RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
आज हमारा खजुराहो के मंदिर देखने का प्रोग्राम था। रात के घमासान के बाद सुबह उठने में देर तो होनी ही थी। सत्यजीत का जब फ़ोन आया तब आँख खुली। वो बोल रहा था "ओह … क्या बात है गुरु ? रात में ज्यादा स्कोर कर लिया था क्या ?" "अरे नहीं यार कल रात को अच्छे से नींद नहीं आई थी !" "नींद नहीं आई थी या भाभी ने सोने नहीं दिया था ?" "ओह... यार देर हो रही है ! हम जल्दी से तैयार होकर आते हैं !" "यार स्कोर तो बता दो कल का ?" "ओह... तुम भी... भाई मैंने तिहरा शतक लगाया था… और तुमने ?" "यार मैंने तो 2*2 किया था !" "क्या मतलब ?" "तुम भी बावली बूच ही हो…. अमां यार। दो बार चूत मारी और दो बार जम कर गांड मारी थी !" "ओह …" मैंने फ़ोन काट दिया नहीं तो वो फिर अपना भाषण शुरू कर देता कि मैं मधु कि गांड क्यों नहीं मारता। अब मैं उसे क्या समझाता। मैं सोती हुई मधु की प्यारी सी चूत पर एक पुच्ची लेकर उसे जगाने के लिए जैसे ही उसकी ओर बढ़ा उसने आँखें खोलते हुए पूछा,"कौन था ?" "वो… वो सत्यजीत हमारा नीचे इंतज़ार कर रहा है... तुम जल्दी तैयार हो जाओ !" मुझे कहना पड़ा। मधु चादर से अपना नंगा शरीर ढांपते हुए बाथरूम में घुस गई। हम जल्दी से तैयार होकर नीचे आये तो सत्यजीत और रूपल बेसब्री से हमारा इंतज़ार कर रहे थे। मोटी और सलोनी भी एक मेज़ पर बैठी नाश्ता कर रही थी। प्रोफ़ेसर कहीं नज़र नहीं आ रहा था। मुझे उससे कुछ और बातें भी पूछनी थी। बाद में मोटी ने बताया था कि उनकी तबीयत नरम है हमारे साथ नहीं जाएगा। मैंने अपने मन में कहा- अति उत्तम ! खजुराहो के मंदिर अपनी आकृति सौन्दर्य के लिए ही नहीं बल्कि अपनी सजावट की सजीवता के लिये भी जाने जाते हैं। खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा खजुराहो किसी जमाने में चंदेल वंश के राजाओं की राजधानी हुआ करता था पर अब तो सिमट कर एक छोटा सा गाँव ही रह गया है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में पड़ता है। चंदेल वंश के राजा चन्द्र वर्मन ने यहाँ तालाबों और उद्यानों से आच्छदित 85 मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ईस्वी में करवाया था। ये हिन्दू और जैन मंदिर मध्ययुगीन भारत की वास्तु शिल्पकला के अद्भुत नमूने हैं। अब तो इन में 20-22 ही बचे हैं। शायद यहाँ पर खजूर के बहुत पेड़ हुआ करते थे इसलिए इस जगह का नाम खजुराहो पड़ गया? यहाँ के प्रसिद्ध मैन्दिरों में कंदरिया महादेव, चौसठ योगिनी, पार्श्वनाथ, देवी जगदम्बा मंदिर और चतुर्भुज मंदिर प्रमुख हैं। रति क्रीड़ा (सम्भोग) की विभिन्न कलाओं को पत्थरों पर बेहद ख़ूबसूरती से उकेरा गया है। मैथुनरत मूर्तियाँ पुरुष और प्रकृति के सम्बन्ध को दर्शाती हैं। कई जगह मुखमैथुन, समलैंगिक व पशु मैथुन के भी चित्र हैं। कामसूत्र से प्रेरित रतिक्रीड़ा करती मूर्तियाँ तो ऐसे लगती हैं जैसे वो अभी सजीव हो उठेंगी। बिना परकोटा के सभी मंदिर ऊंचे चबूतरे पर निर्मित हैं। दैनिक उल्लास, पीड़ा, व्यथा, संगीत, गायन और नृत्य की मुद्राओं में ये पाषाण प्रतिमाएं तत्कालीन शिल्पियों के कला कौशल का चिर स्मारक हैं। पाषाण जैसे कठोर फलक पर उत्कीर्ण खजुराहो कला की जान अप्सराओं और सुर सुंदरियों की मूर्तियाँ, कोमल भावनाओं की कोमलतम अभीव्यक्तियाँ हैं । जूड़ों को संवारते, गेंद से क्रीड़ाएं करते, ललाट पर तिलक लगाते, नेत्रों में अंजन लगाते, अधरों पर लाली और पैरों में महावर रचाते हुए नारी-मूर्तियों को देख कर मन मंत्र मुग्ध हो जाता है। उन्नत वक्ष, नितम्ब और पतली कटी वाली नारी मूर्तियों के अंग प्रत्यंग की रचना देखते ही बनती है। बेहद पतली कमर, कोमल और लचीली कमर यौवन के भार को संभालने में असमर्थ सी लगती हैं। प्रेम की चाह में लीन युवती, आँखों में अंजन शलाका का स्पर्श देती हुई सुलोचना, बालक को स्तनपान कराती स्नेहमयी जननी और नुपूर बांधती नृत्योंदत्त किन्नर बाला की प्रतिमाएं अपनी जीवंत कला को समाहृत कर रही हैं । मैं तो ललचाई आँखों से उन मूर्तियों को देखता ही रह गया। मैंने मधु से जब उस मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि देखो इसके नितम्ब कितने सुडौल और भारी हैं ! काश इस तरह की कोई सुन्दर कन्या मुझे मिल जाए या ये मूर्तियाँ ही सजीव हो उठें तो बस इस मानव जीवन का मज़ा ही आ जाए। मधु ने मेरी ओर घूर कर देखा तब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ कि अनजाने में क्या बोल बैठा हूँ। मधु ने तो मुँह ही फुला लिया। फिर तो उसने सारे दिन मुझ से बात ही नहीं की। पूरा दिन तो इन मंदिरों को देखने में ही बीत गया। शाम को इन मंदिरों को बंद कर दिया जाता है। मोटी हमारे साथ ही चिपकी रही। उस सोनचिड़ी के साथ की मजबूरी नहीं होती तो मैं भला इस मोटी को क्या भाव देता। लौंडिया ने सफ़ेद पेंट और शोर्ट (छोटी शर्ट) डाल रखी थी। हे भगवान् ! कसी हुई पेंट में दोनों जाँघों के बीच फसी उसकी पिक्की का भूगोल साफ़ नज़र आ रहा था। मैं तो दिन भर यही सोच रहा था इसने अन्दर कच्छी (पेंटी) डाली होगी या नहीं। और अगर डाली है तो गुलाबी रंग की है या काले रंग की। सच पूछो तो मैं तो इसी फिराक में लगा रहा था कि किसी तरह इस सोनचिड़ी की चूचियाँ दबा सकूं या गालों पर हाथ फिरा सकूं, पर मोटी जरा दूर हटे तब ना। शाम को लौटते समय जब हम उस रेस्तरां में चाय पी रहे थे तब मधु वाशरूम जाने उठी। साली वो सोनचिड़ी भी साथ ही चली गई। मेरी रही सही आस भी जाती रही। मोटी ने अच्छा मौका जानकर बात शुरू की। "हाय प्रेमजी... तुहाडी वाइफ ते बड़ी ई सोहनी है ?" उसने एक ठंडी आह भरी। "हाँ जी … थैक्यू !" "ओह... जदों मेरी शादी होई सी मैं वी इन्नी ही सोहनी ते पतली सी !" "ओह … आप तो अभी भी बहुत खूबसूरत हैं !" "हाये मैं मर जावां !" वो तो किसी नवविवाहिता की तरह शरमा गई। ऐसे तो मधु शरमाया करती है जब मैं उसे अपना लंड हाथ में पकड़ने को कहता हूँ। "पर वेखो ना प्रोफ़ेसर साहब ते मेरी कदर ही नई करदे !" उसने बुरा सा मुँह बनाया। इतने में मधु वाश रूम वापस आती दिखाई दी। शुक्र है इस मोटी से पीछा छूटा। उधर सत्यजीत उस फिरंगन पर डोरे डाल रहा था। किसी बात पर वो सभी (सत्यजीत, रूपल, कालू और फिरंगन) हंस रहे थे। मुझे मोटी से बतियाते हुए देख कर उसने मेरी ओर आँख मार दी। इसका मतलब मैं अच्छी तरह जानता था, उसने कहा था ‘लगे रहो मुन्ना भाई’। बाद में मुझे उसने बताया था कि बित्रिस और कालू आज शाम की फ्लाईट से आगरा जा रहे हैं। उसने सत्यजीत से उसका मोबाइल नंबर ले लिया है और वो बाद में उस से बात करेगी। रात में मधु को मनाने में मुझे कम से कम 2 घंटे तो जरूर लगे होंगे। और फिर जब वो राजी हुई तो आज पहली बार उसने मेरे लंड को जम कर चूसा और फिर मुझे नीचे करके मेरे ऊपर आ गई और अपने नितम्बों से वो झटके लगाये कि मैं तो इस्स्स्स …… कर उठा। रोज़ मीठा खाने के बाद कभी कभी अगर नमकीन खाने को मिल जाए तो स्वाद और मज़ा दुगना हो जाता है। और फिर सारी रात मुझे उन भारी नितम्बों वाली मूर्तियों के ही सपने आते रहे जैसे वो सजीव हो उठी हैं और मुझे अपनी बाहें पसारे रति-क्रिया के लिए आमंत्रित कर रही हैं। पता नहीं क्यों उन सभी की शक्लें सलोनी और सिमरन से ही मिल रही थी। आज हमारा लिंगेश्वर और काल भैरवी मंदिर देखने जाने का प्रोग्राम था। लिंगेश्वर मंदिर में एक चबूतरे पर 11-12 फुट ऊंची एक विशालकाय कामदेव की नग्न मूर्ति बनी है। जिसका लिंग अश्व (घोड़ा) की तरह डेढ़ फुट लम्बा और 4-5 इंच (व्यास) मोटा है। कुंवारी लड़कियों को बड़ी चाह होती है कि उनके पति का लिंग मोटा और लम्बा हो। यहाँ पर वो इस मूर्ति का लिंग पकड़ कर मन्नत मांगती हैं कि उन्हें भी ऐसे ही लिंग वाला पति मिले। विवाहित स्त्रियाँ भी इसे अपने हाथों में पकड़ कर कामना करती हैं कि उनके पति को भी अश्व जैसी काम-शक्ति मिले। उसके साथ ही थोड़ी दूर काल भैरवी का मंदिर बना है जिसमें भैरवी (योगिनी) की बहुत सुन्दर नग्न मूर्ति बनी है। पर इसके बारे में मैं नहीं बताऊंगा।
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