RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--2
गतान्क से आगे.......
"चल मेरी सुरभि जान, अब तू भी नंगी हो जा. जो जिस्म अब तक कपड़ो के उप्पर
से मसल रहा था उसे अब नंगा देखने का जी कर रहा है. तुझे ऐसा मज़ा दूँगा
कि तू दुनिया भूल जाएगी मेरी जान. चल सलवार कमीज़ उतार तेरी. " पूरी
रोशनी मैं परेश को नंगा देखके पह'ले तो सुरभि हक्का-बक्का रह गयी. उसका
मोटा लंड वह देखती ही रही. यही वह लंड था जो ट्रेन मैं चढ़ते वक़्त उसकी
गान्ड पे रगड़ रहा था. ज़िंदगी मैं पह'ली बार सुरभि असली मर्द का लंड देख
रही थी. वह लंड को देखने मैं इतनी खो गयी कि अचानक उसे परेश का हाथ अप'नी
कमर पे महसूस हुआ. परेश उसकी सलवार का नाडा खोल रहा था.
नाडा खोलके परेश ने उसकी सलवार नीचे खींची और उसे अपनी कमीज़ उतारने को
कहा. सुरभि ने धीरे से अपनी कमीज़ उठा के उसे निकाल दिया. लड़'की के सीने
पे वह छोटे कड़क स्तन देख परेश से रहा नहीं गया. सुरभि की कमर मैं हाथ
डालके उसे पास खींचते परेश बारी-बारी उसके स्तन चूमने लगा. स्तन चुम्के
फिर जीभ से उसे चाटने लगा. जब परेश सुरभि के निपल्स को चाटने लगा तो
सुरभि ज़ोरो से सिसकारिया भरते अपना सीना परेश के मुँह पे दबाने लगी.
अच्छे से सुरभि के निपल को चाट्के परेश उंगलियो से उनसे खेलते बोला,
"यह बता मेरी जान, नीचे तूने ब्रा क्यों नहीं पहनी?" शरम से परेश को
देखते सुरभि बोली,
"मैने मा को ब्रा देने के लिए बोला तो वह बोल रही थी कि अगले महीने से
ब्रा लाएँगे मेरे लिए. वह भी बोली की सुरभि अब तू इतनी बड़ी हो गयी है कि
तुम अब ब्रा पहना करो. " सुरभि के जिस्म पे अब सिर्फ़ ब्लॅक पॅंटी थी.
उसका पूरा जिस्म निहारते परेश वह जिस्म मसल्ते बोला,
"हां वह तो है, अब तेरा जिस्म पूरा भरने लगा है सुरभि. वैसे तेरी जैसी
कमसिन लड़'की को ब्रा नहीं पहनानी चाहिए. तुम ब्रा नहीं पहनोगि तो हम
जैसे मर्दों की नज़र तुमपे आएगी और हमारे से चुदवाने के बाद तुम्हारी
ज़िंदगी बनेगी. बेटी तुझे मैं ब्रा पॅंटी दूँगा. मेरा ब्रा पॅंटी का ही
धंधा है. आज रात तुझे जवानी का मज़ा दूँगा और फिर ब्रा पॅंटी दूँगा. वैसे
तेरी मा का नाम और उमर क्या है?" अपना जिस्म परेश के हाथो मसल'वाते सुरभि
बोली,
"मेरी मा का नाम विभा देवी है और वह 42 साल की है. परेश चाचा क्यों नहीं
पहनना चाहिए ब्रा हम लड़'कियों को? अब बोलते हो ब्रा पॅंटी नहीं पहननी
चाहिए हमें और फिर ब्रा पॅंटी देने की बात भी करते हो, वह क्यों?" परेश
ने सुरभि की चड्डी नीचे खींचते उसको पूरी नंगी किया. काली झांतों से भरी
गीली चूत देखके वह बड़ा खुश हुआ. उंगली से उसकी चूत सह'लाते उसने 2-3 बार
सुरभि की चूत चूम ली. फिर एक उंगली आहिस्ता से सुरभि की अनचुड़ी चूत मैं
घुसाते वह बोला,
"तेरी जैसी कमसिन लड़'की को तुम्हारी मा ब्रा पहनने नहीं देती जब तक कि
तुम्हारे स्तन बड़े नहीं होते. मेरे साम'ने बिना ब्रा पॅंटी के रह तू
बेटी, बस दुनिया के बाकी मर्दों के साम'ने ब्रा पॅंटी पहनने को बोल रहा
हूँ. बोल आजतक कोई मर्द खेला था क्या तुझसे सुरभि?" बेशरम होके अपनी कमर
परेश के मुँह के पास दबाते सुरभि बोली,
"नहीं, कोई नहीं खेला आज तक मेरे बदन के साथ तुम्हारे जैसा. तुम तो एक'दम
अच्छे हो परेश चाचा. " टाय्लेट मैं दोनों मदरजात नंगे थे. ट्रेन अब पूरी
रफ़्तार से चल रही थी. एंजिन ड्राइवर जैसे बार-बार हॉर्न बजा रहा था ठीक
वैसे ही परेश उसके स्तन दबा रहा था, मानो वह ट्रेन का हॉर्न हो. सुरभि भी
हवस से भरा अपना जिस्म उस अजनबी से मसल'वा रही थी. अच्छे से स्तन मसलके
परेश ने WC पे बैठके सुरभि को नीचे बैठके लंड उसके चहेरे पे घुमा के
होन्ठ पे रख दिया. सुरभि को बहुत शर्म आई जब परेश उसके मुँह पे अपना मोटा
लंड रगदके मुस्कुराते हुए उसके होन्ठ पे बार-बार घुमाने लगता है. उसे वह
किताब की पिक्चर याद आई जो उसकी सहेली ने दी थी जिसमे यह लॉडा चूसना
दिखाया था. अपना लंड सुरभि के होंठों पे रगड़ते और सुरभि के स्तन मसल्ते
परेश बोला,
"तुझे अच्च्छा लगा ना मेरा तेरे जिस्म से खेलना सुरभि? आज तुझे चोद के
मेरी रान्ड बनाउन्गा तुझे समझी? तुम्हारा परेश चाचा बहुत तबीयत वाला
आद'मी है. तुम्हारे जैसी कच्ची काली का खाश शौकीन है वह. चल मुँह खोल और
अपने परेश चाचा का लॉडा चूस. " सुरभि परेश के लंड को हाथ मैं लेके मसल्ते
बोली,
"हां परेश चाचा मुझे अच्च्छा लगा जब तुम मेरे जिस्म से खेलते हो. मुझे
नहीं मालूम मेरी सहेलिया भी किसी के साथ करती है या नहीं पर आज मैं
तुम्हारे साथ सब करूँगी. " इतना बोलके सुरभि मुँह खोले परेश का लंड चाटने
लगी. लॉड का चिकना रस उसे पह'ले कसेला तो लगा पर बिना कुच्छ बोले वा परेश
का लंड चाटने लगी. एक दो बार लंड चाट्के सुरभि ने लंड का सूपड़ा मुँह मैं
लिया और उसे चूसने लगी. जैसे ही सुरभि परेश का लंड चूसने लगी, टाय्लेट के
दरवाज़े पे क़िस्सी ने बाहर से दस्तक लगाई. एक दो बार दस्तक सुनके परेश
को बड़ा गुस्सा आया. सुरभि तो डर के मारे कुच्छ बोल ही नहीं पाई. अपना
नन्गपन च्छुपाने वह उठि और नीचे पड़ी कमीज़ उठाके पहनने लगी. परेश ने
उस'से कमीज़ ली और उसे चुप रहने बोला. फिर उसने पॅंट शर्ट पहनते सुरभि को
डोर के पिछे नंगी खड़ी करके आधा दरवाज़ा खोला. एक 20-22 साल का मर्द वहाँ
खड़ा था. ज़रा गुस्से से वह बोला,
"अरे भाई साहब, कितना समय ले रहे हो आप? मैं 15 मिनिट से खड़ा हूँ यहाँ.
" परेश का चहेरा गुस्से से लाल हो उठा. उस'ने उस आदमी को जलती नज़र से
देखके कहा,
"तेरी मा की चूत, मदेर्चोद हरामी लॉड, इस भीड़ मैं तुझे क्या मूत'ने की
पड़ी है? साले मैने पैसे देके रात भर के लिए यह टाय्लेट मेरी बेटी और
मेरे लिए बुक की है. फिर अगर तूने या किसी ने दस्तक दी तो बाहर आके गान्ड
मारूँगा उसकी. बहन्चोदो, इधर बैठ्ने को जगह नहीं और मूत'ने की पड़ी है
तुमको. और हां मूत'ना है हरामी तो जाके तेरी मा की चूत मैं मूत. " वह
आदमी और पॅसेज मैं बैठे बाकी पॅसेंजर परेश की गंदी गाली, उसका गुस्से से
लाल हुआ चहेरा और उँची आवाज़ मैं दी गयी धमकी से इतने डर गये की कोई
कुच्छ नहीं बोला. यह देखके पेशाब करने आया आदमी भी वहाँ से चला गया.
परेश को यकीन हुआ कि अगर कोई टाय्लेट इस्तेमाल करने आया भी तो बाहर के
लोग उसे परेश की धमकी बताके टाय्लेट पे दस्तक देने से रोकेंगे. सब लोगो
की तरफ एक बार गुस्से से देखके परेश ने दरवाज़ा बंद किया. वहाँ डोर के
पिछे सुरभि डर से नंगी ही खड़ी थी. फिर एक बार परेश का वह रूप देखके और
गालियाँ सुनके वह बहुत घबराई हुई थी. लेकिन एक ही पल मैं उस नंगी कमसिन
सुरभि को देखके परेश के चहेरा खिल गया और गुस्सा गायब हो गया.
नंगी सुरभि को बाँहों मैं लेके वह उस'का जिस्म मसल्ने लगा. थोडा समय
जिस्म मसल्ने से सुरभि भी डर भूल गयी और फिर उसके जिस्म मैं वासना भरने
लगी. सुरभि फिर जोश मैं आई तो वह खुद कमोड पे बैठ और सुरभि को नीचे बैठके
अपना लंड उसके मुँह मैं डाला. सुरभि अब ज़रा बराबर होके परेश का लंड
चूसने लगी. परेश आँखे बंद करके अपना लंड चूस्वाके मज़ा ले रहा था. एक हाथ
सुरभि की बालो मैं घूमाते दूसरे हाथ से सुरभि के निपल्स से खेलते,
हौले-हौले अपने लंड से सुरभि का मुँह चोद्ते बोला,
"आह ऐसे ही चूस्ति रहो, और मुँह खोल, मेरा लंड और अंदर लेके उसे चाट्के
चूस और मेरी गोतिया भी सह'ला जान, तुझे छिनाल बनाने मैं मज़ा आएगा. आज
तुझे खूब चोदुन्गा. अच्च्छा है ना मेरा लॉडा सुरभि?" परेश के मुँह से
छिनाल बनाने की बात सुनके सुरभि को खराब लगता है. वह परेश का लुन्ड मुहसे
निकालके उसे सह'लाते बोलती है,
"एक बात बताओ परेश चाचा, आप मुझे यह इतनी गंदी गालियाँ क्यों दे रहे हो?"
अपना लंड सुरभि के खुले मुँह मैं घुसाते परेश फिर उसके मम्मो से खेलते
बोला,
"क्योंकि तू मेरी रांड़ है. तेरी जैसी 3 कमसिन चूतो को मैने मेरी रान्ड
बनाया है सुरभि, तुझे अच्छा लगेगा ना मेरी रखैल बनके?" परेश चाचा से अपने
निपल्स सह'लाने से सुरभि को बड़ा अच्च्छा लगता है. वह ज़्यादा से ज़्यादा
लंड चूसने लगती है. जब परेश ज़रा ज़ोर्से निपल्स से खेलता था तब उसे दर्द
होता था और वह हल्की सी आवाज़ भी करती लेकिन फिर भी उसका मन नहीं हुआ की
परेश चाचा से दूर हो जाए. सुरभि एक गुलाम जैसे परेश का हर कहा मान रही
थी. परेश अपना लंड सुरभि के मुँह से निकालके उप्पर करते सुरभि का मुँह
अपनी गोटियो पे दबाता है. उन गोटियो की पसीने की बास सुरभि सूंघति है. वह
हल्के से गोतिया चाट्के बोलती है,
"चाचा अब वह 3 लड़'किया कहाँ है?" अपनी गोतिया सुरभि को चॅट'वाते परेश बोला,
"वह है मेरे शहर मैं और जब मैं बुलाता हूँ तो आती है. अभी एक दोस्त के
जनम दिन दिन पे उनमे से 2 लड़'कियो को मैने मेरे दोस्तो के साथ खूब चोदा
था. पूरे 2 दिन उनको चोदा और फिर पैसे भी दिए थे. तुझे भी बहुत पैसे
दूँगा, बनेगी ना तू मेरे इस लॉड की रांड़?" दोस्तो से चुदवाने की बात
सुनके सुरभि घबराते हुए बोली
"नहीं मुझे सिर्फ़ आपकी बनना है. आप जो भी कहेंगे मैं करूँगी चाचा. "
|