RE: Kamukta Kahani मेरी सबसे बड़ी खुशी
तभी मैं उछल पड़ी ! उसकी दो-दो अंगुलियाँ एक साथ मेरी चूत में अन्दर सरक गई थी ! मेरा हाल बेहाल हो रहा था। कुछ देर अंगुलियाँ अन्दर बाहर होती रही। मैं तड़प सी गई। उसकी अंगुलियों ने मेरी चूत के कपाटों को चौड़ा करके खोल दिया, उसकी पलकों के बीच उसकी जीभ लहराने लगी। फिर उसकी जीभ हौले से मेरी चूत में घुस गई, चूत में वो लपपाती रही, उसकी अंगुलियां भी अन्दर मस्ताती रही।
मैंने अपनी दोनों चूचियाँ जोर से दबा कर एक आह भरी और अपना जवानी का सारा रस छोड़ दिया। कुछ देर तक तो वह चूत के साथ खेलता रहा फिर मैंने जोर लगा उसे हटा दिया।
"क्या भाभी, कितना मजा आ रहा था !"
"आह देवर जी, मेरी बाहों में आ जाओ, मेरी चूचियों में अपना सर रख कर सो जाओ।" मैं संतुष्टि से भर कर बोली।
मैं नींद के आगोश में बह निकली थी। पता नहीं रात को कितना समय हुआ होगा, मेरी नींद खुल गई। मुझे लगा मेरी गाण्ड में शायद तेल लगा हुआ था और मेरे पीछे मेरा देवर चिपका हुआ था। उसका सुपारा मेरी गाण्ड के छेद में उतर चुका था।
"क्या कर रहे भैया?"
"मन नहीं मान रहा था, तुम्हारी गाण्ड से चिपका हुआ लण्ड बेईमान हो गया था। और देखो तो तुम्हारा यह तेल भी यही पास में था, सो सोने पर सुहागा !"
"आह, सोने दो ना भैया, अब तो कभी भी कर लेना !"
"हाँ यार, बात तो तुम्हारी सही है, पर इस लौड़े को कौन समझाये?"
उसका लण्ड थोड़ा सा और अन्दर सरक आया।
ओह बाबा ! कितना मोटा लण्ड है ! पर लण्ड खाने का मजा तो आयेगा ही !
मैंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। उसका लण्ड काफ़ी अन्दर तक उतर आया था। मुझे अब मजा आने लगा था।
"भाभी तुम तो खाई खिलाई हो, दर्द तो नहीं हुआ?"
"देय्या री, गाण्ड में लण्ड तो कितनी ही बार खाई खिलाई है तो उससे क्या हुआ, लण्ड तो साला मुस्टण्डा है ना !"
मुझे पता था कि चिल्लाऊँगी तो उसे मजा आयेगा। वरना हो सकता है वो बीच में ही छोड़ दे।
"ओह तो ये ले फिर !"
"धीरे से राजा, देख फ़ाड़ ना देना मेरी गाण्ड !"
"अरे नहीं ना ... ये और ले !"
"ओह मैया री, दर्द हो रहा है, जरा धीरे से !"
"ऐ तेरी मां का भोसड़ा ..."
|