प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:39 PM,
#62
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मिक्की ने सफ़ेद पैन्ट और गहरे बादामी रंग और फूलों वाला एक ओर से झूलता हुआ कुर्ता पहन रखा था। सिर पर वोही नाइके वाली टोपी, कलाई में रिस्ट वॉच । मैं तो अभी ये सोच ही रहा था कि मिक्की ने जरूर वोही पेंटी और पैडेड ब्रा भी पहनी होगी जो कल शाम हमने खरीदी थी। पैडेड ब्रा के कारण उसके बूब्स की साइज़ ३४ तो जरूर लग रही थी। होंठों पर हलकी सी लाल लिपस्टिक। आज मैंने भी अपनी काली जीन और पसंदीदा टी-शर्ट पहनी थी। इम्पोर्टेड परफ्यूम स्पोर्ट्स शूज और नाइके की टोपी।

“बिल्लो रानी कहो तो अभी जान दे दूँ….” मैं मस्ती से गुनगुनाता जब बाहर आया तो मिक्की ने मुझे घूर कर ऊपर से नीचे तक देखा। फिर एक आँख मारते हुए बोली “ओये होए ! क्या बात है ! आज तो बड़े जच रहे हो? किसी को कत्ल करना है क्या ?” मैं क्या बोलता।

“अच्छा बताओ मैं कैसी लग रही हूँ ?” मिक्की ने आँखे नचाते हुए कहा।

“बिलकुल बंदरिया लग रही हो” मैंने उसे चिढ़ाने के अंदाज में कहा तो उसने अपना मुंह फुला लिया। मेरा इरादा उसे नाराज़ करने का कतई नहीं था। मैं तो उसे सपने में भी नाराज करने की नहीं सोच सकता। मैंने उसके गालो पर थप्पी लगाते हुए कहा “बिलकुल हंसिका मोटवानी और करीना कपूर लग रही हो ! सच में !”

“परे हटो।। हुंह झूठे कहीं के ? ” जिस अदा से उसने ये कहा था मुझे मधु का रात वाला डायलॉग याद आ गया। इसी लिए तो कहते है कई चीजें वंशानुगत भी होती हैं।

मिक्की मोटर साइकल पर मेरे पीछे चिपक कर बैठी हुई थी उसका एक हाथ मेरी कमर को नाभि के थोड़ा नीचे कस कर पकड़े हुए था। उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रखा था और एक हाथ गले में डाल रखा था। जिस तरीके से वो मेरे साथ चिपक कर बैठी थी मुझे नहीं लगता मिक्की अब छोटी बच्ची रह गई है। उसकी गोलाइयां मेरी पीठ पर आसानी से महसूस हो रही थी। आज उसने भी शायद अपनी बुआजी की ड्रेसिंग टेबिल का पूरा फायदा उठाया था। पिछले जन्मदिन पर जो इम्पोर्टेड परफ्यूम मैंने मधु को गिफ्ट दिया था उसकी महक भला मैं कैसे नहीं पहचानता। मैं तो इतना मदहोश हो रहा था कि मुझे लगने लगा कहीं मैं कोई एक्सीडेंट ही कर बैठूंगा।

जहां से पहाड़ी पर मंदिर के लिए रास्ता शुरू होता है श्रद्धालु नंगे पैर ही ऊपर पैदल जाते है। मोटरसाइकल स्टैंड पर खड़ी करने और जूते उतारने के बाद मैंने मिक्की को बताया ऊपर पीने का साफ़ पानी नहीं मिलेगा अगर पीना है तो यही पी लो। मिक्की पानी की पूरी एक बोतल डकार गई और मैंने जानबूझ कर उसे बाद मैं फ़्रूटी के २-३ पाउच और पिला दिए। आप इतने भी कम अक्ल नहीं है कि मेरी इस चाल को न समझ रहे हो। पर मिक्की इन सब बातों से परे कुछ और खाने पीने की फिराक में थी। हमने प्रसाद के साथ कुछ स्नेक्स, मिठाइयां और बंदरों के लिए भुने हुए चने लेने के बाद मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू कर दी। मंदिर की दूरी यहाँ से कोई दो किलोमीटर है।

आज सोमवार का दिन था पर भीड़ कोई ज्यादा नहीं थी कोई इक्के दुक्के ही श्रद्धालु थे क्योंकि लोग सुबह सुबह दर्शन करके चले जाते है। हमारे जैसे प्यार के परवाने अपनी शमा के साथ शाम को ही आते है। दर्शन करने और कच्चा दूध-जल चढाने के बाद जब हम मुख्य मंदिर से बाहर आये तो मैंने मिक्की से पुछा तुमने क्या मन्नत माँगी तो वो कुछ सोचने लगी और फिर बोली,”नहीं ! पहले आप बताओ !”

मेरे जी में आया साफ़ कह दूं कि मैंने तो बस तुझे ही माँगा है पर ये कहना इतना आसान भी नहीं था मेरे दोस्तों और दोस्तानियो ! मैंने घुमा फिरा कर कहा,”जो तुमने माँगा, वो ही मैंने मांग लिया !”

“क्या…. ? आपने भी ? मतलब…. याने ….? ओह !! ?” वो आश्चर्य से मेरा मुंह देख रही थी जैसे मैंने उसकी कोई शरारत या चोरी पकड़ ली हो। जब उसे अपनी बात समझ आई तो शर्म से दोहरी गई। मैं तो निहाल ही हो गया।

मंदिर के पीछे थोड़ा खुला आँगन सा है जहां पर तीन तरफ दो दो फ़ुट की दीवार बनी है नीचे गहरी खाई और झाड़ झंखाड़ है। यहाँ काले मुंह वाले लंगूर बहुत है जो पेड़ों पर उछल कूद मचाते रहते हैं, आने वाले श्रद्धालु उन्हें भुने हुए चने, केले आदि डाल देते हैं। बच्चो का तो ये मनपसंद खेल होता है। फिर मिक्की भी तो अभी बच्ची ही थी ऐसा मौका वो भला क्यों छोड़ती। उसने भी बंदरों को चने डालने शुरू कर दिए। हम लोग एक कोने में खड़े थे। थोड़ी दूर दूसरे कोने में एक नवविवाहित जोड़ा अपनी गुटरगूं में व्यस्त था। लड़का शायद उसका चुम्बन लेना चाहता था पर लड़की शर्म के मारे उसे मना कर रही थी। मैंने देखा मिक्की बड़े गौर से उनको देख रही है। मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद वो दोनों उठकर चले गए तब मिक्की को शायद मेरी याद आई।

“जिज्जू ! थोड़ी देर बैठें ?”

“हाँ, यहीं दीवार के पास बैठ जाते हैं।”

हम दोनों पास पास बैठ गए। एक हलका सा हवा का झोंका आया तो मिक्की के बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे तन मन को अन्दर तक सराबोर करती चली गई। मिक्की बंदरों को दाने डाल रही थी। कभी ऊपर उछालती कभी दूर फेंक देती बंदरों की इस उछल कूद से उसे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने उसे समझाया कि इनको ज्यादा मत सताओ नहीं तो ये काट खाएँगे पर मिक्की तो अपनी ही धुन में थी।

पेड़ की एक डाली पर एक बन्दर अपनी लुल्ली निकाले उसे छेड़ रहा था। मिक्की उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। इतने में एक बंदरिया आई और बन्दर उसके ऊपर चढ़ कर आगे पीछे धक्का लगाने लगा। मिक्की ने बिना अपनी नज़रें हटाये मुझ से बोली “देखो जिज्जू ! ये बन्दर क्या कर रहे हैं।”

उसे क्या पता, वो बेख्याली में क्या बोल गई !

मेरे लिए भी ये अप्रत्याशित था। अब आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते है मैंने अपने पप्पू को किस तरह से रोक रखा था। अगर ये घर या कोई सूनी जगह होती तो निश्चित ही मैं कुछ कर बैठता। पर मैंने उसे कहा, “ये आपस में प्यार कर रहे हैं, इनका भी शुक्र पर्वत तुम्हारी तरह बहुत ऊंचा है।”

अचानक वो बोली, “वो कैसे क्या आपको ….? क्या आपको हाथ देखना आता है ?”

आपको बता दूँ मैं थोड़ा बहुत हस्त रेखाएं देख लेता हूँ। पूरा तो नहीं जानता पर जीवन रेखा, हृदय रेखा आदि तो थोड़ा बहुत बता ही देता हूँ। बाकी तो गप्प लगाने वाली बात है। किसी को भी प्रभावित कर लेना मेरे बाएँ हाथ का खेल है। मैं जानता हूँ कि ये सब उसे उसकी मम्मी ने बताया होगा। क्यों कि मैं सुधा को भी एक दो बार पपलू बना चूका हूँ। उसे भविष्य और हाथ की रेखाओं को जानने की बड़ी इच्छा रहती है।

“हाँ ! हाँ !! आओ” मैंने उसे अपने पास खींचते हुए कहा।

मैंने उसका बायाँ हाथ अपने हाथ में ले लिया। हाथ के नाखून थोड़े बढ़े हुए थे। उन पर नेल-पेंट किया हुआ था। बाएँ हाथ का अंगूठा थोड़ा सा पतला लग रहा था और उस पर नेल-पेंट भी नहीं लगा था।

मैंने उससे पूछा,”मिक्की क्या तुम अभी भी अंगूठा चूसती हो ?”

“हाँ कभी कभी” उसने नज़रें झुकाते हुए कहा।

“तुम्हारी मम्मी तुम्हें मना नहीं करती क्या ?”

“वो तो बहुत गुस्सा होती हैं।”

“तो फिर तुम ऐसा क्यों करती हो ?”

“असल में मुझ से अनजाने में ऐसा हो जाता है।”

“अनजाने में हो जाता है या तुम्हे इसमें मज़ा भी आता है?”

“हाँ सच कहूँ तो जब मैं अकेली होती हूँ तो मुझे अंगूठा चूसने में बहुत मज़ा आता है” उसने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया।

“अब तुम्हारी अंगूठा चूसने की उम्र नहीं रही है कुछ और भी चूसना सीखो !”

“और क्या चूसने की चीज होती है जीजाजी ?” उसने आँखें मटकाते हुए कहा।

“जैसे कि….! जैसे कि ….!!” मैं गड़बड़ा गया लेकिन फिर संभालते हुए कहा “जैसे कि आइस कैंडी लोलीपोप और…. और….। कुल्फी…. बहुत सी चीजें हैं जिन्हें तुम प्यार से चूस सकती हो !”

एक बार तो मेरे जी में तो आया की कह दूँ अब तो तुम्हे लंड चूसना सीखना चाहिए पर मैं अभी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। शुरू शुरू में थोड़ा संयम बरतना होगा नहीं तो ये चिड़िया मेरे हाथों से फुर्र हो जायेगी। वैसे तो मैं भी यही चाहता था कि वो अंगूठा चूसना जारी रखे। इसका एक कारण है ? हमारे गुरूजी कहते हैं जो लड़की बचपन में अंगूठा चूसती है वो अपने प्रेमी या पति की अच्छी प्रेमिका और पत्नी साबित होती है और उनका दाम्पत्य जीवन बहुत ही अच्छा और सुखी बीतता है। मतलब आप बिलकुल अच्छी तरह समझ गए होंगे।

मैं बातों का सिलसिला रोमांटिक करना चाहता था, मैंने पूछा “अच्छा मिक्की एक बात बताओ !”

“क्या ?”

“तुम फिल्म देखती हो ?”

“उम्म्म…. हाँ”

“अच्छा बताओ तुम्हारा मनपसंद हीरो कौन है ?”

“मेरा उम्म्म….। हाँ।। मुझे तो अनिल कपूर अच्छा लगता है !”

मैं तो सोच रहा था कि वो शाहिद कपूर, रणबीर कपूर, ऋतिक रोशन जैसे किसी चिकने चॉकलेटी हीरो का नाम लेगी। मैंने उस से कहा “अनिल कपूर ! ? अरे वो मुच्छड़?”

“पता है उसने मिस्टर इंडिया में कितना अच्छा काम किया है। उसके पास एक जादू का रिस्ट बैंड होता है जिसको कलाई में पहन कर वो गायब हो जाता है।” मिक्की ने ऑंखें नचाते हुए कहा फिर ठंडी सांस लेते हुए बोली “काश ऐसा ही बैंड मेरे पास भी होता !!”

“अच्छा आप बताओ आप को कौन पसंद है ?” मिक्की बोली।

“आ….न !! मुझे ? मुझे तो अजय देवगन अच्छा लगता है”

“अरे ! वो अकडू…. ओह नो ! आप झूठ बोल रहे हैं !”

“इसमें झूठ बोलने वाली क्या बात है ?” मैंने कहा।

“पर लड़कों और आदमियों को तो फ़िल्मी हिरोइन पसंद होती है ना ? और अजय देवगन कोई लड़की थोड़े ही है ?” मिक्की मेरा मखौल उड़ाते हुए हंसने लगी।

“ओह….!!” मेरी भी हंसी निकल गई। मैंने बात संवारते हुए कहा “भई मुझे तो सबसे ज्यादा मिक्की ही अच्छी लगती है और कोई नहीं !” मैंने उसकी नाक पकड़ते हुए कहा। मुझे तो बस उसके गाल, होंठ, नाक या नितम्ब कुछ भी छूने का बस बहाना ही चाहिए होता था। इस मौके पर मैं चाहता तो मिक्की को जोर से अपनी बाहों में भर कर चुम्बन भी ले सकता था पर थोड़ी दूर पर २-३ लौंडे लपाड़े खड़े हमारी ओर ही देख रहे थे, मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से रोका।

“हूँ…. ह….” मिक्की ने मुंह सा बनाया।

“अरे भई सच ….! बाय गोड मैं तुमसे बहुत प्यार…. अररर मेरा मतलब है प्रेम…. वो ! वो ! बहुत चाहता हूँ मैं तुम्हें….!” मेरी जबान साथ नहीं दे रही थी।

मिक्की खिलखिला कर हंस रही थी “वो तो मुझे पता है कि आप मेरे पीछे पागल हैं और मेरे ऊपर लट्टू हैं पर मैं तो फ़िल्मी हिरोइन की बात कर रही थी।” मिक्की ने अपने हाथों से अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - by sexstories - 07-04-2017, 12:39 PM

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