RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
" सर, आप ने तो मुझे मंदिर मे भगवान को साक्षी मान कर पत्नी बनाया था, फिर आपने पत्नी की जगह रखैल बना दिया, मैने वो भी सह लिया, लेकिन अब तो आपने मुझे रंडी बना दिया है, क्या ये ठीक है?" वो हंसते हुए बोले,
"छ्होटी बच्ची थोड़ी हो की मैं काहु और तुम चली जाओ किसी के साथ सोने के लिए ? तुम्हे भी तो खुजली थी शर्मा से चुदाने की." अब आवाज़ तीखी हुई,
" एक तो रहने को आलीशान फ्लॅट दिया है, पैसे की तकलीफ़ नही है, तुम्हे रोज नई वेराइटी मिलती है, फिर भी नखरे दिखती है ? और तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है, मैं चोदु या कोई और चोदे ? चुदाई तो चुदाई ही है ना ? समाज ले अपना शरीर मुझे ही दिया है."
उनका ये रूप देख कर मैं तो हक्का बक्का रह गयी. थोड़ी देर तो क्या बोलना है, कुच्छ सूझा ही नही. फिर जब संभाली तो मैने भी कसर नही छ्चोड़ी. दोनो गुस्से मे आ गये. बात बिगड़ती गई. बड़ा झगड़ा हो गया. मैने कह दिया,
"राजन, तूने मुझे धोखा दिया है. मैं तुझे नही छ्चोड़ूँगी. देख लूँगी. " इस पर तो वो लाल-पीला हो गया. बड़ी हस्ती थी. उसे कोई ऐसा कह जाए तो कैसे सुन लेता ? वो भी बिगड़ा,
"तू ? तू मुझे देख लेगी ? तेरी हैसियत ही क्या है ? मेरे सामने तेरा क्या वजूद है ? मेरे पास पैसे की ताक़त है, सोशियल स्टेटस है, पोलिटिकल कॉंटॅक्ट है, बड़े बड़े नेता से संबंध है, पोलीस और अंडरवर्ल्ड मे पहेचन है. और तू ? एक रंडी मात्रा !! तेरी क्या औकात है की मुझे देख लेगी ? चल खाली कर ये घर अभी का अभी !!" मेरे पास कोई चारा नही था. लेकिन घर छ्चोड़ते हुए मैने अपनी सारी भादश निकल दी,
"राजन, तू देखना , इन सब के बावजूद मैं तुझे हरा दूँगी, मॅट दे दूँगी !! तुझे ये रंडी शिकस्त देगी, शिकस्त !!! " घर तो छ्चोड़ दिया, पर जिए कैसे... कहाँ जाए.... ये सारे प्रश्ना सामने आ गये. मैने फिर एक बार शहर छ्चोड़ दिया. लेकिन जल्द ही भूख-प्यास से मैं उब गई. रातों को हाइवे पर खड़ी रह के ट्रक द्रिवेरोन के साथ सोई और खनेका पैसा जुटाया. एक भले ड्राइवर ने बताया ,
"देल्ही जितना सेक्स का व्यवसाय कहीं नही होगा अपने देश मे. तू सुंदर है. वहाँ तेरी कदर होगी. मैं देल्ही जेया रहा हूँ ये ट्रक ले के, मैं वहाँ कोठे भी जानता हूँ, बैठ जेया, तुझे वहाँ पहुँचा दूँगा." इस तरह नसीब मुझे देल्ही ले आया. मजबूरी मे मुझे वाकई रंडी ही बनना पड़ा. मैने भी वो कोठा पकड़ लिया. सुंदर तो मैं थी ही. मेरा काम चल पड़ा. बहोट कस्टमर आते थे. एक रात मे दस कस्टमर्स को बैठा लेती थी. कोठे की मेडम भी खुश और मैं भी. अब रहने की और खनेकी चिंता तो ना रही. कुच्छ कस्टमर तो खाश हो गये.
यूँ दिन बीत रहे थे.... कुच्छ साल भी बीत गये. अब पैसे भी बन गये थे. लेकिन मैं राजन को नहीं भूली थी. कैसे उस से बदला लूँ, ये सोचती रहती थी.
[दोस्तों, अनुपमा की ज़िंदगी मे फिर कुच्छ ऐसी बात बनी , जो कहानी के रस को ध्यान मे रखते हुए मैं आगे बताऊँगा. ]
फिर एक दिन कुच्छ ऐसी बात हुई की मुझे मेरा हथियार मिल गय....ऱजन को हराने के लिए. और मैं चल पड़ी वापस मुंबई की और.
मुंबई आ के दो महीने तक मैं उस'से नही मिल पाई, क्यों की वो विदेश गया हुआ था. लेकिन उस समय मे मैने अपना काफ़ी काम कर लिया. अब अंतिम वार करने का समय आ गया. राजन के लौटते ही मैं उसे मिली. सेक्सी ड्रेस मे साज धज के गयी थी. मुझे देख के उसे आश्चर्या हुआ. मुहे उपर से नीचे तक देखते हुए बोला,
"थोड़ी फीकी पद गयी हो" मैने कहा,
"हन, आप के बिना ये हाल हो गया मेरा." उसके चेहरे पर अभिमान भारी मुस्कान च्चाई,
"तो अब तेरी अककाल ठिकाने आ गयी ! चली थी मुझे हराने की चॅलेंज दे कर !! कहाँ पिघल गया तेरा वो सब गुमान ?" विनती भारी आवाज़ मे मैं ने कहा,
" अब भूल भी जाइए वो सब, सर ! मैं लौट आई हूँ हमेशा के लिए आप की होने के लिए. आप जो कहेंगे वो सब मैं करूँगी." गंदा हास्या करते हुए वो बोला,
"तो अब घर, पैसा और सुविधा के लिए तू रंडी बनने को भी तैयार हो गयी." मैं ने एक सेक्सी आवाज़ मे कहा,
"वो तो है ही, पर एक बात और भी है, सर,... जिसने मुझे मजबूर किया है." आचरजभरी निगाह से वो मुझे देखता रह गया, लेकिन जब बात समझ मे नही आई तो पुच्छ बैठा,
" और वो क्या है ? " मैं ने एक सेक्सी अंगड़ाई ली और ड्रेस की स्लिट से पूरी जाँघ उसे दिखाते हुए बोली,
"आप की जैसी चुदाई भी तो कोई नही करता, ना !!, आप मुझे रंडी बनके चाहे जिस'के पास भेजे, लेकिन आप को भी मुझे रोज चोदना होगा ! " वो घमंड से फूला ना समाया. वैसे भी सारे मर्द को यही लगता है की उसके जैसी हार्ड चुदाई कोई नही करता. वह भी खुशी भरा चेहरा ले कर बोला,
" तो ये बात है ! ठीक है, तेरे साथ एक प्रोग्राम बनता हूँ" मैं जेया के उसके लॅप मे बैठी और उसके गले मे हाथ डालते हुए कहा,
" मुझे वहीं ले चलो, जहाँ पहली बार चोदा था." उसे सब याद था, बोल पड़ा,
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