex Stories
शर्मिला ने फिर लगभग रोते हुए कहा, “अगर तुमने ये पागलपन नहीं छोड़ा तो मैं सच कहती हूँ, इस घर से एक साथ दो अर्थियां उठेंगी.
अब अखिल क्या करते! वे अपनी प्राणों से प्रिय पत्नी को कैसे मरने देते! उन्हें नीचे उतरना ही पड़ा. नीचे उतरे तो उनका सर झुका हुआ था. शर्मिला ने रोते हुए उन्हें अपनी बांहों में भर लिया. पर शर्मिला की आँखों से अधिक आंसू अखिल की आँखों से बह रहे थे. पति-पत्नी का करुण रुदन काफी समय तक चलता रहा. ... किसी तरह शर्मिला ने दिलासा दे-दे कर अपने पति को चुप कराया. जब अखिल कुछ सामान्य हुए तो शर्मिला ने आशंकित मन से उन्हें पूछा कि हुआ क्या था. अब अखिल क्या जवाब देते? पर वे सच्चाई को छुपाते भी कब तक! जब शर्मिला ने पूछना जारी रखा तो उन्हें अटकते-अटकते रुआंसी आवाज में सब बताना पड़ा. गर्दन उठाने की हिम्मत उनमे नहीं थी.
अखिल से सब कुछ सुनते समय शर्मिला की मनोदशा अजीब थी. उन्हें कभी अखिल पर क्रोध आ रहा था, कभी उनसे घृणा हो रही थी और कभी अपने दुर्भाग्य पर रोना आ रहा था. जब अंत में उन्होंने कमली की विचित्र शर्त सुनी तो वे जैसे आसमान से गिरीं. एक नौकरानी की यह मजाल! ... फिर उन्हे लगा कि सारी मूर्खता तो उनके पति की थी. कमली और उसके पति ने अपनी चालाकी से अखिल की बेवकूफ़ी का फायदा उठाया था. कुछ भी हो, अब इस मूर्खता का परिणाम तो उन्हें भुगतना था. ... वे एक भारतीय नारी थीं. उन्होंने सोचा कि उनके लिए पति के जीवन से कीमती कुछ भी नहीं है. उन्होंने आज समय पर पहुँच कर अखिल को आत्महत्या करने से तो रोक दिया था पर उन्हें आगे आत्महत्या से रोकना भी उन्ही का दायित्व था.
जब उन्होंने अपने जज्बात पर काबू पा लिया तो उनकी बुद्धि ने भी काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने अखिल से कहा, “जो हो चुका सो हो चुका. उसे मिटाया नहीं जा सकता है. हमें आगे के बारे में सोचना है. कोई न कोई रास्ता जरूर होगा.”
उनकी बात सुन कर अखिल को सबसे पहले तो यह तसल्ली हुई कि शर्मिला ने उनको माफ़ कर दिया है. जो हो गया उसे उन्होंने एक भारतीय पत्नी की तरह अपनी नियति समझ कर स्वीकार कर लिया है. फिर जब उन्होंने कहा कि ‘हमें’ आगे के बारे में सोचना है, तो उनका मतलब था कि अब जो भी करना है वे दोनों मिल कर करेंगे. अखिल ने सोचा कि उनका शर्मिला को शॉक देने का नुस्खा कारगर साबित हुआ था. उन्होंने मन ही मन अपनी एक्टिंग को दाद दी. एक्टिंग जारी रखते हुए उन्होंने हताशा से कहा, “मैं तो हर पल यही सोच रहा हूँ पर मुझे कमली की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.”
शर्मिला ने जवाब में कहा, “ये लोग गरीब नौकर हैं. इन्हें पैसों का लालच न हो, यह हो ही नहीं सकता. पर एक-दो हज़ार से बात नहीं बनेगी. तुम उसे ज्यादा पैसों का लालच दो. जरूरत पड़े तो हम दस-बीस हज़ार तक भी जा सकते हैं.”
अखिल ने सोचा कि वे कोई अफसर नहीं बल्कि एक क्लर्क हैं. उनके लिए दस-बीस हज़ार रुपये ऐसे ही दे देना कोई मामूली बात नहीं थी. पर अपने घर की लाज बचाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने बुझे स्वर में कहा, “ठीक है, मैं कल कमली से बात करता हूँ.”
शर्मिला ने दृढ़ता से कहा, “इससे ज्यादा भी देने पड़ें तो संकोच मत करना. जरूरी हुआ तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी.”
अखिल शर्मिंदगी से बोले, “तुम्हारे पास है ही क्या? जो है वो भी मेरे कारण चला जाएगा!”
शर्मिला ने कहा, “तुम्हारी जान और घर की इज्ज़त के सामने गहने और पैसे क्या हैं!”
अखिल का अभिनय तो अब ऑस्कर अवार्ड के लायक हो चला था. उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे. उन्होंने रुंधे गले से कहा, “पता नहीं पिछले जन्म में मैंने क्या पुण्य किया था कि भगवान ने मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी दे दी! ... और मैं फिर भी यह नीच काम कर बैठा. ... अगर भगवान की कृपा और तुम्हारे भाग्य ने इस बार मुझे बचा लिया तो मैं भगवान की कसम खाता हूं कि किसी परायी स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखूँगा.”
शर्मिला ने द्रवित हो कर अपने पति को गले से लगा लिया. अखिल के आंसू उनके कंधे को भिगो रहे थे ... पर अब अगले दिन का इंतजार करने के अलावा कोई चारा न था.
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अगली सुबह तक का समय बहुत मुश्किल से बीता. अखिल आशंकित थे पर शर्मिला के मन में आशा थी. दोनों ने मिल कर तय किया कि कमली के आने के बाद शर्मिला मंदिर चली जायेंगी ताकि अखिल अकेले में कमली से बात कर सकें. वैसे भी मंदिर में शर्मिला को भगवान से बहुत विनती करनी थी.
बहरहाल अगली सुबह आई और नियत समय पर कमली भी आ गई. जब उसने शर्मिला को घर में पाया तो वह बहुत खुश हुई. अब उसके पति का उधार चुकता हो जाएगा, वो उधार जो कई दिनों से अखिल बाबू पर था. शर्मिला ने अपने आप को सामान्य दिखाते हुए उससे थोड़ी औपचारिक बात की. शर्मिला को सामान्य देख कर कमली को आश्चर्य हुआ. उसे शंका हुई कि शायद बाबूजी ने उनसे ‘वो’ बात नहीं की थी. जब कमली का काम ख़त्म होने को था, शर्मिला ने अखिल को कहा कि वे मंदिर जा रही हैं, और वे पूजा का कुछ सामान ले कर घर से निकल गयीं. कमली जल्दी से अपना काम ख़त्म कर के अखिल के पास पहुंची और उनसे बोली, “बाबूजी, कितने बजे भेज रहे हैं बीवीजी को? उन्हें आप पहुंचाएंगे या मैं लेने आऊँ?”
अखिल के सामने वो मुश्किल घडी आ गई थी जिसे वे टालना चाहते थे. उन्होंने फिर एक्टिंग का सहारा लिया और बोले, “कमली, मैं कई दिनों से तुम्हारी बात पर गौर कर रहा हूँ और मुझे समझ में आ गया है कि मैं कितना मूर्ख था!”
कमली सोच रही थी कि इनको अब अक्ल आई है. अखिल बोलने के साथ-साथ कमली के मनोभावों को पढने का भी प्रयास कर रहे थे. उन्होंने अपनी बात जारी रखी, “मैं जानता हूं कि तुम्हारी ज़िन्दगी में कितने अभाव हैं. एक-दो हज़ार रुपये ज्यादा मिलने से तुम्हारे अभाव दूर नहीं होंगे. लेकिन सोचो कि तुम्हे दस-पंद्रह हज़ार रुपये एकमुश्त मिल जाएँ तो तुम्हारी कौन-कौन सी जरूरतें पूरी हो सकती हैं!”
उनकी आशा के विपरीत उन्हें कमली के चेहरे पर कोई ख़ुशी या सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखी. वे समझ गए कि इतने से बात नहीं बनेगी. वे आगे बोले, “बल्कि मैं तो सोचता हूँ कि यह भी कम हैं. अगर बीस-पच्चीस हज़ार ...”
कमली उनकी बात को काटते हुए बोली, “बाबूजी, मैंने न तो इतने रुपये देखे हैं और न ही मैं जानती हूं कि इतने रुपयों से क्या-क्या हो सकता है. ये बातें मेरा मरद ही समझ सकता है. आप कहें तो मैं उसे पूछ कर आपको जवाब दे दूं.”
कमली न तो खुश दिख रही थी और न दुखी. अखिल को लग रहा था कि उनका दाव बेकार गया. फिर उन्होंने सोचा कि शायद कमली के घर में इतने बड़े फैसले करने का अधिकार उसके मर्द को ही होगा. उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम उसे पूछ लो.”
कमली चली गई.
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शर्मिला जब घर वापस आयीं तो उन्हें कमली नहीं दिखी. उन्होंने बेताबी से अखिल से पूछा, “क्या हुआ? वो मान गई?”
“नहीं,” अखिल ने सर झुकाए हुए कहा.
“नहीं!” शर्मिला ने आश्चर्य से कहा. “तुमने कितने तक की बात की? कहीं कंजूसी तो नहीं दिखाई?”
“तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” अखिल ने कहा. “मैंने बीस-पच्चीस हज़ार तक की बात की थी.”
“फिर?”
“उसने कहा कि वो यह सब नहीं समझती,” अखिल ने उत्तर दिया. “वो अपने पति से बात कर के जवाब देगी.”
“कब?”
“उसने यह नहीं बताया.”
“उसने रुपयों के अलावा किसी और चीज़ की बात तो नहीं की?” शर्मिला ने पूछा.
“नहीं.”
“लगता है बात बन जायेगी,” शर्मिला थोड़ी आश्वस्त हुईं. “लेकिन हो सकता है कि उसका पति तेज-तर्रार हो और इतने में भी न माने. सुनो, जरूरी लगे तो तुम चालीस-पचास तक भी चले जाना!”
“चालीस-पचास हज़ार!” अखिल ने विस्मय से कहा. “कहाँ से लायेंगे हम इतने रुपये?”
“तुम चिंता मत करो,” शर्मिला ने कहा. “मैंने कहा था न कि जरूरत हुई तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी. भगवान सब ठीक करेंगे. मैं तो मंदिर में प्रसाद भी बोल कर आई हूं.”
कमशः
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