RE: Kamukta Kahani मेरी बहन कविता
मैं एक दम हक्का बक्का सा खड़ा रह गया. दीदी ने मेरे हाथो को जोर से झटक दिया और एक दम सीधी बैठती हुई बोली “हरामी…सूअर…क्या कर रहा….था…शर्म नहीं आती तुझे….” कहते हुए आगे बढ़ कर चटक से मेरी गाल पर एक जोर दार थप्पड़ रशीद कर दिया. इस जोरदार झापड़ ने मुझे ऊपर से निचे तक एक दम झन-झना दिया. मेरे होश उर चुके थे. गाल पर हाथ रखे वही हतप्रभ सा खड़ा मैं निचे देख रहा था. दीदी से नज़र मिलाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था. दीदी ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकर लिया और अपने पास खींचते हुए मुझे ऊपर से निचे तक देखा. मैं काँप रहा था. मुझे लग रहा था जैसे मेरे पैरों की सारी ताकत खत्म हो चुकी है और मैं अब निचे गिर जाऊंगा. तभी दीदी ने एक बार फिर कड़कती हुई आवाज़ में पूछा “कमीने…क्या कर रहा था…जवाब क्यों नहीं देता….” फिर उनकी नज़रे मेरे हाफ पैंट पर पड़ी जो की आगे से अभी भी थोड़ा सा उभरा हुआ दिख रहा था. हिकारत भरी नजरो से मुझे देखते हुए बोली “यही काम करने के लिए तू….मेरे पास….छि….उफ़….कैसा सूअर…..”. मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था मगर फिर भी हिम्मत करके हकलाते हुए मैं बोला “वो दीदी…माफ़..मैं…..मुझे…माफ़…मैं अब…आ….आगे…” पर दीदी ने फिर से जोर से अपना हाथ चलाया. चूँकि वो बैठी हुई थी और मैं खड़ा था इसलिए उनका हाथ सीधा मेरे पैंट के लगा. ऐसा उन्होंने जान-बूझ कर किया था या नहीं मुझे नहीं पता मगर उनका हाथ थोड़ा मेरे लण्ड पर लगा और उन्होंने अपना हाथ झटके से ऐसे पीछे खिंच लिया जैसे बिजली के नंगे तारो ने उन को छू लिया हो और एकदम दुखी स्वर में रुआंसी सी होकर बोली “उफ़….कैसा लड़का है…..अगर माँ सुनेगी….तो क्या बोलेगी…ओह…मेरी तो समझ में नहीं आ रहा…मैं क्या करू…”. बात माँ तक पहुचेगी ये सुनते ही मेरी गांड फट गई. घबरा कर कैसे भी बात को सँभालने के इरादे से हकलाता हुआ बोला “दीदी…प्लीज़….माफ़…कर दो…प्लीज़….अब कभी…ऐसा…नहीं होगा….मैं बहक गया…था…आज के बाद…प्लीज़ दीदी…प्लीज़…मैं कही मुंह नहीं दिखा पाउँगा…मैं आपके पैर….” कहते हुए मैं दीदी के पैरों पर गिर पड़ा. दीदी इस समय एक पैर घुटनों के पास से मोर कर बिस्तर पर पालथी मारने के अंदाज में रखा हुआ था और दूसरा पैर घुटना मोर कर सामने सीधा रखे हुए थी. मेरी आँखों से सच में आंसू निकलने लगे थे और वो दीदी के पैर के तलवे के उपरी भाग को भींगा रहे थे. मेरी आँखों से निकलते इन प्रायश्चित के आंसुओं ने शायद दीदी को पिघला दिया और उन्होंने धीरे से मेरे सर को ऊपर की तरफ उठाया. हालाँकि उनका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था और वो उनकी आँखों में दिख रहा था मगर अपनी आवाज़ में थोड़ी कोमलता लाते हुए बोली “ये क्या कर रहा था तू…..तुझे लोक लाज…मान मर्यादा किसी भी चीज़ की चिंता नहीं….मैं तेरी बड़ी बहन हूँ….मेरी और तेरी उम्र के बीच…नौ साल का फासला है….ओह मैं क्या बोलू मेरी समझ में नहीं आ रहा….ठीक है तू बड़ा हो गया है…मगर…..क्या यही तरीका मिला था तुझे….उफ़…” दीदी की आवाज़ की कोमलता ने मुझे कुछ शांति प्रदान की हालाँकि अभी भी मेरे गाल उनके तगड़े झापर से झनझना रहे थे और शायद दीदी की उँगलियों के निशान भी मेरी गालों पर उग गए थे. मैं फिर से रोते हुए बोला “प्लीज़ दीदी मुझे…माफ़ कर दो…मैं अब दुबारा ऐसी…गलती….”. दीदी मुझे बीच में काटते हुए बोली “मुझे तो तेरे भविष्य की चिंता हो रही है….तुने जो किया सो किया पर मैं जानती हूँ…तू अब बड़ा हो चूका है….तू क्या करता है…. कही तू अपने शरीर को बर्बाद….तो नहीं…कर रहा है”
मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तू कही….अपने हाथ से तो नहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई. दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
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