RE: xxx Kahani नौकरी हो तो ऐसी
मैने हल्के से सेठानी के मूह से अपना लंड बाहर निकाला और जैसे सेठानी पीछे की तरफ देखने लगी मैने उसे उठाके बर्त पे उलटा पटक दिया और उसपे घोड़े जैसा सवार हो गया. उधर बहू ने सेठानी के मूह मे बड़ा सा कपड़ा डाल दिया. और सेठानी के कुछ समझने से पहले ही हाथ अपने हाथो मे दबा दिए और एक कपड़े से हल्केसे बाँध दिए.
अब सेठानी ज़ोर्से हिलने लगी पर हमने उसे उस तरह बर्त पे दबाए रखा. अब बहू ने संदूक निकाला और उसमे से तेल की एक बोतल निकाली और अपनी सासू मा के गांद के होल के अंदर उंगली डाल के तेल डालने लगी. पहले छोटा सा दिखने वाला सेठानी की गांद का होल तेल के मालिश से मेरी थूक से एकदम आकर्षक और बढ़िया दिखने लगा, परंतु मेरे लंड के सामने पता नही वो टिक पाने वाला था की नही.
मेरा लंड पहले से ही बहुत टाइट था अब बहू ने उसपे ठुका और उसपे भी बोतल से निकाल के तेल डाल दिया. तेल डालने से मेरा लंड बहुत चमकने लगा. अब मैने अपने लंड का सूपड़ा सेठानी की गांद के छोटेसे होल पे रख दिया. सेठानी अंदर डालने से पहले ही बहुत तड़प रही थी.. अब मैने लंड को अंदर घुसाना शुरू किया परंतु कुछ फ़ायदा नही हुआ, वो अंदर घुस ही नही पा रहा था. गांद टाइट होने के बजाह से वो थोड़ा ही अंदर जा रहा था और थोड़ाही अंदर जाते हुए ही सेठानी उउउ…अयू.एम्म…..उूउउ.आवाज़े निकाल देती थी. मुझे नही लग रहा था कि मेरा लंड इस गांद मे घुस पाएगा. अब बहू ने मेरा लंड अपने हाथ मे लेके उसपे बहुत सारी थूक डाली और उसे और चिकना बना दिया और सेठानी के गांद पे भी थूक डाल दी. और मुझे कान मे धीरे धीरे अंदर गांद के अंदर लंड डाल ने को बोला और कुछ भी हो जाए पीछे खिचने के लिए मना कर दिया.
अब मैने अपना सूपड़ा सेठानी की गांद मे धीरे धीरे घुसाना शुरू किया. गांद बहुत ही टाइट थी. अब मैने ज़ोर लगाया और लंड का सूपड़ा गांद के अंदर चला गया. और सेठानी के पाव काँपने लगे सेठानी की आवाज़ो की तीव्रता और बढ़ गयी परंतु अब मैं पीछे हटनेवाला नही था अब मैने गति ली और ज़ोर से अपना लंड आगे पीछे करने लगा अभी तक पूरा लंड अंदर नही गया था और सेठानी के हाथ पैर काप रहे थे और मेरे लंड को उसकी गांद अंदर जकड़े जा रही थी किसी भी क्षण मेरा वीर्यपात हो जाए इतनी वो टाइट थी. अब मैने धीरे धीरे झटके मार के पूरा लंड अंदर डाल दिया. सेठानी के हाथ बँधे होते हुए भी वो मुझे दर्द के कारण पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थी.
मैने अब अपनी गति नॉर्मल कर दी और लंड को आगे पीछे करने लगा वैसे सेठानी की आवाज़े बढ़ गयी मैं बोला "सेठानी जी मेरी प्यारी सेठानी जी अब तो आपकी गांद की खैर नही" और ज़ोर्से कस्के धक्के मारने लगा. सेठानी की गांद मे आग लग चुकी थी. उसका मूह पूरा लाल हो गया बल्कि पूरा शरीर लाल हो गया था. पहली बार गांद चुदाई के कारण उनसे सहा नही जा रहा था. अब मैं अपनी चरम सीमा तक पहुच गया था सेठानी इस दरम्यान तीन बार झड़ी थी. मैने अभी गति और तेज़ कर दी. और ज़ोर्से मेरे मूह से आवाज़ निकल पड़ी मैने मेरा वीर्य सेठानी की गांद मे अंदर तक घुसेड दिया था. गांद के अंदर वीर्य के फुव्वारे की गर्मी के कारण अब शेतानी के चेहरे पे एक पूर्णतया और खुशी की झलक दिख रही थी.
अब रात का 1 बज रहा था और हम सभी बहुत ही थक गये थे. हमने सेठ जी को दूसरे बर्त से उठाके पहले वाली जगह पर सुला दिया. बेचारा सेठ जी नींद की गोलिया के नशे के कारण कुछ समझने की हालत मे नही था और पूरी निद्रा मे सोया हुआ था. अब हम लोग भी अलग अलग बर्त पे सो गये.
दूसरे दिन सबेरे जब आँख खुली, तब सूरज खिड़की से दिखाई दे रहा था. मैं उठ के अपने बर्त पे बैठ गया. चदडार जमा करके अपने संदूक मे डाल दिया. और मैं उठ के कॅबिन के बाहर चला आया. उधर से मुझे सेठानी आते हुई दिखी. वाह क्क्या चिकनी चिकनी लग रही थी वो, परंतु ये क्या…..सेठानी की चाल बदल चुकी थी….सेठानी तो बहुत हल्लू हल्लू चल रही थी. और ऐसा लग रहा था कि रात की ठुकाई से उन्हे अभी भी चलने मे दर्द हो रहा था. सच मे रात मे ज़रा ज़्यादा ही हो गयी सेठानी के साथ, वो जब मेरे बाजू आई तो थोडिसी मुस्कुराइ और मेरे गाल पे एक चुम्मा चिपका के कॅबिन के अंदर चली गयी. अभी भी ट्रेन का लगभग 26 घंटो का सफ़र बाकी था.
मैने नीचे देखा तो मेरे लंड महाराज खड़े थे और आने जाने वालो को सलामी दे रहे थे अब मुझे सेठानी के हस्ने और चुम्मा देने का मतलब पता चला. मेरे लंड को अभी ठुकाई के लिए कोई चाहिए था. परंतु अभी तो ठुकाई का चान्स ना के बराबर दिख रहा था. तभी एक चाइवाला मेरे बाजूसे गुज़रा और मुझे देख के मुस्कुराया. तो मैने उससे बात करना शुरू कर दी. और उससे दोस्ती बना ली. उसका नाम राधे था. और मैने उसे मेरे ठुकाई के लिए कुछ इंतज़ाम करने के लिए कहा. तो वो बोला मैं लड़की तो लाके देता हू परंतु उसे ठुकाई के लिए मनाना और काम कहा करना है ये आपको देखना पड़ेगा. मैने उसको अपना प्लान बता दिया और उसको आधे घंटे के बाद लड़की को कौन से बाथरूम मे लेके आने का है, यह बोल दिया.
मैं फटाफट कॅबिन के अंदर गया. कपड़े लेके बाथरूम के अंदर घुसके स्नान करके 10 मिनिट मे रेडी हो गया. और उतने मे बहू ने चाइ का कप लेक मेरे हाथ मे रख दिया और मेरे से चिपक कर बैठ गयी. सेठ जी ट्रेन के बाहर देखने मे व्यस्त था, और सेठानी बच्चे को अपनी गोदी मे लेके सुला रही थी. बहू ने इतनी देर मे अपनी हरकते शुरू कर दी और अपना घूँघट नीचे गिरा दिया. और अभी बहू की उन्नत छाती मुझे दिखने लगी. उसके ब्लाउस के गले से उसकी चुचिया बहुत ही आकर्षक और पुश्ता लग रही थी. ऐसे लग रहा था कि अभी हाथ डालके एक चुचि बाहर निकालु और उसमे से दूध चूसना शुरू कर डू. परंतु सेठ जी के सामने बैठे होने के कारण ऐसी हरकत मैं कर नही सकता था.
मैने बहू की पीठ पीछे हाथ डालके उसकी सारी के अंदर अंदर हाथ डाल दिया, और गांद की तरफ अपना हाथ बढ़ाने लगा, उसकी त्वचा बहुत ही नाज़ुक थी और मुउलायम भी. अब मैं अंदर अंदर हाथ डाले जा रहा था और इधर सामने से बहू की भारी चुचियो को देख के गरम हो रहा था. सेठानी की नज़रो से ये बात कैसी बचती, उसने अपना पैर मेरे पैरो पे रख दिया और घिसने लगी. मैं पूरा गरम हो गया था. इतने मे मुझे चाइ वाले का राधे का ख़याल आया. कहानी अभी बाकी है दोस्तो
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