RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट-18
गतान्क से आगे.................
दा गर्ल
"तुम अब मुझसे मिलने क्यूँ नही आते?" वो उस लड़के से कह रही थी.
रात के अंधेरे में वो खामोशी से फोन पर बात कर रही थी. वो जहाँ रहती थी वहाँ उसने किसी को अपनी गुज़री ज़िंदगी के बारे में नही बताया था. उस लड़के के कहने पर उसने सब को यही कहा था के वो गाओं से अकेली ही भागकर आई थी क्यूंकी उसके रिश्तेदार उसको बहुत परेशान करते थे. वो अक्सर रात को उस लड़के के फोन का इंतेज़ार करती थी और जब वो फोन पर उससे बात करती, वो लम्हे उसकी ज़िंदगी के सबसे ख़ुशगवार लम्हे होते थे.
"आजकल काम बहुत ज़्यादा हो गया है. वक़्त ही नही निकल पाता" दूसरी तरफ से उस लड़के की फोन पर आवाज़ आई.
"तुमने तो कहा था के हम साथ रहेंगे और अब यहाँ अकेले अकेले रहना पड़ रहा है. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा" उसने शिकायत करने वाले अंदाज़ में कहा.
"ठीक तो मुझे भी नही लग रहा" लड़के ने कहा "बस कुच्छ और दिनो की परेशानी है उसके बाद सब ठीक हो जाएगा"
उन दोनो को शहेर आए काफ़ी वक़्त हो चुका था. यहाँ आने के बाद से ही वो दोनो अलग अलग रह रहे थे और उनके मिलने का सिलसिला भी काफ़ी कम होता जा रहा था. उसकी अपनी तबीयत भी काफ़ी खराब रहने लगी थी. आधे से ज़्यादा वक़्त तो उसको याद ही नही होता था के वो कहाँ होती है. उसको अंदर से लगने लगा था के उसके अंदर कुच्छ सही नही है क्यूंकी उसको गुस्सा बहुत ज़्यादा आने लगा था.
"कब मिलोगे?" उसने उम्मीद भरी आवाज़ में लड़के से पुचछा.
"कल शाम को मिलते हैं. उसी पार्क में" लड़के ने कहा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट फेलति चली गयी.
फोन चुप चाप नीचे रखकर वो दबे हुए कदमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
अगले दिन बताए हुए वक़्त पर वो सज धज कर उस लड़के से मिलने पहुँची. वो आज काफ़ी दिन बाद उससे मिलने आई थी इसलिए आने से पहले 10 बार उसने अपने आपको शीशे में देखा था और जब उसको यकीन हो गया के वो अच्छी लग रही है, तब कहीं जाकर उसने घर से बाहर कदम निकाला.
पार्क के एक कोने में वो बैठी रो रही थी. लड़के ने शाम को मिलने का वादा किया था और उस वक़्त रात के 9 बज चुके थे पर वो नही आया था. उसको गुस्सा भी आ रहा था और रोना भी. वो कितनी उम्मीद के साथ इतना सज संवर कर उससे मिलने आई थी. वो चाहती थी के इतने दिन बाद जब वो उससे मिले तो दोनो बैठकर घंटो तक बातें करते रहें, जैसे कि वो अक्सर तब करते थे जब गाओं में मिलते थे. पर जबसे वो शहेर आए थे तब से वो बदल गया था. कभी कभी रात को फोन करता था और आज पता नही कितने दिन बाद उसने मिलने का वादा किया था जो निभाया नही.
रात के 10 बजे जब उसको यकीन हो गया के वो नही आएगा तो उसने वापिस घर जाने का फ़ैसला किया. तभी एक तरफ हलचल से नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक आदमी खड़ा था. एक पल के लिए तो वो खुश हो गयी के शायद देर से ही सही पर वो उससे मिलने आ गया पर जब वो आदमी अंधेरे से निकलकर थोड़ी रोशनी में आया तो उसने देखा के वो कोई और था.
"चलती है क्या?" उस आदमी ने पुचछा
उसने जवाब नही दिया और उठकर पार्क के गेट की तरफ चल पड़ी. उसको जाता देखकर वो आदमी उसके पिछे पिछे आया.
"आए बोल ना. कितना लेगी?"
उस आदमी ने कहा तो भी उसके कोई जवाब नही दिया और खामोशी से कदम बढ़ती रही पर वो आदमी भी काफ़ी ढीठ था. पीछे पीछे आता रहा.
"अरे बता ना साली. नखरा क्या करती है. कहीं चलने का नही है तो यहीं पार्क में काम निपटा लेते हैं"
उसका दिमाग़ गुस्से में भन्ना रहा था. एक तो वो पहले से ही भड़की हुई थी के 5 घंटे इंतेज़ार करने के बाद भी वो लड़का उससे मिलने नही आया था और अब ये आदमी परेशान कर रहा था. उसका दिल तो कर रहा था के घूमकर उस आदमी का सर फोड़ दे पर बोली कुच्छ नही. बस गेट की तरफ कदम बढ़ाती रही.
"अरे रुक ना" कहते हुए उस आदमी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया.
और जैसे ठीक उसी पल क़यामत आ गयी. उसका दिमाग़ गुस्से के मारे फॅट पड़ा और उसने घूमकर उस आदमी की तरफ देखा. दोनो की नज़रें मिली तो उस आदमी की आँखे हैरत से खुल गयी.
"आबे तेरी मा की" कहते हुए उसने उसका फ़ौरन हाथ छ्चोड़ दिया और पिछे को हो गया.
पर तब तक उसका गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच चुका था. वो किसी घायल शेरनी की तरफ उसकी तरफ लपकी. इस अचानक हुए हमले से वो आदमी लड़खदाया और नीचे ज़मीन पर गिरते चला गया. उसके गिरते ही वो उसके सीने पर चढ़ बैठी. पास ही पड़ा एक पथर अपने हाथ में उठाया और वार सीधा उस आदमी के सर पर किया. पहला वार होने के बाद उसका हाथ रुका नही और एक के बाद एक वार करती वो पथर से उस आदमी का सर फोड़ती चली गयी.
कोई एक घंटे बाद जब वो अपने घर के करीब पहुँची तो उसकी हालत खराब थी. बाल बिखरे हुए थे और हाथो में उस आदमी का खून सूख चुका था.
"ये क्या हाल बना रखा है तूने? और ये क्या कपड़े पहेन रखे हैं?" गेट के पास उसे अपनी पहचान का एक लड़का दिखाई दिया जिसने उसको हैरत से देखते हुए सवाल किया.
उसने लड़के के सवाल का कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.
इशान की कहानी................................
मैं और मिश्रा मेरे ऑफीस में बैठे लंच कर रहे थे.
"तेरे बताने के बाद मैं बंगलो 13 गया था आंड आइ थिंक यू आर राइट" मिश्रा ने कहा
"तूने फ्रिड्ज देखा?" मैने पुचछा
"हां देखा और मुझे लगता है के तेरा अंदाज़ा सही है. अगर ट्रेस निकाल दी जाएँ तो उसमें एक क्या 2 आदमी समा सकते हैं" मिश्रा बोला
"और कुछ पता चला?" मैने पुचछा
"नही यार" मिश्रा ने कहा "और सच बोलूं तो अब मैं कोई ख़ास कोशिश कर भी नही रहा. अफीशियली तो ये केस मेरे हाथ से जा चुका है"
उसके बाद हम दोनो खामोशी से खाना खाते रहे. प्रिया अपनी टेबल पर बैठी डिन्नर कर रही थी. तभी मुझे रश्मि के साथ हुई अपनी मीटिंग का ध्यान आया और मुझे लगा के मुझे इस बारे में मिश्रा को बता देना चाहिए.
"मैं रश्मि से मिला था" मैने मिश्रा से कहा
"वो यहीं है अभी?" वो हैरत से बोला
"हां यहीं है और कुच्छ बताया उसने मुझे जो मुझे लगा के तुझको पता होना चाहिए" कहते हुए मैने उसको भूमिका के खून की रात यहीं इसी शहेर में होने की बात बताई.
"पर मुझे तो उसने कहा था के वो उस दिन मुंबई में थी" मिश्रा बोला
"एग्ज़ॅक्ट्ली" मैने कहा "दिन में वो वहीं थी पर रात में यहाँ थी और अगले दिन फिर वहीं थी"
थोड़ी देर तक मिश्रा खामोश रहा.
"वैसे एक बात सच कहीं यार तो मुझे नही लगता के उसने अपने पति को मारा है" थोड़ी देर बाद वो बोला
"लगता तो मुझे भी नही मेरे भाई पर फिर भी तुझे बताना ज़रूरी समझा" मैने कहा
"और अदिति के बारे में कुच्छ पता चला तुझे अपनी किताब के लिए?" मिश्रा ने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही. उसके बारे में हर कोई प्रेटी मच उतना ही जनता है जितना पोलीस फाइल्स में लिखा है. मैं तो सोच रहा था के ये आइडिया ड्रॉप ही कर दूँ" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"अगर तू चाहे तो मैं उसके पति के साथ तेरी मीटिंग फिक्स करा सकता हूँ. शायद वहाँ से कुच्छ इन्फ़ॉर्मेशन हासिल हो सके" मिश्रा ने कहा
"वो ज़्यादा से ज़्यादा क्या कहेगा? आइ आम श्योर के वो उसकी बुराई ही करेगा. बताएगा के क्यूँ उसने अपनी बीवी का खून कर दिया और कैसे वो कितनी बुरी थी"
"फिर भी एक बार कोशिश करके देख ले" मिश्रा ने कहा "कुच्छ भी ना पता हो इससे बेटर तो ये है के कुच्छ तो पता हो"
"बात तो सही है. मीटिंग कब अरेंज करा सकता है?" मैने पुचछा
"जल्दी ही करने की कोशिश करूँगा. वैसे ये रश्मि का क्या चक्कर है?"
"कोई चक्कर नही है" मैने कहा
"तू कुच्छ ज़्यादा ही नही मिल रहा उससे आजकल?"
"मुश्किल से 2-3 बार मिला हूँ यार" मैने कहा पर मैं जानता था के मेरे चहेरे को पढ़कर मिश्रा समझ जाएगा के माजरा क्या है और उसने एग्ज़ॅक्ट्ली वही किया.
"माजरा कुच्छ और ही है मेरे भाई" उसने कहा "बस ज़रा संभलकर रहना"
"ये रश्मि कौन है?" मिश्रा के जाने के बाद प्रिया ने मुझसे पुचछा
"वो एक मर्डर हुआ था ना मेरी कॉलोनी में, सोनी मर्डर केस, जो मरा था उसकी बेटी है" मैने कहा
"आपको कैसे जानती है?" उसने पुचछा
"उसके बाप के खून के बाद ही मिली थी. चाहती है के मैं उसके बाप के खूनी को ढूँढने में उसकी मदद करूँ" मैने जवाब दिया
"और आप ऐसा कर रहे हो?"
"शायद" मैने टालने वाले अंदाज़ में जवाब दिया
"आप वकील से जासूस कब बन गये"
"जासूस नही बना वकील ही हूँ इसलिए तो देख रहा हूँ के मेरे लिए शायद एक नया क्लाइंट बन जाए" मैने हॅस्कर कहा.
"नया क्लाइंट या नयी क्लाइंट?" वो भी वैसे ही हस्ते हुए बोली
"एक ही बात है यार. क्लाइंट तो है" मैने कहा
"दिखने में कैसी है?" उसने पुचा
"क्या मतलब?"
"मतलब के अच्छी दिखती है या बुरी दिखती है, लड़को को जो पसंद है वो उसमें है के नही"
जाने क्यूँ पर प्रिया का रश्मि के बारे में यूँ बात करना मुझे पसंद सा नही आया.
"तू इतना क्यूँ पुच्छ रही है?" मैने कहा
"ऐसे ही. जस्ट क्यूरियस के वो क्या है जो लड़के को पागल कर देती है किसी लड़की के लिए" उसने कहा "क्यूंकी मेरे लिए तो आज तक कोई पागल नही हुआ"
उसकी बात सुनकर मैं हस पड़ा.
"देख लड़के सबसे पहले तो सुंदरता के चक्कर में ही पड़ते हैं. खूबसूरत चेहरा देखते ही लट्तू हो जाते हैं पर बाद में लड़की का नेचर है जिससे वो आक्चुयल में प्यार करते हैं" मैने कहा.
"सर अगर ऐसी बात है ना तो वो शादी में वो लड़का मेरे पिछे आता पर वो मेरी उस कज़िन के पिछे गया जो मेरे सामने कुच्छ नही थी" वो थोड़ा गुस्से में बोली.
"हां तेरी वो बात अधूरी रह गयी थी" मुझे याद आया "अब बता के हुआ क्या था?"
"शादी थी. एक लड़का दिखा. देखने में अच्छा था. उससे पहले मैं और मेरी कज़िन इस बारे में ही बात कर रहे थे के हमें भी कोई लड़का ढूँढके शादी कर लेनी चाहिए. उस लड़के को देखकर मेरी कज़िन ने मुझसे कहा के देख मैं तुझे दिखाती हूँ के लड़के को कैसे फसाते हैं. फिर ना जाने क्या सोचकर मैने कह दिया के चल दोनो शर्त लगते हैं के कौन फसा पाती है और वो मान गयी. मुझे क्या पता था के मेरा तो नंबर ही नही आएगा. ट्राइ तक करने का चान्स नही मिला मुझे"
"क्यूँ ऐसा क्या हुआ?" मैने पुचछा.
"उसने जाकर उस लड़के से बात की और उसके बाद तो वो लड़का ऐसे खुश हो गया जैसे उसको भगवान के दर्शन हो गये हों. मैने जाकर बात करने की कोशिश की तो मुझे तो उसने देखा तक नही, बस मेरी कज़िन के पिछे पिछे था"
"ऐसा क्या कह दिया उसको तेरी कज़िन ने?" मैने पुचछा
"आइ थिंक उसने क्या कहा डोएसन्थ मॅटर. उसने जो किया उसकी वजह से वो लड़का उसके आगे पिछे था" वो बोली.
"और क्या किया उसने?" मैने पुचछा तो वो शर्मा गयी.
"कैसे बताऊं. छ्चोड़िए जाने दीजिए. बस कुच्छ किया था उसने" प्रिया बात टालते हुए बोली.
"अरे बता ना" मैने ज़ोर डाला तो वो फिर शर्मा गयी.
"अरे मुझसे क्या शर्मा रही है. चल बता" मैने फिर ज़ोर डाला.
"सर वो उसको बात करने के बहाने एक तरफ ले गयी. मैं भी पिछे पिछे चल दी. उसको पता नही था के मैं देख रही हूँ. वो उस लड़के को छत पर ले गयी और एक कोने में खड़ी होकर बात करने लगी. जाने क्या बात कर रहे थे पर उसकी बात सुनकर वो लड़का काफ़ी खुश तो लग रहा था. मैं च्छुपकर खड़ी हुई दोनो को देख रही थी और उसके बाद तो मेरी कज़िन ने जो हरकत की, वो देखकर तो मेरी आँखें खुली ही रह गयी"
"अच्छा?" मैने पुचछा "ऐसा क्या किया उसने?"
"सर बात करते करते वो अचानक उस लड़के के करीब गयी और उसने अपना हाथ उस लड़के के सीधा वहाँ पर रख दिया" प्रिया अपनी आवाज़ नीची करके ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.
"कहाँ रख दिया?" मैने भी उसी अंदाज़ में पुचछा.
"वहाँ पे सिर" उसने मेरी पेंट की तरफ आँख से इशारा करते हुए कहा.
"कहाँ?" मैने उसको च्छेदते हुए कहा.
"वहाँ पे सर. वो लड़को वाली जगह पे" उसने फिर दोबारा मेरी पेंट की तरफ इशारा किया.
"यहाँ पे?" मैने अपने लंड पर हाथ रखा.
"हां" वो जल्दी से बोली "और बस. वो लड़का तो जैसे उसका भक्त हो गया. और एक घंटे बाद तो मुझे दोनो दिखाई ही नही दिए कहीं. उसके बाद 2 दिन तक सर वो लड़का बस मेरी कज़िन के आगे पिछे ही घूमता रहा"
"वो इसलिए पगली क्यूंकी तेरी कज़िन उस लड़के को सीधा फाइनल स्टेज पर ले आई" मैने कहा.
"फाइनल स्टेज?" वो बोली
"हां मतलब लड़के लड़की के बीच में एंड में जो होता है. जब उस लड़के ने देखा के तेरी कज़िन सीधा मतलब की बात कर रही है तो वो उसके पिछे पिछे हो लिया" मैने कहा तो वो गहरी सोच में पड़ गयी.
"क्या सोच रही है?" मैने पुचछा.
"मुझे तो ये सब कुच्छ भी नही पता सर" वो बोली के तभी मेरा फोन बजने लगा.
फोन रश्मि का था. वो शाम को मिलना चाहती थी. मैने हाँ कहके फोन रख दिया. तब तक प्रिया वापिस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ चुकी थी. फोन रखके मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराया.
"ऐसे क्या देख रहे हैं?" उसने पुचछा
"सोच रहा के मेरे अगले बर्तडे तक एक साल कैसे कटेगा?" मैने हस्ते हुए कहा.
"मतलब?"
"मतलब ये के इस बर्तडे पेर गिफ्ट में जो चीज़ दिखाई दी है, अगले बर्तडे पर भी वही देखने की तमन्ना है"
मैने कहा तो वो शरम से लाल हो गयी.
"आहमेद साहब" उस शाम जब मैं घर जा रहा था तो मेरा फोन बजा. आवाज़ अंजान थी.
"जी हां बोल रहा हूँ. आप?" मैने पुचछा.
"हमारा नाम वीरेंदर ठकराल है" उस आदमी ने अपना नाम बताया तो मैं फ़ौरन उसको पहचान गया. वो उस लड़के का बाप था जिसपर रेप केस का इल्ज़ाम था.
"कहिए ठकराल साहब" मैने पुचछा.
"कहने का काम तो आपका है वकील साहब. कहते तो आप हैं अदालत में. हम तो बस सुनने वालो में से हैं" दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
उसकी इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था. मैं जानता था के वो मुझ पर ताना मार रहा है पर मैं जवाब में क्या कहूँ ये मुझे समझ नही आया.
"जी मैं समझा नही" मैं इतना ही कह पाया.
"तो कोई बात नही हम समझा देते हैं. आपको ये केस हारना है वाकई साहब" मुझे उस आदमी की साफ बात सुनकर हैरानी हुई. उसका कोई किराए का गुंडा ये कहता तो कोई बात नही थी पर उसने खुद मुझे ये बात कही, इसको कोर्ट में मैं उसके अगेन्स्ट उसे कर सकता था और ये शायद वो खुद भी जानता था, पर फिर भी कह रहा था.
"देखिए......." मैने कहना शुरू ही किया था के उसने मेरी बात काट दी.
"फोन पर तो कुच्छ भी नही दिखता आहमेद जी" उसने कहा "आप एक काम कीजिए हमारे घर आ जाइए, फिर कुच्छ आप दिखाना और कुच्छ हम भी दिखा देंगे"
मैं जानता था के वो मुझे घर बुलाके मुझसे क्या बात करेगा इसलिए मैने इनकार करना ही बेहतर समझा.
"मुझे नही लगता के ये ठीक रहेगा" मैने कहा.
"तो कोई बात नही. हम आपके घर आ जाते हैं. हम जानते हैं के आप कहाँ रहते हैं. वो क्या है के हम ये केस जल्दी से जल्दी निपटना चाहते हैं क्यूंकी लड़के को पढ़ने के लिए अमेरिका भेजना है और इस केस के चलते हम ऐसा कर नही पा रहे"
उसकी बात सुनकर मैं फिर हैरत में पड़ गया. आख़िर क्या चाहता है? मुझसे यूँ खुले आम मिलना कोर्ट में बिल्कुल उसके अगेन्स्ट जाता है और फिर भी मुझसे मिलने की ये कोशिश? और जिस अंदाज़ में वो कह रहा था, मैं जानता था के वो सच में मुझसे मिलने आ भी जाएगा.
"नही आपको आने की ज़रूरत नही" मैने कहा "मैं आ जाऊँगा. आप टाइम बता दीजिए"
उसने मुझे अगले दिन का टाइम देकर फोन रख दिया.
वीरेंदर ठकराल शहेर का बहुत बड़ा आदमी था. एक बहुत ही अमीर बिज़्नेस मॅन. पॉलिटिक्स में इन्वॉल्व्ड था. जब मैने ये रेप केस लिया था तो हर किसी ने मुझे कहा था के ठकराल के साथ पंगा लेने का नतीजा ये होगा के मेरी भी लाश कहीं पड़ी मिलेगी जो के अब तक हुआ नही था. केस लेने के बाद मुझे ये अड्वाइस दी गयी थी के मैं केस हारकर ठकराल के साथ हाथ मिला लूँ क्यूंकी वो मेरे काफ़ी काम आ सकता है. ये बात खुद भी मेरे दिमाग़ में कई बार आई थी और अब भी मेरे दिमाग़ में कहीं ऐसा करने की ख्वाहिश थी.
क्रमशः................................
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