RE: अन्तर्वासना सेक्स कहानियाँ एक यादगार और मादक रात
बिना कुच्छ कहे परेश ने स्तन पर हाथ फिराया. तुरंत मेरी निपल कड़ी हो गयी. उस ने हथेली से निपल को रगड़ा. स्तन के नीचे हाथ रख कर उठाया जैसे वजन नापता हो. मेरे बदन में झुरझुरी फैल गयी. उस के हाथ पर हाथ रख कर मेने मेरे स्तन दबाए. आगे सीखना ना पड़ा, परेश ने बेदर्दी से स्तन मसल डाले. मेरी भोस पानी बहाने लगी.
मेरे दिमाग़ में चुदवाने का ख़याल आया कि किसी ने दरवाजा खिटकहिटाया. फटा फट कपड़े पहन कर उन दोनो को सुला दिया और मेने जा कर दरवाजा खोला. सामने खड़े थे गंगाधर.
में : आप ? अभी कैसे आ सके ?
गंगा : एक गाड़ी आ रही थी, जगह मिल गयी.
में : अच्च्छा हुआ, चलिए, खाना खा लीजिए.
मुझे आगोश में लेते हुए वो बोले : खाना बाद में खाएँगे पहले ज़रा प्यार कर लें. में कुच्छ बोलूं इस से पहले उन्हों ने मेरे होटो से होट चिपका दिए. कपड़े उतारे बिना मुझे पलंग पर पटक दिया. किस करते करते घाघारी उपर उठाई और निकर खींच उतारी. में उन को कभी चुदाई की ना नहीं कहती हूँ. मेने जांघें पसारी और वो उपर आ गये. उन का लंड खड़ा ही था. घच्छ से चूत में घुसेड दिया. मुझे बोलने का मौका ही ना दिया, घचा घच्छ, घचा घच्छ ज़ोर ज़ोर से चोदने लगे. पंद्रह बीस धक्के बाद वो धीरे पड़े और लंबे और गहरे धकके से चोदने लगे. स..र..र..र..र्ररर लंड अंदर, स...र...र...र.. बाहर. थोड़ी देर चुदाई का मज़ा ले कर में बोली : घर में मेहमान हेँ.
चुदाई रुक गई. वो बोले : मेहमान ? कौन मेहमान ?
मेने परेश और माधवी के बारे में बताया और कहा : वो शायद जागते होंगे.
घबडा कर गंगा उतर ने लगे. मेने रोक दिया : उन दोनो को चुदाई दिखानी ज़रूरी है. में उन को बुला लेती हूँ.
गंगा : अरे, वो तो अभी बच्चें हें, चाचा, चाची क्या कहेंगे ?
में : तुम फिकर ना करो. दो दिन पहले चाची ने मुझ से कहा था कि उन दोनो को चुदाई के बारे में शिक्षा दूं.
गंगा : क्यूँ ?
में : बात ऐसी हुई कि चाची के मायके में एक नयी दुल्हन को उस के पति ने पहली रात ऐसे चोदा कि उस की चूत फट गयी. लड़की को हॉस्पिटल ले गये लेकिन बचा ना सके. खून बह जाने से लड़की मर गयी. ये सुन कर चाची घबडा गयी है कि कहीं माधवी को ऐसा ना हो. इस लिए वो चाहती है कि हम उन्हें चुदाई की सही शिक्षा दे. ज़रूरत लगे तो उस की झिल्ली भी तोड़ दे. वैसे भी वो दोनो कुच्छ नहीं जानते.
गंगा : बुला लूँ उन को ?
परेश और माधवी को बुलाने की ज़रूरत ना थी. वो दरवाजे में खड़े थे. गंगा को मेने उतर ने ना दिया. उन का लंड ज़रा नर्म पड़ा था, मेने चूत सिकोड कर दबाया तो फिर कड़ा हो गया. वो चोदने लगे. चुदाई के धक्के खाते खाते मेने कहा : मा..मया...माधवी...त...तुम....ऊओ, सीईइ, तुम और पा...पा...परेश यहाँ..आ...आ...कर, गंगा ज़रा धी..धीरे...उउउइई ...तुम देखो.
वो पलंग के पास आ गये. गंगा हाथों के बल उपर उठे जिस से हमारे पेट के बीच से देखा जा सके कि लंड कैसे चूत में आता जाता है. माधवी खड़े खड़े एक हाथ से अपना स्तन मसल रही थी, दूसरा भोस पर लगा हुआ था. परेश होले होले मूठ मार रहा था.
गंगा मेरे कान में बोले : देखा परेश का लंड ? ऐसा कर, तू उन से चुदवा ले. में माधवी साथ खेलता हूँ.
में ; माधवी को चोदना नहीं.
गंगा : ना, ना. चूत में लंड डाले बिना स्वाद चखाउन्गा.
क्रमशः................
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