Desi Chudai Kahani बुझाए ना बुझे ये प्यास
बुझाए ना बुझे ये प्यास
हेल्लो दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी
लेकर आपके सामने हाजिर हूँ ये कहानी कुछ ज्यादा ही लम्बी है
रजनी के साथ गुज़ारे वक्त के बाद महक की काम वासना इतनी बढ़
गयी थी की शांत होने का नाम नही ले रही थी... हर वक्त उसके
बदन मे आग लगी रहती थी. चुदाई के अलावा कुछ भी उसके दीमाग मे
नही था. हर वक्त वो सोचती रहती थी की कैसे अपनी आग को शांत
करूँ..
जब भी उसका पति तौर पर से वापस आता तो उसकी ये समस्या और बढ़
जाती... पहले वो मनाया करती थी की उसका पति टूर पर बाहर ना
जाए.. लेकिन अब वो कामना करती थी की वो जल्दी ही टूर पर चला
जाए...
रजनी के साथ बिताए दिन के कुछ दिन बाद उसका पति घर आया था..
उसने अपना समान भी नही रखा और महक को अपनी बाहों मे भींच
अपनी गोद मे उठा लिया और बेडरूम मे ले गया.... लेकिन हर बार की
तरह की इसके पहले की उसे मज़ा आना शुरू होता... वो एक हुंकार
भर उसकी छूट मे झाड़ गया... महक एक बार फिर प्यासी रह गयी...
वो उसके नंगे बदन पर से उठा और नहाने चला गया. .. दूसरे दिन
उसके पति ने उसे बताया की उसके बॉस ने उसे वादा किया है की अब एक
महीने तक वो उसे तौर पर नही भेजेगा.
इस बात को एक हफ़्ता बीत चुका था.. महक थी की अपनी काम अग्नि मे
जल रही थी. वो पागल हो रही थी.. उसकी समझ मे नही आ रहा
था की वो क्या करे.. अभी तीन हफ्ते पड़े थे उसके पति को टूर पर
जाने के लिए.... हन वो हस्तमैथुन कर कुछ देर के लिए अपनी
चूत की आग को शांत कर लेती थी लेकिन उसे एक मोटा और तगड़ा लंड
चाहिए था अपनी चूत मे... वो सोचने लगी की क्यों ना वो राज को
बुला ले... जब उसका पति सुबह काम पर चला जाएगा तो वो दिन मे
उससे चुड़वा सकती थी. .... उसने घड़ी मे देखा शाम के 5.00 बाज
चुके थे.. नही उनका आने का समय हो गया है.. में उसे फोन पर
बात कर कल का टाइम फिक्स कर लेती हूँ.... सोचते हुए उसने फोन
उठाया और राज का नंबर डायल किया.... जब वाय्स मैल आया तो बीप
के बाद उसने बोलना शुरू किया.
"हॅ जान कहाँ हो? देखो ना में कितना तड़प रही हूँ तुम्हारे
बिना... मेरी चूत को तुम्हारे लंड की ज़रूरत है... कल सुबह मेरे
पति के काम पर चले जाने के बाद क्या तुम आकर मेरी चूत की
प्यास बुझा सकते हो? शाम 6.00 बजे के पहले मुझे फोन करना
जिससे हम सब कुछ तय कर लेंगे." इतना कहकर महक ने फोन काट
दिया.
राज ने महक का मेसेज देख लिया था लेकिन वो जान बुझ कर 6.15
बजे तक रुके रहा.... महक किचन मे थी जब राज का फोन
आया.... उसका पति दूसरे कमरे मे कपड़े बदल रहा था... वो उससे
बात नही करना चाहती थी... पर डर रही थी की कहीं वो दोबारा
फोन करे ही नही... वो उससे मिलना चाहती थी... उसने फोन उठा
कर धीरे से कहा, "हेलो"
"कहो मेरी रांड़... अपने पति के बाहर जाने का भी इंतेज़ार नही कर
सकती इतनी चूत मे आग लगी हुई है क्या?' राज ने उसे चिढ़ाते हुए
कहा.
राज की आवाज़ ने ही उसे उत्तेजित कर दिया... उसकी चूत मे चीटियाँ
चलने लगी, "हां नही रह सकती... में तुमसे कल मिलना चाहती
हूँ.... क्या तुम आ सकते हो?" उसने पूछा.
"क्या तुम मेरा लंड चूसना चाहती हो?" उसने फिर उसे चिड़ाया.
"हन" उसने धीरे से कहा.
"क्या तुम चाहती हो की में तुम्हारी चूत मे लंड घुसा कर तुम्हे
चोदु?"
"हां हां." उसने थोडा उँची आवाज़ मे कहा.
राज अपनी बातों से उसे इतना उत्तेजित कर रहा था की उसकी समझ मे
नही आ रहा था की क्या करे... उसका दिल तो कर रहा था की वो वहीं
अपनी चूत मे उंगली डाल कर अपनी गर्मी शांत कर ले... लेकिन उसे
एहसास था की वो कहाँ है.. और उसका पति कपड़े बदल कर आता ही
होगा.. उसने अपने आप को संभाला और पूछा, "क्या तुम आ सकते हो?"
"वैसे तो मुझे काम है... लेकिन फिर भी में खाने की छुट्टी मे
एक घंटे के लिए आ सकता हूँ.. यही कोई 2.00 बजे."
महक ने फोन रखा ही था की उसका पति आ गया.
"फोन की घंटी बाजी थी ना... कौन था?" उसने पूछा.
"हां, रजनी थी." उसने जवाब दिया.. उसे पता था की इसके आगे वो
कोई सवाल नही पूछेगा.
"मुझे वो औरत बिल्कुल पसंद नही है... वो एक गंदे चाल चलन
की औरत है.. अमन (रजनी का पति) के इतने अच्छे नाम को उस क्लब मे
मिट्टी मे मिली रही है.. वो गैर मर्दों के साथ सोती है.. अगर तुम
उसका साथ छोड़ दो तो मुझे अछा लगेगा.. वरना लोग तुम्हे उसकी साथी
समझने लगेंगे." उसके पति ने कहा.
"अब चुप भी करो.. तुम्हे पता है की मुझे उसके साथ रहना पड़ता
है.. वो हमारी संस्था की हेड है.. " महक ने जवाब दिया.
"वो होगी तुम्हारी संस्था की हेड... लेकिन में नही चाहूँगा की मेरी
पत्नी इतनी गिरी हुई औरत से कोई संबंध रखे." अजय सहगल ने
अपनी पत्नी महक से थोड़ा खीजते हुए कहा.
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