RE: Chudai Kahani ये कैसा परिवार !!!!!!!!!
थोड़ी देर बाद अंदर घुटन सी होने पर वो रूम से बाहर आकर खड़ी हो गई तो उसने देखा की ड्राइवर अपपनी गाड़ी के बाहर ही खड़ा था और अपपने हाथ से अपपने लिंग को सहला रहा था रत्ना का पारा फिर से चढ़ने लगा लेकिन ड्राइवर के लिए वो परेशान न्ही थी उसने रमेश के रूम मैं झाँकने की कोशिस की लेकिन ये बहुत रिस्की था ..आख़िर मान सम्मान की बात थी लेकिन उसने भी सोच लिया कि यहा से जाने के बाद तो कोई रास्ता न्ही है लेकिन दूसरी तरफ उसका ध्यान रितेश की तरफ भी था रमेश तो उसके साथ ही थे आज न्ही तो कल रमेश के आगोश मैं उसे आना ही था लेकिन अगर रितेश निकल गया तो फिर एसा मुर्गा उसे न्ही मिलने वाला था इसलिए वो पलट कर रितेश के रूम की तरफ गई और हौले से नॉक किया ..1 बार की नॉक मैं ही रूम का दरवाजा बड़े आराम से ओपन हुआ जिसका मतलब की रितेश इंतज़ार ही कर रहा था इस तरह से दरवाज़ा खुलता देख कर रत्ना हड़बड़ा गई क्योंकि उसे लगा था कि वो तो सो रहा होगा ....रितेश दरवाज़ा बंद कर बाहर आ गया ..
रितेश- मैं जानता था कि तुम ज़रूर आओगी
रत्ना- कैसे ?
रितेश- मुझे अहसास था
रत्ना- लेकिन मैने तो कोई इशारा न्ही किया था
रितेश- तुम्हारी निगाहे ही मुझे बता रही थी तुम आज की रात मुजसे ज़रूर मिलॉगी
रत्ना- मैने भी देखा था कि मेरे पति भी तुम्हारी पत्नी का साथ चाहते है
रितेश- समझता हूँ लेकिन अभी ये पासिबल न्ही है क्योंकि वो MC मैं है
रत्ना- तो इसका मतलब है कि तुम अभी भूखे हो
रितेश- पेट भरा होता तो यहा बाहर नींद खराब करता अब टाइम मत खराब करो बातें तो हम रास्ते मैं भी कर लेंगे
रत्ना- आरीई ..छोड़ो कोई देख लेगा
रितेश- कोई न्ही देखेगा केवल 1 किस दो
रत्ना- न्ही ...
रितेश- कॉलेज मैं भी तुम एसे ही करती थी...
रत्ना- तुम्हे अभी तक याद है
रितेश- तुम क्या भूलने वाली चीज़ हो हम तो शादी कर चुके होते अगर मेरे डॅडी ने प्रेशर ना डाला होता
रत्ना- छोड़ो भी पुरानी बातें मैं न्ही जानती कल क्या हुआ था ..बॅस आज की देखो
रितेश- हम कॉलेज के सबसे हॉट कपल हुआ करते थे ....और तुम्हारे अबॉर्षन के लिए मैने कितना उधार ले लिया था बाप रे..
रत्ना- ऑफ ओ तुम मुझे पुराने दिन क्यों याद दिला रहे हो
रितेश- तो 1 किस दो ना
रत्ना- तो मैं क्या हाथ मैं लेकर दूँ ..तुम्हारे हाथ पैर टूट गये है क्या
रितेश- ओह्ह्ह....मेरी जान ये कहते हुए उसके हाथ उसके नितंबो पर पूरी तरह से कस गये थे और इतनी गरम्जोशी की वज़ह से ठंडी मैं भी पसीना आ गया था रत्ना को तभी दरवाज़ा खड़खड़ाने की आवाज़ आई दोनो स्तर्क हुए और दूर दूर खड़े हो गये . तभी रमेश के रूम का दरवाज़ा खुला और रमेश बाहर आए और रत्ना के दरवाज़े के पास आकर खड़े हो गये ...रत्ना ये देखकर बहुत खुश हो गई कि उसका निशाना ठीक बैठा है और रमेश भी उसकी ओर आकर्षित हो गये थे .
दरवाज़े तक पहुचते ही रत्ना उनके पास आकर खड़ी हो गई
रत्ना- भाई साहब आप....कोई काम था क्या
रमेश- वो..वू.... मुझे कुछ....
रत्ना- हां कहिए
रमेश- तुम बाहर क्या कर रही हो
रत्ना- बस थोडा नींद न्ही आ रही थी इसलिए बाहर निकल आई थी
रमेश- मुझे वो मुझे तुमसे कुछ कहना था
रत्ना- जी भाई साहब कहिए
रमेश- मैं तुमसे अकेले मैं बात करना चाहता हूँ
रत्ना- जी मुझसे अकेले मैं लेकिन क्या .......
रमेश- तुम समझ सकती हो मुझे न्ही लगता कि तुम अंजान हो
रत्ना- जी मैं समझी न्ही
रमेश- तुम ही मुझे बार बार अपपनी तरफ खीच रही हो और मुझे अब तुम्हारा साथ चाहिए
रत्ना- लगता है आप होश मैं न्ही है
रमेश- मैं होश मैं हूँ लेकिन तुम नाटक कर रही हो
रत्ना- [दिल हीदिल मैं खुश] कैसा नाटक आप मेरे जेठ है
रमेश- ये बताने की ज़रूरत न्ही है तुम्हे ,मैं जानता हूँ कि तुम क्या चाहती हो लेकिन दुबारा मेरे करीब मत आना .
रत्ना- जी सुनिए...
लेकिन रमेश बिना कुछ सुने ही अपपने रूम मैं चला जाता है और बाहर न्ही निकलता रत्ना भी थोड़ी देर बाद अपपने रूम मैं जाती है रितेश तो रमेश को देखते ही चुपचाप रूम मैं जा चुका था
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