प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:34 PM,
#38
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
सुनैना और मैंने अपने वस्त्र पहन लिए और सत्यव्रत के पीछे चल पड़े। पीछे से महारानी का क्रोध और आंसुओं में डूबा स्वर सुनाई पड़ रहा था: "कुमार मैं सदियों से पत्थर की शिला बनी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी। यही एक अवसर था मेरी मुक्ति का। तुमने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया ? नहीं… कुमार तुम्हें एक बार अब पुनः जन्म लेना ही !होगा। जब तक मैं तुम्हें नहीं पा लेती मेरी यह भटकती और शापित आत्मा कभी शांत नहीं होगी ?" महारानी की आवाज दूर होती चली गई। कारागृह में महाराज चित्रसेन, मैं और सुनैना तीनो पृथक-पृथक कक्षों में बंद थे। एक कक्ष में कोई युवती और बैठी थी जिसने श्वेत वस्त्र (साड़ी) पहन रखे थे। मैं उसका चेहरा नहीं देख पाया क्योंकि उसका चेहरा उसके खुले केशों से ढका था। इतने में सत्यव्रत की आवाज सुनाई दी,"भैरवी तुम तैयार हो जाना ! महारानी कनिष्क का आदेश है कि आज सूर्योदय से पहले अनुष्ठान करना है !" भैरवी ने ने अपनी मुंडी सत्यव्रत की ओर उठाई। "ओह... यह बित्रिस। अरे … ओह ?" मैं तो हक्का बक्का उसे देखता ही रह गया। यह तो निसंदेह बित्रिस (फिरंगन) ही है। पर इसकी आँखें इतनी मोटी मोटी और काली कैसे हो गई ? मैंने उसे पुकारना चाहा पर मेरे कंठ से तो स्वर ही नहीं निकल रहा था। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली। मुझे प्रतीत हुआ जैसे पूरे कारागृह में ही सन्नाटा सा छा गया है। पता नहीं कितनी देर मैं ऐसे ही अपनी आँखें बंद किये बैठा रहा। मुझे नहीं पता कितना समय बीता गया था। संभवतया रात्रि का अंतिम प्रहर चल रहा था, सूर्योदय होने में अधिक समय नहीं था। तभी सत्यव्रत दो सैनिकों के साथ पुनः आया। कालू ने मुझे बांह से पकड़ कर उठाया और उन दोनों ने भैरवी को आवाज लगाई,"भैरवी तुम भी स्नान कर के नए वस्त्र पहन लो !" मुझे भी स्नान करवाया गया और नए वस्त्र पहनने को दिए। एक सैनिक ने मेरे दोनों हाथों को एक पतली रस्सी से बाँध दिया और मुझे ऊपर वेदी के पास ले आये। वहाँ एक काले से रंग के बलिष्ठ व्यक्ति अपने हाथ में खांडा लिए खड़ा था। वेदी में अग्नि प्रज्वलित हो रही थी। भैरवी श्वेत वस्त्र पहने आ वेदी के पास बैठी थी। उसने पहले अग्नि के आगे अपने हाथ जोड़े और फिर मेरे माथे पर तिलक लगा दिया और गले में पुष्प माला डाल दी। कालू ने मेरी गर्दन पकड़ी और नीचे झुका कर उस शिला पर लगा दी जहां से वो थोड़ी यू आकार की बनी थी। अब उसने अपने हाथ में पकड़ा खांडा भैरवी के हाथों पकड़ा दिया। भैरवी की आँखें लाल हो रही थे। मैं डर के मारे थर थर काँप रहा था। मैं जोर जोर से चीखना चाहता था पर मेरे कंठ से तो जैसे आवाज ही नहीं निकल रही थी। मुझे प्रतीत हुआ बस अब तो कुछ क्षणों की देर रह गई है यह सिर धड़ से अलग होने ही वाला है। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली। "आ... आ अ अ ……." एक भयंकर चीख जैसे हवा में गूंजी। मेरी गर्दन पर बना शिकंजा छूट गया। मैंने अपना सिर ऊपर उठा कर देखा। भैरवी रक्त से सने खांडे को दोनों हाथों में पकड़े खड़ी है और कालू की गर्दन कट कर उसके धड़ से लटकी है। भैरवी ने मुझे कहा,"कुमार … आप शीघ्रता पूर्वक यहाँ से भाग जाएँ !" "वो… वो… विष कन्या … भैरवी ?" मैंने कुछ बोलना चाहा। "कुमार शीघ्रता कीजीये यह प्रश्न पूछने का समय नहीं है… जाइए …!" मैं वहाँ से भागा। पता नहीं कितनी देर और दूर दौड़ता ही चला गया। कहीं वो सैनिक या कालू मुझे दुबारा ना पकड़ लें। मैं हांफ रहा था। मेरा सारा शरीर पसीने में भीग गया था। अचानक मुझे किसी पत्थर से ठोकर लगी और मैं गिरते गिरते बचा। इतने में सामने से मधु, सत्यजीत और रूपल आते दिखाई दिए। मेरी बदहवास हालत देख कर वो भी हैरान हो रहे थे। मधु चिंतित स्वर में बोली,"ओह … प्रेम ... तुम कहाँ थे इतनी देर हम लोग तो तुम्हें ढूंढ ढूंढ कर पिछले एक घंटे से परेशान हो रहे थे। तुम्हारा मोबाइल भी कवरेज क्षेत्र से बाहर आ रहा था ? तुम कहाँ थे इतनी देर ?" "वो वो... काल भैरवी ... वो कालू... सुनैना... विष कन्या ?" "ओह... क्या हो गया है तुम दिन में भी सपने देख रहे हो क्या..?" मधु बोली। "पर वो रंगमहल … वीरभान … महारानी ?" "कौन वीरभान ?" सत्यजीत ने पूछा। "वो... वो हमारा गाइड ?" "ओह... प्रेम … यार तुम भी कमाल कर रहे हो … तुम किस गाइड की बात कर रहे हो ? हमारे साथ तो कोई गाइड था ही नहीं ?" "ओह … पर वो … वेदी … विष कन्या... भैरवी … कालू …" मैं तो पता नहीं क्या क्या बड़बड़ा रहा था। "ओह... कहीं तुम उस पत्थर की बनी सिर कटी काली मूर्ति की बात तो नहीं कर रहे ?" "हाँ... हाँ... यही कालू" मैंने इधर उधर देखा। वहाँ तो ऐसी कोई मूर्ति दिखाई नहीं दे रही थी। "अरे अभी तो वो मूर्ति यहीं थी" सभी हंसने लगे "ओह … तुम शायद काल भैरवी मंदिर के बाहर बनी उस सिर कटी मूर्ति को देख कर डर गए होगे ?" सत्यजीत ने चुटकी ली। "लेकिन वो कालू की मूर्ति थोड़ी देर पहले यहीं पर थी …" मेरी समझ में नहीं आ रहा था यह क्या रहस्य था। हम लोग तो अभी भी उसी मंदिर के प्रांगण में खड़े थे। कालू की मूर्ति कहीं नज़र नहीं आ रही थी। हाँ नीचे जाती सीढ़ियां जरूर दिखाई दे रही थी पर अब मेरी इतनी हिम्मत कहाँ बची थी कि मैं सीढ़ियां उतर कर उस कारागृह को एक बार दुबारा देखूं। मैंने घड़ी देखी, वो तो दिन 3:45 बता रही थी और अच्छी खासी धूप खिली थी। मेरे हाथों में फूल माला लिपटी थी और एक माला गले में भी पड़ी थी। ओह … मैंने उन फूल मालाओं ऐसे दूर फैंका जैसे कि वो कोई जहरीली नागिन या सांप हों। "चलो उस रंगमहल को देखने चलते हैं !" सत्यजीत ने उस खंडहर सी बनी गढ़ी की ओर इशारा करते हुए कहा। "नहीं … नहीं... सत्यजीत मेरी तबीयत ठीक नहीं है यार … अब वापस ही चलते हैं !" हम सभी होटल आ गए। मैंने जयभान से बाद में पूछा था- तुम्हारा कोई बड़ा भाई है क्या ? तो उसने बताया था- है नहीं था। उसे तो मरे हुए कोई 10 साल का अरसा हो गया है। मैंने उस प्रोफ़ेसर के बारे में भी होटल के क्लर्क से पता किया था उसने बताया था कि आज तड़के ही उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी इसलिए वो कमर खाली कर के आज सुबह ही यहाँ से चले गए हैं। कालू और फिरंगन तो कल शाम को ही आगरा चले गए थे। हमने भी उसी शाम होटल छोड़ दिया। मधु और सत्यजीत ने बाद में कई बार उस घटना के बारे में मुझ से पूछा था पर मैं क्या बताता। मेरी उस बात पर वो विश्वास ही नहीं करते अलबत्ता वो दोनों ही मुझे या तो पागल समझते या फिर डरपोक बताते। पता नहीं वो क्या करिश्मा और रहस्य था? लिंगेश्वर या काल भैरवी ही जाने … अगर आप कुछ समझे हों तो मुझे जरूर लिखें। आपका प्रेम गुरु
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - by sexstories - 07-04-2017, 12:34 PM

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