RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट-17
गतान्क से आगे..................
मैने मिश्रा को वो सारी बात बता दी जो मुझे बंगलो और सोनी मर्डर केस के बारे में पता चली थी. जो एक बात मैं उससे भी च्छूपा गया वो थी हैदर रहमान का रुमाल वहाँ मिलने की बात. मैं अब तक हैदर रहमान से मिला नही था और उसके बारे में कोई भी बात करने से पहले ज़रूरी था के मैं पहले खुद ये डिसाइड करूँ के क्या वो ऐसा कर सकता है या नही. और उसके लिए फिलहाल अभी और इन्फर्मेशन हासिल करना ज़रूरी था.
"फ्रिड्ज?" मिश्रा हैरत से बोला "उस फ्रिड्ज में जगह है इतनी?"
"मेरी हाइट 6 फुट से ज़्यादा है और मैं पूरा आ गया उसके अंदर. उसके बाद भी इतनी जगह थी के तू भी अंदर घुस सकता था. वो फ्रिड्ज बहुत बड़ा है यार" मैने कहा
"और ये ख्याल आया कैसे तुझे?" उसने पुचछा
एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में आया के मैं उसको रश्मि और मेरे बंगलो में जाने के बारे में बता दूँ पर उसका नतीजा ये होता के वो मुझसे और ज़्यादा सवाल पुचहता और फिलहाल मेरे पास उसको बताने के लिए और ज़्यादा कुच्छ ख़ास था नही.
"मुझे याद था के मैने एक बहुत बड़ा फ्रिड्ज देखा था जब तू और मैं तलाशी लेने गये थे. अपने घर में फ्रिड्ज से कुच्छ निकल रहा था तब मुझे ख्याल आया के फ्रिड्ज के अंदर भी तो कोई हो सकता है क्यूंकी उसकी ट्रेस मैने बाहर रखी हुई देखी थी" मैने कहानी बनाते हुए कहा
"ह्म" मिश्रा बोला "और निकला कब होगा वो?"
"कभी भी निकल सकता है यार. अंदर बैठा रहा होगा काफ़ी देर तक और जब मौका मिला तो निकल भागा. घर की इतनी सारी खिड़कियाँ है वो कहीं से भी निकल सकता था" मैने कहा पर मिश्रा मेरे जवाब से सॅटिस्फाइड नही था.
"तू एक बहुत बड़ा पॉइंट मिस कर रहा है मेरे भाई" वो बोला "अगर उस बंदे ने खून किया था तो उसको क्या दरकार थी वहीं घर में ही बैठे रहने की और वो भी फ्रिड्ज में घुसके. उसने खून किया था यार वो सॉफ बचके निकल सकता था वहाँ से. वहीं घर में बैठे रहने की क्या ज़रूरत थी उसको?"
मिश्रा जो कह रहा था वो बिल्कुल सही था. इस बारे में मैने बिल्कुल नही सोचा था. अगर कोई किसी की जान ले सबसे पहली रिक्षन वहाँ से निकल भागना होता है. अगर उसको घर से कुच्छ लेना ही था तो पूरी रात थी उसके पास. वो आराम से घर की तलाशी लेकर वहाँ से निकल सकता था. बंगलो 13 के नाम से तो वैसे भी लोग डरते थे और उसके आस पास भी नही जाते थे तो इस बार का तो कोई डर ही नही था के कोई देख सकता था. तो फिर वो आदमी खून करने के बाद भला वहाँ क्यूँ रहेगा?
"कह तो तू सही रहा है" मैने कहा "पर जो भी वजह थी, इतना तो हम जानते हैं के सोनी का खूनी उसकी जान लेके के बाद घर से निकला नही. अट लीस्ट दरवाज़े से तो नही. और अनलेस आंड अंटिल उसके पास कोई मॅजिकल पवर्स थी, मैं पूरे दावे के साथ कहता हूँ के वो वहीं फ्रिड्ज के अंदर च्छूपा बैठा था जब उस नौकरानी ने आकर घर का दरवाज़ा खोला और जहाँ तक मेरा ख्याल है, जब वो पोलीस को बुलाने बंगलो के सामने वाली चौकी की तरफ गयी, तभी वो वहाँ से निकल भागा"
"पक्के तौर पर तो मैं खुद उस फ्रिड्ज को देखने के बाद ही कुच्छ कह सकता हूँ. कल लगाऊँगा उधर का चक्कर. वैसे अब मेरा कोई फयडा तो है नही इसमें क्यूंकी केस सी.बी.आइ के पास है पर अगर मैने कुच्छ कमाल कर दिखाया तो मेरी वाह वाह हो जाएगी" वो मुस्कुराता हुआ बोला
हम थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे और फिर वो उठकर मेरे ऑफीस से जाने लगा. जाते जाते वो पलटा.
"अरे इशान तू वो अदिति के बारे में कोई बुक लिख रहा था ना"
"अदिति नही बंगलो के बारे में" मैने कहा
"हाँ वही" वो बोला "एक बात पता चली है मुझे. सोचा तेरे फ़ायडे की हो सकती है. उस अदिति का हज़्बेंड अभी भी ज़िंदा है. जैल में उमेर क़ैद की सज़ा काट रहा है. तू चाहे तो मिल सकता है उससे. शायद उससे कुच्छ इन्फर्मेशन मिल सके तुझे"
मैं, रुक्मणी और देवयानी डिन्नर टेबल पर साथ बैठे थे. वो दोनो बिल्कुल नॉर्मल थी पर मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था. जबसे उन दोनो को बिस्तर पर एक साथ देखा था, ना जाने क्यूँ उन दोनो के सामने मैं बड़ा अनकंफर्टबल फील करता था. दोनो साथ हों तब भी और अगर रुक्मणी अकेली हो तब भी मुझे उससे बात करते हुए बार बार वही सीन याद आता था. वो दोनो अपनी मर्ज़ी की भी मलिक थी और इस घर की भी और मैं तो यहाँ फ्री में रह रहा था तो हिसाब से मुझे उन दोनो के कुच्छ भी करने पर कोई ऐतराज़ नही होना चाहिए थे. ऐसा तो कुच्छ भी नही था के उन दोनो में से कोई एक मेरी प्रेमिका या बीवी थी जिसकी वजह से मुझे उनकी इस हरकत पर ऐतराज़ हो रहा था पर फिर भी ना जाने क्यूँ, घर के अंदर आते ही मुझे ऐसा लगने लगता था के उन दोनो के सामने से हट जाऊं.
सबसे ज़्यादा परेशान मुझे ये बात करती थी के देवयानी जानती थी के मैने उन दोनो को देखा है इसलिए मैं कोशिश यही करता था के उसके सामने ना आऊँ और अगर आ भी जाऊं तो उससे नज़र ना मिलाउ.
"इतने खामोश क्यूँ हो इशान?" देवयानी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "कोई बात परेशान कर रही है क्या?"
मैने इनकार में गर्दन हिलाई पर जानता था के उसने जान भूझकर ये बात छेड़ी है. अब उसने कह दिया है तो रुक्मणी भी मुझसे ज़रूर वही सवाल करेगी क्यूंकी उसको भी मेरा बर्ताव बदला हुआ लग रहा था. सवालों से बचने का मुझे एक ही तरीका दिखाई दे रहा था और वो ये था के मैं बात को बदल दूँ.
जो एक बात मेरे दिमाग़ में चल रही थी और जिसके बारे में मैं रुक्मणी से पुच्छना भी चाहता था वो ये थी के बंगलो 13 के साइड वाले घरों में कौन रहता है. अगर उस रात कोई बंगलो में कोई आया गया था जब सोनी का खून हुआ था तो बहुत मुमकिन के उन घरों के लोगों में से किसी ने देखा हो. बंगलो 13 के आस पास बना हुआ लॉन और गार्डेन काफ़ी बड़ा था और घर के चारों तरफ एक ऊँची दीवार थी जिस वजह से दोनो तरफ के घर असल बंगलो से थोड़ी दूर पर थे पर ऐसा हो सकता था के शायद उन घर के लोगों में से किसी ने कुच्छ देखा हो. मिश्रा ने मुझे बताया था के वो ऑलरेडी पुच्छ चुका है और कुच्छ हासिल नही हुआ पर फिर भी मैने खुद पता लगाना ठीक समझा. मुसीबत ये थी के मैं रुक्मणी के साथ भी बड़ा अनकंफर्टबल फील कर रहा था इसलिए उससे बात कर नही पाया. पर इस वक़्त जबकि मैं खुद ही बात बदलना चाहता था तो इस वक़्त मैं वो बात उठा सकता था. वैसे भी दोनो बहनो को गॉसिप करने में बड़ा मज़ा आता था तो इस बहाने टॉपिक ऑफ डिस्कशन मेरे खामोश रहने से हटकर बंगलो 13 बन सकता था.
"आपको पता है के बंगलो 13 के आस पास के घरों में कौन रहता है?" मैने सवाल किया तो दोनो बहनो ने पहले तो मुझे हैरत से पुचछा फिर थोड़ी देर बाद रुक्मणी बोली.
"उस लेन में ज़्यादा लोग नही रहते. कुल मिलके 15 घर हैं. बंगलो 7 तक के घरों में तो फॅमिलीस रहती हैं पर फिर 8,9.10,11 खाली पड़े हैं. फिर 12 ऑक्युपाइड है और 14,15 खाली हैं. उस मनहूस बंगलो के आस पास कोई रहना नही चाहता इसलिए लोग घर छ्चोड़ छ्चोड़के चले गये"
भले ही वो लेन खाली पड़ी हो पर मेरे मतलब की बात मैं सुन चुका था. बंगलो 12 में कोई रहता है.
"12 में कौन रहता है?" मैने पुचछा
"वो घर कम होटेल ज़्यादा है. बना भी इस तरीके से हुआ है के उसको होटेल के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सके" रुक्मणी बोली
"मैं समझा नही" मैने कहा
"वो जिस औरत का है वो इस दुनिया में अकेली है. कोई नही है उसके आगे पिछे. उस घर में अकेली रहती है इसलिए उसने किरायेदार रखने शुरू कर दिए. घर को 1 रूम और 2 रूम सेट्स में बाँट रखा है जिन में वो किरायेदार रखती है. इस इलाक़े के सबसे बड़ी औरत है वो" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए कहा.
"बड़ी?" मैने फिर सवाल किया
"मोटी है बहुत. हाढ़ से ज़्यादा. इतना वज़न होगा उस औरत में के अगर किसी वज़न नापने वाली मशीन पर कदम रख दे तो मशीन ही टूट जाए" कहकर दोनो बहें ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"वैसे नेचर की काफ़ी अच्छी है वो" हसी रोकते हुए रुक्मणी बोली "वैसे लोग कहते हैं के किराया काफ़ी ज़्यादा लेती है"
"फिलहाल कोई किरायेदार रह रहा है वहाँ?" मैने पुचछा
"पता नही पर मैने सुना था के वो सोनी के मर्डर के बाद उस बेचारी को भी काफ़ी नुकसान हुआ है. जो एक किरायेदार था वो खून होने के 2 दिन बाद ही घर छ्चोड़के भाग गया था और अब कोई वहाँ रहने की हिम्मत नही करता. क्यूँ तुम शिफ्ट होने की सोच रहे हो क्या?" इस बात पर वो दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"नही मेरा ऐसा की नेक इरादा नही है" मैने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा "वैसे आप गयी हैं कभी बंगलो 12 में?"
"हाँ मेरा तो पूरा घर देखा हुआ है" रुक्मणी बोली "कभी कभी चली जाती हूँ ऐसे ही बात करने"
"उस घर से बंगलो 13 नज़र आता है?" मैने बात जारी रखते हुए कहा.
"नही वैसे तो नही दिखाई देता क्यूँ दोनो घरों के बीच एक ऊँची दीवार है और तुमने तो देखा ही है के बंगलो 13 का कॉंपाउंड कितना बड़ा है. घर का कॉंपाउंड कम रेस कोर्स ज़्यादा लगता है. पर हां अगर बंगलो 12 की छत पर जाओ तो वहाँ से बंगलो 13 दिखाई देता है. पर तुम ये सब क्यूँ पुच्छ रहे हो" रुक्मणी ने पुचछा
उसके इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैं चुप ही रहा पर थोड़ी देर बाद जवाब देवयानी ने दिया.
"इशान अगर तुम ये जानने की कोशिश कर रहे हो के खून की रात बंगलो 12 से किसी ने कुच्छ देखा था तो तुम्हें झांवी से बात करनी चाहिए"
मुझे उसकी अकल्मंदी पर हैरत हुई. वो फ़ौरन समझ गयी थी के मैं क्या कोशिश कर रहा हू.
"ये झांवी कौन है?" मैने पुचछा
"नौकरानी है" देवयानी सीधा मेरी नज़र से नज़र मिलाते हुए बोली "बंगलो 12 में मैं भी गयी हूँ इशान. उस घर की मालकिन मिसेज़ पराशर इतनी मोटी हैं के अपनी कुर्सी से उठ तक नही पाती तो इस बात का सवाल ही नही के उन्होने कुच्छ देखा हो. हां पर वो नौकरानी झांवी एक पक्की छिनाल है. अगर उसने बंगलो 13 में कुच्छ नही देखा तो समझ जाओ के किसी ने नही देखा"
मैं देवयानी की बात सुनकर मुस्कुरा उठा.
"कहते हैं के कोई बंजारन है वो" रुक्मणी ने डाइनिंग टेबल से उठते हुए कहा.
अगले दिन की सुबह मेरे लिए एक प्यार भरी सुबह थी क्यूंकी मेरी आँख रश्मि की आवाज़ सुनकर खुली.
"हां रश्मि जी" मैं फ़ौरन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गया "कहिए"
"फर्स्ट यू गॉटा स्टॉप कॉलिंग मे रश्मि जी. आंड सेकंड्ली मैं सोच रही थी के आप मिलने आ सकते हैं क्या?" दूसरी तरफ से रश्मि की आवाज़ आई जिसने सुनकर मेरे दिल की धड़कन कई गुना बढ़ गयी. वही सुरीली मधुर आवाज़.
"हाँ बिल्कुल" कहते हुए मैने घड़ी की तरफ नज़र डाली. सुबह के 7 बज रहे थे. 11 बजे मेरी कोर्ट में रेप केस को लेकर हियरिंग थी. 4 घंटे का वक़्त अभी और था मेरे पास.
"मैं अभी एक घंटे में आपके पास पहुँचता हूँ" मैने बिस्तर से उठकर खड़े होते हुए कहा
"ठीक है" रश्मि बोली "कुच्छ खाकर मत आईएगा. ब्रेकफास्ट साथ में करेंगे"
"डील" कहते हुए मैने फोन डिसकनेक्ट किया.
मुझे अपने उपेर हैरत थी के सिर्फ़ एक उसकी आवाज़ सुनकर ही मैं किसी बच्चे की तरह खुश हो रहा था. सुबह जैसे एक अलग ही रोशनी फेला रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैने अभी अभी पूरी दुनिया पर जीत हासिल की हो. जाने क्या था उसकी आवाज़ में पर मेरा दिल जैसे मेरे अपने ही बस में नही था. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैं जल्दी जल्दी उससे मिलने के लिए तैय्यार हो रहा था. आजकल तो जैसे मेरी ज़िंदगी ही बस 2 आवाज़ों में खोकर रह गयी थी. एक वो गाने की आवाज़ जो मैं सुनता था और दूसरी रश्मि की. फरक सिर्फ़ इतना था के गाने की आवाज़ सुनकर मेरी रूह को सुकून मिलता था पर रश्मि की आवाज़ मेरी दिल को बेचैन भी करती थी और सुकून भी देती थी और वो भी एक साथ, एक ही वक़्त पे.
जब उसने अपने होटेल कर दरवाज़ा मेरे लिए मुस्कुराते हुए खोला तो मुझे लगा के मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. उसका वो मुझे देखकर मुस्कुराना और फिर नज़र झुखा लेना मुझे ख़तम कर देने के लिए काफ़ी था. वो मुझे देखकर खुश भी हो रही थी और साथ ही शायद शर्मा भी रही थी और मेरे ख्याल से शरम की वजह मेरी और उसकी आखरी मुलाक़ात थी जब मैने जाने क्यूँ कह दिया था के उसका मुझपर पूरा हक है. जो भी था, बस उस वक़्त तो मैं उसको ऐसे देख रहा था जैसे कोई पतंगा रोशनी को देखता है.
|