सुन्दर का मात्र प्रेम
06-29-2017, 11:21 AM,
#2
RE: सुन्दर का मात्र प्रेम
सुन्दर का मात्र प्रेम--2

गतांक से आगे.....................
मैंने चुपचाप कार स्टार्ट की और हम घर आ गये. घर में अंधेरा था और शायद सब सो गये थे. मुझे मालूम था कि मेरे पिता अपने कमरे में नशे में धुत पड़े होंगे. घर में अंदर आ कर वहीं ड्राइंग रूम में मैं फ़िर मां को चूमने लगा.

उसने इस बार विरोध किया कि कोई आ जायेगा और देख लेगा. मैं धीरे से बोला. "अम्मा, मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूं, ऐसा मैंने किसी और औरत या लड़की को नहीं किया. मुझसे नहीं रहा जाता, सारे समय तुम्हारे इन रसीले होंठों का चुंबन लेने की इच्छा होती रहती है. और फ़िर सब सो गये हैं, कोई नहीं आयेगा."

मां बोली "मैं जानती हूं बेटे, मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूं. पर आखिर मैं तुम्हारे पिता की पत्नी हूं, उनका बांधा मंगल सूत्र अभी भी मेरे गले में है."

मैं धीरे से बोला. "अम्मा, हम तो सिर्फ़ चुंबन ले रहे हैं, इसमें क्या परेशानी है?"

मां बोली "पर सुंदर, कोई अगर नीचे आ गया तो देख लेगा."

मुझे एक तरकीब सूझी. "अम्मा, मेरे कमरे में चलें? अंदर से बंद करके सिटकनी लगा लेंगे. बापू तो नशे में सोये हैं, उन्हें खबर तक नहीं होगी."

मां कुछ देर सोचती रही. साफ़ दिख रहा था कि उसके मन में बड़ी हलचल मची हुई थी. पर जीत आखिर मेरे प्यार की हुई. वह सिर डुला कर बोली. "ठीक है बेटा, तू अपने कमरे में चल कर मेरी राह देख, मैं अभी देख कर आती हूं कि सब सो रहे हैं या नहीं."

मेरी खुशी का अब अंत न था. अपने कमरे में जाकर मैं इधर उधर घूमता हुआ बेचैनी से मां का इंतजार करने लगा. कुछ देर में दरवाजा खुला और मां अंदर आई. उसने दरवाजा बंद किया और सिटकनी लगा ली.

मेरे पास आकर वह कांपती आवाज में बोली. "तेरे पिता हमेशा जैसे पी कर सो रहे हैं. पर सुंदर, शायद हमें यह सब नहीं करना चाहिये. इसका अंत कहां होगा, क्या पता. मुझे डर भी लग रहा है."

मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे दिलासा दिया. "डर मत अम्मा, मैं जो हूं तेरा बेटा, तुझ पर आंच न आने दूंगा. मेरा विश्वास करो. किसी को पता नहीं चलेगा" मां धीमी आवाज में बोली "ठीक है सुन्दर बेटे." और उसने सिर उठाकर मेरा गाल प्यार से चूम लिया.

मैंने अपनी कमीज उतारी और अम्मा को बांहों में भरकर बिस्तर पर बैठ गया और उसके होंठ चूमने लगा. हमारे चुंबनों ने जल्द ही तीव्र स्वरूप ले लिया और जोर से चलती सांसों से मां की उत्तेजना भी स्पष्ट हो गई. मेरे हाथ अब उसके पूरे बदन पर घूम रहे थे. मैंने उसके उरोज दबाये और नितंबों को सहलाया. आखिर मुझ से और न रहा गया और मैंने मां के ब्लाउज़ के बटन खोलने शुरू कर दिये.

एक क्षण को मां का शरीर सहसा कड़ा हो गया और फ़िर उसका आखरी संयम भी टूट गया. अपने शरीर को ढीला छोड़कर उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया. इसके पहले कि वह फ़िर कुछ आनाकानी करे, मैंने जल्दी से बटन खोल कर उसका ब्लाउज़ उतार दिया. इस सारे समय मैं लगातार उसके मुलायम होंठों को चूम रहा था. ब्रेसियर में बंधे उन उभरे स्तनों की बात ही और थी, किसी भी औरत को इस तरह से अर्धनग्न देखना कितना उत्तेजक होता है, और ये तो मेरी मां थी.

ब्लाउज़ उतरने पर मां फ़िर थोड़ा हिचकिचाई और बोलने लगी. "ठहर बेटे, सोच यह ठीक है या नहीं, मां बेटे का ऐसा संबंध ठीक नहीं है मेरे लाल! अगर कुछ ..."

अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं था इसलिये मैंने उसका मुंह अपने होंठों से बंद कर दिया और उसे आलिंगन में भर लिया. अब मैंने उसकी ब्रेसियर के हुक खोलकर उसे भी निकाल दिया. मां ने चुपचाप हाथ ऊपर करके ब्रा निकालने में मेरी सहायता की.

उसके नग्न स्तन अब मेरी छाती पर सटे थे और उसके उभरे निपलों का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था. उरोजों को हाथ में लेकर मैं उनसे खेलने लगा. बड़े मुलायम और मांसल थे वे. झुक कर मैंने एक निपल मुंह में ले लिया और चूसने लगा. मां उत्तेजना से सिसक उठी. उसके निपल बड़े और लंबे थे और जल्द ही मेरे चूसने से कड़े हो गये.

मैंने सिर उठाकर कहा "अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूं. मुझे मालूम है कि अपने ही मां के साथ रति करना ठीक नहीं है, पर मैं क्या करूं, मैं अब नहीं रह सकता." और फ़िर से मां के निपल चूसने लगा.

उसके शरीर को चूमते हुए मैं नीचे की ओर बढ़ा और अपनी जीभ से उसकी नाभि चाटने लगा. वहां का थोड़ा खारा स्वाद मुझे बहुत मादक लग रहा था. मां भी अब मस्ती से हुंकार रही थी और मेरे सिर को अपने पेट पर दबाये हुई थी. उसकी नाभि में जीभ चलाते हुए मैंने उसके पैर सहलाना शुरू कर दिये. उसके पैर बड़े चिकने और भरे हुए थे. अपना हाथ अब मैंने उसकी साड़ी और पेटीकोट के नीचे डाल कर उसकी मांसल मोटी जांघें रगड़ना शुरू कर दीं.

मेरा हाथ जब जांघों के बीच पहुंचा तो मां फ़िर से थोड़ी सिमट सी गयी और जांघों में मेरे हाथ को पकड़ लिया कि और आगे न जाऊं. मैंने अपनी जीभ उसके होंठों पर लगा कर उसका मुंह खोला और जीभ अंदर डाल दी. अम्मा मेरे मुंह में ही थोड़ी सिसकी और फ़िर मेरी जीभ को चूसने लगी. अपनी जांघें भी उसने अलग कर के मेरे हाथ को खुला छोड़ दिया.

मेरा रास्ता अब खुला था. मुझे कुछ देर तक तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी मां, मेरे सपनों की रानी, वह औरत जिसने मुझे और मेरे भाई बहनों को अपनी कोख से जन्मा था, वह आज मुझसे, अपने बेटे को अपने साथ रति क्रीड़ा करने की अनुमति दे रही है.

मां के पेटीकोट के ऊपर से ही मैंने उसके फ़ूले गुप्तांग को रगड़ना शुरू कर दिया. अम्मा अब कामवासना से कराह उठी. उसकी योनि का गीलापन अब पेटीकोट को भी भिगो रहा था. मैंने हाथ निकलाकर उसकी साड़ी पकड़कर उतार दी और फ़िर खड़ा होकर अपने कपड़े उतारने लगा. कपड़ों से छूटते ही मेरा बुरी तरह से तन्नाया हुआ लोहे के डंडे जैसा शिश्न उछल कर खड़ा हो गया.

मैं फ़िर पलंग पर लेट कर अम्मा की कमर से लिपट गया और उसके पेटीकोट के ऊपर से ही उसके पेट के निचले भाग में अपना मुंह दबा दिया. अब उसके गुप्तांग और मेरे मुंह के बीच सिर्फ़ वह पेटीकोट था जिसमें से मां की योनि के रस की भीनी भीनी मादक खुशबू मेरी नाक में जा रही थी. अपना सिर उसके पेट में घुसाकर रगड़ते हुए मैं उस सुगंध का आनंद उठाने लगा और पेटीकोट के ऊपर से ही उसके गुप्तांग को चूमने लगा.

मेरे होंठों को पेटीकोट के कपड़े में से मां के गुप्तांग पर ऊगे घने बालों का भी अनुभव हो रहा था. उस मादक रस का स्वाद लेने को मचलते हुए मेरे मन की सांत्वना के लिये मैंने उस कपड़े को ही चूसना और चाटना शुरू कर दिया

आखिर उतावला होकर मैंने अम्मा के पेटीकोट की नाड़ी खोली और उसे खींच कर उतारने लगा. मां एक बार फ़िर कुछ हिचकिचाई. "ओ मेरे प्यारे बेटे, अब भी वक्त है ... रुक जा मेरे बेटे .... ये करना ठीक नहीं है रे ..."

मैंने उसका पेट चूमते हुए कहा "अम्मा, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूं, तुम मेरे लिये संसार की सबसे सुंदर औरत हो. मां और बेटे के बीच काम संबंध अनुचित है यह मैं जानता हूं पर दो लोग अगर एक दूसरे को बहुत चाहते हों तो उनमें रति क्रीड़ा में क्या हर्ज है?."

मां सिसकारियां भरती हुई बोली. "पर सुन्दर, अगर किसी को पता चल गया तो?"

मैंने कपड़े के ऊपर से उसकी बुर में मुंह रगड़ते हुए कहा. "अम्मा, हम चुपचाप प्रेम किया करेंगे, किसी को कानों कान खबर नहीं होगी." वह फ़िर कुछ बोलना चाहती थी पर मैंने हाथ से उसका मुंह बंद कर दिया और उसके बाल और आंखें चूमने लगा. भाव विभोर होकर अम्मा ने आंखें बंद कर लीं और मैं फ़िर उसके मादक रसीले होंठ चूमने लगा.

अचानक मां ने निढाल होकर आत्मसमर्पण कर दिया और बेतहाशा मुझे चूमने लगी. उसकी भी वासना अब काबू के बाहर हो गयी थी. मुंह खोल कर जीभें लड़ाते हुए और एक दूसरे का मुखरस चूसते हुए हम चूमाचाटी करने लगे. मैंने फ़िर उसका पेटीकोट उतारना चाहा तो अब उसने प्रतिकार नहीं किया. पेटीकोट निकाल कर मैंने फ़र्श पर फ़ेंक दिया.

मां ने किसी नई दुल्हन जैसे लाज से अपने हाथों से अपनी बुर को ढक लिया. अपने उस खजाने को वह अपने बेटे से छुपाने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसके हाथ पकड़कर अलग किये और उस अमूल्य वस्तु को मन भर कर देखने लगा.

काले घने बालों से भरी उस मोटी फ़ूली हुई बुर को मैंने देखा और मेरा लंड और उछलने लगा. इसी में से मैं जन्मा था! मां ने शरमा कर मुझे अपने ऊपर खींच लिया और चूमने लगी. उसे चूमते हुए मैंने अपने हाथों से उसकी बुर सहलाई और फ़िर उसके उरोजों को चूमते हुए और निपलों को एक छोटे बच्चे जैसे चूसते हुए अपनी उंगली उसकी बुर की लकीर में घुमाने लगा.

बुर एकदम गीली थी और मैंने तुरंत अपनी बीच की उंगली उस तपी हुई कोमल रिसती हुई चूत में डाल दी. मुझे लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूं क्योंकि सपने में भी मैंने यह नहीं सोचा था कि मेरी मां कभी मुझे अपना पेटीकोट उतार कर अपनी चूत से खेलने देगी.

मैं अब मां के शरीर को चूमते हुए नीचे खिसका और उसकी जांघें चूमने और चाटने लगा. जब आखिर अपना मुंह मैंने मां की घनी झांटों में छुपा कर उसकी चूत को चूमना शुरू किया, तो कमला, मेरी मां, मस्ती से हुमक उठी. झांटों को चूमते हुए मैंने अपनी उंगलियों से उसके भगोष्ठ खोले और उस मखमली चूत का नजारा अब बिलकुल पास से मेरे सामने था. मां की चूत में से निकलती मादक खुशबू सूंघते हुए मैंने उसके लाल मखमली छेद को देखा और उसके छोटे से गुलाबी मूत्रछिद्र को और उसके ऊपर दिख रहे अनार के दाने जैसे क्लिटोरिस को चूम लिया.

अपनी जीभ मैंने उस खजाने में डाल दी और उसमें से रिसते सुगंधित अमृत का पान करने लगा. जब मैंने मां के क्लिटोरिस को जीभ से रगड़ा तो वह तड़प उठी और एक अस्फ़ुट किलकारी के साथ अपनी हाथों से मेरा सिर अपनी बुर पर जोर से दबा लिया. मैंने अब एक उंगली अम्मा की चूत में डाली और उसे अंदर बाहर करते हुए चूत चूसने लगा.

मां की सांस अब रुक रुक कर जोर से चल रही थी और वह वासना के अतिरेक से हांफ़ रही थी. मैंने खूब चूत चूसी और उस अनार के दाने को जीभ से घिसता रहा. साथ ही उंगली से अम्मा को हस्तमैथुन भी कराता रहा. सहसा अम्मा का पूरा शरीर जकड़ गया और वह एक दबी चीख के साथ स्खलित हो गयी. मैं उसका क्लिट चाटता रहा और चूत में से निकलते रस का पान करता रहा. बड़ी सुहावनी घड़ी थी वह. मैंने मां को उसका पहला चरमोत्कर्ष दिलाया था.

तृप्त होने के बाद वह कुछ संभली और मुझे उठाकर अपने ऊपर लिटा लिया. मेरे सीने में मुंह छूपाकर वह शरमाती हुई बोली. "सुंदर बेटे, निहाल हो गयी आज मैं, कितने दिनों के बाद पहली बार इस मस्ती से मैं झड़ी हूं."

"अम्मा, तुमसे सुंदर और सेक्सी कोई नहीं है इस संसार में. कितने दिनों से मेरा यह सपना था तुमसे मैथुन करने का जो आज पूरा हो रहा है."

मां मुझे चूमते हुए बोली. "सच में मैं इतने सुंदर हूं बेटे कि अपने ही बेटे को रिझा लिया?"

मैं उसके स्तन दबाता हुआ बोला. "हां मां, तुम इन सब अभिनेत्रियों से भी सुंदर हो."

मां ने मेरी इस बात पर सुख से विभोर होते हुए मुझे अपने ऊपर खींच कर मेरे मुंह पर अपने होंठ रख दिये और मेरे मुंह में जीभ डाल कर उसे घुमाने लगी; साथ ही साथ उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और अपनी योनि पर उसे रगड़ने लगी. उसकी चूत बिलकुल गीली थी. वह अब कामवासना से सिसक उठी और मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझ से मूक याचना करने लगी. मैंने मां के कानों में कहा. "अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूं, अब तुझे चोदना चाहता हूं."
क्रमशः....................
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RE: सुन्दर का मात्र प्रेम - by sexstories - 06-29-2017, 11:21 AM

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