हिन्दी में मस्त कहानियाँ
07-03-2017, 01:23 PM,
#17
RE: चाचा की बेटी
कम्प्यूटर लैब से चौकीदार तक
लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)




पिछले भाग (कम्प्यूटर लैब में तीन लौड़ों से चुदी) में आपने पढ़ा कि कैसे बारहवीं क्लास के लड़कों ने स्कूल की कम्प्यूटर लैब में पुरा दिन मुझे रौंदा। आओ ले चलती हूँ उस रात को हुई अपनी मस्त ठुकाई पर! ज़बरदस्त चुदाई जो मुझे जीवन लाल चौंकीदार ने दी!

सच में वो फौलाद था जिसने मेरी तसल्ली करवा दी !

जो कहता था वो सच करके दिखाया और मेरा पूरा-पूरा बाजा बजाया उसने!

वैसे भी मेरा बहुत साथ दिया था उसने। मेरे लिए अपनी सरकारी नौकरी खतरे में डालता था जब भी मुझे स्कूल में दूसरे मास्टरों के साथ एय्याशी करनी होती तो हमें अपना कमरा हमें देता, हमें मौके देता! जरूरत पड़ने पर मैं उससे ही शराब या सिगरेट खरीदने भेज देती थी और उसने कभी आनाकानी नहीं की। इसलिए मैंने उसको आज रात घर बुलाया था ताकि उसको अपना जिस्म सौंप सकूँ! आज फिर मेरी खुशी के लिये फिर से नौकरी खतरे में डालने वाला था क्योंकि उसका काम तो स्कूल में रह कर चौकीदारी करना था और वो मेरे कहने पर पूरी रात मेरे घर पर गुज़ारने वाला था।

घर पहुँच कर मैं ठंडे पानी से नहाई और मैं खाना भी जल्दी खा लिया। उसके बाद ग्यारह बजे का इंतज़ार करते हुए इंटरनेट पर नंगी मुवी देखते हुए मोटे से केले से जी भर कर अपनी चूत चोदते हुए कईं बार झड़ी। इसी दौरान चिल्ड पेप्सी के साथ जिन का एक और पव्वा भी पी गयी थी और नशे में बदमस्त थी। पूरे ग्यारह बजे उसने मेरे घर में दस्तक दी। तेज़ गर्मी के दिन थे लेकिन ए-सी चलने की वजह से घर में काफी सुहावना मौसम था। घर में मैं अक्सर नंग धड़ंग ही रहती थी क्योंकि मैं अकेली ही थी और कोई आता भी था तो कोई आशिक ही! इसलिए मैंने सिर्फ बिकिनी वाली छोटी सी पेंटी और काफी ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे। ऊपर से घुटनों तक की नाइटी पहनी हुई थी जो इतनी झीनी थी कि उसे पहनना या ना पहनना एक समान था।

वो अपने साथ देसी शराब की बोतल लेकर आया था। । वो खुद ही रसोई देख कर ग्लास लाया। मैंने भी दो सिगरेट जला लीं।

“मैडम, नारंगी ठर्रा है.... पियोगी या अपनी अंग्रेज़ी पियोगी?” एक ग्लास में पैग बनाते हुए उसने पूछा। वैसे तो मैं अंग्रेज़ी शराब जैसे कि जिन, रम, व्हिस्की वहैरह ही पिती थी लेकिन देसी ठर्रे से भी मुझे परहेज नहीं था। मैंने पहले भी कईं बार देसी शराब पी थी। मेरा तजुर्बे में देसी शराब स्वाद में चाहे तीखी और नागवार होती है लेकिन चाँद पे पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। और मैं तो पहले ही नशे में बादलों में उड़ रही थी और चाँद पे जाने के लिये बिल्कुल तैयार थी। “अब तू इतने दिल से लाया है तो मैं भी ठर्रा ही पियूँगी... भर दे मेरा भी ग्लास!” मैं अपनी सिगरेट का कश लेते हुए बोली और दूसरी सिगरेट उसे थमा दी।

“बहुत प्यासा हूँ तेरी चूत का! मेरा लौड़ा खाएगी तो रोज़ ना बुलाया तो मेरा नाम बदल देना!”

“हाँ जीवन! तूने जब आज मुझे अपने लौड़े की झलक दिखलाई, उसी वक़्त जान गई थी कि तू बहुत कमीना है !”

“मैडम इस स्कूल में उन्नीस साल की उम्र से नौकरी कर रहा हूँ, इन सात-आठ सालों में कई मैडमों ने मुझसे चुदवाया था लेकिन तू सबसे अलग चीज़ है!”


“हाँ! बहुत शौक़ीन हूँ मैं चुदाई की! और तू भी आज अपनी कुत्तिया समझ कर चोद मुझे... बहुत कुत्ती चुदासी राँड हूँ मैं!”

मैं तो पहले से ही लगभग नंगी थी। पेग खींचते ही मैंने पहले उसका पजामा उतारा और ऊपर से ही सहलाया पुचकारा, बाकी का पजामा जीवन ने खुद उतार दिया और मैंने उसका कुरता उतार दिया उसकी छाती पर घंने बालों को देख मेरा सेक्स और भड़क उठा। मुझे बालों वाले मर्द बहुत पसंद हैं। मैंने जीवन की छाती पे ना जाने कितने चुम्बन लिए ! वो मेरे अनारों से खेलता रहा और मैं उसकी छाती से और एक हाथ से उसके लौड़े को मसल रही थी।

“साली पेग बना और अपने हाथों से मुझे जाम पिला!”


मैं रंडी की तरह उठी, नशे में झूमती, ऊँची हील की सैंडलों में लड़खड़ाती मैं गांड मटकाती हुई गई और कोठे वाली रंडी की तरह एक जाम उसको पिलाया, एक खुद खींचा! अब तो शराब का नशा पूरे परवान पर था और ऊपर से चुदाई का नशा, मेरा अपने ऊपर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था... बैठे बैठे झूम रही थी... बार-बार सिगरेट हाथों से फिसल जाती... कभी खिलखिला कर हंसने लगती तो कभी गुर्राते हुए गालियाँ बकने लगती... । लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

नशे में काँपते हाथों से मैंने एक पल में उसका अंडरवीयर उतार दिया- “ओह माय गॉ...; यह लौड़ा है या अजगर?” मेरी आवाज़ भी बहक रही थी।

“मैंने तभी तुझे कहा था कि यह देख, मेरा सोया हुआ लौड़ा भी दूसरों के खड़े लौड़े जैसा है।“

वास्तव में जैसे जैसे मेरा हाथ उस पे फिरने लगा वो उतना ही भयंकर होने लगा।

“साली चूस ले! जब खड़ा हो गया तुझसे चूसा नहीं जायेगा! और फिर जबड़ा तोड़ दूंगा!”

ज़बरदस्ती से मैं डर सी गई और उसके लौड़े के टोपे को चूसने लगी। सही में फिर वो मुझ से मुँह में नहीं लिया जा रहा था तो मैंने उसकी एक गोटी को चूसना शुरु कर दिया और साथ साथ जुबान से उसके लौड़े को चाट रही थी। खुश भी थी, थोड़ा डर भी था। उसको भी शराब चढ़ती जा रही थी, पूरी बोतल (खंबा) डकार चुका थे हम दोनों। मैंने लौड़ा चूसते हुए जब ऊपर देखा और एक और पेग लेने की सोची तो देखा- बोतल ख़त्म थी।

“हरामी की औलाद.... साले लाया भी तो एक ही बोतल... अब क्या अपना मूत पियूँगी!” मैंने गुस्से से कहा|

“चल कुतिया, मुझे तेरे साथ सुहाग रात मनानी है! मैं दारु लेकर आया ठेके से। तब तक बन-सवंर के घूंघट लेकर बैठ जा!”



वो दारू लेने चला गया। मैं भी नशे में झूमती हुई उठी और किसी तरह से सैक्सी सा ब्रा-पेंटी का सेट पहना, लाल रंग की आकर्षक साड़ी पहनी... पहनी क्या, बस किसी तरह लपेट ली... नशे में चुदाई के अलावा और कुछ भी कर पाने की लियाकत तो बची नहीं थी... पेंसिल हील के जो सैंडल पहने हुए थे वही पहने हुए बिस्तर के बीच बैठ गई और पल्लू सरका कर घूंघट कर लिया। जीवन अन्दर आया, कुण्डी लगा मेरे पास आकर मेरा घूंघट उठाया और मेरे होंठ चूसने लगा। मैं भी शरमा के दुल्हन का ढोंग कर रही थी। केले के छिलके की तरह उसने मेरा एक-एक कपड़ा उतार दिया। अब मैं सिर्फ उँची ऐड़ी वाले सैंडल पहने बिल्कुल नंगी उस चौंकीदार के पहलू में थी। वो मेरे बदन पर दारु डाल कर चाटने लगा। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

मुझे भी कब से तलब हो रही थी तो मैंने भी एक दो पेग लगाए और फिर जीवन मुझ पर छाने लगा। उसका लौड़ा साधारण नहीं था, हब्शी जैसा था! वो मुझे खींच के बेड के किनारे लाया, खुद खड़ा हुआ और मेरी टाँगें खोल ली और मोटा लौड़ा चूत पे टिका दिया और झटका मारा।

मेरी सांसें रुक गई! नशे में चूर होने के बावजूद जान निकल रही थी मेरी! लेकिन वो नहीं माना!

मेरी चूत फट रही थी, उसने पूरा लौड़ा घुसा दिया जो मेरी बच्चेदानी को छूने लगा!

मैं गिड़गिड़ा रही थी, वो भी नशे में था पर मुझसे कम नशे में था।

वो हर बार पूरा लौड़ा निकालता, फिर डालता!

मैं चीखती रही- चिल्लाती रही- गंदी गंदी गालियाँ बकती रही- जीवन नहीं रुका! और फिर उसने मुझे घोड़ी बना दिया और मुझे चोदने लगा!

वोही लौड़ा अब मुझे स्वर्ग की सैर करवाने लगा था और मेरी गांड खुद ही हिल-हिल कर चुदवाने लगी। लेकिन वो नहीं झड़ने वाला था, उसने मुझे अपने लौड़े पर बिठा फ़ुटबाल की तरह उछाला।

“हाय! तौबा! क्या मर्द है साले! वाह मेरे जीवन लाल शेर! फाड़ दे आज! इस कुतिया को चलने लायक मत छोड़ना!”

पूरी रात जीवन ने मेरी चूत और गाँड दोनों का भुर्ता बना दिया। सुबह होते ही वो तो चला गया लेकिन मैं उस दिन स्कूल नहीं जा पाई। ठर्रे के हैंग-ओवर से सिर तो दर्द से फटा ही जा रहा था, चूत और गाँड भी सूज गयी थी। पूरा दिन कोसे पानी से चूत और गाँड की टकोर करती रही, तब जाकर सूजन उतरी।लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

और उसके बाद तो हर रोज़ छुट्टी के बाद स्कूल के किसी ना किसी कमरे में चुदवाने लगी!

मैं अपने दूसरे आशिकों को नज़रअंदाज़ करने लगी और सिर्फ जीवन से चुदवाने लगी। उसका लौड़ा था ही निराला कि मुझे और किसी का पसंद ही नहीं आता। वो भी मुझ से बहुत प्यार करने लगा। वो मुझसे शादी करना चाहता था और वो अपनी बीवी को छोड़ देता पर उसके सालों ने उसकी जमकर पिटाई करवा दी। मुझे भी शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी - सिर्फ उसके हलब्बी लौड़े से मतलब था। वो अपनी बीवी को छोड़ मेरे साथ मेरा रखैल बन कर रहने लगा। मैं जीवन के बच्चे की माँ तक बनने वाली हो गई लेकिन मैंने समय रहते बच्चा गिरवा दिया। करीब छः-सात महीने वो मेरा रखैल बन कर मेरे घर रहा और जब भी जैसे भी मैं चाहती वो दिन रात मुझे चोदता। कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। लेकिन मेरी खुशकिस्मती को किसी मादरचोद की बुरी नज़र लग गयी और एक दिन स्कूल जाते वक्त तेजी से आ रहे एक ट्रक की चपेत में आ कर उसकी मौत हो गयी। लेखिका : वंदना (काल्पनिक नाम)

दोस्तो, यह थी मेरी एक और चुदाई!

जीवन लाल चौंकीदार के चले जाने के गम से मैं किस तरह उभरी... मैं किस-किससे कैसे चुदी, यह जानने के लिए पढ़ें अगली कड़ी – “कम्प्यूटर सेन्टर”|

!!!! समाप्त !!!!
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RE: चाचा की बेटी - by sexstories - 07-03-2017, 01:23 PM

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