प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:30 PM,
#25
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मुझे कुछ आस बंधी। मेरा लंड तो अब रौद्र रूप ही धारण कर चुका था। मेरा तो मन करने लगा बस इसे थोड़ा सा नीचे झुकाऊं और अपने खड़े लंड पर थूक लगा कर इसकी मटकती गांड में डाल दूं। पर मैं इतनी जल्दबाजी करने के मूड में नहीं था।
मेरा मानना है कि ‘सहज पके सो मीठा होय’
“अरे कुछ नहीं होता इसमें तो आगे वाले छेद से भी ज्यादा मज़ा आता है ! मधुर तो इसकी दीवानी है। वो तो मुझे कई बार खुद कह देती है आज अगले में नहीं पीछे वाले छेद में करो ?” मैंने झूठ मूठ उसे कह दिया।
थोड़ी देर वो चुप रही। उसके मन की दुविधा और उथल-पुथल मैं अच्छी तरह जानता था। पर मुझे अब यकीन हो चला था कि मैं जन्नत के दूसरे दरवाजे का उदघाटन करने में कामयाब हो जाउंगा।
“वो ... वो ... रज्जो है ना ?” अंगूर ने चुप्पी तोड़ी।
“कौन रज्जो ?”
“हमारे पड़ोस में रहती है मेरी पक्की सहेली है !”
“अच्छा ?”
“पता है उसके पति ने तो सुहागरात में दो बार उसकी गांड ही मारी थी ?”
“अरे वो क्यों ?”
“रज्जो बता रही थी कि उसके पति ने उसे चोदना चालू किया तो उसकी बुर से खून नहीं निकला !”
“ओह ... अच्छा... फिर ?”
“फिर वो कहने लगा कि तुम तो अपनी सील पहले ही तुड़वा चुकी लगती हो। मैं अब इस चुदे हुए छेद में अपना लंड नहीं डालूँगा। तुम्हारे इस दूसरे वाले छेद की सील तोडूंगा !”
“अरे ... वाह ... फिर ?”
“फिर क्या ... उसने रज्जो को उल्टा किया और बेचारी को बहुत बुरी तरह चोदा। रज्जो तो रोती रही पर उसने उस रात दो बार उसकी जमकर गांड मारी। वो तो बेचारी फिर 4-5 दिन ठीक से चल ही नहीं पाई !”
“पर रज्जो की बुर की सील कैसे टूट गई उसने बताया तो होगा ?” मैंने पूछा।
“वो.... वो.... 8 नंबर वाले गुप्ता अंकल से उसने कई बार चुदवाया था !”
“अरे उस लंगूर ने उसे कैसे पटा लिया ?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं किसी सर्कस का जानवर या एलियन हूँ। फिर वह बोली,“पता ही वो कितने अच्छे अच्छे गिफ्ट उसे लाकर दिया करते थे। कभी नई चप्पलें, कभी चूड़ियाँ, कभी नई नई डिजाइन की नेल पोलिश ! वो तो बताती है कि अगर गुप्ता अंकल शादीशुदा नहीं होते तो वो तो रज्जो से ही ब्याह कर लेते !”
मैं सोच रहा था कि इन कमसिन और गरीब घर की लड़कियों को छोटी मोटी गिफ्ट का लालच देकर या कोई सपना दिखा कर कितना जल्दी बहकाया जा सकता है। अब उस साले मोहन लाल गुप्ता की उम्र 40-42 के पार है पर उस कमसिन लौंडिया की कुंवारी बुर का मज़ा लूटने से बाज़ नहीं आया।
“स ... साला .... हरामी कहीं का !” मेरे मुँह से अस्फुट सा शब्द निकला।
“कौन ?”
ओह... अब मुझे ध्यान आया मैं क्या बोल गया हूँ। मैंने अपनी गलती छिपाने के लिए उसे कहा,“अरे नहीं वो ... वो मैं पूछ रहा था कि उसने कभी रज्जो की गांड भी मारी थी या नहीं ?”
“पता नहीं ... पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?”
“ओह ... वो मैं इसलिए पूछ रहा था कि अगर उसने गांड भी मरवा ली होती तो उसे सुहागरात में दर्द नहीं होता ?” मैंने अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फिरानी चालू कर दी और उसकी मदनमणि के दाने को भी दबाना चालू कर दिया। साथ साथ मैं उसके कानो की लटकन, गर्दन, और कन्धों को भी चूमे जा रहा था।
“वैसे सभी मर्द एक जैसे ही तो होते हैं !”
“वो कैसे ?”
“वो... वो.... जीजू भी अनार दीदी की गांड मारते हैं और .... और ... बापू भी अम्मा की कई बार रात को जमकर गांड मारते हैं !”
“अरे ... वाह ... तुम्हें यह सब कैसे पता ?”
“हमारे घर में बस एक ही कमरा तो है। अम्मा और बापू चारपाई पर सोते हैं और हम सभी भाई बहन नीचे फर्श पर सो जाते हैं। रात में कई बार मैंने उनको ऐसा करते देखा है।”
मुझे यह सब अनारकली ने भी बताया था पर मुझे अंगूर के मुँह से यह सब सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था। दरअसल मैं यह चाहता था कि इस सम्बन्ध में इसकी झिझक खुल जाए और डर निकल जाए ताकि यह भी गांड मरवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाए और गांड मरवाते समय मेरे साथ पूरा सहयोग करे। पहले तो यह जरा जरा सी बात पर शरमा जाया करती थी पर अब एक बार चुदने के बाद तो आसानी से लंड, चूत, गांड और चुदाई जैसे शब्द खुल कर बोलने लगी है।
मैंने बात को जारी रखने की मनसा से उसे पूछा,“पर गुलाबो मना नहीं करती क्या ?”
“मना तो बहुत करती है पर बापू कहाँ मानते हैं। वो तो अम्मा को अपना हथियार चूसने को भी कहते हैं पर अम्मा को घिन आती है इसलिए वो नहीं चूसती इस पर बापू को गुस्सा आ जाता है और वो उसे उल्टा करके जोर जोर से पिछले छेद में चोदने लग जाते हैं। अम्मा तो बेचारी दूसरे दिन फिर ठीक से चल ही नहीं पाती !”
“तुम्हारा बापू भी पागल ही लगता है उसे ठीक से गांड मारना भी नहीं आता !”
वो तो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई। थोड़ी देर रुक कर वो बोली,“बाबू मेरे एक बात समझ नहीं आती ?”
“क्या ?”
“अम्मा बापू का चूसती क्यों नहीं। अनार दीदी बता रही थी कि वो तो बड़े मजा ले ले कर चूसती है। वो तो यह भी कह रही थी कि मधुर दीदी भी कई बार आपका .... ?” कहते कहते अंगूर रुक गई।
मैं भी कितना उल्लू हूँ। इतना अच्छा मौका हाथ में आ रहा है और मैं पागलों की तरह ऊलूल जुलूल सवाल पूछे जा रहा हूँ।
ओह ... मेरे प्यारे पाठको ! आप भी नहीं समझे ना ? मैं जानता हूँ मेरी पाठिकाएं जरूर मेरी बात को समझ समझ कर हँस रही होंगी। हाँ दोस्तो, कितना बढ़िया मौका था मेरे पास अंगूर को अपने लंड का अमृतपान करवाने का। मैं जानता था कि मुझे बस थोड़ी सी इस अमृतपान कला की तारीफ़ करनी थी और वो इसे चूसने के लिए झट से तैयार हो जाएगी। मैंने उसे बताना शुरू किया।
पढ़ते रहिए .....
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