Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
07-16-2017, 10:01 AM,
#40
RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन
35

मैं: प्लीज .... मत करो!!!

माधुरी: पर क्यों... मैं कब से आपको बिना टी-शर्ट के देखना चाहती हूँ| पहले ही आप मुझसे दूर भाग रहे हैं और अब आप तो मुझे छूने भी नहीं दे रहे?

मैं: देखो मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ... प्लीज ये मत करो| मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर ही रहा हूँ ना ...

माधुरी: आप मेरी इच्छा बड़े रूखे-सूखे तरीके से पूरी कर रहे हैं|

मैं: मेरी शर्त याद है ना? मैंने तुम्हें प्यार नहीं कर सकता... ये सब मैं सिर्फ ओर सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए कर रहा हूँ और तुम्हें जरा भी अंदाजा नहीं है की मुझे पे क्या बीत रही है|

माधुरी: ठीक है मैं आप के साथ जोर-जबरदस्ती तो कर नहीं सकती| (एक लम्बी सांस लेते हुए) ठीक है कम से कम आप मेरी सलवार-कमीज तो उतार दीजिये|

इतना कहके वो दूसरी ओर मुड़ गई और अब मुझे उसकी कमीज उतारनी थी| मैंने कांपते हुए हाथों से उसकी कमीज को पकड़ के सर के ऊपर से उतार दिया| अब उसकी नंगी पीठ मेरी ओर थी.... उसने अपने स्तन अपने हाथों से ढके हुए थे| वो इसी तरह मेरी ओर मुड़ी... मैंने देखा की उसके गाल बिलकुल लाल हो चुके हैं ओर वो नजरें झुकाये खड़ी है| उसने धीरे-धीरे से अपने हाथ अपने स्तन पर से हटाये.... मेरी सांसें तेज हो चुकी थीं| अगर इस समय माधुरी की जगह भौजी होती तो मैं कब का उनसे लिपट जाता पर ....

धीरे-धीरे उसने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया ... हाय! ऐसा लग रहा था जैसे तोतापरी आम| बस मैं उनका रसपान नहीं कर सकता था! उसने धीरे-धीरे अपनी नजरें उठाएं और शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे स्पर्श करूँगा पर अब तक मैंने खुद को जैसी-तैसे कर के रोका हुआ था| उसने मेरे हाथों को छुआ और अपने स्तनों पर ले गई| इससे पहले की मेरे हाथों का उसके स्तनों से स्पर्श होता मैंने उसे रोक दिया|

माधुरी बोली; "आप मेरी जान ले के रहोगे| आपने अभी तक मुझे स्पर्श भी नहीं किया तो ना जाने आगे आप कैसी घास काटोगे|" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आँखें फेर ली| अब ना जाने उसे क्या सूझी वो नीचे बैठ गई और मेरा पाजामा नीचे खींच दिया और उसके बाद मेरा कच्छा भी खींच के बिलकुल नीचे कर दिया| बिना कुछ सोचे-समझे उसने गप्प से लंड को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी| एक बात तो थी उसे लंड चूसना बिलकुल नहीं आता था... वो बिलकुल नौसिखियों की तरह पेश आ रही थी! यहाँ तक की भौजी ने भी पहली बार में ऐसी चुसाई की थी की लग रहा था की वो मेरी आत्मा को मेरे लंड के अंदर से सुड़क जाएंगी| और इधर माधुरी तो जैसे तैसे लंड को बस मुंह में भर रही थी... मैंने उसे रोका और कंधे से पकड़ के उठाया| मैंने आँगन में बिछी चारपाई की ओर इशारा किया और हम चारपाई के पास पहुँच के रूक गए|

इधर बहार बिलकुल अँधेरा छा गया था ... तकरीबन शाम के पोन चार या चार बजे होंगे और ऐसा लग रहा था जैसे रात हो गई| शायद आसमान भी मुझसे नाराज था! मैंने चारपाई पे उसे लेटने को कहा और वो पीठ के बल लेट गई ... उसने अब भी सलवार पहनी हुई थी, इसलिए मैंने पहले उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खींचते हुए नीचे उतार दिया| उसने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी... उसकी चूत (क्षमा कीजिये मित्रों मैं आज पहली बार मैं "चूत" शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ| दरअसल माधुरी के साथ मेरे सम्भोग को मैं अब भी एक बुरा हादसा मानता हूँ पर आप सब की रूचि देखते हुए मैं इसका इतना डिटेल में वर्णन कर रहा हूँ|)

उसकी चूत बिलकुल साफ़ थी... एक दम गोरी-गोरी थी एक दम मुलायम लग रही थी| देख के ही लगता था की उसने आज तक कभी भी सम्भोग नहीं किया| मैंने अपना पजामा और कच्छा उतारा और उसके ऊपर आ गया|मैं: देखो पहली बार बहुत दर्द होगा|

माधुरी कुछ सहम सी गई और हाँ में अपनी अनुमति दी| मैंने अपने लंड पे थोड़ा और थूक लगाया और उसकी चूत के मुहाने पे रखा| मैं नहीं चाहता था की उसे ज्यादा दर्द हो इसलिए मैंने धीरे से अपने लें को उसकी चूत पे दबाना शुरू किया| जैसे-जैसे मेरा लंड का दबाव उसकी चूत पर पद रहा था वो अपने शरीर को कमान की तरह ऐंठ रही थी| उसने अपने होठों को दाँतों तले दबा लिया पर फिर भी उसकी सिस्कारियां फुट निकली; "स्स्स्स्स्स्स अह्ह्ह्हह्ह माँ ...ह्म्म्म्म्म"

उसकी सिसकारी सुन मैं वहीँ रूक गया... अभी तक लंड का सुपाड़ा भी पूरी तरह से अंदर नहीं गया था और उसका ये हाल था| धीरे-धीरे उसका शरीर कुछ सामान्य हुआ और वो पुनः अपनी पीठ के बल लेट गई| मैंने उससे पूछा; "अभी तो मैं अंदर भी नहीं गया और तुम्हारा दर्द से बुरा हाल है| मेरी बायत मानो तो मत करो वरना पूरा अंदर जाने पे तुम दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाओगी?" तो उसका जवाब ये था; "आप मेरी दर्द की फ़िक्र मत करिये, आप बस एक झटके में इसे अंदर कर दीजिये|" उसकी उत्सुकता तो हदें पार कर रही थी ... मैंने फिर भी उसे आगाह करने के लिए चेतावनी दी; "देखो अगर मैंने ऐसा किया तो तुम्हारी चूत फैट जाएगी... बहुत खून निकलेगा और ..." इससे पहले की मैं कुछ कह पाटा उसने बात काटते हुए कहा; "अब कुछ मत सोचिये.. मैं सब सह लुंगी प्लीज मुझे और मत तड़पाइये|"

अब मैं इसके आगे क्या कहता... मन तो कर रहा था की एक ही झटके में आर-पार कर दूँ और इसे इसी हालत में रोता-बिलखता छोड़ दूँ| पर पता नहीं क्यों मन में कहीं न कहीं अच्छाई मुझे ऐसा करने से रोक रही थी| मैंने लंड को बहार खींचा और एक हल्का सा झटका मारा.. उसकी चूत अंदर से पनिया गई थी और लंड चीरता हुआ आधा घुस गया| उसकी दर्द के मारे आँखें एक दम से खुल गई.. ऐसा लगा मानो बाहर आ जाएँगी| वो एक दम से मुझसे लिपट गई और कराहने लगी; "हाय .... अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह माआआअर अह्ह्ह्हह्ह अन्न्न्न्न" वो मुझसे इतना जोर से लिपटी की मुझे उसके दिल की धड़कनें महसूस होने लगीं थी| माथे पे आया पसीना बाह के मेरी टी-शर्ट पे गिरा| वो जोर-जोर से हांफने लगी थी और इधर मेरा लंड उसकी चूत में सांस लेने की कोशिश कर रहा था| मैं चाह रहा था की जल्द स्व जल्द ये काम खत्म हो पर उसकी दर्द भरी कराहों ने मेरी गति रोक दी थी|

करीब दस मिनट लगे उसे वापस सामान्य होने में.. और जैसे ही मैंने अपने लंड को हिलाने की कोशिश की तो उसने मेरी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ के मुझे रोक दिया और अपने ऊपर खींच लिया| मैंने सीधा उसके होंठों पे पड़ा और उसने अपने पैरों को मेरी कमर पे रख के लॉक कर दिया| अब उसने मेरे होठों को बारी-बारी से चूसना शुरू कर दिया और मैं भी अपने आप को रोक पाने में विफल हो रहा था| अँधेरा छा रहा था और कुछ ही समय में अँधेरा कूप हो गया| ऐसा लगा जैसे आसमान मुझसे नाराज है और अब कुछ ही देर में बरसेगा| मन ही मन मैं आसमान की तुलना भौजी से करने लगा और मुझे माधुरी पर और भी गुस्सा आने लगा| आखिर उसी की वजह से भौजी की आँखों में आंसू आये थे! मैंने धीरे-धीरे लंड को बहार खींचा और अबकी बार जोर से अंदर पेल दिया! उसकी चींखें निकली; "आआअक़आ अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह" अब मैं बस उसपे अपनी खुंदक निकालना चाहता था और मैंने जोर-जोर से शॉट लगाना शुरू कर दिया| इस ताकतवर हमले से तो वो लघ-भग बेसुध होने लगी| पर दर्द के कारन वो अब भी होश में लग रही थी उसकी टांगों का लॉक जो मेरी कमर के इर्द-गिर्द था वो खुल गया था|

दस मिनट बाद उसकी चूत ने भी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी थी| अब वो भी नीचे से रह-रह के झटके दे रही थी| तभी अचानक वो एक बार मुझसे फिर लिपट गई और फिर से अपनी टांगों के LOCK से मुझे जकड लिया और जल्दी बाजी में उसने मेरी टी-शर्ट उतार फेंकी| अब उसका नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म से एक दम से चिपका हुआ था| मुझे उसके तोतापरी स्तन अपनी छाती पे चुभते हुए महसूस हो रहे थे ... उसके निप्पल बिलकुल सख्त हो चुके थे! वो मेरे कान को अपने मुंह में ले के चूसने लगी| वो शुक्र था की अँधेरा हो गया जिसके कारन उसे मेरी छाती बने LOVE BITES नहीं दिखे! वो झड़ चुकी थी !!! अंदर से उसकी चूत बिलकुल गीली थी.... और अब आसानी से मेरा लंड अंदर और बहार आ जा सकता था| शॉट तेज होते गए और अब मैं भी झड़ने को था| अब भी मुझे अपने ऊपर काबू था और मैंने खुद को उसके चुंगल से छुड़ाया और लंड बहार निकाल के उसके स्तनों पे वीर्य की धार छोड़ दी| गहरी सांस लेते हुए मैं झट से खड़ा हुआ क्योंकि मैं और समय नहीं बर्बाद करना चाहता था| घडी में देखा तो करीब छः बज रहे थे| इतनी जल्दी समय कैसे बीता समझ नहीं आया| तभी अचानक से झड़-झड़ करके पानी बरसने लगा| मानो ये सब देख के किसी के आंसूं गिरने लगे, और मुझे ग्लानि महसूस होने लगी|

माधुरी भी उठ के बैठ गई और बारिश इ बूंदों से अपने को साफ़ करने लगी| अँधेरा बढ़ने लगा था और अब हमें वहां से निकलना था| मैंने माधुरी से कहा;

"जल्दी से कपडे पहनो हमें निकलना होगा|"

माधुरी: जी ....

इसके आगे वो कुछ नहीं बोली, शायद बोलने की हालत में भी नहीं थी| हमने कपडे पहने और बहार निकल गए| मैंने माधुरी से और कोई बात नहीं की और चुप-चाप ताला लगा के निकल आया ... मैंने पीछे मुड़ के भी नहीं देखा| मैं जानबूझ के लम्बा चक्कर लगा के स्कूल की तरफ से घर आया... बारिश होने के कारन मैं पूरा भीग चूका था| घर पहुंचा तो अजय भैया छाता ले के दौड़े आये;

अजय भैया: अरे मानु भैया आप कहाँ गए थे?

मैं: यहीं टहलते-टहलते आगे निकल गया वापस आते-आते बारिश शुरू हो गई तो स्कूल के पास रूक गया| पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, मुझे लगा आप लोग परेशान ना हो तो ऐसे ही भीगता चला आया|

अजय भैया: चलो जल्दी से कपडे बदल लो नहीं तो बुखार हो जायेगा|

अजय भैया ने मुझे बड़े घर तक छाते के नीचे लिफ्ट दी| घर पहुँच के मैंने कपडे बदले ... पर अब भी मुझे अपने जिस्म से माधुरी के जिस्म की महक आ रही थी| मैं नहाना चाहता था.. इसलिए मैं स्नानघर गया और वहीँ नहाना चालु कर दिया| स्नानघर ऊपर से खुला था मतलब एक तरह से मैं बारिश के पानी से ही नह रहा था| साबुन रगड़-रगड़ के नहाया ... मैंने सोचा की साबुन की खुशबु से माधुरी के देह (शरीर) की खुशबु निकल ही जाएगी|जैसे ही नहाना समाप्त हुआ मैंने तुरंत कपडे बदले पर अब तक देर हो चुकी थी... सर्दी छाती में बैठ चुकी थी क्योंकि मुझे छींकें आना शुरू हो गई थीं| कंप-काँपि शुरू हो गई और मैं एक कमरे में बिस्तर पे लेट गया| पास ही कम्बल टांगा हुआ था उसे ले के उसकी गर्मी में मैं सो गया| करीब एक घंट बाद अजय भैया मुझे ढूंढते हुए आये और मुझे जगाया ... बारिश थम चुकी थी और मैं उनके साथ रसोई घर के पास छप्पर के नीचे आके बैठ गया| दरअसल भोजन तैयार था... और मुझे लगा जैसे भौजी जानती हों की मैं कहाँ था और किस के साथ था| शायद यही कारन था की वो मुझसे बात नहीं कर रही थी और अब तो नेहा को भी मेरे पास नहीं आने दे रहीं थी|

मन ख़राब हो गया और मैं वहां से वापस बड़े घर की ओर चल पड़ा| पीछे से पिताजी ने मुझे भोजन के लिए पुकारा पर मैंने झूठ बोल दिया की पेट ख़राब है| मैं वापस आके अपने कमरे (जिसमें हमारा सामान पड़ा था) में कम्बल ओढ़ के सो गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था.... जब सुबह आँख खुली तो माँ मुझे जगाने आई थी ओर परेशान लग रही थी|

बड़ी मुश्किल से मेरी आँख खुली;

मैं: क्या हुआ?

माँ: तेरा बदन बुखार से टप रहा है ओर तू पूछ रह है की क्या हुआ? कल तू बारिश में भीग गया था इसीलिए ये हुआ... ओर तेरी आवाज इतनी भारी-भारी हो गई है| हे राम!!! .. रुक मैं अभी तेरे पिताजी को बताती हूँ|

मैं वापस सो गया, उसके बाद जब मैं उठा तो पिताजी मेरे पास बैठे थे;

पिताजी: तो लाड-साहब ले लिए पहली बारिश का मजा ? पड़ गए ना बीमार? चलो डॉक्टर के|

मैं: नहीं पिताजी बस थोड़ा सा बुखार ही है... क्रोसिन लूंगा ठीक हो जाऊँगा|

पिताजी: पर क्रोसिन तो ख़त्म हो गई... मैं अभी बाजार से ले के आता हूँ| तू तब तक आराम कर!

पिताजी चले गए ओर मैं वापस कम्बल सर तक ओढ़ के सो गया| 

जब नींद खुली तो लगा जैसे कोई सुबक रहा हो... मैंने कम्बल हटाया तो देखा सामने भौजी बैठी हैं| मैं उठ के बैठना चाहा तो वो चुप-चाप उठ के चलीं गई| एक तो कल से मैंने कुछ खाया नहीं था ओर ऊपर से मजदूरी भी करनी पड़ी (माधुरी के साथ)| खेर मैं उन्हें कुछ नहीं कह सकता था इसलिए मैं चुप-चाप लेट गया| भौजी का इस तरह से मुंह फेर के चले जाना अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था| मैं उनसे एक आखरी बार बात करना चाहता था .... मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता था बस उनसे माफ़ी माँगना चाहता था| मैं जैसे-तैसे हिम्मत बटोर के उठ के बैठा ... कल से खाना नहीं खाया था और ऊपर से बुखार ने मुझे कमजोर कर दिया था| तभी भौजी फिर से मेरे सामने आ गईं और इस बार उनके हाथ में दूध का गिलास था| उन्होंने वो गिलास टेबल पे रख दिया और पीछे होके खड़ी हो गईं.... क्योंकि टेबल चारपाई से कोई दो कदम की दूरी पे था तो मैं उठ के खड़ा हुआ और टेबल की ओर बढ़ा| मुझे अपने सामने खड़ा देख उनकी आँखों में आंसूं छलक आये ओर वो मुड़ के जाने लगीं| मैंने उनके कंधे पे हाथ रख के उन्हें रोलना चाहा तो उन्होंने बिना मूड ही मुझे जवाब दिया; "मुझे मत छुओ !!!" उनके मुंह से ये शब्द सुन के मैं टूट गया ओर वापस चारपाई पे जाके दूसरी ओर मुंह करके लेट गया|

करीब एक घंटे बाद भौजी दुबारा आईं...

भौजी: आपने दूध नहीं पिया?

मैं: नहीं

भौजी: क्यों?

मैं: वो इंसान जिससे मैं इतना प्यार करता हूँ वो मेरी बात ही ना सुन्ना चाहता हो तो मैं "जी" के क्या करूँ?

भौजी: ठीक है... मैं आपकी बात सुनने को तैयार हूँ पर उसके बाद आपको दूध पीना होगा|

मैं उठ के दिवार का सहारा लेटे हुए बैठ गया और अब भी अपने आप को कम्बल में छुपाये हुए था|

मैं: मैं जानता हूँ की जो मैंने किया वो गलत था... पर मैं मजबूर था! जिस हालत में मैंने माधुरी को देखा था उस हालत में आप देखती तो शायद आप मुझसे इतना नाराज नहीं होतीं| मानता हूँ जो मैंने किया वो बहुत गलत है ... उसकी कोई माफ़ी नहीं है पर मैं अपने सर पे किसी की मौत का कारन बनने का इल्जाम नहीं सह सकता| और आपकी कसम कल जो भी कुछ हुआ मैंने उसे रत्ती भर भी पसंद नहीं किया... सब मजबूरी में और हर दम आपका ही ख़याल आ रहा था मन में| मैंने कुछ भी दिल से नहीं किया... सच! प्लीज मेरी बात का यकीन करो और मुझे माफ़ कर दो!!!

भौजी: ठीक है.. मैंने आपकी बात सुन ली अब आप दूध पी लो|
(इतना कह के भौजी उठ के दूध का गिलास उठाने लगीं)

मैं: पहले आप जवाब तो दो?

भौजी: मुझे सोचना होगा...

मैं: फिर जवाब रहने दो... मेरी सब बात सुनने के बाद भी अगर आपको सोच के जवाब देना है तो जवाब मैं जानता हूँ|
(इतना कह के मैं फिर से लेट गया| पर भौजी नहीं मानी... और गिलास ले के मुझे उठाने के लिए उन्होंने सर से कम्बल खींच लिया|)

भौजी: आपको क्या लगता है की इस तरह अनशन करने से मैं आपको माफ़ कर दूंगी? आपमें और आपके भैया में सिर्फ इतना फर्क है की उन्होंने मेरी पीठ पे छुरा मार तो आपने सामने से बता के! अब चलो और ये दूध पियो|

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठाने की कोशिश की| तभी उनको पता चला की बुखार और भी बढ़ चूका है|
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RE: Hot Sex stories एक अनोखा बंधन - by sexstories - 07-16-2017, 10:01 AM

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