RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--4
गतान्क से आगे.......
"आ उम्म आ उम्म ओह्ह चाचा उम्म, मेरी मा मेरी जैसी सुन्दर है चाचा, तुम
उसको भी चोद लेना उम्म आहह. वह बड़ी सेक्सी है और मुझे अच्च्छा लगेगा अगर
आपने उसे चोदा तो. अफ चाचा चोद्ते रहो मुझे, मुझे बहुत मज़ा आ रहा है. "
अब दोनों रिलॅक्स होके चुदाई का मज़ा ले रहे थे. सुरभि को अपनी पह'ली
चुदाई का सही मज़ा दे रहा था परेश और उसे खुशी थी कि इस कमसिन अनचुदी चूत
को उसने खोला था. बराबर धक्के मारते वह बोला,
"तेरी मा तेरे जैसी सुंदर है तो उसे ज़रूर चोदुन्गा, मुझे तो नयी-नयी चूत
चोदने का बड़ा शौक है. तेरी मा को तेरे जैसे चोद्के खूब मस्ती दूँगा मैं.
मज़ा आ रहा है ना छिनाल? देख लिया ना तूने मेरा लंड चूत मैं? क्यों घबरा
रही थी छिनाल? चल मस्ती से चुद'वा रंडी. " सुरभि नीचे हाथ डालके अपनी चूत
मैं घुसते निकालते परेश का लंड महसूस करते बोलती है,
"आहह अफ चाचा, मज़ा आ रहा है आप'के मोटे लंड से. बहुत दर्द दिया पह'ले पर
अब उसे ज़्यादा मज़ा दे रहा है आपका लंड. चाचा आप मेरी मा को घर मैं आके
चोद लेना, वह दिन भर घर मैं रहती है. जैसा आपने मुझे पटाया वैसे ही मा को
पटाओ. उम्म ओह्ह चाचा और चोदो मुझे मेरी चूत को ज़ोर्से चोद्ते रहो. "
सुरभि बेचारी को पता भी नहीं था कि वह इस मर्द को उसकी मा को चोदने बुला
रही थी मतलब क्या कर रही थी. इस कच्ची उमर मैं अच्छे बुरे का ख़याल भी
नहीं था उसे. उसको यह भी पता नहीं था कि कोई भी शादी शुदा औरत क़िस्सी
गैर मर्द के साथ चुदति नहीं. परेश सुरभि की इस मासूमियत को समझ गया और इस
बात पे खुश होते उसकी पीठ चूमते बोला,
"तू मेरी सबसे अच्छि रांड़ है, साली मदरचोड़ तू तेरी मा को मुझसे चुदवाने
तैयार हुई. सुरभि तेरे जैसी रांड़ हो तो मज़ा आएगा. मैं ज़रूर तेरी मा को
चोदुन्गा तेरे घर आके मेरी छिनाल. तू जो इतना मस्त है तो तेरी मा भी मस्त
होगी. मुझे पता है इतने मोटे लंड से पह'ली चुदाई करते वक़्त दर्द होता है
पर जान अब तो तुझे भी मज़ा आ रहा है ना? चूत मैं लंड लेने के बाद अच्च्छा
लग रहा है ना? सुरभि अब झड़ने के बाद तेरी गान्ड मारूँगा छिनाल. तुझे
मेरी ख़ास्स रंडी बनाउन्गा, तुझे बहुत पैसे दूँगा और तेरे जिस्म से खूब
खेलूँगा. " परेश सुरभि के स्तन बेरहमी से नोचते, निपल खींचते चोद रहा था.
वह सुरभि को जितना ज़्यादा दर्द दे रहा था उतनी ही सुरभि ज़्यादा गर्म
होके सिसकारिया भरते चुदवा रही थी. सुरभि आहे भरते दिल खोलके चुड़वाते
बोली,
"परेश चाचा उम्म बहुत अच्च्छा लग रहा है. मेरी मा को भी ज़रूर चोदना आप.
उस'के लिए मैं खुद आपको मेरे घर ले चलूंगी. उम्म बहुत अच्च्छा लग रहा है
और चोदो मुझे उम्म. चाचा मुझे लगता है कुच्छ निकलने वाला है मेरी चूत से.
लगता है मैं फिर मूतनेवाली हूँ चाचा. " परेश समझा कि सुरभि अब झऱ्ने वाली
है.
वह सुरभि को कस्के पकड़ कर और ज़ोर्से उसे चोदने लगा. अब सुरभि की गीली
चूत की चुदाई से फकच्छ-फकच्छ की आवाज़ आ रही थी. सुरभि बड़ी ज़ोर्से आहे
और सिसकारिया भर रही थी. परेश भी उसका जिस्म नोचते, मसल्ते चोद रहा था.
वह भी अब झरनेवाला था. सुरभि की चूत फुल गयी थी उसकी हालत परेश के मोटे
लंड ने बहुत खराब कर दी थी. पर इतना होने के बाद भी सुरभि जी भरके चुद'वा
रही थी. जब सुरभि की चूत ने पानी छोड़ तो वह सिहर गयी और अपना जिस्म
जकड़ते बोली,
"आहह चाचा देखो मेरा मूत निकला. मुझे अजीब लग रहा है चाचा. मुझे कस्के
पाकड़ो चाचा, बड़ा अच्च्छा लग रहा है, उम्म आहह चाचा. " जैसे सुरभि की
चूत ने पानी छोड़ा परेश भी सुरभि की चूत मैं आख़िरी धक्को की बरसात करते
बोला,
"मेरी रंडी जान, तूने अभी पेशाब नहीं किया, अब तेरी चूत ने पह'ली चुदाई
का पानी छोड़ा है. तुझे चोद्के मेरा लॉडा भी झऱ्ने वाला है. मदरचोड़
रंडी, तेरी चूत की पह'ली चुदाई का पानी तेरी चूत मैं ही डालूँगा आह यह ले
छीन्नाल, मादीर्रकचोड़ड़ काँमस्सिईन्न रांन्दड़ ले मीर्रा पान्नी. "
सुरभि की कमसिन चूत मैं परेश का लंड आँखरी बार टाइट होके जैसे झऱ्ने लगता
है, परेश सुरभि को कस्के पकड़के स्तन दबाता है. लंड के धक्के चूत मैं
देके वह अपना पानी सुरभि की चूत मैं डालते बोलता है,
"आ ले मीरीई चुट्त मेरी काँमस्सिईन रांन्दड़. मज़्ज़ा आया साल्लीी तुझे
चोद्के सुरभि. ले मेरे लॉड का पानी ले तेरी चूत मैं. " परेश के लंड का
गरम पानी का अहसास सुरभि को अपनी चूत मैं होता है और वह अपने दोनों हाथ
पिछे करके परेश को अपने बदन से और सटाती है. झऱ्ने के बाद थोड़ा समय
दोनों वैसे ही खड़े रहते है. सुरभि का जिस्म प्यार से मसल्ते परेश अपना
लंड सुरभि की चूत से बाहर निकालता है. उस'के लंड पे सुरभि की कमसिन चूत
के पानी के साथ ज़रा सा खून भी लगा है.
जब दोनों की साँसे नॉर्मल होती है, परेश ने सुरभि की चड्डी से पह'ले
प्यार से सुरभि की चूत सॉफ करके फिर अपना लंड सॉफ किया. चड्डी साइड मैं
रख कर वह फिर कमोड पे बैठ्के नंगी सुरभि को अपने गोद मैं बैठाता है.
सुरभि अब शर्मा रही थी. हवस की प्यास बुझने के बाद उसे अब इस अंजान मर्द
के साम'ने नंगी रहने में कैसा तो लग रहा था. उस'ने नीचे पड़ी कमीज़ उठाके
अपने सीने पे रखी. परेश उसकी बात समझा और प्यार से सुरभि को चूमते बोला,
"बोल सुरभि, अच्च्छा लगा ना मुझसे चुदवा के और मेरी रंडी बनके तुझे
छिनाल? बोल मेरी रांड़ बनके कैसा लग रहा है?" और ज़्यादा शरमाते सुरभि
बोली,
"ऊऊम्म चाचा बहुत अच्च्छा लग रहा है इतना मज़ा कभी नहीं मिला. " सुरभि की
बात सुनके परेश उसे बाँहों मैं भरके प्यार से 1-2 बार चुमके ज़रा आराम
करने लगता है.
ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही थी. रात का वक़्त था, इसलिए बुगी मैं सब
शांत था. सब पॅसेंजर्स जहाँ थे और जिस हाल मैं थे या तो सो रहे थे या
सोने की कोशिश कर रहे थे. ट्रेन की इस रफ़्तार मैं बुगी के टाय्लेट मैं
एक हवस का तूफान आके गया इसका क़िस्सी को पता भी नहीं था. ज़िंदगी मैं
पह'ली बार अपनी चूत मैं लंड लेके सुरभि ने अपना कुवरापान समाप्त किया था.
लेट्रीन के फ्लोर पे वह अपने नंगे जिस्म पे सिर्फ़ कमीज़ ऊढाके परेश की
जाँघ पे सिर रखके लेटी थी. चुदाई के बाद की थकान अब ज़रा कम हुई थी.
परेश हल्के-हल्के सुरभि की पीठ सह'लाके उस'से बातें करने लगा. सुरभि की
नंगी पीठ को परेश का नंगा लंड महसूस होता है. पह'ली चुदाई के बाद सुरभि
भी फ्री हुई थी, उसे अब शरम नहीं महसूस हो रही थी. वह भी परेश से सॅट'के
बैठ्के उसकी नंगी टाँगें सह'लाने लगी. परेश सुरभि को कस्के अपने बदन से
सट उसके स्तन हौले-हौले मसल्ने लगता है. काली झांतों से भरी सुरभि की चूत
सह'लाके दूसरे हाथ से उसके स्तन मसल्ते परेश बोला,
"यह बता बेटी तुझे चुदाई का मज़ा आया. " सुरभि आधी टर्न होते परेश के
सीने पे सिर रखते बोली,
"हां चाचा, बहुत मज़ा आया आपके साथ. इतना मज़ा कभी नहीं मिला था मुझे. "
सुरभि के निपल्स हल्के से मसल्ते परेश बोला,
"सुरभि तेरे घर मैं कौन है और?"
"मैं, डॅडी और मम्मी है घर मे. मैं अकेली औलाद हूँ और कोई नहीं है चाचा. "
"बेटी तेरे मा बाप क्या करते हैं?"
"डॅडी सॉफ्टवेर इंजिनियर है और मम्मी हाउसवाइफ है, घर मैं ही रहती है.
डॅडी को टूर पे जाना पड़ता है महीने मैं 8-10 दिन, इसलिए मम्मी कोई जॉब
नहीं करती. "
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