RE: Desi Chudai Kahani बुझाए ना बुझे ये प्यास
प्राची को भी चूत चूसवाने मे बहोत मज़ा आ रहा था उसकी चूत
भी पानी छोड़ना चाहती थी... लेकिन उसे महक के साथ गंदी बातें
करने मे बहोत आनंद आ रहा था.. वो एक बार फिर शुरू हो गयी.
"रांड़ ज़रा अपनी तरफ देख... तेरी गॅंड से राज का वीर्या कैसे तपाक
रहा है.... और तुम्हारा मुँह मेरी चूत मे घुसा हुआ है.... तू
सही मे रंडी है... चूस मेरी चूत को जोरों से चूस... हाआँ
जोरों से चूवस रुकना मत.... ऑश हाआँ चूस जोरों से चूवस खा
जा मेरी चूत को.... ओह भगवान.." और जैसे किसी नदी बाँध खुल
जाता है उसकी चूत पनी पर पानी छोड़ने लगी.
जैसे ही प्राची की चूत का रस महक के मुँह मे घुसा वो चटकारे
लेकर उसे पीने लगी.. अपनी जीब घूम घूमा कर चाटने लगी...
थोड़ी ही देर मे वो निढाल हो कर ज़मीन पर पसार गयी... और अपना
सिर प्राची की जांघों पर रख किसी बची की तरह अपनी साँसे
संभालने लगी.
"मुझे पता है की ये तुम्हारा पहला मौका था की किसी लड़की की चूत
चूसने का लेकिन तुमने अछा कम किया... मुझे लगता है की हमे
जल्दी ही मिलना पड़ेगा जिससे में तुम्हे और बहोत कुछ सीखा सकूँ."
प्राची ने महक से कहा.
"शुक्रिया तुम बहोत आक्ची हो." महक ने कहा.
थोड़ी ही देर मे राज और प्राची अपने अपने कपड़े पहन जाने को तय्यार
थे.... जब वो जाने लगे तो प्राची महक के नज़दीक आई और उसके
कान मे फुसफुसा, "मेरी प्यारी रॅंड हम जल्दी ही मिलेंगे... मेरे
कुछ दोस्त है जो तुमसे मिलना चाहेंगे." फिर उसे आँख मारते हुए वो
राज के साथ चली गयी.
* * * * * * * * * *
थोड़े दिन बाद महक का पति फिर एक बार सहर के बाहर चला
गया... महक अपने आप को बहोत अकेला महसूस कर रही थी.... क्तचें
के टेबल पर बैठे वो अपने साथ बीती घटनाओं को याद कर रही
थी.... वो अपने इस नई अनुभव को..ऽने नई दोस्तों के राज को किसी
के साथ बाँटना चाहती थी... लेकिन डरती थी की कहीं उसका ये राज़
उसके पति को ना पता चल जाए... फिर खड़े हो कर वो अपने कमरे
मे आ गयी और कुछ रिपोर्ट तय्यार करने लगी जो उसे क्लब मे रजनी को
देनी थी.
थोड़ी देर बाद वो रिपोर्ट तय्यार कर ही रही थी की दरवाज़े पर
दस्तक हुई.. उसने दरवाज़ा खोला तो देख की रजनी खड़ी थी.
"यहाँ से गुज़र रही थी तो मेने सोचा की रिपोर्ट क्यों ना में ही
लेती जाती जायों नही तो तुम्हे क्लब आने की तकलीफ़ उतनी पड़ती."
रजनी ने कहा.
"बहोट अछा किया... आओ अंदर आओ.." महक ने कहा... "तुम सोफे पर
बैठो में रिपोर्ट लेकर आती हून." कहकर वो अपने कमरे मे चली
गयी.
लौटकर महक ने रजनी को कोफ़ी के लिए पूछा जिसके लिए उसने हन
कर दी.. कॉफी पीते हुए दोनो बातें करने लगी.
बातों के दौरान महक ने देखा की रजनी ने एक छोटी स्कृत पहन
रखी और उसकी पतली और चिकनी टाँगे सॉफ दीखाई दे रही
थि....Mएहक की आँखे उसकी टाँगों के बीच खो गयी...
आज से पहले उसके दिल मे कभी किसी औरत को लेकर ख़याल नही आया
था लेकिन जबसे प्राची के साथ जो कुछ हुआ था उसका दिल सब कुछ
सोचने लगा था... वो सोचने लगी की रजनी की चूत कैसी लगती
होगी.. उसकी चूत पर कितने बॉल होंगे... या फिर उसने अपनी चूत
सफाचत की हुई होगि....वो सिर्फ़ सोच भर से ही गर्माती जा रही
थी..
"कहाँ खो गयी महक...?" उसे रज़ीनी की आवाज़ सुनाई दी.
महक की सोच टूटी, "माफ़ करना रजनी.... तो तुम क्या कह रही थी?"
"ये क्या हो गया है तुम्हे आजकल," रजनी ने पूछा, "में देख रही
हूँ की क्लब मे भी आजकल तुम बात बात पर कहीं खो जाती हो."
महक की समझ मे नही आया की वो क्या जवाब दे... वैसे वो दिल से
तो अपने राज़ को किसी के साथ बाँटना चाहती थी... लेकिन दिल ही दिल
मे उसे डर भी लग रहा था... वो अपने सीने मे इस बोझ को ज़्यादा दिन
नही धो सकती थी.. और अगर कोई उसकी मजबूरी और परिस्थिति को
समझ सकता था वो सिर्फ़ रजनी थी.. उसकी समाज मे इज़्ज़त भी थी और
लोग उसे बहोत मानते भी थे.... फिर थोड़ी देर सोच कर उसने धीरे
से कहा.
"रजनी जो में तुम्हे बताने जा रही हून.. क्या इस बात को तुम अपने
तक ही रख सकोगी....?"
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