हिन्दी में मस्त कहानियाँ
07-03-2017, 01:23 PM,
#18
RE: चाचा की बेटी
कम्प्यूटर सेन्टर
लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)





मैं पिछली दो कहानियों ("कम्प्यूटर लैब में तीन लौड़ों से चुदी" और "कम्प्यूटर लैब से चौकीदार तक") में बता ही चुकी हुँ कि मैं एक पढ़ी-लिखी सरकारी टीचर हूँ और साथ में अकेली रहने वाली हवस से भरी चुदक्कड़ औरत जो मर्दों के बिना रह नहीं पाती। आपने देखा कि कैसे बारहवीं क्लास के लड़कों ने स्कूल की कम्प्यूटर लैब में पुरा दिन मुझे रौंदा। फिर अपने पढ़ा कि किस तरह जीवन लाल चौंकीदार ने मुझे ज़बरदस्त चुदाई जो दी और वो मेरे घर में मेरा रखैल बन कर रहने लगा और फिर तकदीर ने उसे हमेशा के लिये मुझसे छीन लिया।

लो अब आगे बढ़ते हैं !

दोस्तो, जीवन लाल से - सच कहुँ तो उसके लौड़े से - मैं बहुत प्यार करने लगी थी! दीवानी थी उसकी मस्त चुदाई की। दिन -रात उससे चुदवाती थी। वो भी पूरी निष्ठा से अपना फर्ज़ समझ कर मेरी जिस्मानी जरुरतों को पूरा करने के लिये हमेशा तैयार रहता था।

उससे तो दूर हूँ लेकिन चुदाई से कैसे दूर रहूँ ?

यह मेरे लिए मुश्किल काम बन सा गया था।

जीवन लाल से दूर होने के बाद मेरी हालत देवदसी जैसी हो गयी। स्कूल से घर लौट कर खुद को नशे में डुबो देती। इससे पहले दिन भर में मुश्किल से आधी बोतल शराब ही पीती थी लेकिन अब तो पूरी -पूरी बोतल शराब पी जाती। कोकेन और दूसरी ड्रग्स भी अक्सर लेने लगी। घंटों तक इंटरनेट पर नंगी वेबसाईट या चुदाई की सी-डी देखती रहती। जीवन लाल के लौड़े को याद करते हुए केले, बैंगन, लौकी से बार-बर अपनी चूत चोदती। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

जब तक जीवन लाल मेरे साथ था, मैंने बारहवीं के उन लड़कों से कभी-कभी ही चुदवाया था। अब बारहवीं का वो बैच भी निकल गया जिसमें पढ़ने वाले तीन लड़कों से मैंने लेब में चुदवाया था। जीवन लाल की चुदाई से मैं इतनी खुश थी की जिन मास्टरों के साथ संबंध थे, वो तोड़ लिए थे।

नये संबंध बनाने के लिये मैंने स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का फैसला लिया और तीन नए कंप्यूटर खरीद कर ऊपर के हिस्से में सेण्टर खोल लिया जिसमें बेसिक, सी ++, सी, वर्ड, एक्स्सल तक पढ़ाने की सोची। इसके पीछे असली मक्सद था कि ट्यूशन पढ़ने आये लड़कों को अपनी चूत में भड़कते शोले शाँत करने के लिये रिझा सकूँ।

मैंने एक बोर्ड भी बनवाया और पेम्प्लेट्स भी छपवाए और कुछ ही दिन में मेरे पास तीन लड़कियाँ पड़ने को आने लगी। लेकिन मुझे ज्यादा ज़रुरत लड़कों की थी। खैर मेरी चुदाई के किस्से तो आम सुने जाते थे, सभी जानते थे कि मैं अकेली किसलिए रहती हूँ। मुझे उम्मीद थी कि मेरी बदनामी की वजह से जल्दी ही लड़के भी पढ़ने आने लगेंगे।

खैर कुछ दिन ही बीते थे कि मेरे पास दो लड़के आये, उनकी उम्र करीब चौबीस-पच्चीस साल की होगी, मुझे बोले कि उनको कंप्यूटर की बेसिक चीज़ें सीखनी हैं क्योंकि वो दोनों ही क्लर्क थे सरकारी जॉब पर और क्योंकि अब सारा काम कम्प्यूटर पर होने लगा तो वो भी कुछ सीखने की सोच रहे थे। दोनों बहुत हट्टे कट्टे थे। दोनों ही शादीशुदा थे, नयी नयी शादी हुई थी।लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

उधर मेरे पास अब पाँच लड़कियों का बैच था, स्कूल से मैं दो बजे घर आती थी, साढ़े चार बजे मैंने लड़कियों का बैच रखा और उन दोनों को मैंने सात बजे का समय दे दिया। चुदाई की आग तो निरंतर भड़कती रहती थी मेरे अन्दर! मैं उन दोनों पर फ़िदा होने लगी।

मैं तो जिस्म की नुमाईश करने वाले सैक्सी कपड़े हमेशा पहनती ही थी पर उनकी क्लास के वक्त तो मैं बिल्कुल ही बेशर्म हो जाती। उनकी निगाहें मेरे जिस्म पर टिक जाती। समझाने के बहाने, माउस के बहाने झुक कर अपने जलवे दिखाती, उनसे सट जाती तो वो भी समझने लगे थे कि आग बराबर लगी हुई है, बस माचिस की एक तीली चाहिए।



आखिर वो दिन आ गया। वो दोनों क्योंकि अब मेरे साथ काफी घुलमिल गए थे, मैंने उनको कहा- “बैठो, मैं चाय लेकर आती हूँ!”

“नहीं रहने दो! चाय इस वक़्त हम पीते नहीं!”

“क्यों?”

“बस यह समय मूड बनाने का होता है, पेग-शेग लगाने का!”

“अच्छा जी! यह बात है तो पेग लगवा देती हूँ! आज यहाँ बैठ कर मूड बना लो!”

“यहाँ पर मूड कुछ ज्यादा न बन जाए क्योंकि आप तो हमारी टीचर हैं!”

“टीचर हूँ तो क्या हुआ, हूँ तो एक औरत ही ना! सिर्फ आठ-नौ साल ही तो बड़ी हुँ तुम दोनों से!”

“आपके बारे में काफी सुना है लेकिन आज देख भी रहे हैं!”

“जा फिर जोगिन्दर, पास के ठेके से दारु लेकर आ!” दूसरा बोला।

“अरे रुक! मेरे घर बैठे हो, यह फ़र्ज़ तो मेरा है!”

मैं कमरे में गई और सूट उतार कर पतली सी पारदर्शी नाइटी पहन ली। नाइटी में से मेरी सैक्सी ब्रा- पैंटी और पूरा जिस्म साफ-साफ गोचर हो रहा था। हमेशा की तरह ऊँची पेंसिल हील के सैक्सी सैंडल तो पैरों में पहले से ही पहने हुए थे। बार से विह्स्की की बोतल निकाली और ड्राई फ्रूट और फ्रिज से सोडा ले कर मैं इतराते हुए सैंडल खटखटाती आदा से कैट-वॉक करती हुई बाहर आयी। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

“वाह मैडम! आप यह सब घर में रखती हो!”

“इतने नादान न बनो! जैसे कि तुम्हें पता ही नहीं की मैं शराब पीती हूँ... मेरी साँसों में हमेशा शराब-सिगरेट की मिलिजुली महक नहीं आती है क्या?”

“हमें शक सा तो था वैसे लेकिन...!”

“लेकिन क्या? अरे दारू के सहरे तो मैं ज़िंदा हुँ! मेरी तन्हा ज़िंदगी में इसका ही तो साथ मिलता है! सारा दिन मन खिलाकिला रहता है!” मैं हाथ घुमा कर अदा से बोली।

“उफ़ हो!” उसकी आहें निकल गई! आपकी नाइटी बहुत आकर्षक है!

“अच्छा जी! सिर्फ नाइटी...?” मैंने कहा- “कमरे में आराम से बैठ कर जाम से जाम टकराते हैं!”

मेज पर सब सामान रख दिया, वो जूते वगैरह उतार कर आराम से बिस्तर पर सहारा लगा कर बैठ गये। एक बेड के एक किनारे दूसरा दूसरे किनारे!

मैं झुक कर पेग बनाने लगी, मेरा पिछवाडा उनकी तरफ था। इधर वाले ने नाइटी ऊपर करके अपना हाथ मेरी गांड पर रख दिया और फेरने लगा।

“अभी से चढ़ने लगी है क्या मेरे राजा?”

“हाँ, तू है ही इतनी सेक्सी! क्या गोलाइयाँ हैं तेरी गांड की! उफ़!”

“तू तो पुरानी शराब से भी ज्यादा नशीली है!”

दोनों को गिलास थमाए और खुद का गिलास लेकर सैंडल पहने हुए ही बिस्तर पर चढ़ के दोनों के बीच में सहारा लगा कर बैठ गई। एक इस तरफ था, एक उस तरफ!

अपनी जांघों पर मैंने ड्राई फ्रूट की ट्रे रख ली। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

दूसरे वाले ने काजू उठाने के बहाने मेरी जांघों को छुआ। दोनों मेरे करीब आने लगे, दोनों ने एक सांस में अपने पेग ख़त्म कर दिए और ट्रे एक तरफ़ पर कर मेरी नाइटी कमर तक ऊपर कर दी। मेरी मक्खन जैसी जांघें देख दोनों के लंड हरक़त करने लगे।

मैंने भी पेग ख़त्म किया। मैं पेग बनाने उठी तो एक ने मेरी नाइटी खींच दी और मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में उठी।

“वाह, क्या जवानी है तेरे ऊपर मैडम! आज की रात यहीं रुकेंगे और यहीं रंगीन होगी यह रात!”

“तेरी सारी तन्हाई दूर कर देंगे।”

फिर बोले- “मैडम, माफ़ करना सिर्फ आधे घंटे का वक़्त दो, हम ज़रा घर होकर वापस आते हैं। खाना मत बनाना, लेकर आयेंगे!”

“दारु मत लाना! बहुत स्टॉक है!” मैंने आवाज़ दी।

“ठीक है!”

वो चले गये तो मैं भी दूसरा पैग खत्म करके उठी। वाशरूम गई और वैक्सिंग क्रीम निकाली। मैं अपनी चूत, गाँड और बगलों की नियमित वैक्सिंग करती हूँ, बिल्कुल साफ रखती हूँ। वैसे तो चार दिन पहले भी वैक्सिंग की थी पर इतने दिन बाद लौड़े चोदने का मौका मिला था इसलिये वैक्सिंग करके अपनी चूत बिल्कुल मखमल की तरह चीकनी कर दी। ज़रा सा भी रोंआ या चुभन नहीं चाहती थी मैं।

फिर क्या हुआ? कैसे बीती वो रंगीन रात?



उसके बाद मैं नहाई, पर्फ्यूम लगया, लिपस्टिक, ऑय लायनर, शैडो वगैरह लगा कर थोड़ा मेक-अप किया, काले रंग के बहुत ही ऊँची पतली पेंसिल हील के सैंडल पहने और पिंक रंग की माइक्रो ब्रा और जी-स्ट्रिंग पैंटी पहनी। ऊपर से सिल्क की पारदर्शी नाइटी डाल ली। बेडरूम में एक रेशमी चादर बिछा दी। आखिर काफी दिनों बाद मेरी सुहागरात थी, मेरी चूत और गाँड को दो-दो लौड़े मिलने वाले थे।

मूड बनाने के लिये कोकेन की एक डोज़ भी दोनों नाकों में सुड़क ली। अभी से उनके सामने मैं अपनी सारी गंदी लत्तें ज़ाहिर नहीं करना चाहती थी इसलिये उनके आने के पहले ही कोकेन सूँघ ली। सारा माहौल रंगीन और रोमांचक लगने लगा और बहुत ही हल्का महसुस होने लगा। पूरे जिस्म में मस्ती भरी लहरें दौड़ने लगीं।

बार-बार उनके लंड आँखों के सामने आने लगे! दिल कर रहा था कि जल्दी से उनके नीचे लेट जाऊँ पर मैं अकेली ही बिस्तर पर लेट गई, सिगरेट के कश लगाती हुई अपने मम्मों को खुद दबाने लगी और अपनी चूत से छेड़छाड़ करने लगी।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी और मैं खुश हो गई।

जल्दी से नाइटी ठीक करके उठी, दरवाज़ा खोला तो वो दोनों मेरे सामने थे, उनके हाथों में खाने का लिफाफा, बीयर की बोतलें थी और चेहरे पर वासना और खुशी की मिली-जुली कशिश थी। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

“आओ मेरे बच्चों, तुम्हारी मैडम की क्लास में तुम्हारा स्वागत है!”

“जी मैडम! आज आपने कहा था कि आज आप हमारा टेस्ट लेंगी?”

“हाँ, आ जाओ ! प्रश्नपत्र भी छप चुके हैं और सिटिंग प्लान भी बना लिया है।“

उनके हाथ से लिफाफा लिया, दोनों ने मेरे होंठों को चूमा!

“आओ अंदर! यहाँ कोई देख लेगा!”

“तो दे आये धोखा अपनी अपनी पत्नियों को?”

“क्या करें मैडम जी, आपने हमारा टेस्ट जो रखा है! वो भी तो ज़रूरी है!”

“बहुत कमीने हो तुम दोनों!”

“हाय मैडम, आपकी क्लास लगाने से पहले इतने कमीने नहीं थे! सब आपकी शिक्षा का असर है... पहले तो आपके कमीनेपन के चर्चे ही सुने थे। और गुरु माँ हमें आशीर्वाद दो और अपने इन सच्चे सेवकों को गुरुदक्षिणा देने दो! मौका भी है, नजाकत भी है, दस्तूर भी है!”

“तुम कमरे में जाओ! अभी आई मैं!”

मैं सैंडल खटखटाती रसोई की ओर चली गई, ट्रे में तीन ग्लास, आइस क्यूब और नमकीन वगैरह रख रही थी कि एक ने मुझे पीछे से दबोच लिया और मेरी पीठ और गर्दन पर चुम्बनों की बौछार कर दी। यही औरत का सबसे अहम हिस्सा है जहाँ से सेक्स और बढ़ता है और औरत बेकाबू होने लगती है। और फिर लगाम लगाने के लिए चुदना ही आखिरी इलाज़ होता है। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

उसने मुझे बाँहों में उठाया और जाकर गद्दे पर पटक दिया। दूसरे ने नाइटी उतार कर एक तरफ़ फेंक दी। पहले वाला ग्लास वगैराह लेकर आया!

मेरी ब्रा के और पैंटी के ऊपर से ही वो मेरी चूत, गांड सूँघने लगा और कभी कभी अपनी जुबान से चूत चाट लेता!

मैं बेकाबू होने लगी, उसको धक्का दिया और परे किया और खुद उसकी जांघों पर बैठ गई और उसके लोअर का नाड़ा खींच कर उसको उतार दिया। उसके कच्छे के ऊपर से ही उसके लौड़े को सूंघ कर बोली- “क्या महक है!” कोकेन और शराब के मिलेजुले नशे ने मेरी मस्ती कईं गुणा बढ़ा दी थी। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

वो बोला- “उतार दो मैडम! अपना ही समझो!”

मैंने जैसे ही उसका कच्छा उतारा, सांप की तरह फन निकाल वो छत की ओर तन गया।

मैं उठी और दूसरे का भी यही काम किया और दोनों के लौड़ों को हाथ में लेकर मुआयना करने लगी, सहलाने लगी।

जीवन लाल के जैसे तो नहीं थे लेकिन अपने आप में एक आम मर्द के हिसाब से उनके लौड़े बहुत मोटे ताजे थे।

“वाह मेरे शेरों, आज की रात तो रंगीन कर दी तुम दोनों ने!”

मैंने एक-एक पेग बनाया और तीनों ने खींच दिया। नशे और चुदास में चूर होकर मैं पागल सी हो चुकी थी और भूखी शेरनी की तरह उनके लौड़े चूसने लगी।

उन्होंने भी मेरी ब्रा और पैंटी निकाल दी और सिर्फ सैंडल छोड़कर मुझे बिल्कुल नंगी कर दिया। वो दोनों मेरे मम्मों से खेल रहे थे और उंगली गांड में डाल कर कभी चूत में डाल कर मुझे सम्पूर्ण सुख दे रहे थे। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

दोनों ने कंडोम का एक पैकेट निकाला, एक ने चढ़ा लिया, मुझे उठाया और बोला- “गोदी में बैठ जा मैडम! लौड़े के ऊपर!”

मैं तो खेली-खायी पूरी खिलाड़ी थी, उसका मतलब समझ गयी।

उसने हाथ से टिकाने पर सेट किया और मैं उसके ऊपर धीरे धीरे बैठने लगी। उसने मेरे दोनों कन्धों को पकड़ा और दबा दिया।

हाय तौबा! फदाच की आवाज़ आई और मेरी चीख सी निकल गई।

उसी पल दूसरे ने अपना लौड़ा मेरे बालों को खींचते हुए मुँह में घुसा दिया- “साली चीख मत!”

मेरे दोनों मम्मे उसकी छाती से चिपके हुए थे, जब मैं उछलती तो घिस कर मेरे सख्त चुचूक उसकी छाती से रगड़ खाते तो अच्छा लगता!

अब मैं पूरी तरह से उसके वार सहने के लायक हो चुकी थी। फिर एक ने मुझे सीधा लिटा लिया और मेरे ऊपर आ गया, दोनों टांगें चौडीं करवा ली और घुसा दिया मेरी चुदी चुदाई फ़ुद्दी में!

जब उसने रफ़्तार पकड़ी तो मैं जान गई कि वो छूटने वाला है और उसने एकदम से मुझे चिपका लिया।

मैंने उसकी कमर को कैंची मार कर पक्का गठजोड़ लगा दिया और उसको निम्बू की तरह निचोड़ दिया।

फिर वो बोला- “मैं खाना देखता हूँ!”लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)



इतने में दूसरा शेर मुझ पर सवार हो गया, बोला- “तेरी गांड मारनी है!”

मैं तो पूरे नशे में थी, उसी पल कुत्तिया बन गई और गांड उसकी तरफ घुमा कर कुहनियों के सहारे मुड़ कर देखने लगी।

वो कंडोम लगाने लगा तो मैं तड़पते हुए बोली – “हराम के पिल्ले! साले! गाँड ही तो मारनी है कंडोम से मज़ा क्यों खराब कर रहा है!”

उसने कंडोम का पैकेट एक तरफ फेंक दिया और काफी थूक गांड पर लगाया और धक्का देते हुए मेरी गांड फाड़ने लगा।

मैंने पूरी हिम्मत के साथ बिना हाय कहे उसका आधा लौड़ा डलवा लिया। फिर कुछ पलों में मेरी गांड उसका पूरा लौड़ा अन्दर लेने लगी।

मैं कई बार गांड मरवा चुकी थी। कह लो कि हर बार संभोग करते समय एक बार चूत फिर गांड मरवाती ही थी।

“हाय और पेल मुझे! चल कमीने चोदता जा!”

“यह ले कुतिया! आज रात तेरा भुर्ता बनायेंगे! बहन की लौड़ी बहुत सुना था तेरे बारे में! दिल करता है तेरे स्कूल में बदली करवा लूँ और तेरी लैब में रोज़ तेरा भोंसड़ा मारूँ!”

“साले बाद की बाद में देखना! अभी तो फाड़ गांड!”

“यह ले! यह ले!” करते हुए वो धक्के पे धक्के मारने लगा और जोर जोर से हांफने लगा।

उसने जब अपना वीर्य मेरी गांड में निकाला तो मेरी आंखें बंद होने लगी, इतना स्वाद आया! सारी खुजली मिटा गया!

फिर शुरु हुआ दारु का एक और दौर! लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

उन दोनों ने तो सिर्फ एक-एक पेग और लगाया और खाना खाने लगे। दोनों इतने में ही काफी नशे में थे पर मैं तो पुरानी पियक्कड़ थी। बोतल सामने हो तो रुका नहीं जाता।

“मैं तो आज तुम्हारे लौड़े ही खाऊँगी!” मैंने खाना खाने से इंकार कर दिया और पेग पे पेग खींचने लगी। मैं बहुत मस्ती में थी क्योंकि जानती थी कि मेरी मईया आज पूरी रात चुदने वाली थी! मैं नशे में बुरी तरह चूर थी। पेशाब के लिये वाशरूम जाने उठी तो दो कदम के बाद ही लुढ़क गयी। इतने नशे में उँची हील की सैंडल में संतुलन नहीं रख पायी। अपने पर बस तो था नहीं - वहीं पर मूत दिया। कोई नई बात नहीं थी, अक्सर मेरे साथ नशे की हालत में ऐसा हो जाता था।

खाना खाकर उन्होंने मुझे फर्श से सहारा देकर उठाया और हलफ नंगी बीच में लिटाया और खुद भी नंगे बिस्तर पर लेट गए। दोनों के मुर्झाये लौड़ों में जान डाली और मेरी लैला पूरी रात चुदी एक साथ गांड में और चूत में! किस किस तरीके से नहीं मारा मेरा भोंसड़ा! जब उन दोनों में बिल्कुल भी ताकत नहीं बची तब जा कर मैंने उन्हें छोड़ा। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

उस दिन के बाद थोड़ा बहुत तो मैं वैसे उनसे हर रोज़ ही चुदवा लेती थी और हफ्ते में एक दो बार तो वो रात भर रुकते और पूरी रात रंगीन करते!

लेकिन मेरा दिल अब वर्जिन मतलब जिसने पहले कभी किसी को न चोदा हो ऐसे लड़कों के लिए मचलने लगा था।

!!!! समाप्त !!!!
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RE: चाचा की बेटी - by sexstories - 07-03-2017, 01:23 PM

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