प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:42 PM,
#82
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैंने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। क्या मस्त गांड थी। लंड बिना परेशानी के अन्दर बाहर होने लगा। इस तरह से तो मेरा लंड मधु की गांड में भी नहीं जाता। मेरा पप्पू तो मस्त ही हो गया। उसने एक बार जोर से अपनी गांड अन्दर की ओर सिकोड़ी। मैं तो उसे मना करता ही रह गया। उसके ऐसा करने से मुझे लगा कि मेरा लंड और सुपाड़ा अन्दर कुछ फूल सा गया है। अब तो इसे बिना पानी निकाले बाहर नहीं निकाला जा सकता है। अब मैंने धक्कों कि रफ्तार (गति) बढ़ानी शुरू कर दी। वो तो बस मस्त हुई आह। उईई … करने लगी। उसने अपना एक अंगूठा अपने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी। मैंने उसका एक उरोज अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने लगा। उसका गांड का छल्ला (ऐनल रिंग) अन्दर बाहर होता साफ़ नजर आ रहा था। बिलकुल लाल रंग का। जैसे कोई पतली सी गोल ट्यूब लाईट जल और बुझ रही हो जैसे ही मेरा लंड अन्दर जाता छल्ला भी अन्दर चला जाता और जैसे ही लंड बाहर निकालता छल्ला बाहर आ जाता। मैंने देखा उसकी गांड से थोड़ा खून भी निकल रहा है पर वो तो दर्द की परवाह किये बिना मेरे धक्कों के साथ ताल मिला रही थी। उसके मुंह से सीत्कार निकल रही थी।

मुझे नहीं पता कितनी देर मैं अपने लंड को उसकी गांड में अन्दर बाहर करता रहा। मुझे तो लगा जैसे वक़्त रुक सा गया है। एक उचटती सी निगाह मैंने दीवाल घडी पर डाली। घडी की सुई अब भी 11:59 ही दिखा रही थी। पता नहीं ये कोई चमत्कार है या घडी या समय बंद हो गया है। मेरी धड़कने तेज होती जा रही थी और मोनिशा तो मस्त हुई बस आह उईई … येस … हाँ … या … करती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर एक थपकी लगाईं तो उसने मेरी ओर मुड़कर देखा और फिर हंसने लगी। जैसे उसे मेरी मनसा समझ लग गई हो। मैं कुछ समझा नहीं। अगर ये मधु या अनारकली होती तो बात समझ आती पर ये तो … कमाल ही होता जा रहा था।

मेरे थपकी लगाने का मतलब होता है कि मैं झड़ने वाला हूँ। ऐसी अवस्था में मधु और अनारकली धीरे धीरे अपने पैर पीछे करके पेट के बल लेटना शुरू कर देती है और मैं उनके ऊपर लेट सा जाता हूँ और फिर धीरे धीरे धक्के लगा कर अपना वीर्य उनकी गांड में छोड़ता हूँ। पानी निकलने के बाद भी इसी अवस्था में कोई 10 मिनट तक हम लेटे रहते हैं।

वो धीरे धीरे नीचे होने लगी और अपनी जांघें चोड़ी करके पेट के बल लेट गई। मेरा लंड अन्दर फूल सा गया था इसलिए बाहर तो निकल ही नहीं सकता था। मैं भी उसके ऊपर ही पसर गया। अब मैंने एक हाथ में उसके एक उरोज को पकडा और दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली उसकी चूत में घुसेड़ दी। और उसके कान की लोब को मुंह में लेकर चूसने लगा। “ओह …उईई … मा …” इसके साथ ही उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठाये मैंने एक धक्का दिया और उसके साथ ही मेरे लंड ने पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के ऊपर ही लेट गया। पता नहीं कितनी देर ……

धीरे धीरे मेरा लंड सिकुड़ने लगा और बाहर फिसलने लगा। एक पुच की आवाज के साथ पप्पू (लंड) हँसता हुआ बाहर आ गया। हँसे भी क्यों नहीं आज पप्पू पास जो हो गया था। वो भी उठ खड़ी हुई। उसने अपनी गांड के छेद पर हाथ लगा कर देखा। उसका हाथ मेरे वीर्य से भर गया। उसने उछल कर एक चुम्बन मेरे लंड पर लिया और बोली “बदमाश कहीं का ! अब तो खुश है ना ? एक नंबर का बदमाश है मिट्ठू कहीं का ?”

“हाँ … अब तो ये तुम्हारा मिट्ठू बन ही गया है !”

“ओह जिज्जू मुझे गुदगुदी सी हो रही है मुझे बाथरूम तक ले चलो देखो मेरी जांघें कैसे गीली हो गई है। उई इ… इ …………”

मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और आँखें बंद करके अपनी टाँगे मेरी कमर से लपेट ली। बिलकुल मिक्की की तरह। साफ़ सफाई के बाद हम फिर बेड पर आ गए। मैं बेड पर टेक लगा कर बैठ गया। वो मेरी गोद में अपना सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थी। वो धीरे से बोली “मेरे प्रियतम अब तो मिक्की की याद नहीं आएगी ना ?”

“मिक्की तो नहीं पर अब मैं मोना मेरी मोनिशा के बिना कैसे रह पाऊंगा !” मैंने नीचे झुक कर उसके गाल और होंठ चूम लिए। उसने थोड़ा सा ऊपर उठकर अपनी बाहें फिर फैला दी। मैंने उसे फिर अपने आगोश में ले लिया। इस बार वो मेरे ऊपर आ गई। उसने एक चुम्बन मेरी नाक और होंठों पर लिया और बोली “तुम पुरुष हम स्त्री जाति के मन को कभी नहीं समझोगे तुम तो स्त्री को मात्र। कोमल सी देह ही समझते हो तुम्हें उस कोमल मन के अन्दर प्रेम की छुपी परतों का कहाँ आभास है। तुम तो फूलों के रसिये भंवरों की तरह होते हो। जानते हो जब एक लड़की या औरत किसी से सच्चे दिल से प्रेम करती है तो दुनिया का कोई बंधन उसे नहीं रोक पाता। तुम नहीं समझ पाओगे। पर मिक्की की याद में अब रोना नहीं वरना तुम्हारे प्रेम में बुझी मेरी आत्मा को कभी शान्ति नहीं मिलेगी। समझे मेरे प्रथम पुरुष ?”

मैं तो मुंह बाए उसे देखता ही रह गया। मुझे लगा उसकी आवाज कुछ भारी सी होती जा रही है और कहीं दूर सी होती जा रही है। मुझे लगा कि जैसे मुझे नींद सी आने लगी है। पता नहीं ये नींद है या मैं बेहोशी हो रहा हूँ। मैंने कुछ बोलना चाहा पर मेरे मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। पर मोना की दूर होती सी आवाज अब भी सुनाई दे रही थी “मेरे प्रियतम अलविदा …” और मैं गहरी नींद या बेहोशी में खोता चला गया ………

***

अचानक मुझे लगा मोबाइल की घंटी बज रही है। मैंने अपनी जेब टटोली। जैसे ही मैंने अंगूठे से बटन दबाने की कोशिश की मुझे लगा कि उस पर खून सा लगा है और दर्द कर रहा है। “ओह…। हेलो … कौन ?”

“ओह … तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे थे। रात से ट्राई कर रही हूँ अब 6 बजे जाकर तुम्हारा फ़ोन मिला है।”

ओह…। ये तो मधु की आवाज थी। “पर वो … पर वो … ”

“ओह मेरे मिट्ठू सपने छोड़ो मैं स्टेशन से बोल रही हूँ। तुम्हारे बिना दिल नहीं लगा इसलिए जल्दी ही वापस आ गई ”उसने फ़ोन पर ही एक चुम्बन ले लिया। “तुम आ रहे हो ना मुझे लेने स्टेशन पर ?”

“ओह … हाँ … हाँ … आ रहा हूँ” और मैंने फ़ोन काट दिया। अब मैंने चारों ओर देखा। मैं तो उसी मील-पत्थर (माइल स्टोन-भरतपुर 13 कि. मी. के पास बैठा था। अरे ? वो बारिश ? … बंगला ? वो मोनिशा… वो गाड़ी ? … वो नेम प्लेट ? वहाँ तो कोई नहीं था। तो क्या मैं सपना देख रहा था। ये कैसे हो सकता है। मेरे अंगूठे पर तो अब भी खून जमा था। वो नेम प्लेट ओह। “मो-निशा पी.जी.एम। नहीं प्रेम गुरु माथुर” हे भगवान् ये क्या चमत्कार था। मैं उठकर गाड़ी की ओर गया। चाबी लगाते ही इंजिन गाड़ी चालू हो गया। इंडिकेटर बता रहा था फ्यूल टेंक तो पूरा भरा है ?

“ओह … मेरी मिक्की … तूने अपना वादा निभा दिया !” मेरी आँखों में आंसू उमड़ पड़े। मैं उन अनमोल कतरों को भला नीचे कैसे गिरने देता मैंने अपनी जेब से वोही रेशमी रुमाल एक बार फिर निकाला और अपनी आँखों पर रख लिया।

मिक्की ने तो अपना वादा निभा दिया
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