RE: Kamukta Kahani मेरी सबसे बड़ी खुशी
मेरा झांकना और उसे निहारना शायद उसने देख लिया था। सो वो मुझे और दिखाने के अन्दाज में अपना बलिष्ठ बदन और उभार कर दिखाता था। मेरी नजरें उसे देख कर बदलने लगी।
एक दिन अचानक मुझे लगा कि रात को मुझे कोई वासना में तड़पते हुये देख रहा है। देखने वाला इस घर में अक्कू के सिवाय भला कौन हो सकता था। मेरी तेज निगाहें खिड़की पर पड़ ही गई। यूं तो उस पर काले कागज चिपके हुये थे, अन्दर दिखने की सम्भावना ना के बराबर थी, पर वो कुरेदा हुआ काला कागज बाहर की ओर से दिन में रोशनी से चमकता था। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी ...... तो जनाब यहाँ से मेरा नजारा देखा करते हैं। मैंने अन्दर से कांच को गीला करके उसे अखबार से साफ़ करके और भी पारदर्शी बना दिया।
आज मैं सावधान थी। रात्रि भोजन के उपरान्त मैंने कमरे की दोनों ट्यूब लाईट रोज की भांति जला दी। आज मुझे अक्कू को मुफ़्त शो दिखला कर तड़पा देना था। मेरी नजरें चुपके चुपके से उस खिड़की के छेद को सावधानी से निहार रही थी।
तभी मुझे लगा कि अब वहाँ पर अक्कू की आँख आ चुकी है। मैंने अन्जान बनते हुये अपने शरीर पर सेक्सी अन्दाज से हाथ फ़िराना शुरू कर दिया। कभी कभी धीरे से अपनी चूचियाँ भी दबा देती थी। मेरे हाथ में एक मोमबत्ती भी थी जिसे मैं बार बार चूसने का अभिनय कर रही थी। फिर मैं अपनी एक चूची बाहर निकाल कर उसे दबाने लगी और आहें भरने लगी। मुझे नहीं पता उधर अक्कू का क्या हाल हो रहा होगा। तभी मैंने खिड़की की तरफ़ अपनी गाण्ड की और पेटीकोट ऊपर सरका लिया। ट्यूब लाईट में मेरी गोरी गोरी गाण्ड चमक उठी थी। मैंने अपनी टांगें फ़ैलाई और गाण्ड के दोनों खरबूजों को अलग अलग खोल दिया। मेरी मोमबती अब गाण्ड के छेद पर थी। मैं उसे उस पर हौले हौले घिसने सी लगी। फिर सिमट कर बिस्तर पर गिर कर तड़पने सी लगी। मैंने अपनी अब मजबूरी में अपनी चूत मसल दी और मैं जोर जोर से हांफ़ते हुये झड़ गई। मुझे पता था कि आज के लिये इतना काफ़ी है। फिर मैंने बत्तियाँ बन्द की और सो गई, बिना यह सोचे कि अक्कू पर क्या बीती होगी। पर अब मैं नित्य नये नये एक्शन उसे दिखला कर उसे उत्तेजित करने लगी थी। मकसद था कि वो अपना आपा खो कर मुझ पर टूट पड़े।
अक्कू की नजरें धीरे धीरे बदलने लगी थी। हम सुबह का नाश्ता करने बैठे थे। वो अपना दूध गरम करके पी रहा था और मैं अपनी चाय पी रही थी। उसमें वासना का भाव साफ़ छलक रहा था। वो मुझे एक टक देख रहा था। मैंने भी मौका नहीं चूका। मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें डाल दी। बीच बीच में वो झेंप जाता था। पर अन्ततः उसने हिम्मत करके मेरी अंखियों से अपनी अंखियाँ लड़ा ही दी। मेरे दिल में चुदास की भावना घर करने लगी थी। मैं अब कोई भी मौका नहीं बेकार होने देना चाहती थी। मैं इस क्रिया को मैं चक्षु-चोदन कहा करती थी। हम एक दूसरे को एकटक देखते रहे और ना जाने क्या क्या आँखों ही आँखों में इशारे करते रहे।
मुझसे रहा नहीं गया,"अक्कू, क्या देख रहे हो?"
"वो आपकी ब्रा, खुली हुई है !" वो झिझकते हुये बोला।
मैं एकदम चौंक सी गई पर मेरी आधी चूची के दर्शन तो उसे हो ही गये थे।
"ओह शायद ठीक से नहीं लगी होगी !"
वो उठ खड़ा हुआ,"लाओ मैं लगा दूँ !"
मेरे दिल में गुदगुदी सी उठी। मैं कुछ कहती वो तब तक मेरी कुर्सी के पीछे आ चुका था। उसने ब्लाऊज़ के दो बटन खोले और ब्रा का स्ट्रेप पकड़ कर खींचा। मेरी चूचियाँ झनझना उठी। मैंने ओह करके पीछे मुड़ कर उसे देखा।
"बहुत कसी है ब्रा !"
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