RE: Kamukta Kahani मैं और मेरी बहू
राजेश और बॉब्बी दोनो दुविधा मे थे कि माने की ना माने. ये सही था कि दोनो का मर्द के साथ चुदाई करने का पहला अवसर था पर वो दोनो इतने ज़्यादा गरमा चुके थे कि ना नही कर पाए. दोनो होटेल वापस जाने को तय्यार हो गये.
"में ये नज़ारा अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ." प्रिया उछलते हुए बोली.
हम सब लोग होटेल वापस आगाये. में रवि और रश्मि नीचे लॉन मे ही बैठ गये और वो सब कमरे की ओर बढ़ गये. अभी तक कंचन ने कोई प्रतिक्रिया नही जताई थी पर वो भी प्रिया की पीछे पीछे हो ली.
करीब एक घंटे के बाद सब लौट कर लॉन मे आ गये. मेने देखा कि राजेश और बॉब्बी के चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी और राज धीरे धरिए मुकुरा रहा था. प्रिया और कंचन का चेहरा उत्तेजना मे लाल हो रहा था.
"कहो कैसा रहा?" रवि ने दोनो से पूछा.
राजेश और बॉब्बी के मुँह से कोई बोल नही फूटा पर राज ने कहा, "माज़ा आ गया, राजेश ने मेरी गांद मारी और मेने बॉब्बी का लंड चूमा. दोनो ने मुझे वीर्य से भर दिया, अब में ज़रा स्विम्मिंग पूल मे स्नान करके आता हूँ." कहकर राज स्विम्मिंग पूल की ओर बढ़ गया.
फिर प्रिया कहने लगी, "तीन मर्दो को साथ साथ चुदाई करते देखने का मेरा पहला अवसर था. ऐसी चुदाई मेने कभी नही देखी, तब से मेरी चूत मे अंगार लगी हुई है."
"मेरी भी ऐसी ही हालात हो रही है," कंचन भी बोली, "सही मे इन तीनो देख मे इतनी उत्तेजित हो गयी हूँ. राज एक दम लड़की जैसा लगता है जब उसका लंड नही दिखता."
"तुम्हारा क्या हाल है प्रीति, लगता है कि तुम सिर्फ़ सोच कर ही गीली हो गयी हो." रवि ने कहा.
"हां मेरी हालत भी कुछ ऐसी ही है, कमरे मे पहुँच कंचन को कहूँगी के मेरी चूत की आग ठंडा कर दे." मेने जवाब दिया.
"हाआँ ये तुम्हारे लिए अछा रहेगा." रवि हंसते हुए बोला.
"तो दोस्तों ऐसा लगता है कि तुम दोनो की सामूहिक चुदाई की झिझक अब दूर हो गयी है." रवि ने राजेश और बॉब्बी से पूछा.
राजेश ने जवाब दिया, "तुम्हारा कहना सही है रवि. राज काफ़ी अनुभवी है इस मामले में. उसे लंड चूसना कितनी अछी तरह से आता है, और जब में उसकी गंद मार रहा था मुझे ऐसा लगा कि में किसी लड़की की गंद मे लंड घुसाए हुए हूँ, वो ठीक एक औरत की तरह मेरे लंड को अपनी गंद की मांसपेशियों मे जाकड़ मेरे लंड को पूरा निचोड़ लिया."
इन सब बातों ने मुझे काफ़ी उत्तेजित कर दिया था. मेने कंचन की तरफ देखा और कहा, "कंचन चलो कमरे मे चलते है."
शायद कंचन का ध्यान कही और था, वो मेरी बात सुनकर चौंक पड़ी. वो खड़ी हो गयी और एक बार अपने पति की ओर देखा जैसे की उसकी अगया लेना चाहती हो, "ठीक है चलो." कहकर वो मेरे साथ हो ली.
कमरे मे पहुँचते ही हम दोनो ने अपने कपड़े उतारे और नंगे होकर बिस्तर पर लेट गये.
"तुम पहले चूत चूसवाना चाहोगी या तुम मेरी चूत पहले चूसना चाहोगी?" मेने उससे पूछा.
"नही मे पहले तुम्हारी चूत चूसूंगई, में तुम्हारे जितनी गरम नही हूँ अभी, तुम्हारी चूत चूस करफ्री हो जाउ." कंचन ने जवाब दिया.
में पीठ के बल होकर अपनी टाँगे फैला दी. कंचन मेरी टाँगो के बीच आ गयी और मेरी चूत पर हाथ फिराने लगी. में अपनी उत्तेजना को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थी, मेने महसूस किया की कंचन मेरी चूत को छेड़ मुझे चिढ़ा रही है. मेने कंचन को खींच कर अपनी चूत पर उसके मुँह को रखना चाहा पर जैसे कंचन को मेरी उत्तेजना की कोई परवाह नही थी, वो अपने हिसाब से मेरी चूत से खेलती रही.
मेने ज़ोर लगाकर अपनी चूत उसके मुँह पर रख दी. में चाहती थी कि ये मासूम सी दिखने वाली लड़की मेरी चूत की गहराइयों को अपनी जीब से नापे. मेरी चूत को अछी तरह से चाते और मेरे पानी को पी जाए.
कंचन भी अब अपनी उत्सुकता नही रोक पाई और अपनी जीब से मेरी चूत के चारों और चाटने लगी. फिर उसने मेरे कुल्हों को पकड़ कर थोड़ा फैला दिया और अपनी जीब को मेरी गंद के छेद पर घुमाने लगी. वहाँ से चाटते हुए जब वो मेरी चूत तक आकर उसे चट्टी तो एक अजीब सी सिरहन और उत्तेजना मेरे शरीर मे दौड़ जाती.
"ऑश कनककचन हाआँ ऐसे ही चॅटो बहोत माअज़ा एयेए रहा है." में उसे उत्तसाहित करते हुए सिसकने लगी.
कंचन अपनी प्यारी जीब से मेरी चूत को चाते जा रही थी. में भी उत्तेजना अपने कूल्हे उठा अपनी चूत को उसके मुँह पर दबा दी. अचानक कंचन अपनी एक उंगली मेरी चूत मे डाल अंदर बाहर करने लगी.
"ऑश हेयेयन एक उंगली और डाल दो बहोट अच्छा लग रहा है." में सिसक रही थी.
कंचन ने अब अपनी उंगली मेरी चूत के रस से गीली कर उसे मेरी गंद मे डाल अंदर बाहर कर रही थी. मुझे इतना मज़ा आ रहा थी कि क्या बताउ. मेरा झड़ने का समय नज़दीक आता जा रहा था. मेने ज़ोर से अपने कूल्हे उठाए और उसके सिर को पकड़ अपनी चूत पर जोरों से दबा दिया.
"ओह आआआआज काआअंचाां मेरााा चूऊता." कहकर मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया.
कंचन मेरी चूत को पूरी तरह अपने मुँह में भर मेरे रस को पीने लगी. वो तब तक मेरी चूत को चूस्ति रही जब तक की एक बूँद पानी उसमे बचा था.
थोड़ी देर हम यूँही लेटे रहे, फिर धीरे से कंचन ने अपनी उंगली मेरी गंद से निकाली और अपना सिर मेरी जांघों पर रख दिया. वो बड़े प्यार से मेरी चूत को सहला रही थी. आज हमारे नए रिश्ते की शुरुआत थी और अब मुझे उसकी चूत चाहिए थी.
"तुम बहोत जल्दी सब कुछ सीख गयी कंचन." मेने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा.
"हां रश्मि एक अछी टीचर है." कंचन ने कहा.
"हां वो तो है, मुझे भी उसने ही सिखाया है." मेने कहा.
"प्रीतू जब तुम उत्तेजित होती हो तो तुम्हारी चूत कितनी फूल जाती है, और जब तुम्हारी चूत पानी छोड़ती है तो एक दम पिशब की धार की तरह छोड़ती है, एक बार तो में चौंक ही पड़ी थी जब एक तेज धार मेरे मुँह मे छूटी थी." कंचन ने कहा.
"हां रवि भी यही कहता है, वो कहता है कि मेरी चूत नही बल्कि पानी की नल है, लाओ अब में देखती हूँ कि तुम्हारी चूत क्या कहती है." हंसते हुए मेने उसे अपनी बाहों मे भर लिया.
अब कंचन बिस्तर पर लेट गयी और मैं उसकी टाँगो के बीच आ गयी. मेने कंचन की टाँगे और फैला दी और उसकी गुलाबी प्यारी चूत को देखने लगी. मेने उसकी चूत को फैलाया तो अंदर का गुलाबी हिस्सा रस से चिकना हो चमक रहा था.
जब इस प्यारी चीज़ को देख में अपने आपको नही रोक पा रही थी तो रश्मि कैसे रुकी होगी. मैने तुरंत अपना हाथ उसकी चूत पर फिराते हुए उसकी चूत को अपने मुँह मे ले लिया. में उसकी चूत के दाने के साथ खेलने लगी.
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