RE: XXX Kahani ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
ये कौनसी राह है और कौनसी मंजिल है
भाग - दूसरा
कुछ दिन बाद मैं मम्मी के साथ दूसरे शहर गई मेरी मौसी के बेटे कि शादी थी. मैं अपनी मौसी के घर पहली बार गई थी और सब भाई बहनों से पहली बार ही मिली थी. मेरे मौसी की बेटी थी सरोज. मेरी हम उम्र और मुझसे भी बहुत ज्यादा खुबसूरत. मुझे वो पसंद आ गई पहली बार में ही देखते ही. मेरी नियत बिगड़ गई थी. मैं उसके साथ साथ ही रहने लगी और उस से सटाकर चलती और बात बात में उसका हाथ दबा देती. सरोज को मेरी नियत का पता नहीं चल सका था इसलिए वो सिर्फ मुस्कुरा देती.
इसी तरह रात हो गई. हम सभी साथ खाना खा रहे थे. मैंने एक रसगुल्ला सरोज के मुंह में रखा और ऐसा करते समय मैंने अपनी ऊँगली उसके जीभ से छुआ दी और उस गीली ऊँगली को खुद चूस लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा.
रात को मैं चक्कर चलाकर सरोज के साथ ही लेट गई. हम दोनों ही उस कमरे में अकेली थी. कुछ देर इधर उधर की बातें की . फिर मैंने सरोज से कहा " सज्जू, तुम्हारा सीना उमर के हिसाब से अच्छा डेवलप हुआ है." सरोज शरमा गई. मैंने आगे कहा " लेकिन सीने से ज्यादा मुझे तुम्हारे होंठ लगते हैं. दुनिया भर का जूस भरा हुआ है इसमें." सरोज और ज्यादा शर्मा गई. मेरी बाते असर दिखला रही थी. चूँकि मौसी जिस शहर में थी वो काफी छोरा शहर था इसलिए लड़कियां ज्यादा तेज नहीं होती बल्कि शर्मीली और सेक्स में मामले में बहुत शांत और कम जानकारी वाली होती है. मैंने अचानक सरोज की गर्दन पर हाथ फिराया और बोली " इस गरदन को देखकर ऐसा लगता है जैसे इसे चूमते ही नशा चढ़ जाएगा." अब सरोज थोडा सा कसमसाई. मेरे लिए ये क़ाफ़ी था ईशारा. मैं उठकर बैठ गई. नाईट लेम्प जल रहा था इसलिए कमरे में उजाला था. सरोज ने नीचे एक पायजामा पहन रखा था. मैंने पायजामे की बांह को धीरे धीरे ऊपर उठाया और सरोज की नंगी , गोरी चिकनी टांग मेरे सामने थी. सरोज ने मुझे मना किया और पायजामा नीचे कर दिया. मैंने कहा " सज्ज्जू, रुक ना मैं ये देखना छः रही हूँ कि तुम्हारे सीने के उभार , होंठ या फिर तुम्हारी टाँगे ज्यादा खुबसूरत है और सेक्सी है." सरोज शर्माते हुए बोली " तुम ऐसी बात करती हो तो मेरे अन्दर ना जाने क्या होने लग रहा है. ऐसा ना करो दीदी." मैंने फिर एक बार सरोज के पायजामे की बांह को एकदम ऊपर खींच लिया. अब सरोज की जांघ चमक रही थी मेरे सामने. मैंने हाथो से सरोज की जांघ को सहलाया. सरोज कसमसाने लगी. मैंने कहा " सज्जू , तुम्हारी टाँगे तो गज़ब की चिकनी और गोरी है मगर तुम्हारी जाँघों में तो जैसे आम का रस भरा हुआ है. मैं चख लूँ क्या?" सरोज बहुत शरमाई और घबरा भी गई. वो उठकर बैठ गई. उसने कहा " दीदी, तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो? मुझे बहुत अजीब लग रहा है." मैंने जवाब दिया " सज्जू, यही तो मज़ा है. जब तक ऐसी उमर है मजे किये जाओ. मैं तो वहां मेरी कुछ सहेलियां है उनके साथ खूब मजे करती हूँ. इतना मज़ा आता है कि तुम्हें क्या कहूँ?" मुझे पता था ये सुनते ही सरोज पिघल जायेगी और मेरी हो जायेगी. यही हुआ. सरोज ने मुझसे पूछ ही लिया कि किस तरह से मजे करती हो. मैंने सरोज को सब कुछ बता दिया.
जैसे जैसे सरोज मेरी बाते सुनती गई वैसे वैसे उसकी हालत ख़राब होती गई. उसकी साँसें तेज चलने लगी. उसका सीना ऊपर नीचे तेजी से होने लगा. वो अपनी टांगें इधर उधर फैलाने सिमटाने लगी. मैंने मौका ताड़ा और सरोज को अपनी बाहों के जकड लिया. सरोज थोडा कसमसाई मगर अगले ही पल मैंने जब सरोज के गालो को चूमा तो सरोज अचानक मुझसे लिपट गई और बोली " ये क्या कर दिया. मुझे ना जाने क्या हो रहा है. मुझे घबराहट हो रही है. दीदी मुझे छोड़ना मत." अब मामला मेरी पकड़ में था. मैंने सरोज ओ दो चार बार और चूमा और फिर उसकी कमीज को बटन खोलकर उतार दिया. सरोज ने ब्रा पहन रखी थी. हकीकत में उसके उभार बहुत ज्यादा डेवलप थे उमर को देखते हुए. उसकी ब्रा बहुत ज्यादा कासी हुई लग रही थी.
मैंने उसकी ब्रा को चूमा . सरोज सिहर गई. अब मैंने अपने कपडे उतारे और जाकर कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया. सारी खिड़कियाँ भी बंद कर डी और कमरे की सभी लाईट्स जला ली. सरोज ने मुझे और मैंने सरोज के नंगे बदन को देखा. हम दोनों गोरी थी, चिकनी थी. सीने उभरे हुए. सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. दोनों के दिल जोर जोर से धड़कने लगे. मैंने सरोज को अपने से लिपटा लिया. मैंने सरोज को इस तरह जगह जगह चूमा कि वो तड़प उठी और हम अगले ही पल पलंग में आ गए. देर रात तक हमने अपने अपने दिल में जो चूमने लिपटने की भूख थी वो मिटाई और फिर थक कर सो गए.
सुबह जब सरोज की आँख खुली तो वो मुझे देखकर शर्मा गई और बोली " दीदी, ये क्या है सब जो हम दोनों ने रात को किया?"
मैंने सरोज को चूमा और बोली " क्या है वो तो पता नहीं सज्जू, मगर जिस बात से जिस्म शांत हो जाए वो बात करनी ही चाहिए."
सरोज बोली " दीदी, हम परसों सुबह तक साथ हैं. हम ये फिर करेंगे." मेरा दिल ख़ुशी के मारे उछलने कूदने लगा.
अब लगभग सारे दिन ऐसा हुआ कि जब भी मौका मिलता हम दोनों किसी सुनी जगह , किसी खाली कमरे में चले जाते और एक दूजे को चूम लेटे या होठो का चुम्बन लेटे और वापस आ जाते जल्दी से ताकि किसी को कोई शक ना हो. सारे दिन ये चलता रहा. सरोज रात का बेसब्री से इंतज़ार करती रही.
इस रात को भी हम दोनों ने काफी मजा लिया मगर आधी रात को हमें रुकना पडा क्यूंकि कुछ मेहमान आये और हमारे कमरे में एक और महिला सोने आ गई. हम अलग हो गए मगर रुक रुक कर चूमते रहे.
सुबह जब हम उठे तो मैंने उस महिला को देखा जो हमारे कमरे में सोई थी. मैं उसे देखती ही रह गई. अच्छा खासा कद. बहुत गठा हुआ शरीर. चूँकि चादर खिसक गई थी इसलिए उस का सीना दिख रहा था. मेरी आँखें फटी रह गई. इतना बड़ा सीना. करीब चालीस डी की साइज़ लगी मुझे तो. खुबसूरत भी बहुत थी. मैं शैतान बनकर उसे देखने लगी. तभी उनकी आँख खुल गई. मैंने मुस्कुराते हुए नमस्ते कहा. वो मुझे देखकर बोली " तुम इस कमरे में कैसे? ओह, तुम लड़की हो. मैंने तुम्हारे बाल देखकर सोचा की तुम लड़के हो हा हा " मैंने हंसकर कहा " आंटीजी अगर मैं लड़का होती तो आप क्या करती?"
आंटी बोली बिलकुल मेरी तरह शरारती बनकर " तुझे पकड़कर लेट जाती और चूम लेती तुझे चिकना समझकर. हा हा हा . बुरा ना माना मैंने मजाक किया था "
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